बीते 5 मार्च की रात जयपुर शहर की सब से प्रमुख सड़क जवाहरलाल नेहरू मार्ग (जेएलएन मार्ग) पर कई तेंदुए चहलकदमी कर रहे थे. शहर के बीचोबीच स्थित इस सड़क पर पूरी रात वाहनों का आनाजाना लगा रहता है. सड़क पर चहलकदमी करते तेंदुओं को देख कर उधर से गुजरने वाले वाहन चालकों की सांसें थम सी जाती थीं. फिर भी वे सावधानीपूर्वक बचतेबचाते निकलते रहे. तेंदुओं के इस सड़क पर घूमने का सिलसिला रात करीब 12 बजे से 6 मार्च की सुबह लगभग साढ़े 5 बजे तक चलता रहा. इस बीच तेंदुए कई बार सड़क पर आए. लोगों ने उन्हें इस तरह सड़क पर घूमते पहली बार देखा था, इसलिए पूरी रात बिजली की रोशनी से जगमग रहने वाली इस सड़क पर कुछ लोगों ने तेंदुओं के फोटोग्राफ भी खींचे.
गनीमत यह रही कि किसी तेंदुए ने न तो किसी वाहन चालक पर हमला किया और न ही कोई तेंदुआ किसी वाहन की चपेट में आया. ये तेंदुए रात को 6 घंटे तक करीब 2 किलोमीटर तक सड़क पर इधर से उधर घूमते रहे. सूचना मिलने पर पुलिस और वन विभाग के अधिकारी भी वहां पहुंचे और तेंदुओं पर नजर रखते रहे. सुबह करीब साढ़े 5 बजे सभी तेंदुए स्मृति वन में चले गए. 6 मार्च को दिन में वन विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों ने उन तेंदुओं की तलाश की, लेकिन उन का कुछ पता नहीं चला.
वन अधिकारियों का कहना था कि जयपुर में राजस्थान यूनिवर्सिटी कैंपस व स्मृति वन के आसपास तेंदुओं का देखा जाना आम बात है. लेकिन सड़क पर घूमते देखे गए तेंदुओं से डरने का एक कारण यह था कि इधर सरिस्का बाघ अभयारण्य में आदमखोर तेंदुए का आतंक फैला हुआ था.
इसलिए लोगों को लग रहा था कि कहीं आदमखोर तेंदुए सरिस्का से भटक कर जयपुर तो नहीं आ गए हैं. दरअसल सरिस्का बाघ परियोजना अलवर से जयपुर तक फैली है. जयपुर में घूम रहे तेंदुओं का भले ही कुछ पता नहीं चला, लेकिन अलवर जिले में सरिस्का इलाके के कई गांवों में आदमखोर तेंदुओं का खौफ अभी खत्म नहीं हुआ है. सरिस्का इलाके में आदमखोर तेंदुओं का आतंक पिछले साल अक्तूबर से चल रहा है.
फरवरी, 2017 की 5 तारीख थी. अलवर जिले की थानागाजी तहसील के कस्बा किशोरी के पास कालालांका गांव सरिस्का बाघ परियोजना इलाके में ही बसा है. इसी गांव के रहने वाले प्रभुदयाल मीणा की पत्नी बिरदी देवी उस दिन दोपहर बाद 4 बजे के करीब अपने खेतों में फसल की रखवाली करने गई थी.
सोच में डूबी बिरदी देवी ने देखा कि कुछ जंगली जानवर खेतों में फसल उजाड़ रहे हैं. सरिस्का का इलाका होने की वजह से ऐसे जंगली जानवरों की कमी नहीं है. जंगली सूअर, रोजड़े (नीलगाय जैसा एक जानवर), नीलगाय वगैरह जानवर खेतों में घुस जाते हैं. इन इलाकों में रहने वाले किसान इन जानवरों को भगा देते हैं, लेकिन मारते नहीं हैं.
