एक दिन खुशी सहेलियों के साथ कालेज पहुंची ही थी कि घर से फोन आ गया कि पापा की तबीयत ठीक नहीं है. वह तुरंत घर चल दी. पापा को फिर दिल का दौरा पड़ा था. वह उन्हें अस्पताल ले गई. पापा दूसरी बार दिल के दौरे को सहन नहीं कर पाए. डाक्टरों ने जवाब दे दिया. उन की तो जैसे दुनिया ही खत्म हो गई. मां खुशी को संभालती और खुशी मां को. मां के अलावा अब खुशी का कोई नहीं था. पापा के जाने के बाद घर वीरान हो गया था. पापा का व्यवसाय उन के कारण ही था. अब वह खत्म हो गया था.

खुशी 1 महीना कालेज नहीं गई. सारे दोस्त पता लेने आए. खुशमन भी. सभी ने समझाया कि अपनी पढ़ाई पूरी कर लो, पर खुशी का मन ही नहीं मान रहा था. जब मां ने देखा कि सभी दोस्त खुशी को संभाल रहे हैं तो उन्होंने भी कहा कि तुझे अपनी पढ़ाई पूरी करनी चाहिए. 1 ही साल तो रह गया अब. पापा ने 2 फ्लैट बना कर किराए पर दिए थे. इस कारण पैसे की कोई समस्या न आई. धीरेधीरे खुशी ने कालेज जाना शुरू कर दिया. पढ़ाई का दूसरा साल था. प्रथम वर्ष उस ने अच्छे अंकों से पास किया था. इस बार भी वह अच्छे अंक ले कर अपनी पढ़ाई पूरी करना चाहती थी. खुशमन की तो पढ़ाई खत्म ही थी. उस ने 2 महीने के बाद एक मल्टीनैशनल कंपनी में नौकरी जौइन कर लेनी थी. बस कुछ दिन ही रह गए थे उस के. उस दिन खुशी के पास आया था. खुशी कालेज की कैंटीन में बैठी थी, उस के हाथ में छोटा सा गिफ्ट था. उसे खुशी को देते हुए बोली, ‘‘खुशी, इसे खोलो जरा.’’

उस में अंगूठी थी. उसे देख खुशी ने पूछा, ‘‘यह क्या है खुशमन?’’

‘‘क्या तुम मुझ से शादी करोगी?’’ खुशमन बोला खुशी ने हां कर दी. जब खुशी ने मां से बात की तो उन्होंने भी हां कर दी, क्योंकि खुशी के सिवाए कोई था ही नहीं उन का. खुशी की खुशी में ही उन की खुशी थी.

खुशी की पढ़ाई खत्म हुई. कालेज में टौप किया था. अध्यापकों ने कालेज में ही नौकरी जौइन करने को कहा. खुशमन से पूछा तो उस ने मना कर दिया. पढ़ाई खत्म होने के बाद खुशी और खुशमन की शादी हो गई. अपने ही शहर में उस की नौकरी थी. काफी बड़ा फ्लैट था उस का. खुशी को लगा उस की जिंदगी ही बदल गई. और खुशी के पापा ने एक फ्लैट इस शहर में भी खरीदा था. उसे किराएदारों से खाली करवा कर खुशी को यहीं ले आई. घर को किराए पर दे दिया. अब मां इसी शहर में थीं.

किसी की अच्छाइयों तथा बुराइयों का पता धीरेधीरे ही लगता है. ऐसा ही कुछ खुशी को खुशमन का अनुभव मिल रहा था. कालेज के समय कभीकभी खुशमन जब अपनी उपलब्धियों को बताता था तो उन्हें सुन कर खुशी खुश होती थी कि वह उस के सामने अपनी उपलब्धियों, अच्छाइयों को प्रकट करता है. मगर वह उस का घमंड था जो अब खुशी के सामने आ रहा था. शादी हुए 4-5 महीने ही गुजरे होंगे. प्रत्येक काम में उस का नुक्स निकालना जरूरी होता था. जैसे उस जैसा निपुण कोई और है ही नहीं. खुशी अगर कोई जवाब देती तो सुनने से पहले ही चिल्ला पड़ता था. खाना खुशी ने कभी बनाया ही नहीं था, परंतु अब तक काफी कुछ सीख गई थी. पर खुशमन को खुश न कर पाई. नौकरानी के सामने भी खामियां निकाल देता, ‘‘अरे, तुम तो नौकरानी से भी गंदा खाना बनाती हो?’’

टूट जाती थी अंदर से खुशी. ऐसे ही जिंदगी के 5 साल बीत गए. मां को भी अब खुशी का दुख नजर आने लगा था. पर कुछ कह नहीं पाती थीं, क्योंकि खुशमन खुशी का ही चुनाव था.

इधर खुशमन का व्यवहार, उधर मां की चिंता. मां बहुत अकेली पड़ गई थीं. खुशी ने कई बार मां से कहा कि उस के पास आ कर रहो, पर वे नहीं मानती थीं. खुशी ने यह अपनी तरफ से कोशिश करनी चाही थी. अभी खुशमन से बात नहीं की थी इस बारे में.

एक दिन खुशमन का मूड देख कर बात की, ‘‘खुशमन मां बहुत अकेली पड़ गई हैं.’’

पूरी बात सुनने से पहले ही खुशमन बोल पड़ा, ‘‘कोई बात नहीं खुशी. उन के लिए एक केयर टेकर रख देते हैं. सारा समय उन के पास रहा करेगी. पैसे मैं दे दूंगा,’’ कह खुशमन कमरे में चला गया.

खुशी अपनी जगह खड़ी रह गई. खुशमन को क्या पता कि मातापिता का प्यार क्या होता है? क्या होता है परिवार? शुरू से ही तो होस्टल में रहा. ऊपर से उस के दिमाग में घमंड भरा हुआ था. इन्हीं कारणों से अपना भी परिवार भी नहीं बढ़ा रहा था.

एक दिन तो हद हो गई. मां काफी बीमार थीं. केयर टेकर ने फोन किया. खुशी ने जाना चाहा, तो खुशमन ने वहीं रोक दिया. बोला, ‘‘आज मेरी छुट्टी है, मैं नहीं चाहता कि तुम घर से बाहर जाओ… कम से कम छुट्टी वाले दिन तो घर रहा करो…’’ मां की तबीयत की बात है तो केयर टेकर को बोल दो कि उन्हें दवा दे दे.

खुशी चाह कर भी न जा पाई.

मां की तबीयत काफी बिगड़ रही थी. कुछ खापी भी नहीं रही थीं? खुशी ने साहस कर के खुशमन से बात की, ‘‘मां की तबीयत बहुत खराब है. उन्हें मेरी जरूरत है… तो क्या मैं मां को यहां ले आऊं?’’

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