Online Hindi Story : सनाया बहुत ज्यादा घबराई हुई थी. वाशरूम से लगभग भागते हुए वह ड्राइंगरूम में आई थी. मां ने पूछा, “क्या हुआ बेटा? इतनी घबराई हुई क्यों हो? क्या तुम ने कौकरोच देख लिया है या फिर छिपकली?”

“नहीं मम्मा, यूरिन के साथ ब्लड भी आ रहा है,” उस ने अपुष्ट स्वर में कहा.

सोनल उस के चेहरे पर साफतौर पर डर और घबराहट के भाव देख रही थी. उस का पूरा शरीर डर और गरमी की वजह से पसीने से तरबतर था.

यह देख कर सोनल भी थोड़ी सी घबरा गई थी, क्योंकि सनाया 5 मई को पूरे 10 साल की हुई थी और आज 12 मई था. उस ने सोचा कि इतनी जल्दी मासिक धर्म यानी पीरियड कैसे शुरू हो सकता है? लेकिन सोनल के मन में उठने वाली शंका गलत थी. सनाया को पीरियड ही शुरू हुआ था.

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सनाया 10 साल की थी, जबकि बड़ी बेटी आशिमा 13 साल की. सनाया और आशिमा की उम्र में 3 सालों का अंतर था, लेकिन सनाया आशिमा से केवल एक क्लास पीछे थी, क्योंकि सनाया ने कम उम्र में ही स्कूल में दाखिला ले लिया था.

सनाया 7वीं में है और आशिमा 8वीं में. उम्र को अगर पीरियड शुरू होने का पैमाना माना जाए तो यह आशिमा को अब तक शुरू हो जाना चाहिए था, लेकिन इस शारीरिक क्रिया का उम्र से कोई सीधा संबंध नहीं था. यह 8-9 साल की उम्र में भी शुरू हो सकता है और 15 साल की उम्र में भी.

सनाया के लिए पीरियड को समझना और उस का सामना करना आसान नहीं था. वह इसे समझने के लिए बहुत छोटी थी. वह पहले से ही मिरगी की बीमारी से पीड़ित थी. दवाई खाते हुए 6 साल से अधिक समय बीत चुका था. फिर भी वह ठीक नहीं हुई थी. डाक्टर का कहना था कि अभी 2-3 सालों तक सनाया को और दवाई खानी पड़ सकती है. 5 एमजी का फ्रीजियम और लेमिटोर 200 ओडी दवा खाने के बाद सनाया के दिमाग की सक्रियता काफी कम हो जाती थी. इस वजह से वह एकाग्रता के साथ पढ़ भी नहीं पाती थी. 7वीं क्लास की पहली तिमाही की परीक्षा में भी इसी वजह से सनाया को अच्छे अंक नहीं आए हैं. मिरगी के कारण सनाया न तो साइकिल चला पाती है और न ही स्वीमिंग कर सकती है.

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सनाया के पेट में तेज दर्द हो रहा था. सोनल ने जल्दी से उसे एक पेनकिलर दिया. कुछ देर के बाद उस का दर्द कुछ कम हुआ, लेकिन सनाया को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था. वह दर्द और इस नई अबूझ पहेली को देख हतप्रभ और परेशान थी.

वह रोतेरोते बोल रही थी, “मुझे डाक्टर से जल्दी दिखवाओ मम्मा, पेट में बहुत तेज दर्द हो रहा है. पापा को भी औफिस से बुलाओ.”

सनाया बगैर पापा के रात में नहीं सोती थी. उसे अपने पापा से बहुत ज्यादा प्यार था. वह तकिए की जगह पापा के हाथ को तकिया बना कर सोती थी. पापा के हाथ पर सिर रखने के बाद ही उसे नींद आती थी.

सोनल को समझ में नहीं आ रहा था कि वह सनाया को कैसे समझाए कि मिरगी के दुष्परिणामों के साथसाथ उसे हर महीने पीरियड के दर्द को भी सहना पड़ेगा.

सोनल की बड़ी बेटी आशिमा कुछ समझदार थी. उस ने तुरंत पीरियड पर लिखे लेखों को इंटरनेट से डाउनलोड कर के उसे पढ़ा और फिर सनाया को भी समझाया. आशिमा ने कुछ चौकलेट भी सनाया को दी, ताकि उस का ध्यान दर्द से हट सके. दोनों बहनें, बहन कम और सहेलियां ज्यादा थीं. आशिमा के प्रयासों से थोड़ी देर बाद सनाया सामान्य हो गई.

