घटिया क्यों हो गई मेनका
‘हरि को भजे सो हरि को होई’ यह लाइन शायद पूरी श्रद्धा व आस्थापूर्वक आत्मसात नहीं कर पाए थे इसलिए वरुण गांधी को मोदी मंत्रिमंडल विस्तार में जगह नहीं मिली. भगवा खेमे में वरुण ही नहीं, बल्कि उन की मां मेनका गांधी की साख भी घट रही है. परिवार से विभीषणगीरी करने का इनाम उन्हें पहले ही मंत्री बना कर दिया जा चुका था.
मेनका की हैसियत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि एक पशु चिकित्सक से उन्होंने अशालीन तरीके से बात की तो मध्य प्रदेश के एक पूर्वमंत्री अजय विश्नोई ने उन्हें खुलेआम घटिया औरत कह दिया लेकिन उन का बाल भी बांका नहीं हुआ क्योंकि काम तो उन्होंने सनातनी संस्कारों के मुताबिक ही किया था. यही शब्द अगर स्मृति ईरानी या निर्मला सीतारमण के बारे में कहे गए होते तो भी क्या मोदीशाह विदुर और भीष्म बने देखते रहते.
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इस पर मेनका अगर विचार कर पाएं तो उन्हें महसूस होगा कि कांग्रेस और ससुराल छोड़ कर उन्होंने गलती तो की थी.
ममता के आम
बंगाली रसगुल्ला तो भाजपा की थाली में नहीं आया लेकिन हर साल की तरह ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित कई दिग्गजों को बंगाली आम तोहफे में भेज कर उन का जायका बदलने की कोशिश की. ये आम बिना चखे भेजे गए हैं, इसलिए मुमकिन है खट्टे हों लेकिन यह कहावत भी दमदार है कि दान में मिली बछिया के दांत नहीं गिने जाते. आम के शौकीनों के लिए जानना दिलचस्प हो सकता है ये आम मालदा, हिमसागर और लक्ष्मणभोग वैराइटीज के हैं.
सियासी रिश्तों की कड़वाहट आमों की मिठास से कम होगी, ऐसा कहने की कोई वजह नहीं क्योंकि बंगाल की हार भगवा गैंग को हजम नहीं हो रही है और वह रोजरोज ममता की राह में बबूल बो रहा है. अब देखना दिलचस्प होगा कि आगे होता है क्या. राज्यपाल या राजमाता ‘पुष्प की अभिलाषा’ शीर्षक से लिखित माखनलाल चतुर्वेदी की कविता में पुष्प की इच्छा यह बताई गई है कि उसे न तो सुंदर महिलाओं के गहनों में गुंथने का शौक है और न ही देवीदेवताओं के सिर पर चढ़ाए जाने में दिलचस्पी है. वह तो उन रास्तों पर बिछ जाना चाहता है जहां से हो कर वीर सैनिक गुजरते हों.
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गुजरात के भाजपा नेता मंगूभाई पटेल ने मध्य प्रदेश के राज्यपाल का प्रभार आनंदी बेन से लिया तो राजभवन में रह रहे लोगों ने उन्हें विदाई भी राजसी दी. यह दिमागी गुलामी, चाटुकारिता और भौंडेपन की हद ही थी कि लोगों ने आनंदी बेन के चरणों में फूल चढ़ाए, बिछाए व बरसाए और वे उन्हें कुचलते शान से चलती रहीं. राज्यपालों के ठाट किसी सुबूत के मुहताज कभी नहीं रहे पर आमतौर पर पुराने की विदाई और नए का स्वागत अब तक कम बजट में हो जाता था लेकिन भोपाल से एक महंगे व फुजूल रिवाज की शुरुआत तो हो ही गई है.
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शोरूम का तेज
पर्यटन के मामले में पिछड़ रहे बिहार को अगड़ा बनाने की कोशिश लालूपुत्र तेजप्रताप यादव कर रहे हैं जिन्होंने एक बड़ा शोरूम पटना और दानापुर के पास खोला है. यह शोरूम लालू खटाल यानी गौशाला में है जहां धार्मिक आइटम ही बिकते हैं. इन में भी एलआर (लालूराबड़ी) नाम की अगरबत्ती इन दिनों रु झान में है. पूजापाठ का सामान इफरात से इस शोरूम में दिखता है जिस की वजह तेजप्रताप की धार्मिक कुंठा है. लालू परिवार ने भी दूसरे पिछड़ों की तरह वर्ण व्यवस्था का दंश भोगा है और इसी के विरोध के चलते वे सत्ता तक पहुंचे थे अब हो उलटा रहा है. पिछड़ों का धार्मिकपना उन्हें ही नुकसान दे रहा है. तेज प्रताप अगर इस का हिस्सा बनने के बजाय इस से जुड़ पाएं तो बात इस दफा बन भी सकती है.