बीके सिंह ईस्ट ऐंड वैस्ट कंपनी में काम करते हैं. वे जन्मजात प्रैक्टिकल आदमी हैं. कायदे से उन के जैसे काबिल आदमी का प्रमोशन हो जाना चाहिए. वह भी तब, जब जोनल मैनेजर अपनी जाति का हो. लेकिन जुगाड़ बैठ नहीं रहा है. दरअसल, बीके सिंह का मुकाबला एक दूसरे प्रैक्टिकल आदमी से है. दूसरा यानी केपी पांडे. वे चतुर तो हैं ही, बैकग्राउंड से मजबूत भी हैं. वे 10-20 हजार रुपए यों ही खर्च कर सकते हैं. यह तो खतरे की घंटी है. सावधान हो गए बीके सिंह. उन को गिरने से पहले ही संभलने की आदत है. मन ही मन उन्होंने एक ऐसी चाल सोची, जिस की काट केपी पांडे के पास नहीं थी.

केपी पांडे विधुर हैं और बीके सिंह एक खूबसूरत पत्नी के पति. बीके सिंह की किस्मत से जलने वालों में जोनल मैनेजर भी थे. जोनल मैनेजर ने शादियां तो की थीं 3, पर 2 स्वर्ग सिधार गईं, एक ने तलाक दे दिया. अरबपति आदमी पति न हो, तो लड़कियां चिंतित हो जाती हैं. जोनल मैनेजर की चिंता करने वालियों की भी कमी नहीं थी. यह चिंतन शिविर उन की टपकती हुई लार को धार बना रहा था. एक दिन बीके सिंह ने अपनी पत्नी सुलोचना को कह ही दिया, ‘‘सोच रहा हूं कि बौस को किसी दिन डिनर पर बुला लूं. कैसा रहेगा ’’

‘‘कौन से बौस को  तुम्हारे तो कई बौस हैं. अभी तो बौस शायद खन्ना हैं, जिन से तुम्हारी बिलकुल नहीं बनती.’’ बात को काटते हुए बीके सिंह ने कहा, ‘‘जोनल मैनेजर को बुलाने की सोच रहा हूं. वे कई बार कह चुके हैं कि घर के खाने का मजा ही कुछ और है. बेचारे विधुर जिंदगी जी रहे हैं.’’

‘‘क्यों… हैट्रिक तो वे लगा ही चुके हैं. अब उन्हें क्या परेशानी है  वे एक और ले आएं.’’

बातचीत से यह अंदाजा तो लग ही जाता है कि सुलोचना उन पत्नियों में से नहीं हैं, जो केवल ‘जी हां’ कहती हैं. वह वकालत में ग्रेजुएट थी. प्रैक्टिस शुरू नहीं की थी. उसे अपने पति के पैतरे पसंद नहीं थे. उसे जो बात पसंद नहीं आती, साफसाफ कहना पसंद करती थी. यह सच बीके सिंह पर भी शादी के सालभर के अंदर ही सामने आ चुका था. बीके सिंह ने बच्चे पैदा करने की योजना पर बात करने की कोशिश की, तो सुलोचना ने साफ मना कर दिया. उस का मानना था कि पहले एकदूसरे को जान तो लें कि बच्चे पाल भी सकेंगे या नहीं. कम से कम 2 साल तो पूरे हो जाने दो. बीके सिंह को अगर शाप देना आता, तो कमंडल से पानी ले कर सुलोचना को शाप दे देते, ‘ऐ दुष्ट बालिके, तू ने बाबा की आत्मा को कष्ट दिया है. जा, तू अनंतकाल तक मां नहीं बनेगी. पर ऐसा हो न सका.

‘‘मैं इस रविवार को ही उन्हें खाने पर बुला लेता हूं,’’ ऐसा कह कर बीके सिंह ने अपनी बात रखी.

