आजकल जनसभाओं के लिये भीड़ इकट्ठी करने की होड़ के कारण अनेक युवाओं को पार्टी का झंडा उठा कर सक्रिय सदस्य बनना फायदे का सौदा प्रतीत हो रहा है . यही वजह है पार्टी का सदस्य बनने से समाज में लोगों के सामने उसकी हनक बढती है और पैसे के जुगाड़ का भी जरिया बन जाता है .

पैसे से इकट्ठा हुई भीड़ को न तो नेता से कोई सरोकार होता है और न ही भीड़ को नेता से …. शायद य़ही वजह है कि अब नेता मंच से कार्यकर्ताओं को संबोधित करने की जगह विपक्षी दलों पर हमलावर हो कर भाषा की मर्यादा भी भूल जाया करते हैं .

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गुंडे बदमाशों को नकारने वाला समाज आज इन्हें अपने सिर आंखों पर बिठा रहा है . पहले अपराधी को लोग हुक्का पानी बंद करके समाज से बहिष्कृत कर  उसे समाज से अलग कर देते थे . रिश्तेदार रिश्ता खत्म कर लेते थे परंतु अब उसका उलट हो गया है . घर वालों के साथ साथ जघन्य अपराधियो को संरक्षण देने के लिये राजनीति बाहें फैलाये स्वागत् करने को तैयार रहती है .

सच्चाई  तो यह है कि अपराधी राजनीति के संरक्षण में फलता फूलता है . छोटे मोटे जुर्म में कानून से बचने के लिये ऐसे लोगों को पहले नेताओं का संरक्षण प्राप्त होता है और देखते ही देखते वह जनप्रतिनिधि बन जाते हैं .

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35 वर्षीय  नकुल एक दिन दोस्ती निभाने के चक्कर में एक पार्टी के विरोध प्रदर्शन में शामिल हुआ , वहां पर लाठी चली और वह पुलिस के हत्थे पड़ गया … वहां के सभासद के बीच बचाव करने की वजह से वह छूट गया  लेकिन लोगों ने उसे माला पहनाकर  अपने कंधे पर बिठा कर जुलूस निकाला …बस अब तो उसे नेता बनने का चस्का लग गया था.

गले में माला पहन कर  जब घर पहुंचा तो सबसे पहले  अपनेमां बाप और बीबी बच्चों को समझा दिया कि यदि भविष्य में मलाई खाना है और लाल बत्ती का सुख उठाना है तो थोड़ी तकलीफ तो उठानी ही पड़ेगी .घर खर्चे की कभी फिक्र रही नहीं क्योंकि पिता का बड़ा शो रूम था और काफी प्रापर्टी थी , जिसका किराया आया करता था . अब तो उसे अपनी नेतागिरी चमकानी थी . सबसे पहले लड़कों के खेलने के लिये पार्क में बॉलीवाल कोर्ट बनवा दिया . अब तो लड़के उसके आगे पीछे घूमते . मोहल्ले के  किसी लड़के के साथ कोई बात हो जाये या किसी लड़की या महिला के साथ कोई ऊंची आवाज में बात कर ले  या फिर किसी रेहड़ी वाले को कोई परेशान कर रहा है , बस अपने लड़कों की फौज के साथ पहुंच जाता .

पार्षद जसवंत सिंह  को उसके कामों की खबर लग गई बस उन्होंने सलाह दी कि यदि नेता बनना है तो  सबसे पहले अपनी नेटवर्किंग मजबूत करो ….  शर्मा अंकल ने गाड़ी खरीदी , उन्हें लाइसेंस बनवाना था . नकुल जी बड़े कॉन्फिडेंस से बोले  ,आप किसी को भेज दीजिये …. बड़े बाबू अपने आदमी हैं … आपका काम हो जायेगा ….एक मिठाई का डब्बा लेते जाइयेगा . मिठाई के डब्बे और सही कागजात के कारण काम हो गया लेकिन क्रेडिट नकुल जी को मिल गया .