सनाया के दर्द से कराहते चेहरे को देख कर सोनल को अपने पहले पीरियड के दिन याद आ गए. उसे भी पीरियड 11 साल की उम्र में शुरू हुआ था. सोनल का मां से संबंध सहेलियों जैसा नहीं था. पापा से तो वह डर की वजह से ठीक से बात भी नहीं कर पाती थी. पापा से उस का संवाद सिर्फ पढ़ाई के दौरान होता था. पापा जबान से कम तमाचों से ज्यादा बातें करते थे.

पीरियड शुरू होने के समय सोनल घर में अकेली थी. महल्ले में भी उस की कोई सहेली नहीं थी. वह स्कूल से आने के बाद घर में बंद रहती थी. घर में फोन नहीं था. सोनल को समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे? सोनल को भी लगा था कि उसे कोई बड़ी बीमारी हो गई है. छोटी बहन थी, लेकिन वह भी नासमझ थी. बड़ा भाई था, लेकिन उसे क्या बताती. शर्म और डर की वजह मां से भी अपनी समस्या साझा नहीं कर सकी थी. बीमार होने का बहाना कर के वह 3 दिनों तक स्कूल नहीं गई थी. तीसरे दिन पापा ने बुरी तरह से पिटाई कर दी थी और कहा, “न तुम्हें बुखार है और न ही सर्दीखांसी. फिर स्कूल क्यों नहीं जा रही हो? बीमारी का बहाना कर के घर में बैठी हुई हो नालायक, बेवकूफ, इडियट और न जाने क्याक्या कहा था उन्होंने सोनल को और वह चुपचाप रोती रही थी.“

2 दिनों तक सोनल कपड़ों का इस्तेमाल करती रही थी, लेकिन तीसरे दिन शाम को मां ने वाशरूम में गंदे कपड़ों को देख लिया. मां को तुरंत पता चल गया कि इसे पीरियड शुरू हो गया है. मां दवा की दुकान से तुरंत पैड ले कर आईं. पैड अखबार में लपेटा हुआ था.

“अखबार में यह क्यों लपेटा हुआ है?” सोनल ने मां से पूछा तो वे बोलीं, “हमारे समाज में पैड को टैबू की तरह देखा जाता है. लोग इसे नहीं देखें, इसलिए दुकानदार इसे अखबार में लपेट कर या फिर काले रंग की पौलीथिन में ग्राहक को देते हैं.”

मां थोड़ी देर बाद फिर बोलीं, “गांव और कसबाई इलाकों में तो पीरियड के दौरान महिलाओं को पूजापाठ करना या मंदिर में प्रवेश करना मना होता है. कई दकियानूसी घरों में तो महिला को अलग कमरे में रहने के लिए कहा जाता है. घर के दूसरे सदस्यों को रजस्वला औरत से दूर रहने के लिए कहा जाता है.

“हालांकि मां कामख्या देवी के रजस्वला होने के दौरान लोग उन्हें पवित्र मान कर उन की पूजा करते हैं. वहां प्रसाद के रूप में रक्त से सने कपडे भक्तों को दिए जाते हैं.”

मां की बात सुन कर सोनल सोचने लगी कि हमारा समाज कितना बड़ा ढोंगी है?

सोनल मन ही मन सोच रही थी, “उस के पापा भी तो दकियानूसी विचारों के हैं. इसलिए मां को उस के लिए पैड लाने के लिए दुकान जाना पड़ा. पापा का ईगो उन्हें पैड लाने की इजाजत नहीं देता था. यह उन के पुरुषत्व के खिलाफ था.“

सोनल को अच्छी तरह याद है कि पापा और मां की कंजूसी और नासमझी के कारण पीरियड के दौरान गंदे कपड़ों के इस्तेमाल की वजह से वह गंभीर रूप से बीमार पड़ गई थी. घर में 3 सदस्य स्त्रियां हैं. फिर भी घर में कभी भी अतिरिक्त पैड नहीं होता था, जबकि मां और पापा दोनों को मालूम था कि पैड पीरियड से जुड़ी बीमारियों से बचने का सब से महत्वपूर्ण हथियार है.

