खुद को धर्म, जाति विशेष या संस्कृति का अघोषित ठेकेदार समझने वाले स्थानीय संगठनों द्वारा कानून अपने हाथ में लेने का कुछ समय से देश में चलन सा हो गया है. करणी सेना की करतूत कुछ इसी तरह की है. राजपूत करणी सेना ने जयपुर में फिल्माई जा रही फिल्म ‘पद्मावती’ के सैट पर ऊधम मचाया और फिल्म के निर्देशक संजय लीला भंसाली से मारपीट की जबकि संजय लीला भंसाली के प्रोडक्शन हाउस ने करणी सेना को पत्र लिख कर स्पष्ट भी किया कि फिल्म में रानी पद्मावती और अलाउद्दीन खिलजी के बीच सपने में रोमांस किए जाने जैसा कोईर् सीन नहीं है.

इस बारे में उन्होंने सितंबर 2016 में राजपूत सभा को एक पत्र लिखा था. पत्र में उन्होंने कहा था कि फिल्म ऐतिहासिक तौर पर पूरी तरह सटीक होगी. बावजूद इस के 27 जनवरी को जयपुर में फिल्म के सैट पर करणी सेना द्वारा हंगामा और मारपीट की गई, जिसे कतई जायज नहीं ठहराया जा सकता. बाद में 29 जनवरी को लिखे गए पत्र में संजयलीला भंसाली ने यह रिक्वैस्ट की कि वे अपने शूट को आगे बढ़ाने जा रहे हैं और उन के प्रोडक्शन के खिलाफ कोई कदम न उठाया जाए. गौर करने की बात यह थी कि हमले से पहले कथित करणी सेना के सदस्यों ने तो फिल्म का कोई टीजर, ट्रेलर या लीक्ड सीन भी नहीं देखा था. फिर भी फिल्म के सैट पर तोड़फोड़ की गई, शूटिंग का सामान तोड़ा गया और संजय लीला भंसाली को चांटे मारे गए. करणी सेना के लोगों का कहना था कि फिल्म में रानी पद्मावती से जुड़े इतिहास से छेड़छाड़ की गई है.

बौलीवुड के कई जानेमाने और फिल्म निर्माताओं, अभिनेताओं ने भंसाली पर हुए हमले की निंदा की. शत्रुघ्न सिन्हा ने कहा, ‘‘ये मूर्ख तत्त्व किसी भी हिंदू विचारधारा का प्रतिनिधित्व नहीं करते. दुनिया का कोईर् भी धर्म किसी को हिंसा करने या कानून को अपने हाथ में लेने की इजाजत नहीं देता. मुझे नहीं पता कि वे किस की राजभक्ति करते हैं और किस चीज का विरोध कर रहे हैं. क्या उन्होंने भंसाली की फिल्म पद्मावती देखी है? क्या उन्हें पता है उस में क्या है? वे उस चीज का विरोध कैसे कर सकते हैं, जो हुआ ही नहीं है?’’

निर्देशक अनुराग कश्यप ने भी संजय लीला भंसाली के साथ जयपुर में हुई घटना का कड़ा विरोध किया. सोशल मीडिया पर ट्रोल करने वालों पर अनुराग कश्यप ने फेसबुक पोस्ट करते हुए लिखा, ‘‘आप की यह भीड़ मुझे डरा नहीं सकती. मैं ने हमेशा सवाल करना सीखा है और मैं अपने सवाल करने के अधिकार का हमेशा इस्तेमाल करूंगा. मैं कई मुद्दों पर तब से आवाज उठा रहा हूं जब ये बिना चेहरे और आवाज के लोग सोशल मीडिया पर एक भीड़ बन कर नहीं होते थे. मुझे फर्क नहीं पड़ता आप क्या कहते या करते हैं. आप मुझ पर मौखिक या शारीरिक हमले कर सकते हैं. मैं हमेशा गलत विरोध में आवाज उठाऊंगा. ‘‘मैं ने हमेशा से सरकार चलाने वालों से सवाल किया है. जब मैं छात्र था, तब विश्वनाथ प्रताप सिंह प्रधानमंत्री थे. तब मुझे सिखाया गया था कि प्रधानमंत्री देश का प्रमुख होता है, जिस से आप सवाल पूछ, जवाब मांग सकते हैं और बहस कर सकते हैं. उस से डरने की जरूरत नहीं है, क्योंकि उसे आप ने चुना है और वह आप के भले के लिए काम करता है.’’

अनुराग कश्यप के बाद सैंसर बोर्ड यानी सीबीएफसी के अध्यक्ष पहलाज निहलानी की प्रतिक्रिया भी बहुत कुछ कहती है. पहलाज निहलानी ने कहा, ‘‘फिल्मकार संजय लीला भंसाली ने अपनी फिल्मों के जरिए भारतीय पर्यटन को काफी बढ़ावा दिया है.’’ उन पर जयपुर में हुए हमले की निंदा करते हुए निहलानी ने कहा, ‘‘यह घटना राजस्थान पर्यटन के लिए झटका है.’’ उन्होंने इस हिंसा को शर्मनाक घटना बताते हुए कहा, ‘‘संजय लीला भंसाली ने सिनेमा को दुनिया के हर कोने में पहुंचाया है. वे दुनियाभर में जीनियस के रूप में जाने जाते हैं और उन्होंने भारत के पर्यटन के लिए बहुत कुछ किया भी है.’’ भंसाली की अन्य फिल्मों ‘खामोशी : द म्यूजिकल’ और ‘गुजारिश’ की शूटिंग्स गोवा में की गई थी और उन फिल्मों ने गोवा के तटीय सौंदर्य का प्रचार किया था. ‘हम दिल दे चुके सनम’, ‘गोलियों की रासलीला-रामलीला’ से गुजरात की संस्कृति का प्रचार हुआ था तो ‘बाजीराव मस्तानी’ ने दुनियाभर में मराठा योद्धाओं की कहानी का प्रचारप्रसार किया. और अब ‘पद्मावती’ राजस्थान की समृद्ध संस्कृति और विरासत का एक नया अध्याय खोलने जा रही थी. लेकिन अब सवाल यह है कि क्या ये गुंडे तत्त्व भंसाली को राजस्थान में शूटिंग करने देंगे? क्या वे कभी वहां वापस जाएंगे? यह घटना राजस्थान पर्यटन के लिए बड़े घाटे का सबब बन सकती है.