बिरदी देवी खेत में घुसे जंगली जानवरों को भगाने के लिए पहाड़ की तलहटी की ओर चली गई. उसी बीच झाडि़यों में छिपे बैठे तेंदुए ने उस पर हमला कर दिया. 45 साल की बिरदी देवी उस तेंदुए का मुकाबला नहीं कर पाई. वह बचाव के लिए चिल्लाई. आसपास के खेतों में काम कर रहे लोगों ने उस की आवाज सुनी तो उस तरफ दौड़े. ग्रामीणों को आता देख कर तेंदुआ जंगल की ओर भाग गया. लोगों ने मौके पर पहुंच कर देखा बिरदी देवी लहूलुहान पड़ी थी. उस की गरदन से खून बह रहा था. गांव वाले उसे अस्पताल ले जाते, उस के पहले ही उस ने दम तोड़ दिया.
तेंदुए के हमले से बिरदी देवी की मौत से गांव वालों में आक्रोश फैल गया. सूचना मिलने पर तहसील थानागाजी के एसडीएम कैलाश शर्मा, सरिस्का के एसीएफ सुरेंद्र सिंह धाकड़, थानागाजी के पूर्व विधायक कांती मीणा और पुलिस के अधिकारी मौके पर पहुंच गए.
बिरदी देवी की कोई संतान नहीं थी. अधिकारियों ने मृतका के परिवार वालों को मुआवजे के रूप में 2 लाख रुपए की आर्थिक सहायता देने का आश्वासन दिया. गांव वालों का कहना था कि तेंदुआ पहले ही 2 लोगों की जान ले चुका है, अब उस ने तीसरे इंसान को निशाना बनाया है. ऐसे आदमखोर तेंदुए को तुरंत पकड़ा जाए.
गांव वालों को शांत कराते हुए अधिकारियों ने तेंदुए को पकड़ने के लिए पिंजरा लगा दिया. उस दिन तो जैसेतैसे मामला सुलट गया, लेकिन अगले ही दिन एक और बड़ी मुसीबत खड़ी हो गई.
6 फरवरी को किशोरी कस्बे के पास रायपुरा गांव के जंगल में तेंदुए ने मदनलाल बलाई की पत्नी संती देवी को अपना शिकार बना डाला. रायपुरा गांव और कालालांका गांव के बीच मात्र 3 किलोमीटर की दूरी है. संती देवी उस दिन शाम को करीब 5 बजे अपनी 2 बेटियों के साथ खेत में फसल की रखवाली करने गई थी, तभी अचानक खेत में खड़ी फसलों में से छलांग लगा कर निकले तेंदुए ने उसे दबोच लिया था.
मां पर तेंदुए को झपटते देख दोनों बेटियों ने शोर मचाया तो आसपास के खेतों में काम कर रहे लोग मौके पर आ पहुंचे. लेकिन तब तक तेंदुए ने उस की जान ले ली थी. मां की मौत पर दोनों बेटियां चीखचीख कर रो रही थीं. सूचना मिलने पर पुलिस और प्रशासन के अधिकारी मौके पर पहुंचे, लेकिन वन विभाग के अधिकारी नहीं आए.
गांव वालों के डर से करीब 4 घंटे बाद सरिस्का मुख्यालय से डीएफओ बालाजी करी पुलिस बल के साथ मौके पर पहुंचे. लगातार तेंदुए के हमले से 2 महिलाओं की मौत होने से लोगों का गुस्सा भड़क उठा था. उन्होंने संती देवी का शव उठाने से इनकार कर दिया.
गांव वालों ने अधिकारियों से साफ कह दिया था कि तेंदुए का आतंक पिछले 4-5 महीने से लगातार बढ़ता जा रहा है. इस से वे डरे हुए हैं. करीब साढ़े 4 महीने पहले 28 सितंबर, 2016 को प्रतापगढ़ इलाके के सावंतसर गांव में तेंदुए ने रेवड़मल का शिकार किया था. वह रात को अपने खेत में पानी देने जा रहा था.