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अब तो लोग उनके घर पर चक्कर काटने लगे थे . एक रात में वह गहरी नींद में थे तभी रात के दो बजे किसी को एम्बुलेंस की जरूरत थी …. वह तुरंत पैरों में चप्पल पहन कर चल दिये थे . बुखार में तपती हुई पत्नी को उसके हाल पर छोड़ वह एक दो तीन  हो चुके थे . घर वाले उनकी इन हरकतों से परेशान हो गये थे.अब  वह अपने को कुछ स्पेशल समझने लगा था .घर में घुसते ही वह वी. आई. पी. ट्रीटमेंट चाहता था . अपने को महाराजा से कम नहीं समझता … किसी घरेलू कामों  से कोई  मतलब नहीं रखता लेकिन चीखने चिल्लाने में जरा देर नहीं लगती . बातें लंबी लंबी करता ….. पत्नी के बोलते ही लड़ाई झगड़ा शुरू कर देता … कभी कभी तो हाथ भी उठाने को तैयार हो जाता …कान पर फोन चिपका रहता या फिर जुबान पर लफंगों वाली गालियां निकलने लगती . घर के कामों से लापरवाह… ऐसे शो करता मानो उसी के इशारे पर दुनिया चलती है . जब तब दो चार लड़कों को लेकर आता और सबको चाय नाश्ता तो कभी खाना खिलाने के लिये कहता . देर रात में आता लेकिन कभी फोन करने की जरूरत  नहीं समझता .

26 वर्षीय नरेश स्वभाव से मस्तमौला था . स्कूल के समय से डिबेट में अच्छा बोलता था . सत्तारूढ दल के पार्षद के साथ दोस्ती हो गई . पार्टी के लोगों से जान पहचान हो गई थी . उसके भाषण की कला के कारण पार्टी मे उसकी हैसियत हो गई थी.छोटे मोटे कामों के लिये पार्षद अश्विनी बाबू का नाम ही काफी होता था बड़े कामों के लिये अश्विनी बाबू थे ही , बस जल्दी ही वह उनका दाहिना हाथ बन गया था . उन्हें   कामकाज करवाने के तौर तरीके  की अच्छी तरह जानकारी  हो गई .. घर पर काम करवाने वालों की भीड़ इकट्ठी होने लगी थी .

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अब घर पर भी उनकी हनक बढ गई थी . जिस  नरेश की घर में कोई इज्जत नहीं थी  अब वह कमाऊ सपूत बन गया  . सभासद का चुनाव वह आसानी से जीत गया था और विधायक जी तक उनकी पहुंच हो गई थी .अब सब तरफ से उन पर लक्ष्मी बरसने लगी थी . कलफदार कुर्ते पायजामें के आवरण में  वह हर कानूनी गैर कानूनी धंधे में उनकी लालच बढती जा रही थी . जो पापा उन्हें चार बातें सुनाया करते थे अब वह उन्हें दस बातें सुना दिया करता . बात बात में डींगें हांकना  . गालियां उनकी जुबान से बेसाख्ता निकलने लगी थी . उंगलियों में रंग बिरंगी अंगूठियों की संख्या बढती जा रही थी . अब वह बड़े बड़े सपने देखने लगा था . घर में अब उसकी तूती बोलने लगी थी आखिर कार उसे अब विधायक जो बनना  था .

रेबा नीला की बचपन की सहेली थी . इन दिनों वह बहुत दुखी और परे शान सी रहती थी .“क्या बात है रेबा … परेशान दिख रही हो ?’’ “अब तुमसे क्या छिपाऊं…. जब से नेता बन गये हैं ….घर के कामों के लिये तमाम छुटभइये हैं . वह तो कभी यहां मीटिंग तो कभी वहां …. कभी दिल्ली तो कभी लखनऊ … चुनाव के दिनों में तो न दिन  का पता न रात का …. पहले कभी शराब को छूते नहीं थे …अब रोज रात को बोतल खाली करे बिना सोते नहीं .. बस पैसा.. पैसा…  न मेरे लिये न बच्चों के लिये  उनके पास समय ही नहीं होता  … कोई रागिनी मैडम हैं .. उनके यहां हाजिरी लगाना जरूरी है  … मुझे तो लगता है कि बात बात पर झूठ बोलने लगे हैं . सुबह सुबह ही लोगों की भीड़ जमा हो जाती है  …. घर में घुसे नहीं कि फोन की घंटी बजती रहती है  . अपने को जाने क्या समझने लगे हैं …. घमंड के मारे सीधे मुंह बात भी नहीं करते हैं ….

दो चार लोकल अखवार वालों को कुछ दे दा कर  यहां वहां फोटो खिंचवाकर अपने को बहुत बड़ा नेता समझने लगे हैं . आज यहां प्रदर्शन , कल वहां धरना … शुरू में तो कई बार लाठी डंडा खाकर चोट भी खाकर आये हैं लेकिन अब जब से जिला अध्यक्ष बन गये हैं पार्टी में हैसियत तो बढ गई है लेकिन साथ  भी तो लफंगों का रहता है , इसलिये गुंडों वाली बातें करते हैं .

