‘इसी बात को ले कर मैं ने खूब बहस की और लव्य को खरीखोटी भी सुनाई. मैं उस से गुस्सा हो कर पिछले 2 दिनों से अलग बेडरूम में भी सो रही हूं, मगर वह मुझे मनाने नहीं आया. स्पष्ट है कि उसे पत्नी की नहीं नौकरानी की जरूरत है.

जब उसे मेरी जरूरत ही नहीं है, तो मैं क्यों बेशर्म जैसी वहां पर पड़ी रहूं. आखिर मेरी भी कुछ इज्जत है. इसी कारण आज सुबह मैं उसे बिना कुछ बताए यहां चली आई. आज संडे है, बच्चू आज सारे दिन जब अकेले पड़े रहेगा, तब उसे मेरी अहमियत समझ में आएगी,’ लक्षिता का चेहरा गुस्से से लाल हो चला था और आंखें भी डबडबा आई थीं.’है तो मामला गंभीर ही. मगर, इस समस्या का समाधान वह नहीं है, जो तुम सोच रही हो,’ पापा बोले, ‘तुम्हारा क्या खयाल है जैनी,’ सजन ने अपनी पत्नी की तरफ देखते हुए पूछा.

‘जी, यह इशू इतना भी सीरियस नहीं है. समय के साथ हमें अपनी सोच भी बदलनी होगी. अभी तक हम वीमेन सायकोलोजी मतलब स्त्री मनोविज्ञान की ही बातें करते आए हैं. एक्साम्प्ली हम हमेशा बातें करते हैं कि हम अपनी मैरिड लाइफ में ऐसा क्या करें, जिस से कि पत्नियां खुश हों. उन्हें तरहतरह के उपहार दिए जाएं, उन की तारीफें की जाएं. उन्हें उन की पसंद की जगहों पर घूमने ले जाया जाए वगैरह.

‘मगर, अब समय आ गया है. जबकि हम मैरिड लाइफ में मेन सायकोलोजी की भी बातें करें.’स्त्रियां प्राकृतिक रूप से पुरुषों की तुलना में अधिक भाषा प्रवीण होती हैं, मतलब वे कुछ अधिक बातूनी होती हैं. इसी कारण उन की संप्रेषण क्षमता पुरुषों से अधिक होती है. और यही कारण है कि वे अपने मनोभावों को तुरंत प्रकट कर देती हैं. और यही अपेक्षा वे अपने साथी से भी करती हैं.

‘मगर पुरुष ज्यादा बोलने में विश्वास नहीं रखते, क्योंकि उन की प्रवृत्ति ही ऐसी होती है. पुरुष शब्दों के बदले अपने हावभाव और संकेतों के माध्यम से अपने मनोभावों को व्यक्त करना पसंद करते हैं.’लव्य और लक्षिता के मामले में भी ऐसा ही कुछ हो रहा है. अगर लक्षिता हमारी बेटी है तो अब लव्य भी हमारे लिए कोई पराया नहीं है. अतः हमें उस के पौइंट औफ व्यू से भी सोचना पड़ेगा.

‘मुझे यह कहने में जरा सी भी झिझक नहीं है कि लक्षिता लव्य के मनोभावों को पढ़ने में असफल रही है,’ जैनी अपनी बात कह रही थी.’वाह जैनी, वाह. मैं उस घड़ी को धन्य समझता हूं, जब तुम अपने मातापिता के साथ इंगलैंड से घूमने के लिए भारत आई थीं और सिर्फ 4-5 मुलाकातों के बाद ही मुझ से शादी करने का निर्णय लिया. संभवतः आज अगर कोई भारतीय मां भी होती तो शायद इस छोटी सी बात को प्रतिष्ठा का प्रश्न बना कर अपनी औलाद का ही साथ देती.

‘मुझे गर्व है जैनी. लव्य की अनुपस्थिति में तुम ने उस का पक्ष रखने का जो काम किया है, वह साहसिक और काबिल ए तारीफ है. तुम्हें बधाई जैनी.’इस गंभीर माहौल में भी अपनी पुरानी बातों को याद कर के सजन के चेहरे पर चमक आ गई.

