काफी जद्दोजेहद के बाद मोहन को नौकरी का जौइनिंग लैटर मिल ही गया. जहां वह ट्यूशन पढ़ाने जाता था, उन से पूछा, ‘‘यह जगह कहां है और वहां तक जाने के लिए कौन सा साधन मिलेगा ’’
‘‘अरे, बहुत सी डग्गामार गाड़ी मिल जाएंगी, किसी में भी बैठ जाना ’’ ट्यूशन सैंटर में एक शख्स ने बताया.
उस दिन बारिश भी हो रही थी. बताए मुताबिक मोहन एक डग्गामार गाड़ी में बैठ गया. ड्राइवर ने ठूंस कर अपनी गाड़ी भर ली.
अचानक एक औरत दौड़ते हुए आई, ‘‘अरे भैया, हमें भी ले चलो.’’
‘‘आप भी आ जाओ,’’ ड्राइवर ने दोटूक कहा.
‘‘अरे यार, अब कहां बिठाओगे ’’ मोहन ने झल्ला कर पूछा.
‘‘क्या बात करते हो भाई, अभी तो इस में 3 और सवारियां आ जाएंगी,’’ कह कर ड्राइवर ने उन्हें भी ठूंस लिया.
अचानक अंदर से एक आदमी बोला, ‘‘मेरी एक टांग तो भीतर ही नहीं आ रही है.’’
‘‘टांग हाथ में ले लो. बस, 40 मिनट की बात है.’’
‘‘टांग हाथ में ले लूं… तुम होश में तो हो…’’ वह आदमी गुस्से में चिल्लाया.
‘‘अरे, कहीं समेट लो,’’ ड्राइवर धीरे से बोला.
तभी अंदर से किसी बच्चे के रोने की आवाज आने लगी.
‘‘इसे चुप कराओ,’’ ड्राइवर ने कहा.
‘‘कैसे चुप कराएं तुम ने दरवाजा तो बंद कर लिया, ऊपर से शीशा भी बंद किया हुआ है.’’
ड्राइवर ने जैसे ही दरवाजा खोला, तभी एक आदमी धड़ाम से नीचे गिरा.
‘‘सही से नहीं बैठ सकते हो ’’ ड्राइवर बोला.
‘‘बैठे कहां पैसे वापस लाओ.’’
‘‘अरे भैया, गलती हो गई. क्यों पेट पर लात मार रहे हो बैठ जाओ.’’
‘‘मगर, कहां बैठ जाएं ’’
‘‘अरे, यह बच्चा गोदी में ले लो… अब बैठ गए ’’
‘‘बैठ नहीं गए, आधे बैठे और आधे खड़े हैं.’’
‘‘चिंता मत करो. जल्दी ही पहुंच जाओगे.’’
अब मोहन को लगने लगा कि यह गाड़ी पहुंचेगी भी या यही सब होता रहेगा.
गाड़ी अभी थोड़ी ही दूर चली थी कि अचानक फिर से एक शख्स दौड़ता हुआ आ गया और बोला,
‘‘अरे, गेहूं की 2 बोरी हैं, इन्हें भी साथ लिए जाते.’’
‘‘छत पर रख दो… लो भैया, अब सब ओके. अब चलते हैं.’’
खैर, 10 किलोमीटर तो पहुंच गए. दूसरी साइड से डग्गामार गाड़ी ले जा रहे एक ड्राइवर ने हमारे ड्राइवर को बताया, ‘‘आज आरटीओ घूम रहा है. हमारा तो चालान कट गया है… और वह इधर ही आ रहा है.’’
हमारे ड्राइवर ने गाड़ी उलटी दिशा में घुमाई.
‘‘अरे, कहां लिए जा रहे हो भाई ’’ एक सवारी ने पूछा.
‘‘तुम्हें अपनी पड़ी है. चालान कट गया तो…’’ कह कर ड्राइवर ने गाड़ी पुल के नीचे उतार दी.
अंदर से एक सवारी की आवाज आई, ‘‘क्या कर रहे हो भाई मार डालोगे क्या ’’
‘‘अरे भैया, हमारी भी तकलीफ समझो. अभी काट देगा वह हजार रुपए की परची,’’ ड्राइवर बोला.
डरीसहमी सवारियों को समझ में नहीं आ रहा था कि वे करें तो क्या करें.
अंदर से एक औरत बोली, ‘‘अगर मेरे बच्चे को कुछ हो जाता, तो हम तुम्हारा खून पी लेते.’’
