प्रिया मोबाइल पर कुछ देख रही थी. उस की नजरें झुकी हुई थीं और मैं एकटक उसे निहार रहा था. कौटन की साधारण सलवारकुरती और ढीली बंधी चोटी में भी वह बेहद खूबसूरत लग रही थी. गले में पतली सी चेन, माथे पर छोटी काली बिंदी और हाथों में पतलेपतले 2 कंगन, बस इतना ही शृंगार किया था उस ने. मगर उस की वास्तविक खूबसूरती उस के होंठों की मुसकान और चेहरे पर झलक रहे आत्मविश्वास की चमक में थी. वैसे लग रहा था कि वह विवाहित है.

उस की मांग में सिंदूर की हलकी सी लाली नजर आ रही थी. मैं ने गौर से देखा. प्रिया 20-21 साल से अधिक की नहीं थी. मैं भी पिछले साल ही 30 का हुआ हूं. मु झे प्रिया से मिले अभी अधिक समय नहीं हुआ है. 5-6 घंटे ही बीते हैं जब मैं ने मुंबई से रांची की ट्रेन पकड़ी थी. स्टेशन पर भीड़ थी. सब के चेहरे पर मास्क और माथे पर पसीना छलक रहा था. सब अपनेअपने बीवीबच्चों के साथ सामान कंधों पर लादे अपने घर जाने की राह देख रहे थे. ट्रेन के आते ही सब उस की तरफ लपके. मेरी रिजर्वेशन थी. मैं अपनी सीट खोजता हुआ जैसे ही आगे बढ़ा कि एक लड़की से टकरा गया. वह किसी को ढूंढ़ रही थी, इसलिए हड़बड़ी में थी. अपनी सीट के नीचे सामान रख कर मैं बर्थ पर पसर गया. तभी वह लड़की यानी प्रिया मेरे सामने वाली बर्थ पर आ कर बैठ गई.

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उस ने अपने सामान में से बोतल निकाली, मास्क हटाया और गटागट आधी बोतल पानी पी गई. मैं उसी की तरफ देख रहा था. तभी उस की नजर मु झ से मिली. उस ने मुसकराते हुए बोतल बंद कर के रख ली. ‘‘आप को कहां जाना है?’’ मैं ने सीधा सवाल पूछा जिस का उस ने सपाट सा जवाब दिया, ‘‘वहीं जहां ट्रेन जा रही है,’’ कह कर वह फिर मुसकरा दी. ‘‘आप अकेली हैं?’’ ‘‘नहीं, भैयाभाभी हैं साथ में. वे बगल के डब्बे में हैं. मेरी सीट अलग इस डब्बे में थी, इसलिए इधर आ गई. वैसे अकेले तो आप भी दिख रहे हैं,’’ उस ने मेरा ही सवाल मेरी तरफ उछाल दिया. ‘‘हां मैं तो अकेला ही हूं अब अपने घर रांची जा रहा हूं. मुंबई में अपनी छोटी सी दुकान है, मु झे लिखनेपढ़ने का शौक है. इसलिए दुकान में बैठ कर पढ़ाई भी करता हूं. लौकडाउन के कारण कामधंधा नहीं चल रहा था, इसलिए सोचा कि घर से दूर अकेले रहने से अच्छा है अपने गांव जा कर अपनों के बीच रहूं.’’ ‘‘यही हाल इस ट्रेन में बैठे हुए सभी मजदूरों का है. नेताओं ने सांत्वना तो बहुत दी, मगर वास्तव में मदद कहीं नजर ही नहीं आती.

