धर्म का धंधा पैसे पर चलता है. कोई भी धर्म हो, हिंदू, मुसलमान, सिख, पारसी या ईसाई, सभी के अपनेअपने ठेकेदार हैं जो इस धंधे को सदियों से चलातेबढ़ाते आ रहे हैं. वे सदियों से अपने क्रूर, नुकीले पंजे मासूम जनता के दिमागों पर इस तरह गढ़ाए बैठे हैं जो धर्म से इतर उन्हें कुछ सोचने ही नहीं देते.

पैसे के बिना धर्म का खेल नहीं चलता. धर्म और सत्ता दोनों का चोलीदामन का साथ है. धर्म को सत्ता का वरदहस्त हमेशा से मिला हुआ है. किसी भी राजा के काल को उठा कर देख लें, धर्म ने सत्ता को अपने अनुसार इस्तेमाल किया है. जिस ने भी धर्म और धर्म के ठेकेदारों के खिलाफ आवाज उठाई, उसे सत्ता ने नेस्तनाबूद कर दिया. सत्ता धर्म को और धर्म सत्ता को पोसता है और ये दोनों मिल कर आम आदमी का शोषण करते हैं.

इंसान जन्म से ले कर मृत्यु तक धर्म के धंधेबाजों की उंगलियों पर नाचता है. वे इंसानों में स्वर्ग, नरक, मोक्ष, मुक्ति, भूतप्रेत, आत्मा की शांति, पुनर्जन्म, आत्मा के भटकने, यातना सहने जैसी अवैज्ञानिक बातों से खौफ पैदा करते हैं और उन से नजात दिलाने के नाम पर कर्मकांड करवाते हैं व धन की अवैध वसूली करते हैं.

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घर में बच्चा पैदा हुआ नहीं कि मांबाप के खर्चे शुरू हो गए. घर के बूढ़े, जो धर्म के धंधेबाजों के हाथों जिंदगीभर मूर्ख बनते रहे, अपनी मूर्खता और अज्ञानता अपनी अगली पीढ़ी को सौंपते हैं. बूढ़े दादादादी, नानानानी बताते हैं कि अब बच्चे की छठी होनी है, अब बच्चे का नामकरण होना है, अब बच्चे का मुंडन होना है और अब बच्चे का अन्नप्राशन होना है. बता दें कि ये सबकुछ कोई पंडित या पंडितों का समूह ही करवाता है. इस तरह के अनेकानेक करतब हर घर में होते हैं. सिर्फ हिंदू धर्म में नहीं, बल्कि मुसलमान, ईसाई, सिख, पारसी और दुनियाभर के दूसरे तमाम धर्मों को मानने वाले ऐसे ही कठपुतलियों की तरह धर्म के ठेकेदारों की उंगलियों पर नाच रहे हैं.

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