इस के बाद 20 अक्तूबर, 2016 को प्रतापगढ़ इलाके के ही भड़ाज गांव में तेंदुए ने 55 साल की बूढ़ी गुल्ली देवी बलाई को मौत के घाट उतार दिया था. तेंदुए के लगातार हो रहे हमलों की इन घटनाओं से साफ हो गया था कि सरिस्का बाघ अभयारण्य का कोई तेंदुआ आदमखोर हो चुका है.
दरअसल, एक बार इंसान का खून मुंह लगने से किसी शेर, बाघ और तेंदुए के नरभक्षी बन जाने की संभावना बढ़ जाती है. सन 2016 के सितंबर और अक्तूबर महीने में तेंदुए के हमले से हुई 2 लोगों की मौत के बाद सरिस्का प्रशासन ने इस इलाके से 2 तेंदुओं को पकड़ कर जयपुर चिडि़याघर भेज दिया गया था.
इस के बाद कुछ दिनों तक इलाके में तेंदुए के हमले की घटनाएं नहीं हुईं. जयपुर चिडि़याघर भेजे गए दोनों तेंदुओं का बधियाकरण करने और चिप लगाने के बाद उन्हें इसी साल जनवरी के आखिर में वापस सरिस्का के जंगल में छोड़ दिया गया था.
रायपुर गांव में संती देवी की मौत पर गांव वाले उस का शव ले कर पूरी रात बैठे रहे. अगले दिन 7 फरवरी की सुबह गांव वालों ने किशोरी-अजबगढ़ सड़क मार्ग को पत्थर लगा कर जाम कर दिया था, किशोरी कस्बे की बाजार बंद करा दी, साथ ही आसपास के स्कूलों की छुट्टी करा कर बैंक पर भी ताला लगा दिया.
नाराज गांव वाले आदमखोर तेंदुए को पकड़ने, पीडि़त पक्ष के घर वालों को सरकारी नौकरी देने और 10 लाख रुपए का मुआवजा देने की मांग कर रहे थे. चूंकि तेंदुए के आतंक से आसपास के बीसियों गांवों के लोग डरे हुए थे, इसलिए कई गांवों के लोग रायपुर पहुंच गए.
अधिकारियों के लगातार समझाने और कई दौर की वार्ता के बाद दोपहर करीब 12 बजे संती देवी के शव का पोस्टमार्टम कराया गया. इस बार संती देवी की लाश से तेंदुए के साक्ष्य एकत्र किए गए. इसी के साथ अधिकारियों ने गांव वालों से कहा कि सरकार के स्तर से जो कुछ संभव हो सकेगा, वह दिलाया जाएगा.
इस के बाद सरिस्का बाघ अभयारण्य के अधिकारियों ने आदमखोर तेंदुए को पकड़ने के लिए 4 अलगअलग जगहों पर पिंजरे लगा दिए, साथ ही तेंदुए की तलाश के लिए 5 टीमें बना कर 40 कर्मचारी पिंजरों वाले इलाकों में तैनात कर दिए गए. अधिकारियों ने गांव वालों को भी तेंदुए से सावधान रहने को कहा.
उन दिनों खेतों में फसल पकने की ओर थी. ऐसे में फसल को जंगली जानवरों से बचाने के लिए किसानों ने अपने खेतों में मचान बना लिए, ताकि फसल के साथ खुद का बचाव किया जा सके. वन कर्मचारियों की मेहनत 9 फरवरी को रंग लाई. उस दिन 2 तेंदुओं को पकड़ लिया गया. इस में एक नर था और एक मादा.
मादा तेंदुआ रायपुर जंगल के पास किसान करण सिंह के खेत में लगे पिंजरे में फंस गई थी, जबकि नर तेंदुए को ट्रंकुलाइज कर के पकड़ा गया. यह तेंदुआ उसी इलाके में नारायणी माता के जंगल में घूम रहा था. ग्रामीणों की सूचना पर वनकर्मियों ने उसे बेहोश कर के पिंजरे में कैद कर लिया था. करीब साढ़े 5 साल की उम्र का यह तेंदुआ मामूली रूप से घायल था.
