धनबाद के पास एक कोयले की खान में सैकड़ों मजदूर काम करते थे. मंगल सिंह उन में से एक था. उसे हाल ही में नौकरी पर रखा गया था. उस के पिता भी इसी खान में नौकरी करते थे, लेकिन एक दुर्घटना में उन की मौत हो गई थी. खान के मालिक ने मंगल सिंह को उस के पिता की जगह पर रख लिया था. मंगल सिंह 18 वर्ष का एक हंसमुख और फुरतीला जवान था. सुबहसुबह नाश्ता कर के वह ठीक समय पर खान के अंदर काम पर चला जाता था. उस की मां उस को रोज एक डब्बे में खाना साथ में दे दिया करती थीं. अपने कठिन परिश्रम औैर नम्र स्वभाव केकारण वह सब का प्यारा बन गया था.
बरसात का मौसम था. सप्ताह भर से जोरों की वर्षा हो रही थी. खान के ऊपर चारों तरफ पानी ही पानी नजर आता था.
एक दिन दोपहर के समय खान में मजदूरों ने पानी गिरने की आवाज सुनी तो वे चौकन्ने हो गए. चारों तरफ खलबली मच गई. खान में पानी भर जाने के डर से मजदूर अपनीअपनी जान बचाने के लिए लिफ्ट की ओर भागे. लिफ्ट से एक बार में कुछ ही मजदूर ऊपर जा सकते थे. कुछ लोग ऊपर गए भी, लेकिन पानी भरने की रफ्तार बड़ी तेज थी. तुरंत ही खान पानी से भर गई और लिफ्ट के पास खड़े कई मजदूर घुटघुट कर मर गए. मंगल सिंह की मां को इस घटना का पता चला तो वे परेशान हो गईं. मंगल सिंह के पिता की मौत का दुख वह अभी भूल भी न पाई थीं, अब अपने एकमात्र बेटे के दुख को कैसे बरदाश्त कर पातीं.
खान के एक भाग में मंगल सिंह अपने 9 साथियों के साथ काम में लगा था. खान में पानी गिरने के साथ ही उस ने अपने साथियों को सावधान कर दिया था. उस ने उन्हें लिफ्ट की ओर भागने के बजाय खान के ऊपरी हिस्से में चले जाने की सलाह दी. मंगल सिंह के कहने पर सभी ऊपरी हिस्से में चले आए. वहां से भी लिफ्ट तक पहुंचने के रास्ते थे. मंगल सिंह ने सोचा था कि अगर लिफ्ट चालू रही तो वहां से भी वे लोग खान के बाहर जा सकते हैं. पानी बड़ी तेजी से बढ़ रहा था. अब तो ऊपरी हिस्से में भी पानी भरना शुरू हो गया था, जहां मंगल सिंह औैर उस के साथियों ने शरण ले रखी थी. तब तक लिफ्ट भी बंद हो चुकी थी. मजदूर निराश हो गए.
खान के इस ऊपरी हिस्से में भी कोयले की कटाई होती थी. दिन भर का कटा कोयला कई ट्रौलियों में भरा हुआ था. पानी जब कमर तक आ गया तो मंगल सिंह ने किसी गंध का अनुभव किया.
‘यह पानी खान के अंदर का नहीं बल्कि ऊपर के किसी तालाब का है,’ मंगल सिंह ने अंदाजा लगाया. उसे मालूम था कि खान के आसपास कई छोटेबड़े तालाब हैं. अगर किसी एक तालाब का पानी खान में घुसा है तो उस से पूरी खान नहीं भर सकती. उसे आशा की एक किरण नजर आई. उस ने सोचा, ‘क्यों न बचने का कोई प्रयत्न किया जाए.’ उस ने अपने साथियों से कहा, ‘‘बिखरे हुए कोयले को हम लोग मिल कर ट्रौलियों में भर कर एक जगह जमा कर दें. जगह ऊंची हो जाने पर हम वहां शरण ले सकते हैं.’’
लेकिन मजदूरों में इतनी घबराहट थी कि मंगल सिंह की बात किसी ने नहीं सुनी. मौत का खौफ उन पर इस तरह छा गया था कि उन में कुछ सोचने की शक्ति ही नहीं रह गई थी. मंगल सिंह ने सोचा कि स्थिति बहुत खराब है, दुख में अगर आदमी घबरा जाए तो वह मुसीबत का सामना करने लायक नहीं रह जाता. मंगल सिंह ने हिम्मत नहीं हारी. उस ने देखा, पानी में कुछ स्थिरता आई है. उस ने अनुभव किया कि उस के कपड़ों में कोई चीज चल रही है. अपने हाथ से पकड़ कर उस ने उसे बाहर निकाला. वह एक छोटी सी मछली थी. मंगल सिंह को विश्वास हो गया कि पानी किसी तालाब से ही खान में घुसा है. उस ने आशा जताई कि अगर और वर्षा न हुई तो खान में पानी अब औैर नहीं बढ़ेगा.
