हमारे यहां जुलाई का महीना खेती के नजरिए से किसानों के लिए खास होता है, क्योंकि इस महीने तक देश के ज्यादातर हिस्सों में मानसून आ चुका होता है, जिस से इस दौरान खरीफ सीजन में ली जाने वाली फसलों की बोआई और रोपाई का काम शुरू हो जाता हैं. जुलाई महीने में खेती के नजरिए से खरीफ की सब से अहम खेती धान की होती है. जो किसान धान की नर्सरी समय से डाल चुके होते हैं, वे धान की रोपाई जुलाई महीने के पहले हफ्ते से शुरू कर सकते हैं.

देर से नर्सरी डालने वाले किसान नर्सरी में पौधों के 20 से 30 दिन के हो जाने पर ही रोपाई करें. धान की जल्दी पकने वाली प्रजातियों की रोपाई जुलाई महीने के दूसरे पखवारे तक की जा सकती है. जिन किसानों ने काला नमक धान, बासमती जैसी सुगंधित प्रजातियों की नर्सरी डाली है, वे रोपाई का काम इस महीने के आखिरी हफ्ते तक कर लें. धान के पौधों की रोपाई के समय यह ध्यान रखें कि कतार से कतार की दूरी 20 सैंटीमीटर रखी जाए और एक जगह पर एकसाथ 2 से 3 पौधे लगाए जाएं. जिन किसानों ने ढैंचा की फसल बो रखी है, वे रोपाई के 3 दिन पहले ही उसे मिट्टी पलटने वाले हल से पलट कर सड़ने के लिए खेत में पानी भर दें. खेत में उर्वरक का प्रयोग मिट्टी की जांच के आधार पर ही करें.

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जिन किसानों ने अपने खेत में मिट्टी की जांच नहीं कराई है, वे अधिक उपज वाली फसलों में रोपाई के पहले प्रति हेक्टेयर की दर से 60 किलोग्राम नाइट्रोजन के साथसाथ 60 किलोग्राम फास्फेट और 60 किलोग्राम पोटाश को लेव लगाते समय खेत में मिला दें. धान की रोपाई से पहले 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से जिंक सल्फेट खेत में जरूर मिलाएं. लेकिन यह जरूर ध्यान रखें कि फास्फोरस वाले उर्वरक के साथ जिंक सल्फेट कभी न मिलाएं. जब भी खेत में दानेदार रसायनों का प्रयोग करें, तो उस के पहले यह तय कर लें कि खेत में 2 से 3 सैंटीमीटर पानी जरूर भरा हो. अगर किसान धान की फसल में नैनो यूरिया का प्रयोग करते हैं, तो उर्वरकों पर लागत में काफी कमी लाई जा सकती है. किसान को अगर खेत में खैरा रोग का प्रकोप दिखाई पड़े, तो प्रति हेक्टेयर 20 से 25 किलोग्राम जिंक सल्फेट व ढाई किलोग्राम चूना को 800 लिटर पानी में मिला कर घोल बना लें और इस घोल को रोगग्रस्त फसल पर छिड़कें.

जिन किसानों ने मक्के की बोआई समय से कर दी है, वे बोआई के 15 दिन बाद फसल की पहली निराईगुड़ाई का काम पूरा करें. इसी के साथ दूसरी गुड़ाई फसल के 30 से 35 दिन के हो जाने पर करें. मक्का के पौधे जब घुटने के बराबर हो जाएं, तो पौधों को 40 किलोग्राम नाइट्रोजन यानी 87 किलोग्राम यूरिया कतारों के बीच डालें. ज्वार की बोआई का काम किसान जुलाई महीने की 15 तारीख तक पूरा कर लें. एक हेक्टेयर खेत के लिए ज्वार की तकरीबन 10 से 15 किलोग्राम बीज की जरूरत पड़ती है. यह ध्यान रखें कि ज्वार के बीज के कतार से कतार की दूरी 45 सैंटीमीटर व बीज की दूरी 15 से 20 सैंटीमीटर पर की जाए. बाजरा की खेती करने वाले किसान उन्नत बीज की प्रजातियों का ही प्रयोग करें.