भैयाभाभी मजदूरी करते हैं जो अब बंद हैं. मेरा एक छोटामोटा बुटीक था. घर से ही काम करती थी, पर आजकल कोई काम नहीं मिल रहा. तभी हम ने भी गांव जाने का फैसला किया. हम 2 दिन ट्रेन की राह देखदेख कर लौट चुके हैं. कल तो ट्रेन ही कैंसिल हो गई थी. मगर मैं ने हिम्मत नहीं हारी और देखो आज ट्रेन मिल गई तो घर भी पहुंच ही जाएंगे.’’ हमारे कोच के ऊपर की दोनों बर्थ पर 2 बुजुर्ग अंकलआंटी थे. उन के नीचे 2 अधेड़ थे. चारों आपस में ही बातचीत में मगन थे. इधर मैं और प्रिया भी लगातार बातें करने लगे. ‘‘तुम्हारे घर में और कौनकौन है प्रिया?’’ ‘‘मेरे पति, सासससुर, काका ससुर और 1 छोटा देवर. मांबापू, भैयाभाभी और छोटी बहन भी पास में ही रहते हैं.’’ ‘‘अच्छा पति क्या करते हैं?’’ ‘‘कंप्यूटर सिखाते हैं बच्चों को भी और मु झे भी.’’ ‘‘बहुत अच्छा.’’ ‘‘अच्छा यह बताओ तुम्हारा पति गांव में है और तुम शहर में. वे शहर क्यों नहीं आते?’’ ‘‘उन्हें गांव ही भाता है. मु झ से मिलने आते रहते हैं न.

कोई दिक्कत नहीं हमें. हम एकदूसरे से बहुत प्यार करते हैं. वे मेरे बचपन के साथी हैं. हम पढ़े हैं. मेरे कहने पर मांबापू ने उन्हीं से मेरी शादी करा दी और अब वे मेरे जीवनसाथी हैं. जब तक जीऊंगी हमारा साथ बना रहेगा. आज भी मैं उन्हें साथी कहती हूं. ऐसा साथी जो कभी साथ न छोड़े. वे रोज सपने में भी आते हैं और मु झे बहुत हंसाते भी हैं. तभी तो मैं इतनी खुश रहती हूं.’’ ‘‘क्या बात है, पति रोज सपनों में आते हैं,’’ कह कर मैं मुसकरा पड़ा और बोला, ‘‘मैं तो मानता हूं सच्चा प्यार गांवों में ही देखने को मिलता है. शहरों की भीड़ में तो लोग खो जाते हैं.’’ ‘‘सही कह रहे हो आप.’’ ‘‘खाली समय में क्या करती हो?’’ ‘‘मैं फिल्में बहुत देखती हूं.’’ ‘‘अच्छा कैसी फिल्में पसंद हैं तुम्हें?’’ ‘‘डरावनी फिल्में तो बिलकुल पसंद नहीं हैं. रोनेधोने वाली फिल्में भी नहीं देखती. ऐसी फिल्में देखती हूं, जिन में न टूटने वाला प्यार हो. एकदूसरे के लिए पूरी जिंदगी इंतजार करने का दर्द हो. आप कैसी फिल्में देखते हो?’’ ‘‘मैं तो हंसीमजाक वाली और मारधाड़ वाली फिल्में देखता हूं. पौलिटिक्स पर बनी फिल्में भी देख लेता हूं.’’ ‘‘पौलिटिक्स और नेताओं से तो मैं दूर रहती हूं. नेताओं ने आज तक किया ही क्या है? भोलीभाली जनता का खून चूसचूस कर अपने बंगले और बैंक बैलेंस ही तो खड़े किए हैं.’’

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‘‘बात तो तुम ने सोलह आने सही कही है.’’ प्रिया की हर बात में खुद पर भरोसा और हंस कर जीने की ललक साफ दिख रही थी. मु झे उस की बातें अच्छी लग रही थीं. हम ने स्कूल के किस्सों से ले कर सीरियलों और फिल्मों तक की सारी बातें कर लीं. यहां तक कि सरकार और राजनेताओं के ढकोसलों पर भी लंबी चर्चा हुई. इस बीच प्रिया ने घर की बनी मट्ठी खिलाई. खिलाने से पहले उस ने सैनिटाइजर की कुछ बूंदें मेरे हाथों पर डालीं. मैं मुसकरा उठा. इस के बाद मैं ने भी उसे अपने हाथ के बने बेसन के लड्डू खिलाए. हम दोनों के बीच अच्छी ट्यूनिंग हो गई थी. आधे से ज्यादा सफर बीत चुका था. अचानक ट्रेन की गति धीमी हुई और डाल्टनगंज स्टेशन पर आ कर रुक गई. डाल्टनगंज झारखंड का एक छोटा सा स्टेशन है. मैं ट्रेन से उतर कर इधरउधर देखने लगा. जल्द ही मु झे पता चला कि हमें ट्रेन बदलनी पड़ेगी. किसी तकनीकी खराबी के कारण यह ट्रेन आगे नहीं जा सकती.

