मेरा दामन अश्कों से जब भी नम होता है
गम देने वाला अपना ही हरदम होता है
रिश्वतखोर नहीं कोई यों ही बन जाता है
पीछे कुछ लोगों का दमखम होता है
जो मौकापरस्त होते हैं, कुरसी पर जो हो
उन के हाथों में ऐसों का परचम होता है
किसे फुरसत है शामिल हो गैरों के गम में
आदमी का खुद का गम क्या कम होता है
‘अंजुम’ जो भी मिला गमगीन नजर आय
छूता हूं जो भी दामन वो ही नम होता है.
– अखिलेश ‘अंजुम’
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