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इस में आईसीएमवी-155, डब्ल्यूसीसी-75, राज-171, पूसा-322, पूसा-23 और आईसीएमएच-451 जैसी किस्मों का चयन करें. बाजरा की बोआई 15 जुलाई के बाद से पूरे महीने की जा सकती है. इस के लिए एक हेक्टेयर में 4-5 किलोग्राम बीज की जरूरत पड़ती है. जो किसान मूंग और उड़द की खेती करते हैं, उन के लिए जुलाई का महीना सही माना जाता है. इस के लिए एक हेक्टेयर खेत में 12 से 15 किलोग्राम बीज की जरूरत पड़ती है. उड़द या मूंग को खेत में बोने के पहले राइजोबियम कल्चर से उपचारित करना न भूलें. बीज को खेत में बोते समय 15 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किलोग्राम फास्फेट और 20 किलोग्राम गंधक का प्रयोग करें. जिन किसानों ने अरहर की बोआई कर दी है, वे बोआई के 20 से 30 दिन बाद फसल की निराईगुड़ाई कर खरपतवार निकाल दें. वहीं जिन किसानों ने अभी तक अरहर की बोआई नहीं की है, वे जुलाई महीने के पहले हफ्ते तक यह काम निबटा लें. इस की अगेती उन्नत प्रजातियां पारस, टाइप-21, पूसा-992, उपास-120 वगैरह हैं,

वहीं देर से पकने वाली प्रजातियां पूसा-9, नरेंद्र अरहर-1, आजाद अरहर-1, मालवीय विकास, मालवीय चमत्कार आदि हैं. अरहर को खेत में बोने से पहले बीज को 2 ग्राम थीरम या एक ग्राम कार्बंडाजिम से प्रति एक किलोग्राम बीज की दर से शोधित कर लेना चाहिए. बीज को खेत में बोने से पहले एक पैकेट राइजोबियम कल्चर से 10 किलोग्राम बीज को शोधित कर के बो देना चाहिए. सोयाबीन की बोआई के लिए जुलाई के दूसरे हफ्ते तक का समय उपयुक्त होता है. बीज को खेत में बोने के पहले उसे राइजोबियम कल्चर से उपचारित करना न भूलें. इस की उन्नत किस्में जेएस-335, जेएस-93-05, जेएस-95-60, एनआरसी-86, पूसा-16, पूसा-20, पीके-416 हैं. जो किसान मूंगफली की खेती करते हैं, वे बोआई का काम इस महीने के पहले हफ्ते तक पूरा कर लें. इस की उन्नत किस्में एचएनजी-10, गिरनार-2, प्रकाश, अंबर, उत्कर्ष, टीजी-37, जीजी-14 व 21, एचएनजी-69 व 123, राज मूंगफली-1, टीबीजी-39, प्रताप मूंगफली-1 और 2, जेजीएन-3 व 23, एके-159, जीजी-8 आदि हैं.

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जिन किसानों ने गन्ने की फसल ले रखी है, वे फसल में मिट्टी चढ़ाने का काम पूरा कर लें. सूरजमुखी की खेती करने वाले किसान बोआई का काम इस महीने के दूसरे हफ्ते तक निबटा लें. सूरजमुखी के पौधे जब 15-20 दिन के हो जाएं, तो फालतू पौधों को निकाल कर पौधों की दूरी 20 सैंटीमीटर तक कर दें. जो किसान पशुपालन से जुड़े हुए हैं, वे चारे के लिए लोबिया, ग्वार, मक्का, ज्वार, बाजरा व बहुकटाई वाली चरी की बोआई कर लें. जुलाई के महीने में बैगन, मिर्च और अगेती फूलगोभी की रोपाई की जा सकती है. ठंड में ली जाने वाली टमाटर की फसल के लिए बैड बना कर नर्सरी डालें. खरीफ सीजन के लिए बोए जाने वाले प्याज के लिए प्रति हेक्टेयर की दर से 12 से 15 किलोग्राम बीज का प्रयोग करते हुए 10 जुलाई तक नर्सरी डाल दें. जो किसान साग की खेती करते हैं, वे चौलाई की बोआई पूरे महीने कर सकते हैं.

