73 साल के लालू प्रसाद यादव ने 82 साल के मुलायम सिंह यादव के साथ दिल्ली में मुलाकात की. इसके बारे में लालू यादव और अखिलेश यादव ने अपने ट्वििटर के जरीये जनता को बताया. तब यह साफ हो गया कि लालू और मुलायम की जोडी सक्रिय हो गई है. यह जोडी सबसे पहले उत्तर प्रदेश के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को घेरने का काम करेगी उसके बाद 2024 के लोकसभा चुनाव में केन्द्र सरकार बनाने के लिये कडी चुनौती देने की योजना पर काम करेगी. लोकसभा चुनाव में भाजपा को मात देने के लिये सबसे जरूरी है कि उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में भाजपा को मात दी जाय. उत्तर प्रदेश में 80 लोकसभा की सीेटे है. यहां अगर भाजपा को रोका जा सका तो लोकसभा चुनाव में उसकी राह कठिन हो जायेगी.
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने मुलायम के साथ चर्चा की जानकारी देेेते कहा ‘मुलायम के साथ खेत खलिहान, गैर बराबरी, अशिक्षा, किसानों, गरीबों और बेरोजगारों के लिये हमारी साझा चिंताए और लडाई है. आज दे को पूंजीवाद और साम्प्रदायवाद नहीं बल्कि लोकसमता एंव समाजवाद की अत्यंत जरूरत है.‘ इस मुलाकात के समय सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव के साथ उनके बेटे समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी मौजूद थे. वैसे तो लालू और मुलायम पुराने दोस्त होने के साथ ही साथ आपसी रिश्तेदार भी है. लालू यादव के साले साधू यादव की बेटी और मुलायम सिंह यादव के नाती की शादी हुई है. ऐसे में एक दूसरे से मिलना कोई खास बात नहीं है.
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भाजपा के मुकाबले के लिये विपक्षी एकता:
लालू और मुलायम की बातचीत में अखिलेश यादव का मौजूद रहना और बाद में मुलाकात की जानकारी लोगों को देना बताता है कि मुलाकात का राजनीतिक कारण भी था. लालू यादव ने अपनी फोटो के साथ इस बात को लिखा भी कि किस बात पर दोनो में चर्चा हुई. मुलाकात के समय मुलायम और अखिलेश ने समाजवादी पार्टी की लाल टोपी भी पहन रखी थी जिससे राजनीतिक संदेश को दिया जा सके.
पश्चिम बंगाल चुनाव में ममता बनर्जी ने भाजपा को जिस तरह से पटखनी दी है उससे सभी दलों को यह बात समझ आ गई कि अगर सही तरह से चुनाव लडा जाये तो भाजपा को हराया जा सकता है. उसके बाद से दिल्ली में भाजपा को घेरने के लिये विपक्षी एकता के लिये आपसी भेंट मुलाकातों का दौर शुरू हो गया है. इसमें अलग अलग नेताओं की आपस में बातें चल रही है. सभी का लक्ष्य एक है. तृणमूल कांग्रेस की तरफ से राजनीतिक रणनीतिकार प्रशात किशोर कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस के नेताओं से मुलाकात कर चुके है. लालू, मुलायम और अखिलेश की मुलाकात को भी विपक्षी एकता के सूत्रधार के रूप में देखा जा रहा है.
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समाजवादी पार्टी ही है मुख्य विपक्षी:
2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को 80 सीटों में से 71 सीटें मिली थी. भाजपा की सहयोगी अपना दल को 2 सीटें मिली थी. समाजवादी पार्टी को 5 और कांग्रेस को 2 सीटें मिली थी. 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को 62 सीटें मिली. उसको 9 सीटों का नुकसान हुआ. अपना दल को 2 सीटें मिली. सपा-बसपा गठबंधन को 16 सीटें मिली. इसमें बसपा के खाते में 10 और सपा के खाते में 5 सीटें आई. कांग्रेस के खातें में महज एक सीट आई. 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को 312 सीटें मिली और समाजवादी पार्टी गठबंधन को 54 और बसपा को 19 सीटें ही मिल सकी. अकेले सपा को 47 सीटें ही मिली थी. भाजपा को 61 फीसदी वोट मिले थे. 2012 में जब समाजवादी पार्टी की बहुमत से सरकार बनी थी तो उसे 224 सीटें मिली थी. भाजपा को 47 सीटें मिली थी और 2007 के विधानसभा चुनाव में बहुमत की सरकार बनाने वाली बसपा की 80 सीटें थी.