‘पुरुष 2 प्रकार के होते की मानसिकता वाले होते हैं. एक पुरुष वह होते हैं, जिन का मुख्य उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ स्त्रियों को अपनी ओर आकर्षित करना होता है. और वह स्त्रियों को आकर्षित करने के लिए तमाम तरह के लटकेझटके का इस्तेमाल करते हैं जैसे विभिन्न तरह की पोषाकें पहनना, अलगअलग तरह के परफ्यूम लगाना, हमेशा स्त्रियों की प्रशंसा कर के अपनी ओर आकर्षित करना वगैरह. इन की इस तरह की गतिविधि से कई बार महिलाएं इन की तरफ आकर्षित हो भी जाती हैं. और अकसर ही महिलाएं अपने पतियों से भी इसी तरह की अपेक्षाएं रखती हैं.  लेकिन इस तरह के लोग अपने वास्तविक वैवाहिक जीवन में कितने सफल होते हैं, यह शोध का एक विषय हो सकता है.

‘दूसरे तरह के पुरुष वह होते हैं, जो अकसर आवश्यकता की पूर्ति के लिए ही बातें करते हैं और बाकी समय गंभीरता का आवरण ओढ़े रहते हैं. प्रायः महिलाएं इन के साथ रहना अवौयड ही करती हैं. लेकिन इतना तो तय है कि इस तरह के पुरुषों की संख्या ज्यादा होती है और यह अपने परिवार को स बसे आगे मतलब फैमिली फर्स्ट रखते हैं.

‘लव्य भी इन दूसरी तरह के पुरुषों में आता है, जो अपने मनोभावों को शब्दों में व्यक्त नहीं कर पाते हैं,’ जैनी लक्षिता को समझाते हुए बोली.’आप की परिभाषा अपनी जगह सही हो सकती है मम्मी. मगर, क्या लव्य जैसे पढ़ेलिखे और समझदार आदमी से यह अपेक्षा नहीं रखी जा सकती कि वे अपनी पत्नी की प्रशंसा में दो शब्द कहें? लव्य को यह समझना चाहिए कि उस के तारीफ के शब्द मेरा उत्साह कितना बढ़ा देते हैं,’ लक्षिता बोली.

‘लक्षिता, मुझे तुम यह बताओ कि क्या सिर्फ शब्द ही प्रशंसा का आधार है?’ जैनी ने लक्षिता से प्रश्न पूछा.’ऐसा नहीं है,’ फिर खुद ही जवाब देते हुए वह बोली, ‘किसी चीज की आलोचना नहीं करना भी उस की प्रशंसा के बराबर ही है. लव्य ने तुम्हारे बनाए व्यंजनों की आलोचना नहीं की, इस का सीधा सा मतलब है कि उस ने उस की तारीफ ही की है.

‘दूसरे तुम यह भी कह रही हो कि लव्य ने अपनी डाइट से कुछ ज्यादा ही खाया. मुझे बताओ कि साधारण परिस्थितियों में कोई अधिक खाना कब खाता है? जब उसे खाना अत्यधिक पसंद आता है तभी ना? क्या तुम इसे अपनी तारीफ नहीं समझती?

‘मेरी नजर में तो लक्षिता तुम ने शब्दों की तारीफ से कुछ अधिक ही पा लिया है. एक मशहूर हिंदी की कहावत है कि ‘पति के दिल का रास्ता उस के पेट से हो कर जाता है.’ इस लिहाज से तो तुम ने लव्य के दिल पर राज कर लिया है. चाहे वह कुछ कह ना सका हो, मगर वह तुम्हें कुछ सरप्राइज देने के बारे में अवश्य सोच रहा होगा. तुम ने उस से लड़ाई कर के अच्छा नहीं किया लक्षिता.’ जैनी कहती रही.

