70 के दशक में भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान थे दिग्गज खिलाड़ी नवाब पटौदी. भारत के बेहतरीन क्रिकेटरों में से एक रहे नवाब पटौदी ने भारतीय टीम की ओर से 1963 से 1975 तक क्रिकेट खेला और इस दौरान उन्होंने कई परेशानियों का भी सामना किया, लेकिन इन सबके बावजूद उन्होंने क्रिकेट में अपना योगदान जारी रखा.

अपने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट करियर की शुरुआत में ही पटौदी का भीषण रोड एक्सीडेंट हो गया था जिसमें उनकी एक आंख लगभग चली गई थी, लेकिन इन सब कठिनाइयों से वह कैसे उबरे, इसका जिक्र उन्होंने अपनी ऑटोबायोग्राफी में किया है. यह बात साल 1961 की है, जब नवाब पटौदी ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय की ओर से क्रिकेट खेला करते थे.

01 जुलाई, 1961 को सुसेक्स के खिलाफ मैच में उन्होंने अपनी टीम के साथ मैदान में काफी मशक्कत की. दिन का खेल खत्म होने के बाद वह अपनी टीम के चार अन्य खिलाड़ियों के साथ ब्रिजटाउन में डिनर करने गए थे. वह एक शानदार शाम थी.

डिनर के बाद पटौदी के कुछ दोस्त वॉक पर चले गए तो नहीं नवाब अपने दोस्त रॉबिन के साथ कार में सवार होकर घर के लिए निकल पड़े. इसी बीच उनके कार के सामने एक बड़ी कार आ गई और उससे जोर से धक्का लगने से नवाब पटौदी बुरी तरह से घायल हो गए.

अपने ऑटोबायोग्राफी में वह लिखते हैं, ‘मुझे इस बात पर शक होने लगा कि मैं विश्वविद्यालय के मैच में खेल पाऊंगा की नहीं. उस समय तक मुझे यह नहीं पता था कि मेरी आंख में चोट आई है, क्योंकि मुझे दर्द महसूस नहीं हो रहा था. जब मेरी ब्रिटेन अस्पताल में आंख खुली तो मुझे बताया गया कि मेरी दाईं आंख का ऑपरेशन होना है. यह जानकर मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ. एक्सीडेंट के दौरान विंडस्क्रीन से टूटकर निकला हुआ एक कांच का टुकड़ा मेरी आंख में घुस गया था और इसको निकालने के लिए ऑपरेशन करना बेहद जरूरी था. इसी बीच उस शहर के फेमस डॉक्टर को एक इमरजेंसी ऑपरेशन करने के लिए उनके घर से बुलवाया गया. उन्होंने अपनी ओर से पूरी कोशिश की और अपना काम बढ़िया तरीके से निभाया लेकिन कुछ दिनों के बाद मुझे पता चला कि उस आंख का मेरा लेंस काम नहीं कर रहा है. उस समय तक विज्ञान उतना विकसित नहीं हुआ था इसलिए मुझे अपनी एक आंख से हाथ धोना पड़ा. लेकिन एक आंख विशेषज्ञ ने मुझे कॉन्टेक्ट लेंस के सहारे क्रिकेट खेलने की सलाह दी, जिसकी सहायता से मैं 90 प्रतिशत विजन को प्राप्त कर पाया. सिर्फ एक चीज में मुझे समस्या आती थी कि इस लेंस के माध्यम से एक नहीं बल्कि दो-दो वस्तुएं नजर आती थी.’

लेकिन इन सबके बावजूद नवाब ने क्रिकेट खेलने के अपने प्यार और जुनून को जारी रखा. उन्होंने अपने आपको इस बात को अपनाने से मना कर दिया कि उनका क्रिकेट करियर खत्म हो चुका हूं. आंख खोने से ज्यादा उन्हें इस बात का बहुत दुख हुआ कि वह अपनी चोट की वजह से उस साल ऑक्सफोर्ड की ओर से नहीं खेल पाए.

नवाब ने अपने इस चोट को कभी भी अपने उपर हावी नहीं होने दिया. और एक बार फिर वह अभ्यास के लिए निकल पड़े.

अपनी चोट के छह महीने बाद पटौदी ने भारत की ओर से इंग्लैंड के खिलाफ साल 1961 में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में पर्दापण किया और मद्रास में खेले गए तीसरे टेस्ट मैच में शतक जड़ा. इस तरह भारत ने इंग्लैंड के खिलाफ पहली सीरीज जीती.

दाहिने हाथ के बेहतरीन बल्लेबाज नवाब पटौदी ने इसके बाद फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा और टीम इंडिया के कप्तान बनने के बाद उन्होंने भारतीय क्रिकेट को नई ऊंचाईयों तक पहुंचाया. उन्होंने अपने पूरे क्रिकेट करियर के दौरान 46 टेस्ट मैच खेले और 34.91 की औसत से 2,793 रन बनाए. इस दौरान उन्होंने 6 शतक लगाए. उनका उच्चतम स्कोर 203* नाबाद रहा.

साल 2011 में लंग इंन्फेक्शन के कारण नवाब पटौदी की दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल में मृत्यु हो गई. उनके बेहतरीन खेल को देखते हुए उन्हें साल 1964 में अर्जुन अवॉर्ड और साल 1966 में पद्म श्री अवॉर्ड से नवाजा गया था.

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