राज्य सरकार की जिम्मेदारी

भंसाली को जयपुर में शूटिंग करने की अनुमति देने के बाद उन की सुरक्षा की जिम्मेदारी राज्य सरकार की थी, जो उस ने अच्छी तरह नहीं निभाई. जबकि मौरीशस और दक्षिण अफ्रीका में भारतीय फिल्मों को शूटिंग के लिए हर तरह की सुरक्षा व मदद उपलब्ध होती हैं. भारत में सहायता की बात तो दूर, शूट करने वाली टीम के सदस्यों और उपकरणों की सुरक्षा तक खतरे में होती है. राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता निर्देशक संजय लीला भंसाली पर फिल्म में राजपूत महारानी पद्मावती के प्रेम में पड़े दिल्ली के शासक अलाउद्दीन खिलजी से संबंधित इतिहास से छेड़छाड़ करने का आरोप लगाया गया है. संजय लीला भंसाली की फिल्म ‘पद्मावती’ के कारण इस किरदार के होने और न होने पर खूब बहस हो रही है. जहां कुछ इतिहासकारों का मानना है कि पद्मावती एक साहित्यिक किरदार है वहीं कुछ इतिहासकार यह मानते हैं कि साहित्य इतिहास से बिलकुल अलहदा नहीं होता. कहते हैं कि 1540 ईसवी में शेरशाह का जमाना था और उसी वक्त मलिक मुहम्मद जायसी ने पद्मावत की रचना की थी. तब शेरशाह उत्तर भारत में अफगानों का एक बड़ा साम्राज्य स्थापित कर रहे थे.

बाबर के बाद हुमायूं को खदेड़ते हुए ईरान की सीमा तक पहुंच कर शेरशाह ने अपने साम्राज्य की स्थापना की थी. जायसी चिश्ती सूफी थे. चिश्तियों ने हिंदुस्तान के लोगों को जोड़ने का काम किया था. उन्होंने ऐसी जबान में बोलना और लिखना शुरू किया था, जिसे आम लोग समझ सकते थे. जायसी ने पद्मावत ठेठ अवधि भाषा में लिखी थी. अवधि भाषा को उस जमाने के हिंदूमुसलमान दोनों समझते थे. कहते हैं कि पद्मावत में राजा रतनसेन और पद्मावती का जो प्रेमप्रसंग है, उसे जायसी ने सूफियों के तरीके से लिखा था. प्रकृति के लिए सबकुछ निछावर कर देना सूफियों की आदत में शुमार रहा है. पद्मावत में इसी कोशिश की झलक मिलती है. जबकि अलाउद्दीन खिलजी ने 1303 ईसवी में चित्तौड़ को जीता था और जायसी ने पद्मावत में खिलजी को खलनायक की तरह दिखाया. जायसी ने इस में अलाउद्दीन खिलजी के साम्राज्य को दुनिया के रूप में दिखाया. वहीं रतनसेन और पद्मावती के बीच जो प्रेम है वह प्रकृति के लिए समर्पित है. दोनों एकदूसरे में मिल कर खत्म हो जाते हैं.

पद्मावत सूफियों के लिए प्रेमाख्यान है. इन्हीं प्रेमाख्यानों में एक ‘चंदायन’ है जिसे मुल्ला दाऊद ने लिखा था. इस के बाद ‘मधुमालती’ और ‘मृगावती’ जैसे आख्यान भी लिखे गए. इन सभी में पद्मावत की हैसियत सब से ज्यादा है. इस कहानी का जिक्र वाचिक परंपरा में रहा होगा. भारतीय परंपराओं में जो कहानियां अस्तित्व में थीं, उन्हें सूफियों ने अपने अंदाज में और अपनी जरूरत के हिसाब से लिखा है. यह सही है कि पद्मावती किसी एक मुकम्मल ऐतिहासिक किरदार के रूप में नहीं है. हमें ऐसा कहीं नहीं मिलेगा कि अलाउद्दीन ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया और तब पद्मावती बचने की कोशिश कर रही थी.

पद्मावती की कहानी जायसी से शुरू जरूर होती है लेकिन इस के बाद रुकती नहीं है. पद्मावती का जिक्र 15वीं से ले कर 16वीं, 18वीं शताब्दी तक में भी मिलता है. अलाउद्दीन और पद्मावती को ले कर लोगों की अलगअलग व्याख्या रही है और इस तरह यह कहानी हमारे इतिहास का हिस्सा बन जाती है. फलस्वरूप, पद्मावती के फिल्मांकन के विरोध को जायज नहीं ठहराया जा सकता. ऐसे धार्मिक कट्टर संगठनों की मनमरजी के आगे प्रशासन, पुलिस क्यों घुटने टेक देती है, यह समझ से परे है. अभिव्यक्ति की आजादी पर खतरा बन कर मंडरा रहे करणी सेना जैसे असामाजिक तत्त्वों पर लगाम कसनी जरूरी है.

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