9 अप्रेल को 8 राज्यों की 10 विधान सीटों पर हुये मतदान के नतीजों में चौंका देने वाले 2 नतीजों में से पहला है दिल्ली की राजोरी गार्डन सीट से भाजपा की जीत जहां सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार हरजीत सिंह को केवल 10,243 वोट मिले जबकि कांग्रेस की मीनाक्षी चंदेला को मिले 25,950 मतों के मुकाबले भाजपा-शिअद के विजयी प्रत्याशी मनजिंदर सिंह सिरसा ने 40,502 वोट हासिल कर दिल्ली में भाजपा की दोबारा आमद दर्ज करा दी है.
आप का उतरता जादू मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के लिए खतरे की घंटी है, जो किसी न किसी विवाद से घिरे रहते हैं. भाजपा भले ही 10 में से 5 सीटें जीत गई हो पर मध्य प्रदेश की भिंड जिले की अटेर सीट से उसके उम्मीदवार अरविंद सिंह भदोरिया की हार उसे सालने वाली है. यहां से कांग्रेस के हेमंत कटारे ने महज 857 वोटों से जीत दर्ज कर भाजपा और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को करारा झटका दे दिया है. अटेर का मुकाबला दरअसल में शिवराज सिंह बनाम ज्योतिरादित्य सिंधिया हो गया था, क्योंकि इन दोनों ही दिग्गजों ने इसे अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया था.
चुनाव प्रचार के दौरान शिवराज सिंह ने एक तरह से सिंधिया राजघराने को गद्दार करार दे दिया था, जिससे सिंधिया बेहद तिलमिलाए हुये थे. ग्वालियर–चम्बल संभागों से सिंधिया राज परिवार का प्रभाव अभी खत्म नहीं हुआ है और सिंधिया अगर अपनी पर आ जाएं तो शिवराज सिंह को भी धूल चटा सकते हैं, यह उन्होंने साबित भी कर दिया. अगर वे कटारे को नहीं जितवा पाते तो जरूर यह मान लिया जाता कि अब सिंधिया के दिन लद गए हैं. इस प्रतिष्ठित सीट को बनाए रखने ज्योतिरादित्य ने दिन रात एक कर दिया था और दलितों के घर जाकर अपने हाथ से रोटियां सेंककर न केवल खुद खाईं थी बल्कि दलितों को भी खिलाई थी.
श्रीमंत के खिताब से पुकारे जाने बाले सिंधिया का यह चलताऊ टोटका कारगर साबित हुआ, उलट इसके उनसे भी ज्यादा पसीना बहाने वाले शिवराज सिंह को सोचने मुकम्मल वक्त है कि वे अपनी अजेय होने की गलतफहमी दूर कर लें. अटेर में ईवीएम मशीन भी विवादों से घिरीं थीं, जब मशीन ट्रायल में कोई भी बटन दबाने पर वोट कमल के फूल पर जाते साफ साफ दिख रहे थे. ये मशीनें हालिया उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनावों में इस्तेमाल हुईं थी. इस जीत से उत्साहित कांग्रेस को अब खुलकर यह आरोप लगाने का मौका मिल गया है कि अगर वह सजग नहीं रहती तो भाजपा यहां भी हेर फेर करती और जीत जाती.
गौरतलब है कि हेमंत कटारे वोटों की गिनती होने तक ईवीएम मशीनों के इर्द गिर्द मंडराते रहे थे. उन्हे शक था कि भाजपा मौका पाते ही प्रशासन की मदद से मशीनों में कमल का फूल खिला लेती. मशीनों में हेराफेरी का मुद्दा अब उम्मीद से ज्यादा तूल पकड़ रहा है और सभी गैर भाजपाई दल बड़े पैमाने पर इनकी विश्वसनीयता पर सवाल उठा रहे हैं. अटेर की जीत से कांग्रेस को 2018 में वापसी की आस बंधी है और कहा यह भी जाने लगा है कि कांग्रेसी वाकई एकजुट हो जाएं और सिंधिया को सीएम प्रोजेक्ट कर दिया जाये, तो बात बन भी सकती है, क्योंकि भाजपा और शिवराज सिंह का तिलस्म अब आंशिक रूप से टूटने लगा है पर मतदाता के सामने कोई सशक्त विकल्प न होने से वे बैठे बिठाये इसका फायदा उठा रहे थे.
लेकिन कांग्रेस की राह उतनी आसान है नहीं जितनी वे अटेर की जीत के जोश में समझ रहे हैं. कांग्रेस को एक फायदा इस इलाके के दिग्गज नेता सत्यदेव कटारे के नाम का भी मिला है, जिनकी मौत से यह सीट खाली हुई थी. यहां उनके बेटे को कांग्रेस ने सहानुभूति हासिल करने भी टिकट दिया था, जो मिली भी. मध्य प्रदेश में दूसरा मुकाबला उमरिया जिले की बांधवगढ़ सीट पर था, जहां दूसरे कांग्रेसी दिग्गज छिंदवाड़ा के सांसद कमलनाथ ने पूरी ताकत झोंक दी थी, पर वे अपनी उम्मीदवार सावित्री सिंह को भाजपा के शिवनारायण सिंह के हाथों हारने से बचा नहीं पाये. कांग्रेस को यहां 25,476 के बड़े अंतर से करारी शिकस्त झेलना पड़ी जिससे साबित हुआ कि कमलनाथ अपना प्रभाव खो रहे हैं. भाजपा की इस जीत से लगा कि शिवराज सिंह एकदम खारिज नहीं हुये हैं और कमलनाथ महाकौशल इलाके में पहले से दमदार नहीं रह गए हैं तो मुमकिन है कांग्रेस अब बजाय उनके ज्योतिरादित्य सिंधिया पर दांव खेलना पसंद करे.