मादा तेंदुआ करीब साढ़े 3 साल की थी. 2 तेंदुए पकड़े जाने पर जयपुर चिडि़याघर से डा. अरविंद माथुर को मौके पर बुलाया गया. उन्होंने दोनों तेंदुओं की जांच कर के उन्हें स्वस्थ बताया. रायपुर के जंगल में पकड़ी गई मादा तेंदुए को मृतका संती देवी की दोनों बेटियों और अन्य ग्रामीणों को दिखाया गया, ताकि यह पता चल सके कि आदमखोर तेंदुआ यही है या दूसरा.
हालांकि लोगों ने उसी तेंदुए के आदमखोर होने की बात कही, लेकिन वन विभाग ने आधिकारिक तौर पर इस बात की पुष्टि नहीं की.
2 तेंदुए पकड़े जाने के बाद यह माना जा रहा था कि संभवत: अब शांति हो जाएगी. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. 9 फरवरी की रात थानागाजी इलाके की भूडि़यावास ग्राम पंचायत के गांव गढ़ी नवल सिंह में तेंदुए ने रतन सिंह के जानवरों के बाड़े में घुस कर एक गाय, एक बकरी और एक पालतू कुत्ते का शिकार कर लिया.
तेंदुए से आतंकित गांव वालों ने थानागाजी के समीपवर्ती बामनवास चौगान, सूरतगढ़, अजबगढ़, अंगारी, बीसूणी, बाछड़ी, कालालांका आदि गांवों में रात को चौकीदारी शुरू कर दी.
इसी बीच 12 फरवरी को फिर एक घटना घट गई. आदमखोर तेंदुए ने एक ही दिन में 2 लोगों को शिकार बना डाला. तेंदुए ने उस दिन सुबह किशोरी कस्बे के पास जैतपुर गांव में खेत पर चारा लेने जा रही 37 साल की संती देवी पत्नी रिछपाल सैनी को मार डाला. उसी दिन शाम को करीब 7 बजे एक तेंदुआ इसी इलाके में सिलीबावड़ी गांव में 55 साल के बूढ़े रामकुंवर मीणा को घर से खींच ले गया.
दोनों घटनाएं डेढ़, 2 किलोमीटर के दायरे में घटी थीं. जैतपुर में तेंदुए की शिकार हुई संती देवी के पति रिछपाल सैनी की 13 साल पहले सांप के काटने से मौत हो चुकी थी. संती देवी अपने 6 बच्चों का खेती और मजदूरी कर के पालनपोषण कर रही थी. परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी. उस की 2 बेटियों की शादी हो चुकी थी, जबकि 2 बेटियां और 2 बेटे और थे. घटना के समय संती देवी के साथ उस की बेटी पूजा भी थी.
पूजा ने भाग कर जान बचाई थी. जैतपुर में सुबह संती देवी की मौत के बाद हालात तनावपूर्ण हो गए. आसपास के हजारों लोग मौके पर एकत्र हो गए. उन्होंने रास्ते जाम कर दिए. राजपा विधायक डा. किरोड़ीमल मीणा, पूर्व विधायक कांती मीणा और कृष्णमुरारी गंगावत सहित कई जनप्रतिनिधि भी पहुंच गए.
दिन भर चले हंगामे के बाद शाम को संती देवी के शव का पोस्टमार्टम कराया गया. वन विभाग ने मृतका के घर वालों को 4 लाख रुपए मुआवजा देने पर सहमति जताई. अधिकारी जैतपुर में मामला शांत कर रवाना हुए ही थे कि सिलीबावड़ी में तेंदुए के हमले से रामकुंवर मीणा की मौत की खबर आ गई. आखिरकार अधिकारी रास्ते से वापस लौट कर सिलीबावड़ी पहुंचे.