लोकसभा चुनाव में 2014 के मुकाबले भाजपा को 2019 में 9 सीटों का नुकसान हुआ था. जबकि विधानसभा चुनाव में वह 312 सीटें हासिल कर चुकी थी. 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को अगर सत्ता से बाहर किया जा सका तो 2024 में लोकसभा चुनाव में वह केन्द्र में सरकार बनाने लायक सीटें नहीं ला पायेगी. ऐसे में सभी दलों के निशाने पर उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव है. सभी बडे नेताओं को यह लगता है कि अगर भाजपा को उत्तर प्रदेश के चुनाव में पटखनी दे दी गई तो केन्द्र की सत्ता से उसको बाहर किया जा सकता है. उत्तर प्रदेश में भाजपा के मुकाबले सबसे बडे लडाके के रूप में समाजवादी पार्टी ही है. जरूरत इस बात की है कि सभी दल रणनीतिक रूप से समाजवादी पार्टी को उस तरह से ही समर्थन दे जिस तरह से पश्चिम बंगाल के चुनाव में ममता बनर्जी का साथ दिया गया था.
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राह दिखायेगे पुरानी पीढी के नेता :
भाजपा के खिलाफ साझा विपक्षी ताकत को एकजुट करने के लिये पुराने नेता ही राह दिखाने का काम करेगे. इनमें कांग्रेस नेता सोनिया गांधी, राष्ट्रवादी कांग्रेस नेता शरद पंवार, पष्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, सपा नेता मुलायम सिंह यादव और राजद के नेता लालू प्रसाद यादव प्रमुख है. इनके एक साथ जुटने से भाजपा का विरोध कर रहे दूसरे नेता भी एकजुट हो सकते है. उत्तर प्रदेश में छोटे छोटे कई ऐसे दल है जो एकजुट होकर भाजपा के समीकरण को बिगाडने का काम कर सकते है. इनमें लोकदल प्रमुख है. इसका पष्चिम उत्तर प्रदेश में प्रभाव है. अखिलेश यादव ‘आम आदमी पार्टी’ से भी बात की है. लोकदल के जंयत चैधरी और आप के संजय सिंह जैसे नई पीढी के नेताओं से अखिलेश यादव बात कर रहे है.
नये नेताओं के मुकाबले पुराने नेताओं को लेकर जनता में अच्छी राय है. पुरानी पीढी के यह नेता भाजपा के खिलाफ विपक्षी एकता के सूत्रधार बन सकते है. इनमें से अधिकांश दल यूपीए सरकार में कांग्रेस के सहयोगी भी रहे है. कांग्रेस नेता सोनिया गांधी के साथ इन सभी नेताओं के मधुर संबंध है. लालू प्रसाद यादव उनमें से सबसे खास है. बिहार और उत्तर प्रदेश के पिछले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की तरफ से ज्यादातर फैसले राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की तरफ से लिये गये थे. सोनियां गांधी अपनी बीमारी की वजह से सक्रिय नहीं थी. केन्द्रीय स्तर पर सोनिया गांधी के दोबारा सक्रिय होने से इस बात का बल मिल रहा है कि पिछली पीढी के यह नेता भाजपा के खिलाफ देश भर में महौल बनाने का काम कर सकते है. विपक्षी एकता की असली परीक्षा उत्तर प्रदेश में होगी. अगर उत्तर प्रदेश में यह लडाई सफल रही तो लोकसभा चुनाव में भाजपा को सत्ता से बाहर करना सरल हो जायेगा.