पापा के हार्ट की बाईपास सर्जरी हुई थी. सर्जरी के 5 दिनों बाद आईसीयू से बाहर आने पर डाक्टर ने उन्हें थोड़ा टहलाने की सलाह दी थी. मैं ने पापा से कहा , ‘‘पापा, उठिए थोड़ा टहलते हैं.’’ उन्होंने नजरें उठा कर कहा, ‘‘तुम ने छुट्टी ले रखी होगी? तुम लोगों को तो छुट्टी मुश्किल से मिलती है.’’

इस पर मैं ने कहा, ‘पर पापा तो स्पैसिफिक इंपौर्टैंट एसेट होते हैं.’ मुझे और मेरे पास खड़े मेरे पति अमित की ओर देख कर पापा मुसकरा दिए, उन की आंखों में आंसू आ गए. मैं और मेरी बहन श्रुती, हम 2 बेटियां ही हैं पापा की. पापा हम बहनों के साथ बचपन से ही बड़े फ्रैंडली रहे हैं.अति विशिष्ट पहचान वाले, व्यस्त विद्युत अभियंता होने के बावजूद समय मिलते ही पापा हमारे साथ बैडमिंटन खेलते, कैरम और लूडो खेलते, बेईमानी करते और हम से झूठमूठ का झगड़ते.

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दिल तो बच्चा है जी

कभी बोलते, ‘चलो, बाहर डिनर कर के आते हैं’ या ‘चलो, आइसक्रीम खा कर आते हैं.’ कभी किचन में जा कर बोलते, ‘चलो, आज मम्मी की किचन से छुट्टी, हम कुकिंग करते हैं.’ पढ़ाई में कभी कम अंक आते या खेल में हम चोट लगा कर आते तो बोलते, ‘ये सब तो जिंदगी के फंडे हैं, बच्चों. इस से घबराते नहीं. नए जोश से काम शुरू करते हैं, धैर्य नहीं खोते.’ पापा की इन बातों का हम बहनों पर दिल की गहराई तक असर होता और हम आत्मविश्वास  से भरभर जाते. हमारे महान पापा, उन्होंने हमें हर क्षेत्र में और हमेशा उत्कृष्ट रहने की प्रेरणा दी. उन की सीख का यह नतीजा रहा कि मैं बीसीए करने के बाद सीडीएस उर्त्तीण कर के आज एयरफोर्स में अपने पति के साथ विंग कमाडंर हूं और श्रुती, एमबीए कर के अपने पति के साथ फाइनैंस सलाहकार के रूप में कार्यरत है.

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फादर्स डे स्पेशल: मेरे पापा

– रुची खरे

*मेरे पिताजी उस वक्त डिप्टी सैक्रेटरी, रेवेन्यू थे. हम सब बहनें स्कूल की बस से स्कूल आयाजाया करती थीं. एक दिन स्कूलबस न आने के कारण हम लोगों ने पापा से कहा कि सरकारी गाड़ी द्वारा हम लोगों को स्कूल भिजवा दें. हमारी बात सुन कर उन्होंने साफ मना कर दिया कि वे ऐसा नहीं करेंगे. ऐसा करने का अर्थ होगा, एक गलत प्रवृत्ति को आगे की पीढि़यों तक ले जाना. उन का मानना था कि बेटा तो केवल अपने ही कुल का नाम रोशन करता है लेकिन बेटियां 2 कुलों का नाम रोशन करती हैं. अपने पापा की यह सीख हमें आज भी याद

 

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