मैं ने प्रिया को सारी जानकारी दे दी. वह भी अपने भैयाभाभी के साथ उतर कर प्लेटफौर्म पर बैठ गई. अगली ट्रेन दूसरे प्लेटफार्म से मिलनी थी और वह भी 2-3 घंटे बाद. हम तय प्लेटफौर्म पर पहुंच कर ट्रेन का इंतजार करने लगे. धूप बहुत तेज थी. गला सूख रहा था. अब तक साथ लाया पानी भी खत्म हो चुका था. हम ने सुना था कि ट्रेन में पानी मिलेगा, मगर मिला नहीं. करीब 4 घंटे बाद दूसरी ट्रेन आई जो बिलकुल भरी हुई थी. प्लेटफौर्म पर बैठे सभी मजदूर सोशल डिस्टैंसिंग भूल कर ट्रेन पकड़ने लपके. सब को पता था कि यह ट्रेन छूटी तो रात प्लेटफौर्म पर गुजारनी पड़ेगी. भैयाभाभी के साथ प्रिया भी चढ़ने की कोशिश करने लगी. इधर मैं भी बगल वाले डब्बे में चढ़ चुका था. तभी मैं ने देखा कि भैयाभाभी के बाद जैसे ही प्रिया चढ़ने को हुई कि कोई बदतमीज व्यक्ति उस को गलत तरीके से छूते हुए धक्का दे कर खुद चढ़ गया. प्रिया एकदम से छिटक गई. उस मजदूर की हरकत पर मु झे बहुत गुस्सा आया. जिस तरह गंदे ढंग से उस ने प्रिया को छुआ था, मेरा वश चलता तो वहीं उस का सिर फोड़ देता. ट्रेन ने चलने के लिए सीटी दे दी थी. मगर प्रिया चढ़ नहीं पाई. वह प्लेटफार्म पर दूर खड़ी रह गई जबकि उस के भैयाभाभी धक्के के साथ बोगी के अंदर चले गए थे. मैं गेट पर खड़ा था. उसे अकेला देख कर मैं ने एक पल को सोचा और तुरंत ट्रेन से उतर गया. प्रिया मेरी हरकत देख कर चौंक गई फिर दौड़ कर आई और मेरे गले लग गई. उस की आंखों में आंसू थे. मैं ने उसे दिलासा दिया, ‘‘रोते नहीं प्रिया. मैं हूं न. मैं तुम्हें तुम्हारे घर तक सुरक्षित पहुंचा दूंगा तभी अपने घर जाऊंगा. तुम जरा भी मत घबराओ.’’

प्रिया एकटक मेरी तरफ देखती हुई बोली, ‘‘एक अजनबी हो कर इतना बड़ा एहसान?’’ ‘‘पागल हो क्या? यह एहसान नहीं. हमारे बीच इन कुछ घंटों में इतना रिश्ता तो बन ही गया है कि मैं तुम्हारी केयर करूं.’’ ‘‘कुछ घंटों में तुम ने ऐसा गहरा रिश्ता बना लिया?’’ ‘‘ज्यादा सोचो नहीं. चलो अब तुम आराम से बैठ जाओ. मैं पानी का इंतजाम कर के आता हूं.’’ प्रिया को बैंच पर बैठा कर मैं पानी लेने चला गया. किसी तरह पानी की बोतल मिली. उसे ले कर लौटा तो देखा कि प्रिया हर बात से बेखर अपने में खोई जमीन की तरफ एकटक देख रही थी. उस के पास एक गुंडा सा लड़का खड़ा था जो उसे घूरे जा रहा था. मैं जा कर प्रिया के सामने खड़ा हो गया और बातें करने लगा. फिर मैं ने खा जाने वाली नजरों से उस लड़के की तरफ देखा. वह तुरंत मुंह फेर कर दूसरी तरफ चला गया. अब मैं प्रिया की बगल में थोड़ी दूरी बना कर बैठ गया. ‘‘लो प्रिया, पानी पी लो. मैं 2 बोतल पानी ले आया हूं.’’ ‘‘थैक्यू.’’ उस ने मुसकरा कर बोतल ली, मगर आंखों में घर पहंचने की चिंता भी झलक रही थी. भूख और थकान से उस का चेहरा सूख रहा था.