एक ही दिन में 2 लोगों के शिकार से लोग खासा नाराज थे. हालात बेकाबू होते जा रहे थे. 5 से 12 फरवरी तक 8 दिनों में तेंदुए के हमले से 4 लोगों की मौत हो चुकी थी. इस से 4 महीने पहले 2 लोगों को तेंदुए ने अपना शिकार बनाया था. 6 लोगों की मौत से गांव वालों का गुस्सा होना स्वाभाविक था.
हालात बेकाबू होते देख कर 12 फरवरी की शाम को सरकार ने अधिकारियों को आदमखोर तेंदुए को देखते ही गोली मार देने के मौखिक आदेश दे दिए.
इसी के साथ अलवर जिला मुख्यालय से कलेक्टर मुक्तानंद अग्रवाल और एसपी राहुल प्रकाश को मौके पर पहुंच कर हालात संभालने के निर्देश दिए गए. अलवर से 4 शूटर ले कर कलेक्टर और एसपी रात को ही उस इलाके में पहुंच गए. इस के अलावा जिला सवाई माधोपुर स्थित रणथंभौर बाघ अभयारण्य से स्पैशल टाइगर प्रोटेक्शन फोर्स भी आदमखोर तेंदुए को पकड़ने के लिए सरिस्का के प्रभावित इलाके में भेजा गया.
13 फरवरी को भी सर्च औपरेशन चलता रहा. पुलिस और वन विभाग के 150 से ज्यादा जवान आदमखोर तेंदुए की खोज में जुटे थे. पुलिस का डौग स्क्वायड भी तेंदुए की तलाश में लगा था. इस के अलावा ड्रोन कैमरे की भी मदद ली गई. कई जगह पिंजरे लगाए गए. प्रशासन ने गांवों में माइक से सूचना प्रसारित कराई कि गांव वाले शाम को और सुबह के समय जल्दी खेतों में न जाएं. अकेले भी खेत या जंगल में जाने से बचें.
तेंदुए को ट्रंकुलाइज करने के लिए 3 टीमें अलग से तैनात की गईं. इन में एक टीम जयपुर चिडि़याघर व दूसरी रणथंभौर और तीसरी सरिस्का से बुलाई गई थी. ये टीमें आसपास के वाटर होल्स पर निगरानी करती रहीं, ताकि पानी पीने के लिए आने पर तेंदुए को ट्रंकुलाइज कर पकड़ा जा सके. तमाम प्रयासों के बावजूद आदमखोर तेंदुए का पता नहीं चला.
14 फरवरी को भी सर्च अभियान चलता रहा. 20-22 जवानों व वन कर्मचारियों की 6 टीमें आदमखोर तेंदुए की तलाश में जुटी रहीं.
भरतपुर से केवलादेव पक्षी अभयारण्य की 8 लोगों की टीम भी घना के निदेशक बीजू राय के नेतृत्व में सरिस्का आ गई. बीजू राय को तेंदुए के बारे में अच्छी जानकारी है. इस के अलावा तेंदुए ने जिन इलाकों में अब तक हमला किया था, उन इलाकों में 20 कैमरे लगाए गए.
पेड़ों पर लगाए गए इन कैमरों में सेंसर भी लगे हुए थे, ताकि किसी जानवर के कैमरे के सामने से गुजरने पर उस की तसवीर कैद हो जाए. 1-2 जगह पंजों के निशान जरूर मिले, लेकिन तेंदुआ फिर भी नहीं मिला.
15 फरवरी का दिन भी आदमखोर तेंदुए की तलाश में गुजर गया. 7 टीमें करीब 15 किलोमीटर के दायरे में तेंदुए की तलाश में लगी रहीं. सिलीबावड़ी पहाड़ पर पगमार्क मिलने पर वहां एक और पिंजरा लगाया गया. तेंदुए को पकड़ने के लिए उदयपुर से 2 पिंजरे और मंगवाए गए. आदमखोर के न पकड़े जाने से करीब 2 दरजन गांवों के लोगों में दहशत कम नहीं हुई.