‘हां मां, तुम ठीक कहती हो. मैं ने जल्दबाजी में इन बातों पर ध्यान दिया ही नहीं. यह तो सचमुच शब्दों से कहीं बड़ी प्रशंसा है,’ लक्षिता को अपनी गलती समझ में आने लगी थी.’नहीं लक्षिता, तुम ने एक नहीं कई गलतियां की हैं. और निर्णय लेने में बहुत जल्दबाजी भी की है,’ इस बार सजन बोले.

‘और कौन सी गलती की है मैं ने पापा…?’ लक्षिता ने अपराध भाव से पूछा.’पहली गलती तो तुम्हारी मम्मी ने तुम्हें समझा ही दी है. दूसरी गलती तुम ने अपना बेडरूम छोड़ कर की है.’शादी के बाद लड़का और लड़की जब पति और पत्नी के बंधन में बंधते हैं तो वह सिर्फ नए संबंध ही नहीं बनाते, बल्कि कई निर्जीव चीजों में भी अधिकार के साथ प्राण फूंकते हैं. सीमेंटकंक्रीट के निर्जीव मकान को भी एक हंसताखिलखिलाता घर बनाते हैं. और इस घर पर दोनों का समान अधिकार होता है.

‘तुम दो दिनों से लव्य से अलग बेडरूम में सो रही हो. इस का मतलब जानती हो? इस का सीधा सा मतलब होता है कि तुम अपने अधिकार को छोड़ रही हो. या दूसरे शब्दों में कहें कि तुम लव्य को इस बात के लिए बाध्य कर रही हो कि वह तुम्हारे अधिकार किसी और को दे दे.

‘इसे इस तरह से भी समझा जा सकता है. तुम ने रेल में सफर तो बहुत किया होगा और यह भी देखा होगा कि कई बार रिजर्वेशन होने बावजूद जरा सा इधरउधर होने पर हमारी सीट पर कोई दूसरा अपना अधिकार जमा लेता है और फिर हमें अपनी ही सीट वापस लेने के लिए मिन्नतें करनी पड़ती है. कई बार तो लड़ाई तक की नौबत भी आ जाती है.

ऐसा ही कुछ मंजर जिंदगी का भी होता है. इसलिए वैवाहिक जीवन के बारे में कोई भी निर्णय ऐसा नहीं लेना चाहिए, जो आत्मघाती हो,’ पापा लक्षिता को समझाते हुए बोले.’क्या इतनी छोटी सी बात के परिणाम इतने गंभीर भी हो सकते हैं?’ लक्षिता ने चिंतित स्वर में पूछा.’छोटीछोटी समझी जाने वाले गलतियों के ही परिणाम गंभीर व विपरीत हुआ करते हैं,’ पापा ने लक्षिता को समझाया.

‘तो फिर मुझे क्या करना चाहिए था पापा? मैं बहुत गुस्से में थी, इसी कारण इस तरह का कदम उठा लिया,’ लक्षिता के बोलने के अंदाज से लग रहा था कि उसे अपने ऐसा करने पर बहुत अफसोस है.’एक पत्नी चाहे तो अपने पति से क्या नहीं करवा सकती. तुम ने मेनका का नाम सुना है? उस के साथ में विश्वामित्र का नाम भी अवश्य ही सुना होगा. दोनों एकदूसरे से अनजान थे, अजनबी भी थे. फिर भी मेनका ने उन को अपनी मोहक अदाओं से अपनी प्रशंसा के लिए बाध्य कर दिया.

‘तुम तो लव्य की अर्धांगिनी हो. तुम्हें बेडरूम छोड़ने के बजाय उसे पहले की तरह ही शेयर करते रहना चाहिए था. ज्यादा कुछ नहीं सिर्फ तुम लव्य के बालों में हलके हाथ से उंगलियां घुमाती और पूछती कि आज खाने में क्या कमी थी तो ही वह बेचारा तुम्हारी भरपूर तारीफ करने के लिए विवश हो जाता. वह ऐसा समय होता है, जब स्त्रियां अपना बड़े से बड़ा काम करवा लेती हैं, तो फिर तारीफ चीज ही क्या है.

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