सुलोचना ने भी ज्यादा बहस नहीं की, तो बीके सिंह ने उसे हां के रूप में लिया और रविवार को जोनल मैनेजर को डिनर पर बुला लाए. जोनल मैनेजर हिंदी कविताओं के रसिया थे, साथ ही हनी सिंह के गानों के दीवाने भी. डिनर सर्व कर रही सुलोचना को उन्होंने इशारा कर के बात बीके सिंह से कही, ‘‘हिंदी कविताओं में तो एक ही कवि हुए सुमित्रानंदन पंत… बाले तेरे रूपजाल में कैसे उलझा दूं लोचन. उन के बाद के कवि तो रोते रह गए. उस के बाद भी एक कवि और हो गए. नाम याद नहीं आ रहा. उन की कविता है, ‘अगर मैं ने किसी के होंठ चूमे, अगर मैं ने किसी की मदभरी अंगड़ाइयां चूमीं. महज इस से किसी का पुण्य, मुझ पर पाप कैसे बन गया ’ वाह… वाह… इसे कहते हैं कविता.’’

जोनल मैनेजर को पता था कि यहां कविताएं उन के अलावा किसी और को नहीं आतीं. जो पढ़ेंगे, वह सही ही होगी. वैसे भी बौस जो करते हैं, सही करते हैं. हुआ भी यही. सुलोचना मटन का डोंगा रख कर जा चुकी थी. सुलोचना के चले जाने से जोनल मैनेजर साहब नाराज हो रहे थे. उन्होंने घूर कर बीके सिंह को देखा. बीके सिंह प्रैक्टिकल आदमी थे. तुरंत वे बात की तह तक पहुंच गए. सुलोचना को आवाज दी, ‘‘अरे, जरा दही लाना.’’सुलोचना दही ले कर आई. जोनल मैनेजर साहब ने हनी सिंह की चर्चा छेड़ दी, ‘‘दुनिया में जीना कितना मुश्किल है. देखो बेचारे हनी सिंह को. उस पर बारबार बेहूदगी फैलाने के आरोप लगा दिए जाते हैं. वह तो गायक है. कलाकार इन चीजों से परे होता है. मैं कहता हूं कि मर्दऔरत का संबंध तो सदियों से चला आ रहा सच है.’’

‘‘आदमी की सोच ही अब छोटी हो गई है सर. एक बच्ची नंगी पड़ी हो, तो भी हमें बेहूदगी नजर नहीं आती है, क्योंकि हम उसे औरत की नजर से नहीं देखते. सोच का ही सारा खेल है,’’ बीके सिंह ने कहा. जोनल मैनेजर साहब खुश हो रहे थे कि बात की दिशा बिलकुल सटीक जा रही है. बात को और पकड़ाने के लिए उन्होंने सीधे सुलोचना से कहा, ‘‘आप को भी साथ में डिनर कर लेना चाहिए था.’’

‘‘जी नहीं, मैं मांसाहारी नहीं हूं,’’ छोटा सा जवाब दे कर वह चुप हो गई. जोनल मैनेजर साहब के गरम तवे पर दो बूंद पानी पड़ा. वे बीके सिंह से बोले, ‘यह गलत बात है सिंह. सुलोचना अगर मांसाहारी नहीं हैं, तो शाकाहारी खाना बनवा लेते. तीनों मिल कर खाना खाते.’’जोनल मैनेजर साहब को पूरी उम्मीद थी कि सुलोचना अपना कीमती समय उन की झोली में डाल देगी, लेकिन वह तो वहां से जा चुकी थी. जोनल मैनेजर ने जल्दीजल्दी खाना खत्म किया और कार में बैठ कर चले गए. जाते समय सुलोचना नमस्कार करने के लिए हाजिर हुई, लेकिन इस से उन का मन नहीं भरा.

जोनल मैनेजर साहब के जाते ही बीके सिंह की साढ़ेसाती शुरू हो गई. वह उलझ पड़े, ‘‘अगर 2 मिनट उन के पास बैठ जाती, तो क्या बिगड़ जाता. घर आया मेहमान है, थोड़ा प्रैक्टिकल होना पड़ता है. काम भागे तो नहीं जा रहे थे.’’