18 फरवरी को कस्बा किशोरी के पास गोपालपुरा इलाके में एक मादा तेंदुआ वन विभाग के पिंजरे में आ फंसी. इस से पहले तेंदुए ने किशोरी कस्बे के पास रामजी का गुवाड़ा में एक घर के बाड़े में पशुओं पर हमला कर पाड़े को मार दिया था. सरिस्का प्रशासन ने पिंजरे में फंसी मादा तेंदुए के नाखून, ब्लड, स्टूल, बाल व लार आदि के सैंपल लिए और उन्हें डीएनए जांच के लिए हैदराबाद भेज दिए.
बाद में इस तेंदुए को जयपुर चिडि़याघर भेज दिया गया. इस तेंदुए के नरभक्षी होने या न होने के बारे में वन विभाग ने कहा कि हैदराबाद से डीएनए जांच के बाद ही कुछ स्पष्ट हो पाएगा. इस मादा तेंदुए के शरीर पर कोई चिप भी नहीं लगी मिली. इस से यह माना जा रहा था कि 20 अक्तूबर, 2016 को भड़ाज गांव में महिला गुल्ली देवी की मौत के बाद पकड़े गए जिस तेंदुए को जयपुर चिडि़याघर ले जाया गया था. यह तेंदुआ वह नहीं था, क्योंकि वह नर तेंदुआ था और उसे जनवरी, 2017 के आखिर में सरिस्का इलाके में छोड़ते समय चिप लगाई गई थी.
तेंदुए लगातार पकड़े जा रहे थे, लेकिन आतंक कम नहीं हो रहा था. हालात ये हो गए थे कि सरिस्का के जंगलों में वन विभाग के अधिकारियों, कर्मचारियों, पुलिस व तेंदुओं के बीच लुकाछिपी का खेल चलता रहा. वन कर्मचारी बारबार पिंजरे की लोकेशन बदलते रहे. मजे की बात यह थी कि तेंदुए भी उसी हिसाब से अपनी लोकेशन बदलते रहे.
19 फरवरी को तेंदुओं ने किशोरी व उमरैण इलाके में 5 स्थानों पर दुधारू पशुओं पर हमले किए. वन कर्मचारियों ने तेंदुए के पगमार्क लिए. 20 फरवरी को भी तेंदुए ने मवेशियों का शिकार करने के साथ किशोरी इलाके के गांव बिसूणी की ढाणी में सुबहसुबह एक महिला तीजा देवी और उस के साथ जा रही सरजो देवी पर हमला करने की कोशिश की.
उन के चिल्लाने पर खेतों से लोग भाग कर आए तो तेंदुआ भाग गया. 21 फरवरी को किशोरी कस्बे के पास संत वाले खोरा में रखे गए पिंजरे में एक नर तेंदुआ कैद हो गया. इस तेंदुए का एक दांत टूटा हुआ था.
इस से यह कयास लगाया गया कि यह आदमखोर हो सकता है. टूटे दांत के कारण वह आसानी से शिकार नहीं कर पाता होगा, क्योंकि टूटे दांत के कारण मुंह में घाव हो जाते हैं. वन अधिकारियों ने इस तेंदुए के आवश्यक सैंपल ले कर डीएनए टेस्ट के लिए हैदराबाद भेज दिए. बाद में इस तेंदुए को जयपुर चिडि़याघर भेज दिया गया.
इस तेंदुए के पकड़े जाने के बाद हालांकि तेंदुए कई बार दिखाई दिए हैं, लेकिन कथा लिखे जाने तक इंसान पर हमले की कोई अन्य घटना नहीं घटी थी. इस से यह माना जा रहा है कि संभवत: आदमखोर वही नर तेंदुआ था. अधिकारियों को इस के नरभक्षी होने के कुछ प्रमाण जरूर मिले हैं, लेकिन पूरी तरह पुष्टि हैदराबाद से रिपोर्ट आने के बाद ही हो सकेगी.