एक हेक्टेयर में चौलाई के 2-3 किलोग्राम बीज की जरूरत पड़ती है. जिन किसानों ने भिंडी की बोआई जून महीने में कर दी है, वे फसल में 76 से 87 किलोग्राम की दर से यूरिया दें. बरसात वाली भिंडी की बोआई जुलाई महीने में भी की जा सकती है. सब्जी की खेती करने वाले लौकी, खीरा, चिकनी तोरी, करेला, टिंडा की बोआई कर सकते हैं. जिन किसानों ने लतावर्गीय सब्जियों की बोआई जून महीने में कर दी हो, वे बरसात के पानी से फसल को होने वाले नुकसान से मचान बना कर सहारा दें. जिन किसानों ने अदरक और हलदी की फसल ले रखी है, वे बोआई के 40 दिन बाद प्रति हेक्टेयर की दर से हलदी में 87 किलोग्राम व अदरक में 54 किलोग्राम यूरिया दें. वहीं सूरन की फसल लेने वाले किसान जुलाई महीने में फसल की बोआई 60 दिन बाद 130 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से दें. जुलाई का महीना कुंदरू की रोपाई के लिए सही होता है. इस की रोपाई पौध से पौध और कतार से कतार की दूरी 3 मीटर रखते हुए करनी चाहिए.

कुंदरू में नर और मादा अलगअलग होते हैं. इसलिए भरपूर उपज के लिए 9 मादा पौधों के बीच में एक नर पौधा जरूर लगाएं. जुलाई का महीना फलदार पौधों की रोपाई के लिए सब से मुफीद होता है. इस महीने आम, अमरूद, लीची, आंवला, कटहल, नीबू, जामुन, बेर, केला, पपीता आदि की रोपाई की जा सकती है. जो किसान नर्सरी का व्यवसाय करना चाहते हैं, वे लीची और नीबू में गूटी बांध सकते हैं. जिन किसानों ने गुलाब की फसल ले रखी है, वे फसल से वर्षा जल निकास का उचित प्रबंध कर लें. वहीं रजनीगंधा की खेती करने वाले किसान फसल से खरपतवार निकाल कर पोषक तत्त्वों के घोल का छिड़काव करें. इसी के साथ ही समयसमय पर रजनीगंधा के पुष्प डंडियों की तुड़ाई का काम पूरा कर लें. जो किसान औषधीय और सुगंध पौधों की खेती करना चाहते हैं, वे औषधीय गुणों से भरपूर लैमनग्रास की खेती कर सकते हैं. किसान लैमनग्रास की एक बार फसल लगाने के बाद 4-5 साल तक पैदावार ले सकते हैं.

इस के अलावा सतावर की रोपाई भी जुलाई महीने में की जाती है. किसान कई गुणों से भरपूर ब्राह्मी की रोपाई भी इसी महीने में कर सकते हैं. इस का उपयोग कब्ज, गठिया, रक्तशुद्धी, दिमाग को तेज करने व याददाश्त बढ़ाने में बहुतायत होता है. इस से कैंसर, एनिमिया, दमा, किडनी और मिरगी जैसी बीमारियों के इलाज के लिए दवाएं भी बनाई जाती हैं. जो किसान कौंच की खेती करना चाहते हैं, वे इस के बीजों की बोआई 15 जुलाई तक कर दें. इस के लिए प्रति एकड़ 6 से 8 किलोग्राम की दर से बीज की जरूरत होती है. इसी के साथ एलोवेरा की रोपाई के लिए सब से उपयुक्त समय जुलाई से अगस्त माह का होता है. इस मौसम में रोपाई करने से पौधे पूरी तरह जीवित रहते हैं और बढ़वार अच्छी होती है. पशुपालक अपने पशुओं को गलघोंटू और लंगड़ी या बुखार का टीका जरूर लगवाएं. इसी के साथ ही पशुओं को कीड़े मारने की की दवा खिलाएं. पशुओं के चारे में खडि़या मिलाना पक्का करें. बरसात के महीने में लगने वाली सीलन से मुरगियों को बचाने का उचित प्रबंध करें. साथ ही, मुरगीखाने में प्रकाश का उचित इंतजाम जरूर करें.

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