आम आदमी के बैंक अकाउंट में पैसे हैं, लेकिन किसी काम के नहीं हैं. जेब में 5 सौ और 2 हजार के नोट हैं, लेकिन उन से घर का गुजारा नहीं चल सकता, क्योंकि पुराने नोट चलना ही बंद हो चुके हैं… दरअसल, सरकार ने नोटबंदी का फैसला क्या लिया, आम आदमी की मानो कमर ही टूट गई. लोगों की बैंकों और एटीएम के बाहर लंबीलंबी कतारें लग गईं. अपने पैसों के लिए ही देश के आम आदमी की भिखारी जैसी हालत हो गई. घर में जरूरत की चीजें लाने के लिए पैसे नहीं हैं. रोजमर्रा की जरूरतें पूरी नहीं हो पा रही हैं. आखिर कैसे चलाएं घर? कैसे लें सब्जी? कैसे लें दूध? कैसे भरें बच्चों की फीस? आखिर उधारी लें भी तो कब तक लें? उधार लेने वाला भी कब तक उधार लेगा? उसे भी तो आगे से सामान लेना है… ऐसी हालत आखिर क्यों आई?

क्या सरकार को हक है कि वह आम आदमी के पैसों पर इस तरह कब्जा जमा ले? क्या यह तुगलकी फरमान नहीं है? जब सरकार का मन आया, तो नोट बदल दिए… बिना यह जाने कि इस से कितनी बड़ी परेशानी खड़ी हो सकती है. क्या यह सरकार की जिम्मेदारी नहीं बनती थी कि कोई भी फैसला लेने से पहले उस के तमाम पहलुओं पर गौर करती? तब जा कर कोई भी फैसला लिया जाता. खास आदमी को इस फैसले से कितना फर्क पड़ा है, इस पर अभी कुछ भी नहीं कहा जा सकता, लेकिन इस का असर आम आदमी की जेब पर जरूर देखने को मिला है. क्या सरकार को हक है कि वह जनता को इस तरह परेशान करे? अगर जनता ने आप को चुना है, तो बजाय परेशानी देने के, आप को उस परेशानी से नजात दिलानी चाहिए थी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इमोशनल हो कर जनता से 50 दिनों का समय तो मांग लिया… लेकिन क्या इन 50 दिनों में हालत सुधर गई? क्या काला पैसा पूरी तरह से खत्म हो गया?

कतार में जनता

सुबह हो या शाम… दिन हो या रात… मोदी सरकार का फैसला आने के बाद से जनता या तो एटीएम के बाहर लगी रही या फिर बैंकों की लंबीलंबी कतारों में… दफ्तर से थकहार कर लोगों को एटीएम की लाइन में लगना पड़ा, वहीं घर का काम खत्म होते ही औरतें भी एटीएम की लाइनों में जा कर लग गईं.

सरकार को हक नहीं है जनता को इस तरह परेशान करने का, क्योंकि जनता ने ही सरकार को अपनी परेशानियां खत्म करने के लिए चुना है. सरकार को यह हक कतई नहीं  दिया गया है कि वह आम जनता की परेशानियां बढ़ाए. घंटों लाइन में लग कर जनता अपना समय बरबाद कर रही है, वह भी उस पैसे के लिए, जो उस का अपना है. अपना पैसा पाना भी लोगों को नसीब नहीं हो पा रहा है, क्योंकि सरकार उस पैसे पर कुंडली मार कर बैठ गई है.

क्या काला धन रुकेगा

सरकार ने फैसला लेते समय कहा था कि इस फैसले से काला धन रुकेगा, यह कितना सही है? समाचारपत्रों में आ रही खबरों से तो नहीं लगता कि काला धन नोटबदली से रुक पाएगा. कभी आतंकवादियों के पास से 2 हजार के तमाम नोट बरामद हो रहे हैं, तो कभी किसी सरकारी अफसर के पास से… कभी कोई बैंक वाला ही दरवाजे के पीछे से नए नोट मुहैया करा रहा है, तो बैंकों के मैनेजर नोटबदली करते हुए रंगे हाथ पकड़े जा रहे हैं. क्या 2000 के नोट से काला धन जमा नहीं होगा? क्या जो लोग पुराने नोट जमा कर सकते हैं, वे नए नोट इकट्ठा नहीं करेंगे? इस फैसले से आम जनता का ज्यादा नुकसान हुआ है.

पीएम निकले इमोशनल

सरकार ने खुद नोटबंदी का फैसला लिया और इस पर खुद ही अपनी पीठ थपथपा ली. लेकिन जब बात नहीं बनी, तो हमारे प्रधानमंत्री साहब कभी जान पर हमले की बात कहने लगे, तो कभी इमोशनल हो कर जनता से 50 दिनों का समय मांगने लगे. जाहिर है, हमारे नेता भी जानते हैं कि जो बात जोरजबरदस्ती से नहीं मनवाई जा सकती, उसी बात को थोड़ा इमोशनल हो कर जरूर मनवाई जा सकती है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इमोशनल हो कर अपनी इमेज देश की जनता के सामने रखी. जनता तो इमोशनल होती है. यह भाषा भी वह बखूबी समझती है.

नेताओं का काला धन

अब नोटबंदी महीनों पुरानी बात हो चुकी है, लेकिन इस दौरान एक भी नेता का काला धन आम जनता के सामने नहीं आया. न भाजपा का और न ही कांग्रेस का. न सपा का और न बसपा का. सवाल है कि क्या नेताओं के पास काला धन नहीं है? आयकर विभाग छापेमारी कर रहा है, लेकिन क्या किसी नेता के घर छापामारी हुई? जाहिर है, किसी नेता के घर छापामारी नहीं हुई, लेकिन इस में सब से ज्यादा नुकसान आम जनता का ही हुआ, जिस के पैसों पर सरकार ने ताला लगा दिया. उसे उधारी में दिन काटने पड़े. अपने खर्चों में कटौती करनी पड़ी. उसे एकएक पैसे के लिए लाइन में लगना पड़ा. अगर सरकार ने यह फैसला लिया ही था, तो सब से पहले उस से निबटने की तैयारी करती, ताकि नए नोटों की बैंकों में कमी न हो. 2 हजार का एक नोट बाजार में तोड़ना बहुत ही मुश्किल होता है. एटीएम मशीनों को भी नए नोटों के हिसाब से तैयार नहीं किया गया था, जिस का सीधा असर आम जनता पर पड़ा.

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