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उस का मन बदलने के लिए मैं उस के गांव और घर वालों के बारे में पूछने लगा. वह मु झे विस्तार से अपनी जिंदगी और घरपरिवार के बारे में बताती रही. 2-3 घंटे ऐसे ही बीत गए. शाम का धुंधलका अब रात की कालिमा में तबदील हो चुका था. प्रिया को जम्हाई लेता देख मैं बैंच से उठ गया और प्रिया से बोला, ‘‘बैंच पर आराम से सो जाओ. मैं जागा हुआ हूं. तुम्हारा और सामान का ध्यान रखूंगा.’’ ‘‘अरे ऐसे कैसे? नींद तो तुम्हें भी आ रही होगी न.’’ ‘‘नहीं मेरी तो आदत है देर रात तक जागने की. मैं देर तक जाग कर पढ़ता हूं. चलो तुम सो जाओ.’’ प्रिया सो गई. मैं बगल की बैंच पर बैठ गया. 2-3 घंटे बाद मैं भी ऊंघने लगा. बैठेबैठे कब हलकी सी नींद लग गई, पता ही नहीं चला. अचानक झटका सा लगा और मेरी आंखें खुल गईं. देखा प्रिया की बैंच पर एक और मजदूर बैठ गया है और गंदी व ललचाई नजरों से उस की तरफ देख रहा है. उस के हाथ प्रिया के पैरों को छू रहे थे. प्रिया नींद में थी. मैं एकदम से उठ बैठा और उस मजदूर पर चिल्ला पड़ा, ‘‘देखते नहीं वह सो रही है. जबरदस्ती आ कर बैठना है तुम्हें..

. उसे यहां से.’’ मेरा गुस्सा देख कर वह भाग गया. मु झे महसूस हो गया कि इस दुनिया में अकेली लड़की को देख कर लोगों की लार टपकने लगती है. इसलिए मु झे ज्यादा सावधान रहना होगा. मैं एकदम सामान ले कर उसी बैंच पर आ कर बैठ गया, जिस पर प्रिया सोई हुई थी. अब तक मेरी आवाज सुन कर वह भी उठ कर बैठ गई थी. फिर रातभर हम बैठ कर बातें करते रहे. भूख भी लग रही थी, मगर प्लेटफौर्म पर खानेपीने का इंतजाम नहीं था. सुबह के समय प्रिया फिर सो गई. इस बीच चोरीछिपे एक कचौड़ी बेचने वाला प्लेटफौर्म पर आया तो मैं ने जल्दी से 8-10 कचौडि़यां खरीदीं और प्रिया को उठा दिया. दोनों ने बैठ कर नाश्ता किया. फिर दोपहर तक हमें खाने को कुछ नहीं मिला. रांची जाने वाली एक ट्रेन आई, हम उस में चढ़ गए. भीड़ काफी थी. मौका देख कर 1-2 आवारा टाइप के लड़कों ने प्रिया के साथ बदतमीजी की कोशिश भी की, मगर मैं हर वक्त उस के आगे ढाल बन कर खड़ा रहा.

किसी तरह हम रांची जंक्शन पर उतर गए. प्रिया का घर वहां से 2 घंटे की दूरी पर था. जाने के लिए कोई साधन भी नजर नहीं आ रहा था. हम करीब आधे 1 घंटा परेशान रहे. तभी हमें एक जीप दिखाई दी. उस में 2 लोग और बैठे थे. मेरे द्वारा विनती किए जाने पर उन लोगों ने हमें पीछे बैठा लिया और हमें हमारे गंतव्य से करीब 2 किलोमीटर की दूरी पर उतार दिया. क्व2 हजार भी लिए. प्रिया के मना करने के बावजूद मैं ने अपने पास से रुपए दे दिए. अब हमें अंधेरे में दोढाई घंटे पैदल चलना था और वह भी कच्चीपक्की सड़कों पर. किसी तरह हम ने वह रास्ता भी तय कर लिया और प्रिया के घर पहुंच गए. सब बहुत खुश थे. प्रिया की मां ने मु झे बैठने को कुरसी दी और अंदर से पानी ले आईं. तब तक प्रिया ने ट्रेन से उतरने से ले कर अब तक की सारी कहानी सुना दी. फिर घर वालों ने उसे अंदर नहाने भेज दिया और मु झे चायनाश्ता ला कर दिया. चाय पीतेपीते मैं ने पूछा, ‘‘प्रिया के पति कहां हैं? पास में ही रहते हैं न? प्रिया ने बताया था कि ससुराल और मायका आसपास है. वे दिख नहीं रहे.’’