बहरहाल, मां के समझानेबुझाने पर चौथे दिन से सोनल स्कूल जाना शुरू कर देती है. उसे सब से ज्यादा आश्चर्य तब होता है, जब उसे पता चलता है कि उस की अधिकांश सहेलियों को पीरियड के बारे में कुछ भी मालूम नहीं है, लेकिन कुछ लड़कों को जरूर यह मालूम था, क्योंकि वे गंदेगंदे इशारे किया करते थे. भले ही हमारे वेदपुराणों में शिक्षकों को गुरु का दर्जा दिया गया है, लेकिन आज के अधिकांश शिक्षक गुरु की कसौटी पर खरे नहीं उतरते हैं. कुछ शिक्षक तो शिक्षक की गरिमा को तारतार करने से भी बाज नहीं आते हैं. उन्हीं में से एक थे हमारे स्कूल के पीटी सर. वे रजस्वला लड़कियों को देख कर गंदे इशारे किया करते थे. सोनल ने भी उन के गंदे इशारों को झेला था.
सोनल सोच रही थी कि अब सनाया को भी इस शारीरिक व मानसिक दर्द से हर महीने जूझना होगा. अभी तो कोरोना की वजह से स्कूल बंद हैं, लेकिन जब स्कूल खुलेंगे तो सनाया को भी लड़कों के सामने से या फिर पीठ पीछे शर्मनाक शब्दबाण के वार झेलने पड़ेंगे, जिस में पुरुष शिक्षक भी शामिल हो सकते हैं. सोसाइटी के लड़के भी शामिल हो सकते हैं. किसकिस से सनाया लड़ाई करेगी और क्या वह इस जंग को जीत पाएगी?

सोनल को चिंता भी हो रही थी और गुस्सा भी आ रहा था. वह मन ही मन सवाल कर रही थी, “औरतें ही बच्चे को क्यों जन्म देंगी, पुरुष क्यों नहीं? औरत को शारीरिक रूप से कमजोर क्यों बनाया गया है? बच्चे पैदा करने के लिए पीरियड की क्या जरूरत है, इस के बिना बच्चे क्यों नहीं पैदा हो सकते? आदि.“

सोनल को गुस्सा पुरुष प्रधान सामाजिक व्यवस्था पर भी आ रहा था, जिस में औरत की स्थिति शुरू से कमतर बनी हुई है और स्त्री को भोग की वस्तु समझा जाता है. प्राचीन काल में राजा कई रानियां रखते थे, मध्यकाल में हरम में रखने की प्रथा थी. आज भी लड़की को भोग की वस्तु माना जाता है. घर हो या बाहर, हर जगह उन के साथ भेदभाव किया जाता है. 21वीं सदी में भी लड़कियां दहेज के लिए जलाई जा रही हैं. लड़के की आस में लड़की को जन्म लेने से पहले ही पेट में मार दिया जा रहा है. मां भी बेटे और बेटी में भेदभाव करती है. बेटी को बेटे से कम भोजन दिया जाता है. पौष्टिक खाने से भी उन्हें दूर ही रखा जाता है. लड़कियां अकेले देर रात घर से बाहर नहीं निकल सकती हैं, जबकि लड़के के लिए कोई समयसीमा तय नहीं होती है. वे देर रात को भी घर से बाहर निकल सकते हैं.

सोनल सोच रही थी कि अगर हम सभी इनसान हैं, तो हमें इनसानियत धर्म का पालन भी करना चाहिए अर्थात सही को सही और गलत को गलत मान कर फैसला करना चाहिए. अगर पुरुष इनसान है तो महिला भी इनसान है और उसे बराबरी का दर्जा जरूर दिया जाना चाहिए. सही या गलत सोचने की क्षमता ही तो इनसान को जानवरों से अलग करती है.

कोरोना के दौर में मौत को नजदीक से देखने के बाद भी पुरुषों की मन की स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है. कोरोना ने बता दिया कि संसार में हर जीवित प्राणी नश्वर है और रंगमंच के कलाकारों की तरह इनसान को अपनी भूमिका निभा कर के इस दुनिया से विदा होना है. बावजूद इस के महिलाओं के महत्व की अनदेखी की जा रही है, जबकि पुरुष को महिला और उस के काम के महत्व को समझना चाहिए. घर को पुरुष अकेले नहीं चला सकते हैं. इनसानी सृष्टि भी पुरुष अकेले नहीं चला सकते हैं. आखिर किस बात का गुरूर है पुरुषों को, सोचतेसोचते सोनल का चेहरा दुख और गुस्से से स्याहा पड़ गया.

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