विडंबना यह है कि जंगल अब लगातार सिमटते जा रहे हैं और वहां मानवीय दखल बढ़ता जा रहा है. इंसान वन्यजीवों का दुश्मन बन गया है. हालांकि वन्यजीवों का शिकार प्राचीन काल से होता आ रहा है, लेकिन कई दशक पहले भारत सरकार ने वन्यजीवों व पक्षियों को अधिसूचित कर के इन के शिकार पर प्रतिबंध लगा दिया था. लेकिन कानून बनने और कड़ी सजा के प्रावधान होने के बावजूद वन्यजीवों का शिकार बंद नहीं हो सका.
सरिस्का अभयारण्य में लगातार शिकार होने से सन 2004 के आसपास बाघों का पूरी तरह सफाया हो गया था. बाद में राजस्थान के तत्कालीन हैड औफ फौरेस्ट फोर्स आर.एन. मेहरोत्रा के प्रयासों से रणथंभौर से ला कर बाघों को सरिस्का में छोड़ा गया. उस दौरान जब सरिस्का में एक भी बाघ नहीं था, तब तेंदुओं ने अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया था.
बाद में जब सरिस्का में बाघों को बसाया गया और धीरेधीरे उन की वंशवृद्धि होने लगी तो तेंदुए अपनी जान बचाने के लिए सरिस्का के जंगलों से बाहर निकलने लगे. अलवर जिले से जयपुर जिले तक फैले करीब 1200 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र वाले सरिस्का अभयारण्य में सैकड़ों गांव हैं. इन में कई गांवों के आसपास बाघबघेरों का बसेरा है.
बाघों के डर से तेंदुओं ने गांवों के आसपास आबादी क्षेत्र में अपना नया ठिकाना बना लिया है. यह बात भी उल्लेखनीय है कि अक्तूबर और नवंबर, 2016 में तेंदुए ने 2 लोगों का शिकार किया था. इस के बाद 2 तेंदुए पकड़ कर जयपुर चिडि़याघर भेजे गए थे. फिर इलाके में शांति रही. इंसान पर हमले की कोई घटना नहीं हुई. जनवरी के आखिर में जब ये दोनों तेंदुए जयपुर चिडि़याघर से वापस ला कर सरिस्का इलाके में छोड़े गए तो फिर से इंसानों पर हमले की घटनाएं होने लगीं और 4 लोगों की जानें चली गईं.
सन 2014 में हुई तेंदुओं की राष्ट्रीय गणना में देश भर में उत्तर पूर्व को छोड़ कर 7910 तेंदुए थे. इस गणना के बाद यह अनुमान लगाया गया था कि देश में 12 हजार से अधिक तेंदुए हैं. देश में सब से ज्यादा 1817 तेंदुए मध्य प्रदेश में थे. सब से कम 29 झारखंड में. राजस्थान में करीब 171 तेंदुए गिने गए.
हालांकि अनुमान है कि तेंदुओं की संख्या 400 से ज्यादा है. सन 2004 में राजस्थान में 550 से ज्यादा तेंदुए थे. अभी सरिस्का में 65 से 80 के बीच तेंदुए बताए जाते हैं.
यह सुखद बात है कि राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने 8 मार्च को विधानसभा में पेश बजट में प्रदेश में प्रोजेक्ट लैपर्ड शुरू करने की घोषणा की है. इस के लिए बजट में 7 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है. यह प्रोजेक्ट शुरू करने वाला राजस्थान देश का पहला राज्य है. इस से तेंदुओं को संरक्षण मिलने की उम्मीद है. अभी केवल हिमाचल प्रदेश में ही स्नो लैपर्ड के लिए प्रोजेक्ट चल रहा है.