मजदूरों को कुछ कहे बिना उस ने खुद कई ट्रौलियों को एक जगह इकट्ठा कर लिया. कोयला उठाने के फावड़े वहां मौजूद थे. उस ने एक फावड़ा उठाया और ट्रौलियों में कोयला भरना शुरू किया. 2-3 मजदूरों ने भी उस का साथ दिया. कुछ ही देर में वहां कोयले का एक टीला खड़ा हो गया. मंगल सिंह सहित मजदूरों की संख्या 10 थी. खान में हवा आने के रास्ते मौजूद थे. पानी 3 फुट और बढ़ जाने पर भी इन के बचने की आशा अभी खत्म नहीं हुई थी.
खान में बाढ़ आने से पहले ही मजदूरों ने अपनाअपना खाना खा लिया था. लेकिन मंगल सिंह ने अभी तक खाना नहीं खाया था. एक बार उस की इच्छा हुई कि वह भी अपना खाना खा ले, लेकिन फिर उस ने सोचा, ‘पता नहीं खान के अंदर कितने दिन तक फंसे रहना पड़े. उसे बड़े जोर की भूख लगी थी, लेकिन अब चिंता केवल खुद की ही नहीं बल्कि साथ में फंसे अन्य मजदूरों की भी थी. पानी लगभग 2 फुट और बढ़ा. मंगल सिंह ने अपनी 5 रोटियों के बहुत सारे टुकड़े कर दिए. हर मजदूर हर रोज
1-1 टुकड़ा रोटी खा कर किसी तरह जीने लगा. रोटियों के टुकड़े खत्म होते जा रहे थे, लेकिन पानी नहीं घट रहा था. वे लोग निराश हो गए. उन्हें अब बचने की उम्मीद नहीं थी. भूख औैर प्यास के मारे उन में बोलने और उठनेबैठने की ताकत भी नहीं रह गई थी. पानी के साथ तालाब की मछलियां भी खान के अंदर आ गई थीं. कई मजदूरों ने मछलियों को पकड़ कर उन्हें कच्चा ही खाना शुरू कर दिया, लेकिन वे उन्हें पचा न पाए, उन्हें उलटियां होने लगीं. इस तरह 5 दिन बीत गए. छठे दिन 5 मजदूर बेहोश हो गए.
10वें दिन 2 अन्य मजदूरों की भी वही हालत हुई. 15वें दिन तो मंगल सिंह को छोड़ कर सभी मजदूर बेहोशी की हालत में आ गए. रोटी का अंतिम टुकड़ा भी खत्म हो चुका था. मंगल सिंह अपने साथियों की हालत देख कर व्याकुल हो उठा. अब उस से भी हिलाडुला नहीं जा रहा था. बोलने की भी ताकत नहीं रह गई थी, लेकिन फिर भी उस में जीने की हिम्मत बची थी. तभी उस ने देखा कि खान का पानी तेजी से घट रहा है. मंगल सिंह की खुशी का ठिकाना न रहा.
वह हर मजदूर को उस का नाम ले कर पुकारने लगा, लेकिन वे बेजान पड़े थे. कुछ घंटे के अंदर खान से पूरा पानी निकल गया. मंगल कोयले के टीले पर से किसी तरह नीचे उतरा. दीवार का सहारा ले कर धीरधीरे वह लिफ्ट की तरफ बढ़ा, लेकिन अधिक दूर न जा पाया और गिर पड़ा. फिर वहीं से सहायता के लिए चिल्लाने लगा.
ऊपर से लोगों का आनाजाना शुरू हो चुका था. मंगल सिंह की आवाज सुन कर वे उस के पास दौड़े आए. मंगल सिंह सहित सभी बेहोश मजदूरों को खान के बाहर लाया गया. मामूली उपचार के बाद सब की हालत ठीक हो गई. मंगल सिंह की हिम्मत और मदद से ही उन की जानें बची थीं. मजदूरों के परिवार खुशी से पागल हो गए. मंगल सिंह की मां की खुशी की सीमा ही न थी. मंगल सिंह को सरकार की तरफ से पुरस्कार भी मिला और नौकरी में पदोन्नति हुई.