बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाने की पहल बड़ी मजबूती से की गई है. यह पहल  उनके राजनीतिक सलाहकार रहे प्रशांत किशोर ने की है. एक तरफ अच्छा खासा समर्थन मिल रहा है वहीं दूसरी तरफ कुछ प्रश्न भी खड़े हो गए हैं.

आईए इस रिपोर्ट में हम आपको बताते चलें कि आगामी जुलाई 2022  में जब राष्ट्रपति पद का चयन होगा.

ऐसे में पहले पहल नीतीश कुमार जो कि भाजपा के साथ हैं मगर वर्तमान में बिहार के मुख्यमंत्री हैं अपनी राजनीतिक रस्साकशी में फंस कर के क्या राष्ट्रपति पर शोभायमान करेंगे. महामहिम राष्ट्रपति बन सकेंगे अथवा 2 वर्ष बाद 2025 में जब बिहार में विधानसभा का चुनाव होगा तो लालू प्रसाद यादव पुत्र तेजस्वी यादव की आंधी में हाशिए पर चले जाएंगे.

दरअसल,भारतीय राजनीति में कुछ अनोखे मजेदार खेल होते रहते हैं . कभी-कभी वे अपनी पूर्णता को भी प्राप्त कर लेते हैं, कभी उनकी भूण हत्या हो जाती है.

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ऐसा ही एक खेल है जो आज देश भर में चर्चा का बयास बना हुआ है वह है- नीतीश कुमार का महामहिम राष्ट्रपति बनना.

यह मजेदार खेल इसलिए है कि कभी नीतीश कुमार विपक्ष में प्रधानमंत्री का चेहरा हुआ करते थे. 2017 के लोकसभा चुनाव के पहले विपक्ष के प्रधानमंत्री के प्रमुख चेहरा बने नीतीश कुमार प्रधानमंत्री बनने जा रहे नरेंद्र दामोदरदास मोदी के कट्टर विरोधी हुआ करते थे .और तो और मोदी के संप्रदायिक चेहरे के कारण उन्होंने उनके साथ मंच शेयर करना भी स्वीकार नहीं किया था.

ऐसे में राजनीति किस कदर बदलती है.यह मजेदार घटनाक्रम बड़े ही रोचक होते हैं. ऐसा ही एक प्रसंग नीतीश कुमार का महामहिम बनना भी हो सकता है. पाठकों को हमें बताते चलें कि नीतीश कुमार 2017 में भाजपा के नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद धीरे-धीरे अपना हृदय परिवर्तन करते हैं और लालू यादव को छोड़ कर के बिहार में भाजपा के साथ सरकार बना लेते हैं. यह हम सब ने देखा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी और नीतीश कुमार का घात प्रतिघात खुली किताब की तरह है. केंद्रीय मंत्रिमंडल में कटौती के बाद नितीश कुमार का चेहरा दूसरी तरफ घुमा लेना और आगे चलकर के बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार को पटखनी मिलने के बाद नरेंद्र मोदी का उन्हें मुख्यमंत्री पद पर आसीन कराना यह सब हमारे सामने है. ऐसे संबंधों की गुत्थी के बीच सबसे लाख टके का सवाल यह है कि क्या नरेंद्र दामोदरदास मोदी नीतीश कुमार को राष्ट्रपति पद पर देखना पसंद करेंगे या फिर चाहेंगे कि कोई “स्टांप पैड”  पुनः राष्ट्रपति बने.

नीतीश, मोदी के लिए एक “दर्द”

कुल मिलाकर के विपक्ष द्वारा नीतीश कुमार को जिस तरह राष्ट्रपति पद के लिए प्रोजेक्ट किया जा रहा है और यह संदेश दिया जा रहा है कि सर्वसम्मति से नीतीश कुमार राष्ट्रपति बन सकते हैं . यह गूगली प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी और भाजपा के लिए एक सर दर्द बन सकती है.

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क्यों और कैसे हम इस रिपोर्ट में खुलासा करने जा रहे हैं.

पहले यह जानते चलें कि

विपक्ष द्वारा साझा उम्मीदवार बनाने की संभावनाओं पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा -” इसकी मुझे कोई जानकारी नहीं है। ना ही ऐसा कोई आइडिया है.”

इसी तरह भाजपा गठबंधन में में शामिल “हम” सुप्रीमो जीतन राम मांझी ने नीतीश कुमार को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाये जाने की पहल का समर्थन किया है.जदयू नेताओं ने कहा है कि यह बिहार के लिए गौरव की बात होगी.

राजनीतिक हलचल से आप यह कयास लगा सकते हैं कि आने वाला समय जब राष्ट्रपति चुनाव अपने उफान पर होगा क्या-क्या स्थितियां बन बिगड़ सकती हैं.

दरअसल, प्रशांत किशोर पहले चरण के गैर भाजपा और गैर कांग्रेस दलों को इस मुद्दे पर सहमत करने के प्रयास में हैं. इस सिलसिले में प्रशांत किशोर ने तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव से सहमति ले ली है. आगे क्षेत्रीय दलों में सहमति बनने पर प्रशांत किशोर का अगला कदम कांग्रेस से सहमति लेने का होगा. इसमें वे सफल हुए तो भाजपा एक चक्रव्यूह में होगी.

अब हम आपको बताते चलें कि  नीतीश कुमार के नाम पर सर्वसम्मति बन सकती है .  तब क्या भाजपा‌ और उसके वर्तमान नेतृत्व को यह मंजूर होगा.

शायद कतई नहीं. क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के मनोविज्ञान  या कहें प्रकृति को जानने वाले मानते हैं कि नीतीश कुमार का राष्ट्रपति बनना यह माना जाएगा कि भाजपा के भविष्य के लिए सरदर्द बन सकता है.

क्योंकि नीतीश कुमार को जानने वाले यह जानते हैं कि वे कुछ भी हों, मगर रबड़ स्टांप तो नहीं हो सकते.

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