गाड़ी में एक पुराने अध्यापक भी बैठे हुए थे. वे बोल पड़े, ‘‘पुल के नीचे गाड़ी ले जाना, यह तो मैं 10 साल से देख रहा हूं. चिंता मत करो, सब सहीसलामत पहुंच जाओगे.’’
गाड़ी का ड्राइवर बोला, ‘‘भैया, तुम जैसी सवारी मिल जाए, तो हम तो धन्य हो जाएं, नहीं तो रोज कोई मारने पर उतारू, तो कोई खून पीने को.
‘‘वैसे भी, टैंशन में पुडि़या खाखा कर सब खून सूख गया है. जो थोड़ाबहुत बचा है, वह तुम पी लो.’’
इस के बाद उस ड्राइवर ने किसी को फोन कर के पूछा, ‘‘रोड साफ है न ’’
दूसरी तरफ से उसे पता चला कि आगे एक गांव पड़ेगा, वहां से गाड़ी निकाल ले जाओ. लिहाजा, गाड़ी आगे चल दी.
‘‘लो भाई, आगे तो पानी भरा है,’’ ड्राइवर बोला, तभी अंदर से एक और सवारी की आवाज आई, ‘‘कालेज क्या शाम को पहुंचेंगे ’’
ड्राइवर बोला, ‘‘भाई लोगो, धक्का लगा दो.’’
कुछ मुसाफिर उतर गए और धक्का लगाने के बाद गाड़ी स्टार्ट हो गई.
इतने में ड्राइवर को तलब लगी. वह एक सवारी से बोला, ‘‘ओ भैया, जरा पुडि़या ले लेना.’’
इतना कह कर ड्राइवर ने गाना लगा दिया… ‘तुम तो ठहरे परदेशी, साथ क्या निभाओगे’.
‘‘अरे यार, इतना साथ निभाए पड़े हैं और क्या करें ’’
ड्राइवर कुछ सीरियस हो गया, ‘‘भाई लोग, हमें डग्गामार कहा जाता है. डग्गामार का मतलब समझते हो डग्गामार का मतलब है कि डग भर चलो, फिर मार.
‘‘मेरी बेटी बीमार है. अगर गाड़ी नहीं चलाऊंगा, तो इलाज के पैसे कहां से आएंगे ’’
‘‘ओह, शायद हर इनसान दर्द में ही जीता है,’’ एक सवारी ने कहा.
‘‘हां भैया, मेरे पिताजी ठेला लगाते थे. मैं ने लोन ले कर यह गाड़ी ली. घर का खर्चा भी इसी से चलाना है और बैंक का पैसा भी भरना है… सब लोग पैसे निकाल लो, चौराहा आने वाला है.’’
खैर, आखिरी पड़ाव आ ही गया. अचानक तेज बारिश होने लगी. मोहन के पास छाता नहीं था.
मोहन ने वहीं पड़ोस की दुकान से एक छाता खरीदा. अभी 8 किलोमीटर का सफर बचा था.
मोहन ने चौराहे पर खड़े एक आदमी से पूछा, ‘‘यह गांव कहां है ’’
‘‘यहां से यह गांव आप को 6 किलोमीटर पड़ेगा. तांगा पकड़ लो और कोई सवारी गाड़ी तो जाती ही नहीं. बारिश हो रही है, शायद वह भी न मिले, जो मिले उसी में बैठ जाना,’’ उस आदमी ने बताया.
एक ट्रैक्टर गुजरा. मोहन ने उस के ड्राइवर से कहा, ‘‘हमें भी बिठा लो.’’
‘‘भाई ट्रौली में बैठ जाओ.’’
ट्रौली में भूसा भरा था. मोहन ने उस में बैठने की कोशिश की, लेकिन वह ट्रौली के अंदर धड़ाम से गिरा और सारा भूसा उस के कपड़ों पर चिपक गया.
‘‘ओ भैया, संभल कर बैठो.’’
ट्रैक्टर से उतरने के बाद सामने गांव का स्कूल देख कर मोहन को बड़ी खुशी मिली. वहीं के एक आदमी से मोहन ने स्कूल का पता पूछा.
वह बोला, ‘‘भाई, आप गलत आ गए हो. यह तो नारायणपुर गांव है.’’