‘‘कहां बैठ जाती… उस की गोद में… देखा नहीं, कैसे घूर रहा था वह. तुम अपनी बातें अपने पास ही रखो. मुझे ये चोंचले पसंद नहीं हैं.’’

इस बात को अभी 5 दिन भी नहीं बीते थे कि जोनल मैनेजर साहब की लार बदस्तूर टपकने लगी. उन्होंने बीके सिंह को बुलाया. उस दिन के खाने की तारीफ की. सुलोचना के गुणों की तारीफ की. संस्कारों पर भाषण दिया. लगे हाथ यह कहना भी नहीं भूले कि अगले महीने गुप्ता रिटायर हो रहा है. उस की जगह ईस्ट जोन को एक ईमानदार और मेहनती सबमैनेजर चाहिए. बीके सिंह ने इसे अपने लिए औफर समझा. उन्होंने अगले रविवार आने का जोनल मैनेजर साहब को न्योता दे दिया. सुलोचना को इस बात से न तो पहले कोई परेशानी थी, न अब है. उस ने नौकरानी से कह दिया कि एक आदमी का खाना ज्यादा बनेगा. नियत समय से एक घंटा पहले ही अपनी नीयत संभाले जोनल मैनेजर साहब तशरीफ ले आए. इस बार उन के पास गानों की सीडी के साथसाथ एक किताब भी थी ‘लोलिता’.

बीके सिंह मिठाई लाने अभीअभी मार्केट चले गए थे. उन्हें अंदाजा नहीं होगा कि साहब एक घंटा पहले ही घर आ जाएंगे. जोनल मैनेजर साहब ने आते ही सुलोचना के हाथ में वह किताब रखी और बोले, ‘‘यह पुस्तक वर्ल्ड फेम की है. लोलिता नाम की एक किशोरी की कहानी है. आम सोच का पाठक इस में सैक्स देखता है, लेकिन यह एक चिंतन है. आप इसे जरूर देखें. आप तो एक सुलझी हुई औरत हैं.’’ सुलोचना ने किताब ले तो ली, लेकिन उसे उन के सामने ही टेबिल पर रख कर अंदर कमरे में जा कर तकिए पर नया कवर चढ़ाने लगी. जब सुलोचना पानी ले कर जोनल मैनेजर के पास आई, तो उन्होंने कहा, ‘‘आप इतनी खूबसूरत हैं… मौडलिंग वगैरह क्यों नहीं कर लेतीं ’’

इस पर सुलोचना ने जो कहा, उस की उम्मीद नहीं थी, ‘‘आप की उम्र इतनी ज्यादा हो गई है. आप किसी आश्रम में क्यों नहीं चले जाते ’’ जोनल मैनेजर साहब यह सुन कर सोचने लगे, ‘क्या यह बदनसीब नहीं जानती कि उन के पति की किस्मत उन के ही हाथों में कैद है  क्या इस अभागी को इस बात की भी जानकारी नहीं कि वे अगर खुश हो जाएं, तो उस की जिंदगी बना सकते हैं ’ अब जोनल मैनेजर साहब अपने असली रूप में आने लगे,  ‘‘आप मेरी बेइज्जती कर रही हैं. मैं ने आप की तारीफ की और आप मेरी बुराई कर रही हैं. यह शिष्टाचार नहीं है.’’ ‘‘इस में बुराई वाली बात कहां से आ गई. बूढ़ा होना कोई गुनाह नहीं है. सभी लोग बूढ़े होते हैं. यह बेइज्जती कैसे हो गई  एक सचाई आप ने कही और एक सचाई मैं ने.

‘‘रही शिष्टाचार की बात, तो किसी सहकर्मी के घर उस की गैरहाजिरी में आना और उस की पत्नी को बेहूदा किताब भेंट करना क्या है  मैं तो कहती हूं कि समय के पहले आना भी अशिष्टता है.’’

‘‘तुम नहीं जानती कि किस से बात कर रही हो. मैं चाहूं तो एक क्षण में तुम्हारे पति को सड़क पर खड़ा कर सकता हूं.’’