खोया – पाया
एक दूसरे प्रतिष्ठित मुकाबले में भाजपा अपनी नाक बचाए रखने में कामयाब रही. राजस्थान की धौलपुर सीट से उसकी प्रत्याशी शोभा रानी कुशवाह ने कांग्रेस के बनवारी लाल शर्मा को 38,648 मतों से पराजित किया. इस सीट पर मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया ने पूरी ताकत लगा रखी थी धौलपुर उनकी ससुराल है इसलिए भी यह सीट अहम हो गई थी. वसुंधरा को इस जीत से राहत और ताकत दोनों मिले हैं. हर कभी उनकी कुर्सी खतरे में पड़ती नजर आती है, दूसरे महारानी होने की ठसक भी कभी कभी उन्हे भारी पड़ जाती है, अलावा इसके दिग्गज भाजपाई नेता ओम प्रकाश माथुर की भी महत्वाकांक्षाएं भी जब तब सर उठाती रहती हैं.
भाजपा शासित दूसरे राज्यों के मुख्यमंत्रियों की तरह वसुंधरा बहुत अच्छी स्थिति में नहीं हैं. इसलिए धौलपुर की जीत उन्हें टॉनिक ही साबित हुई है, उन्होंने कोई परहेज इस बात से नहीं किया कि शोभारानी के पति बी एल कुशवाह हत्या के आरोप में जेल काट रहे हैं और बसपा के हैं. हिमाचल प्रदेश की भोरंज सीट भाजपा अपने खाते में रखने में सफल रही, जो दिग्गज भाजपाई नेता ईश्वर दास धीमान के निधन से खाली हुई थी. यहां उसने ईश्वर दास के बेटे अनिल धीमान को लड़ाया था जिन्हे इस सीट से 6 दफा विधायक रहे अपने पिता के नाम और काम का पूरा फायदा मिला. यहां कांग्रेस उम्मीदवार प्रमिला देवी 8,290 वोटों से हारीं जो बहुत बड़ा नहीं कहा जा सकता.
पूर्वोत्तर राज्यों में पांव पसार रही भाजपा को एक उल्लेखनीय कामयाबी असम की धेमाजी सीट पर मिली, जहां उसके उम्मीदवार रानोज पेगु ने कांग्रेस के बाबुल सोनोवाल को 9,285 वोटों से हराया. यहां के भाजपा विधायक प्रधान बरुआ के लखीमपुर सीट से लोकसभा में चुने जाने के कारण यह सीट रिक्त हुई थी. ये तो वे सीटें थीं जिन पर भाजपा का दबदबा साफ दिख रहा था पर कर्नाटक की 2 सीटों नंजनगुंड और गुंदलपेट में वह कांग्रेस से हार गई . पश्चिम बंगाल की कांथी साउथ सीट पर तृणमूल कांग्रेस की चंद्रिमा भट्टाचार्य भाजपा के सौरिंद्र मोहन से 42,000 वोटों से जीतीं. यानि ममता बनर्जी ने अपने सूबे में भाजपा को सेंधमारी नहीं करने दी है, पर आरएसएस की सक्रियता के चलते इस सीट पर भाजपा का वोट प्रतिशत बढ़ा है. भाजपा का छलांग मारकर दूसरे नंबर पर आ जाना पश्चिम बंगाल में एक वैचारिक लड़ाई की शुरुआत मानी जा सकती है.
भाजपा को एक और बड़ा झटका झारखंड की लिट्टीपाड़ा सीट पर लगा जहां झारखंड मुक्ति मोर्चा के साइमन मराण्डी ने उसके उम्मीदवार हेमलाल मुर्मु को 12,743 वोटों से शिकस्त दी. अपनी पार्टी को जिताने मुख्यमंत्री रघुवर दास यहां तीन दिन डेरा डाले रहे थे. ये उपचुनाव किसी मुद्दे पर नहीं लड़े गए थे, इसलिए इन्हें मोदी मेजिक कहना एक कहने भर की बात है. स्थानीय मुद्दे और प्रत्याशियों की छवि हार जीत में अहम रही, पर अटेर की हार जता गई कि भाजपा का जादू भी मुहावरा बन कर रह गया है. अपने गढ़ में मामूली मतों से ही सही मिली हार भाजपा को एक सबक है कि अब हालात उसके लिए पहले जैसे आसान नहीं रह गए हैं.