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बाहर तो दूसरों के सामन सर जी … सर जी करते रहते हैं तभी तो छुटभइये जी हुजूरी करते रहते हैं . ऐसे डींगें हांकेंगें जैसे प्रधानमंत्री इन्हीं से पूछ कर हर काम करते हैं . मैं तो इनसे परेशान हो गई हूं . नीला को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि कैसे रेबा की परेशानी को सुलझाये ….

मध्यप्रदेश के भिंड में रहने वाला 23 वर्षीय राजन बेरोजगार युवक था . पिता की छोटी सी दुकान में उसका मन नहीं लगता . उसे यहां वहां बैठ कर गप्प गोष्ठी में बहुत आनंद आया करता  . उसके जैसे 2- 4 दोस्तों के साथ बैठ कर पान मसाला का पाउच मुंह में भर कर हवाई बातें करा करते …..

घर में भाई नाराज होता तो ,दुकान पर पिता  लंबा चौड़ा भाषण पिला देते … उसकी दोस्ती संजू से हो गई , वह पार्टी का छुटभइया नेता था  … बस वह भी उसके साथ पार्टी का झंडा उठा कर कार्यकर्ता बन गया . चुनाव के दिन थे … यहां वहां पार्टी के लिये लोगों की भीड़ जुटाना ….. पोस्टर बैनर लगाना , झंडियां लगाना … नेता जी के आगमन पर सारी व्यवस्थाएँ  बनाने के लिये उस जैसे ढेरों लड़कों की जरूरत होती , उसके एवज में खाना पीना , रुपया पैसा और दारू  … अब तो वह व्यस्त भी और मस्त भी ….

धीरे धीरे उसकी पहचान बढती गई और वह शहर में जाना माना नेता बन गया  ….. वह यहां वहां दौड़ धूप कर लोगों का काम करवा देता …. तेज दिमाग तो था ही …. सारे गुर सीख लिये थे …कमीशन फिक्स  हो जाता   … धीरे धीरे वह ठेकेदार बन गया .पिता को उसकी नेतागिरी बिल्कुल पसंद नही आ रही थी . मां परेशान रहती क्यों कि हर बात पर झूठ बोलता … कोई भी किसी काम के लिये आता तो ना कभी न करता और ऐसे दिखाता कि वह उसके काम के लिये जी जान से लगा हुआ है . शहर के नामी पैसे वाले रामेश्वर जी के परिवार  के यहां गणेश परिक्रमा  करता उनकी पत्नी को बहन बना कर  बच्चों के लिये कुछ छोटा मोटा उपहार लेकर पहुंच जाता .

रामेश्वर जी को सम्मानित करके मानपत्र दिलवा दिया , अस्पताल में फल बांटते हुये फोटो पेपर में प्रकाशित करवा के उनका खासमखास बन बैठा और  अब तो चंदे के नाम पर उसको लोग अपने आप ही हजार दो हजार दे देते . वह लच्छेदार बातों से लोगों को अपने विश्वास में ले लेता .

साथ में दादागिरी भी चालू हो गई थी क्योंकि अब वह समझने लगा था कि वह जो चाहे  सो कर सकता है क्योंकि सरकार उनकी है … लोगों की जमीन पर कब्जा करना , मकान पर कब्जा करके कागज में इधर उधर करवा लेना …. एक दिन एक जमीन पर रातों रात कब्जा करके वहां बाउंड्री बनवाने लगा  था … गाली गलौज के बाद के ईंट पत्थर चल गये …दंगा भड़क गया …. पुलिस आ गई , अब वह हाथ पैर जोड़ने लगा लेकिन पुलिस ने एक भी न सुनी . किसी तरह  से वह दो दिन बाद किसी बड़े नेता के बीच बचाव के बाद छूट पाया था  परंतु अब उसका नेतागिरी का नशा ठंडा पड़ चुका था .

सरकार बदल गई थी अब रोज रोज उसकी पुरानी फाइलें खोली जा रही थी .आजकल माननीयों ने देश में जिस तरह से जातिवाद , क्षेत्रवाद , धनबल, बाहुबल  की राजनीति को बढावा दिया है  , इसी कारण से राजनीति अपराधियों की शरणस्थली बन गई है . आजकल चुनावों में राजनीतिक दल क्षेत्रवाद और जातिवाद के आधार पर अपने प्रत्याशियों का चयन करते हैं … इसी आधार पर जनता उन्हें विजयी भी बना देती है .

हमारे माननीयों को विचार करने की आवश्यकता है कि धनबल और बाहुबल से जीत और सत्ता तो मिल सकती है , परंतु इतिहास में पहचान बनाने के लिये एक आदर्श स्थापित करना होगा .

 

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