‘‘और अगर मैं चाहूं, तो तुम्हें अटैंप्ट टू रेप के जुर्म में जेल भिजवा सकती हूं. मैं ने भी वकालत की डिगरी चोरी से हासिल नहीं की है. ‘‘जब तक कोर्ट में यह साबित होगा कि तुम ने मेरे साथ जिस्मानी संबंध बनाने की कोशिश की या नहीं, तब तक तुम्हारा मुंह पूरी तरह से काला हो चुका होगा. चुपचाप शांत बैठो और खाना पकने तक इंतजार करो.’’ जोनल मैनेजर साहब एकदम से दनदनाते हुए निकल जाना चाहते थे, लेकिन लग रहा था कि किसी ने सारी हवा निकाल दी हो. टांगें काम नहीं कर रही थीं. उन्हें बीके सिंह पर गुस्सा आ रहा था कि मनहूस कहां चला गया. अब तक उसे आ जाना चाहिए था. उस को तो कलाकंद मिठाई लाने के लिए भेजा था, कोलकाता जाने को तो नहीं कहा था. कलाकंद मिठाई का पैकेट लिए बीके सिंह आए तो देखा कि साहब किसी से फोन पर बात कर रहे हैं. उन्होंने बीके सिंह की ओर देखा भी नहीं और बोले, ‘‘आज का प्रोग्राम रहने दो, फिर कभी खा लेंगे. एक अर्जैंट फोन आ गया है…’’

बीके सिंह अभी बोलने के लिए उचित शब्द तलाश ही रहे थे कि साहब दनदनाते हुए निकल गए. भागते हुए बीके सिंह कार तक गए जरूर, लेकिन दरवाजा खोलने का भी मौका नहीं मिला. अंदर आते ही बीके सिंह सुलोचना पर फुंफकारे, ‘‘तुम ने हमारे साहब की बेइज्जती की होगी. वह इतने गुस्से में क्यों थे ’’ सुलोचना, जो जोनल मैनेजर के जाने की खुशी मना रही थी, इस बेहूदा सवाल से झल्ला गई. उस ने कहा, ‘‘जोनल मैनेजर की बेइज्जती तो की ही, लेकिन उस के असली हकदार तुम हो. उस के कहने पर कलाकंद मिठाई लेने चले गए अकेली पत्नी को दांव पर लगा कर. बौस खुश हो गया, तो प्रमोशन हो जाएगा. क्यों  

‘‘तुम ने मुझे पहचाना ही नहीं आज तक, नहीं तो मुझे प्लेट में सजा कर पेश करने की हिम्मत नहीं दिखाते. अच्छा हुआ वह चला गया, नहीं तो चप्पल से खातिरदारी करती मैं उस की.’’

‘‘तुम समझती क्या हो अपनेआप को. बड़ा आदमी है, जरा हंसबोल लोगी, तो तुम्हारा यह रूप घिस नहीं जाएगा. वह अगले महीने मुझे ईस्ट जोन का सबमैनेजर बनाने वाला था. तुम ने सब गुड़गोबर कर दिया.’’

‘‘अपने बूते कुछ कर नहीं सकते, तो बीवी को ढाल बना लिया. मैं द्रौपदी

नहीं हूं कि दांव पर लगा दोगे और मैं कन्हैयाकन्हैया कर के रोने लगूंगी. मैं उस का मुंह नोच लूंगी. उस का भी और तुम्हारा भी. मुझे तो तुम्हारे चेहरे से घिन हो रही है.’’ बीके सिंह अभी इतने भी प्रैक्टिकल नहीं हुए थे कि बीवी की गालियां सुनने के बाद भी मुसकरा सकें. उन की नजर में जरा सा हंसबोल लेना गलत नहीं था. सभी करती हैं. यह जमाना ही कारोबार का है. जिस के पास जो बैस्ट है, दे रहा है. एक बार आदमी कामयाब हो जाए, तो कोई नहीं पूछता कि कामयाबी के सूत्र क्या थे   सुलोचना थोड़ी पुराने खयालों की थी. वह अभी उतनी प्रैक्टिकल नहीं हुई थी.

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