‘‘तो फिर यह गांव कहां है ’’
‘‘अभी आप को 2 किलोमीटर और आगे चलना पड़ेगा. सीधे चले जाना और सामने ही स्कूल होगा. कच्चा रास्ता है और कीचड़ बहुत है.’’
2 किलोमीटर चलने के बाद स्कूल मिल ही गया. पूरा स्कूल बारिश के पानी से टपक रहा था. हैडमास्टर एक कोने में दुबके बैठे थे.
मास्टर साहब ने जौइनिंग करा दी. स्कूल की छुट्टी के बाद दोबारा 2 किलोमीटर पैदल चलने के बाद सड़क मिली. दूर से ट्रक दिखाई पड़ा. मोहन ने उसे हाथ दिया.
‘‘10 रुपए किराया लगेगा.’’
‘‘बिठा लो भाई.’’
‘‘और भाई, स्कूल में मास्टर हो ’’
‘‘हां.’’
‘‘यह मेरा ड्राइविंग लाइसैंस है ट्रक का. मैं ने फार्म में इमरान भरा था और ड्राइविंग लाइसैंस में लिख दिया इमरान खान, यह कैसे सही होगा ’’
‘‘जिस ने तुम्हारा यह लाइसैंस बनाया है, उसी सरकारी मुलाजिम के पास जाना.
‘‘वह कहेगा खर्चापानी होगा, तो दे देना. सही हो जाएगा.
‘‘देखो, पहले फार्म से सरकार कमाती है और बाद में फार्म में गलती कर के सरकारी मुलाजिम कमाते हैं.’’
इमरान असली लोकतंत्र को समझने की कोशिश कर रहा था. उस ट्रक वाले को कहां तक समझ आया, यह तो उसी को पता होगा.
चौराहे पर आते ही मोहन ने तय कर लिया कि वह डग्गामार गाड़ी में नहीं बैठेगा. बसस्टैंड पहुंचा. थोड़ी देर में बस मिल गई.
बस में एक आदमी कोई चीज बेच रहा था. वह कह रहा था, ‘‘यह है इंडिया का पहला ऐसा चूरन, जिसे खाने के बाद हाजमा ठीक होगा. पेट में जमी गैस निकल जाएगी. भूख बढ़ाए. कीमत 10 रुपए.’’
पीछे से एक और आवाज आई, ‘‘यह है मुंबई का सुरमा. यह दूर करेगा आंख का जाला, मोतियाबिंद, रोशनी बढ़ेगी. चश्मा उतर जाएगा. कीमत है
10 रुपए. 10 रुपए…
‘‘भाई लोगो, आप के बगल वाले भाई ने खरीद लिया. आप भी खरीद लें. बस 10 शीशियां ही बची हैं मेरे पास.’’
इतने में एक औरत चढ़ी. उस के साथ शायद उस की बेटी थी.
‘‘मैं विधवा हूं. मदद कर दो बाबूजी. लड़की की शादी करनी है.’’
अचानक एक भाई साहब बोल पड़े, ‘‘10 साल से शादी कर रही है, अभी तक कर नहीं पाई ’’
वह औरत बोली, ‘‘तेरे कीड़े पड़ें. मेरी रोजी पर लात मार रहा है.’’
वह आदमी चुप. अब बस ने रफ्तार पकड़ ली. साथ ही, सारे मांगने वाले भी उतर लिए.
अपने शहर का बसअड्डा आ गया, लेकिन सामने खड़ी डग्गामार गाड़ी पर फिर मेरी नजर चली गई. कुछ यों भरी हुई, जैसे आगे वाली सीट पर शातिर कैदी ठुंसे हों और उस के पीछे जो
लोग बैठे थे, वे यही कोशिश कर रहे थे कि काश, इस पर बैठने से पहले हाथपैर घर पर ही रख आते. जो पीछे लटके हुए थे, उन्हें देख कर मन खुश हो गया कि कम से कम ये तो बाइज्जत बरी हो चुके हैं.
अपनी गली में आते ही मोहन को यों लगा कि बड़ी जबरदस्त कुश्ती लड़ कर आया है. लो तब तक कल्लू का लड़का बोल ही पड़ा, ‘‘भैया आज तो उजड़े चमन लग रहे हो.’’
मोहन ने उस से कहा, ‘‘क्यों उलटा बोल रहा है अब तो मेरी पक्की सरकारी नौकरी लग गई है.’’
वह मोहन को सवालिया नजरों से देखने लगा. मोहन का घर आ गया था और साथ ही बुखार भी.