भारत में बढ़ रहे बलात्कार की घटनाओं पर आधारित फिल्म ‘‘मातृ’’ एक बोल्ड फिल्म होनी चाहिए थी, मगर यह फिल्म पूर्णरूपेण बदले की कहानी बन कर रह गयी है. लड़की व उसकी मां के साथ सामूहिक बलात्कार और लड़की की हत्या होती है, मगर इस जघन्य अपराध करने वालों के प्रति घृणा व पीड़िता के प्रति हमदर्दी भी नहीं उपजती.

फिल्म ‘‘मातृ’’ की कहानी दिल्ली के एक स्कूल शिक्षक विद्या चैहाण (रवीना टंडन) की जिंदगी में आने वाले उतार चढ़ाव की कहानी है. विद्या अपने स्कूल के समारोह से अपनी बेटी टिया (अलीशा खान) के साथ वापस अपने घर आ रही होती है, पर घर पहुंचने की जल्दी में वह रास्ता बदलती है और एक फार्म हाउस पहुंच जाती है.

यह फार्म हाउस मुख्यमंत्री गोवर्धन मलिक (शैलेंद्र गोयल) का है. जहां मां व बेटी दोनों का सामूहिक बलात्कार मुख्यमंत्री के बेटे अपूर्व मलिक (मधुर मित्तल), अपूर्व के मामा व उसके पांच दोस्त करते हैं. फिर इन दोनों को बीच सड़क पर फेंक दिया जाता है. इस हादसे में विद्या जीवित बच जाती है. इस घटना व टिया की मौत के लिए विद्या के पति रवि (रूशद राणा) विद्या को गुनाहगार मानकर तलाक दे देते हैं. विद्या अपनी सहेली रितु (दिव्या जगदाले) के यहां रहने लगती है.

इस सामूहिक बलात्कार से मुख्यमंत्री के बेटे के जुड़े होने के कारण पुलिस इंस्पेक्टर जयंत श्रॉफ (अनराग अरोड़ा) मामले को रफादफा कर उन्हें चुप रह जाने की सलाह देता है. पर विद्या अपनी बेटी के लिए इंसाफ की लड़ाई लड़ना शुरू करती है. मगर कानून भी उसके साथ निष्पक्ष नहीं रहता है. उस वक्त विद्या के अंदर का गुस्सा बहुत कुछ कह जाता है, मगर जैसे ही फिल्म आगे बढ़ती है, सब कुछ बेमानी हो जाता है.

इसलिए वह खुद ही अपराधियों का खात्मा करना शुरू करती है. हर हत्या के बाद पुलिस इंस्पेक्टर जयंत श्रॉफ को अहसास होता है कि यह काम विद्या ने किया है, मगर सबूत नहीं है. हर हत्या एक दुर्घटना नजर आती है. होली के अवसर पर मुख्यमंत्री व उनका बेटे को उन्हीं के घर में मार कर आग लगा देती है.

जहां तक अभिनय का सवाल है तो एक बलात्कार पीड़िता मां के किरदार को निभाते हुए रवीना टंडन ने कुछ दृश्यों में बेहतरीन परफॉर्मेंस दी है. पर पूरी फिल्म के स्तर पर देखें, तो रवीना टंडन उम्मीदों पर खरी नहीं उतरती हैं. इसके लिए पटकथा लेखक को दोष दिया जा सकता है.

बलात्कारी व हत्यारे खलनायक की भूमिका में मधुर मित्तल ने अपनी तरफ से अच्छा काम करने की कोशिश की है, पर उनका चरित्र भी ठीक से उभरा नहीं है. विद्या चैहाण की दोस्त रितु के किरदार में विद्या जगदाले तथा पुलिस इंस्पेक्टर जयंत श्रॉफ के किरदार में अनुराग अरोड़ा ने ठीक ठाक अभिनय किया है.

फिल्म कहानी व पटकथा के स्तर पर काफी कमजोर है. कुछ भावनात्मक दृश्यों को नजरंदाज कर दें, तो फिल्म ‘‘मातृ’’ महज कई फिल्मों के कथानक का दोहराव मात्र है. निर्देशक अश्तर सय्यद की निर्देशकीय कमजोरी के चलते फिल्म अपना प्रभाव छोड़ने में असफल रहती है. यह फिल्म एक जघन्य अपराध के उपर नाटकीय ढंग से लिखा गया एक लेख नजर आती है.

