भाजपा में आने के बाद ‘श्रीमंत’ ज्योतिरादित्य सिंधिया की हालत सर्कस के शेर जैसी हो चली है जो दूसरों का किया हुआ शिकार खाता है. 21 मई को राजीव गांधी की पुण्यतिथि पर उन्हें कुछ देर के लिए अपने भगवा पिंजरे में कैद होने का खयाल नहीं रहा तो उन्होंने एक ट्वीट कर डाला कि आधुनिक भारत के निर्माता को कोटिकोटि नमन. चंद मिनटों बाद जाने क्या हुआ कि उन्होंने 4 शब्द आधुनिक भारत के निर्माता डिलीट कर दिए. सिंधिया भूल गए थे कि अब उन के रहनुमा नरेंद्र मोदी हैं जो 7 वर्षों से पौराणिक भारत निर्माण के निर्मल अभियान में लगे हुए हैं और वे खुद भी इस का हिस्सा बन चुके हैं लिहाजा, उन्हें अचेतन के बजाय चेतन मन की सुनते प्रभु मूरत देखने का तरीका बदलना पड़ेगा.
सियासी सौदे के मुताबिक, अभी उन का केंद्रीय मंत्री बनना बाकी है, इसलिए पुरानी निष्ठाओं की पूर्ण आहुति तो उन्हें देनी ही पड़ेगी वरना घर के रहेंगे न घाट के. ताकि सनद रहे बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मां झी की यह झल्लाई आपत्ति जायज है कि कोरोना वैक्सीन सर्टिफिकेट की तरह डैथ सर्टिफिकेट पर भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की फोटो लगाई जानी चाहिए. जीतन के इस बयान से भले ही बिहार की राजनीति में सनाका खिंचा हो लेकिन बात इस लिहाज से सही है कि लोग मरने के बाद भी मोदी को याद रखें और डैथ सर्टिफिकेट देखते मृतकों के परिजनों को भी एहसास होता रहे कि उन का सगा वाला किस की वजह से मरा था.
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और अच्छा तो यह होता कि सरकार देशभर के श्मशानों और कब्रिस्तानों में भी मोदी के होर्डिंग एलआईसी के इस स्लोगन के साथ लगवा देती कि जीवन के साथ भी जीवन के बाद भी मोदीजी आप के साथ हैं. प्रचार की भूख नरेंद्र मोदी के सिर चढ़ कर बोल रही है देवीदेवताओं की तरह वे अपनी तसवीर घरघर पहुंचा देना चाहते हैं. अब लोग उन्हें पूजें या कुछ और करें, यह उन की मर्जी. फौलादी तन और अपराधी मन कहा जाता है कि पहलवानों की अक्ल घुटने में होती है, इस से यह तो साबित होता है कि उन में अक्ल नाम का तत्त्व पाया जाता है. नामी पहलवान सुशील कुमार दूसरे पहलवान सागर धनकड़ की हत्या के आरोप में जेल में हैं. उन की एक महिला साथी भी सह अभियुक्त है. बकौल सुशील, उस की मंशा सागर को डराने भर की थी इसलिए वह हथियार साथ ले गया था. हकीकत में हुआ सबकुछ पैसों के लिए ही था.
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अब बेहतर होगा कि वे जेल में कैदियों को अखाड़े और कुश्ती के दांवपेंच सिखाते भविष्य के पहलवान तैयार करें लेकिन उन्हें यह भी बताते रहें कि गुस्से पर काबू रखना नहीं तो कल को वापस यहीं आ जाओगे और कभी पराया धन व पराई नारी पर नजर मत डालना. मिसाल हैं नवीन आदिवासी बाहुल्य ओडिशा इकलौता राज्य रहा जहां दूसरे प्रदेशों की तरह दवाओं, औक्सीजन और अस्पतालों में अव्यवस्थाओं की अफरातफरी नहीं मची. श्मशानों और कब्रिस्तानों में भी शांतिपूर्वक अंतिम संस्कार हुए.
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ऐसा सिर्फ इसलिए कि कवि हृदय मुख्यमंत्री नवीन पटनायक कोरोना राजनीति की पंचायत में नहीं फंसे. वे शांति से हालात मैनेज करते रहे. ओडिशा ने अन्य राज्यों को भी औक्सीजन दी. उन्होंने साबित कर दिखाया कि राज्य का मुखिया कैसा होना चाहिए और उसे आत्ममुग्धता का शिकार नहीं होना चाहिए. नवीन की राजनीति और व्यक्तित्व की यह खासियत ही है कि वे शोहरत और प्रचार के चक्कर में नहीं पड़ते, अपने राज्य के लोगों का खयाल रखते हैं. तीसरी लहर के मद्देनजर सभी मुख्यमंत्रियों और केंद्र सरकार को भी ओडिशा मौडल पर गौर करना चाहिए कि आपदा प्रबंधन बिना भाषणों और प्रवचनों के कैसे किया जाता है.