प्रिया की मां और भाई ने एकदूसरे की तरफ देखा. तब तक भाभी कहने लगीं, ‘‘प्रिया के पति जिंदा कहां हैं? शादी के सप्ताह भर बाद ही गुजर गए थे.’’ मैं चौंक पड़ा, ‘‘पर रास्ते में तो उस ने मु झे बताया कि उस के पति उस से बहुत प्यार करते हैं. उस से मिलने शहर भी आते रहते हैं.’’ ‘‘ये सारी कहानियां प्रिया ने मन ने बनाई हैं. वह पति को खुद से अलग करने को तैयार ही नहीं. वह अब भी 2 साल पहले की दुनिया में ही जी रही है. उसे लगता है जैसे उस का साथी आसपास ही है. सपनों के साथसाथ सच में भी मिलने आता है. पर भैया आप ही सोचो, जो चला गया वह भला लौट कर आता है कभी? उस का मन बदलने के लिए हम उसे शहर ले गए थे. हम ने उस से दूसरी शादी करने को भी कहा, पर वह अपनी कल्पना की दुनिया में ही खुश है. कहती है कि जैसे भी हो सारी उम्र अपने साथी के साथ ही रहेगी.’’ प्रिया की मां कहने लगीं, ‘‘ऐसा नहीं है बेटा कि वह रोती ही रहती है, उलटा वह तो पति की यादों के साथ खुश भी रहती है.

अपना काम भी पूरी मेहनत से करती है. इसलिए हम लोगों ने भी उसे इसी तरह जीने की छूट दे दी है.’’ उन की बात सुन कर मैं भी सिर हिलाने लगा, ‘‘यह तो बिलकुल सच है कि वह खुश रहती है, क्योंकि उस ने अपने साथी से बहुत गहरा प्रेम किया है. बस वह हमेशा खुश रहे इतना ही चाहता हूं. अच्छा मांजी मैं चलता हूं.’’ ‘‘बेटा इतनी रात कहां जाओगे? तुम आज यहीं रुक जाओ. कल चले जाना.’’ ‘‘जी.’’ मैं रुक तो गया पर सारी रात प्रिया का चेहरा ही मेरी आंखों के आगे नाचता रहा. मेरे लिए प्रिया की जिंदगी दिल को छू लेने वाली एक ऐसी कहानी थी जिसे मैं कभी भूल नहीं सकता. अब मु झे लौटना था पर प्रिया से दूर जाने को मन नहीं कर रहा था. सुबहसुबह मैं निकलने लगा तो प्रिया मेरे पास आ गई और बोली, ‘‘एक अनजान जो न मेरा पति था, न भाई और न प्रेमी फिर भी हर पल उस ने मेरी रक्षा की. उसे आज रुकने को भी नहीं कह सकती. उस से दोबारा कब मिलूंगी यह भी नहीं जानती, पर सिर्फ इतना चाहती हूं कि वह उम्रभर खुश रहे और ऐसे ही सच्चे दिल से दूसरों का सहारा बने,’’ कह कर प्रिया ने मेरा हाथ पकड़ लिया. मेरी नजरें प्रिया से बहुत कुछ कह रही थीं.

मगर जबान से मैं सिर्फ इतना ही कह सका, ‘‘अपना खयाल रखना प्रिया, क्योंकि मेरी जिंदगी में तुम्हारी जगह कोई नहीं ले सकता… और हां जिंदगी में कभी किसी भी पल मेरी याद आए तो मेरे पास आ जाना. मैं इंतजार करूंगा.’’ प्रिया एकटक मु झे देखती रह गई. मैं मुसकरा कर आगे बढ़ गया. घर लौटते समय मेरे दिल में बस एक प्रिया ही थी और मैं जानता हूं मु झे उस का इंतजार हमेशा रहेगा. मैं नहीं जानता वह अपने साथी को छोड़ कर मेरे पास आएगी या नहीं, लेकिन मैं हमेशा उस का साथी बनने को तैयार रहूंगा.

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