विद्या जिस तरह से बदले की भावना के साथ एक के बाद एक हत्याएं करना शुरू करती है, उससे विद्या के प्रति उपजा हमदर्दी का भाव खत्म होने के साथ ही बलात्कार की वजह से पैदा होने वाली घृणा व दर्द का अहसास भी खत्म हो जाता है. बलात्कार जैसा जघन्य अपराध महत्वहीन हो जाता है. पूरी फिल्म बदले की भावना के तहत हत्याओं वाली फिल्म बनकर रह जाती है.

क्या बेटी को इंसाफ दिलाने के लिए हर मां के पास यही एकमात्र रास्ता होता है? क्या यही सभ्य समाज है? विद्या का हिंसात्मक स्वरुप दर्शक को परेशान करता है. पूरी फिल्म में जिस तरह से हत्याएं होती है, उससे सवाल उठता है कि वास्तव में बुरा क्या है? यह हत्याएं या बलात्कार? यानी कि बलात्कार जैसा जघन्य अपराध बेमानी हो जाता है. फिल्म खत्म होने पर दर्शकों के दिमाग में बलात्कार व उसकी पीड़ा की बजाय यह सवाल परेशान करता है कि क्या इस तरह हत्याएं करना जायज है?

विद्या और उनकी बेटी टिया का खलनायक के घर पहुंचना और फिर दिल्ली के निर्भया कांड की तरह सड़क पर कार से फेंका जाना, सब कुछ अंदर से गुस्सा दिलाता है, पर फिल्म में बहुत अस्वाभाविक तरीके से दिखाया गया है. फिल्म का कथानक ही अविश्वसनीय व अवास्तविक नजर आता है.

सच तो यह है कि पटकथा के साथ हर चरित्र का चित्रण भी अति घटिया है. फिल्म का एक भी पात्र ठीक से नहीं उभरता. विद्या के पति अपनी बेटी के साथ हुए बलात्कार व हत्या के बाद विद्या को तलाक देने की बात करते हैं, इससे पूरा मुद्दा ही महत्वहीन हो जाता है और फिल्म वहीं चारो खाने चित हो जाती है. पटकथा लेखक ने विद्या के पति के किरदार को बहुत गलत ढंग से लिखा है. कोई भी पिता इस तरह से अपनी बेटी को लेकर बात नहीं करेगा.

यदि लेखक व निर्देशक ने जानबूझकर पिता के किरदार को इस तरह से लिखा व चित्रित किया है, क्योंकि वह पुरुष है, तो यह उसकी मूर्खता ही कही जाएगी. भारत में माता पिता के रिश्ते बहुत ही संवेदनशील होते हैं. हर पिता के लिए अपनी बेटी या बेटे दोनों ही महत्वपूर्ण होते हैं और यदि उसकी बेटी के साथ बलात्कार या बेटी हत्या हो जाए, तो पिता विचलित या परेशान नहीं होगा, यह सोच ही गलत है.

इतना ही नही फिल्म के दो दृष्यों के बीच कोई तारतम्य नजर नहीं आता. इससे फिल्म के पटकथा लेखक व निर्देशक की कमजोरी उभर कर आती है. फिल्म की एडीटिंग भी बहुत घटिया है. इसे रोमांचक फिल्म के रूप में प्रचारित किया गया, मगर फिल्म के एक भी दृष्य से रोमांच पैदा नहीं होता है. फिल्म में इमोशन का भी घोर अभाव है. फिल्म में प्रभावशाली संवादो का घोर अभाव है.

जहां तक गीत संगीत का सवाल है, तो फिल्म में बेवजह एक गाना रखा गया है और वह भी बेवजह दो बार फिल्म में आता है. यह गाना फिल्म को नष्ट करने का ही काम करता है.

एक घंटे 52 मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘‘मातृ’’ के निर्माता अंजुम रिजवी, निर्देशक अश्तर सय्यद, लेखक मिचेल पेलिको तथा कलाकार हैं रवीना टंडन, अलीशा खान, मधुर मित्तल, दिव्या जगदाले, अनुराग अरोड़ा, रूशद राणा, सलीम खान, शैलेंद्र गोयल.

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