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कुछ समय और बीता. शमीम ने बेटे को जन्म दिया. घर में खुशियां छा गईं. सलमा ने खूब मिठाइयां बांटीं. परवेज ने बहनों को सोने के टौप्स तोहफे में दिए. मां को सोने की चेन दी. अब्बू को भी तोहफा देना चाहता था पर रहमान टाल गया.

परवेज का बेटा आरिफ गोलमटोल, बड़ा ही सुंदर बच्चा था. आरिफ का पहला जन्मदिन परवेज ने बड़ी

धूमधाम से मनाया. कई दिनों तक दावतें चलती रहीं.

समय अपनी गति से चलता रहा. आरिफ अब खूब धमाचौकड़ी मचाता, खेलता. सलमा और शमीम देखदेख कर खुश होतीं.

परवेज आज अपने बच्चे का तीसरा जन्मदिन बड़े जोरशोर से मना रहा था. उस ने बहुत सारे दोस्तों को बुलाया था. सब के लिए तोहफे भी खरीदे थे. सभी मेहमान खापी कर अपने घर चले गए. आरिफ परवेज से नाराज था कि तोहफे में उस के लिए बड़ी सी बंदूक क्यों नहीं लाई गई. कई दिनों से वह बड़ी बंदूक की फरमाइश कर रहा था. लेकिन परवेज उसे टालता जा रहा था.

नाराज हो कर आरिफ कमरे में चला गया. बाकी लोग भी सामान उठानेरखने में व्यस्त हो गए. सुबह से सभी काम में लगे थे इसलिए सभी थक गए थे. तभी आरिफ हाथ में परवेज की एके 47 ले कर दौड़ता हुआ आया, ‘‘मुझे गन मिल गई.’’

परवेज और घर के अन्य लोगों ने ज्यों ही देखा, सब सकते में आ गए. हर कोई उस की तरफ बढ़ने लगा, परवेज भी बढ़ा, ‘‘आरिफ, मुझे गन दे दो. वह भरी हुई है. इसे हाथ मत लगाओ.’’

आरिफ भला कब किस की सुनने वाला था. वह बंदूक ताने हुए टेबल पर खड़ा हो गया. परवेज चिल्लाता रहा, ‘‘बेटे, यह असली बंदूक है, नकली नहीं.’’

आरिफ की उंगलियां ट्रिगर पर थीं. पास आते अपने पापा को देख कर उस ने ट्रिगर दबा दिया.

धांयधांय 2 गोलियां परवेज के सिर में घुस गईं. आरिफ खुद घबरा गया और रोने लगा. परवेज खून से लथपथ हो रहा था. रहमान दौड़ कर टैक्सी लाया और उसे अस्पताल पहुंचाया.

रातभर जिंदगी और मौत के बीच जद्दोजहद चलती रही. सुबह होने को थी कि परवेज हमेशा के लिए सो गया. घर में कोहराम मच गया. सलमा छाती पीटपीट कर रो रही थी. शमीम तो मानो बुत बन गई, सब ने उसे रुलाने की कोशिश की पर वह बुत सी बनी रही.

जमाते इसलामी वाले लोग आए और परवेज को ऐसे ले गए मानो देश का कोई बहुत बड़ा नेता हो, फूलों की बौछार के बीच लोगों का हुजूम कब्रिस्तान तक गया. सब ने उस पर मिट्टी डाली.

शमीम कई दिनों तक सदमे से बाहर न आ सकी. रहमान का किसी काम में दिल न लगता. सलमा बेटे के गम को अंदर ही अंदर सह रही थी. वह शमीम को हर तरह से सदमे से बाहर निकालने की कोशिश करती. तकरीबन 6 महीने के बाद सलमा अपनी बहू शमीम को रुलाने में कामयाब हुई. डाक्टरों ने कह दिया था कि शमीम का रोना बहुत जरूरी है.

घाटी में दिनोंदिन हालात खराब होते जा रहे थे. रहमान ने बहुत जल्द अपनी 2 बेटियों का निकाह खालाजाद भाइयों के साथ कर दिया. हालांकि वह लड़कियों को अभी और पढ़ाना चाहता था लेकिन शहर की हालत देख कर वह घबरा गया था. अब तीसरी बेटी की शादी के बारे में भी सोच रहा था, हालांकि वह अभी बहुत छोटी थी.

तमाम कश्मीरी जम्मू की ओर पलायन कर रहे थे. कई अमीर मुसलिम परिवारों ने अपनी बीवीबच्चों को दुबई, बेंगलुरु, दिल्ली रवाना कर दिया था. हिंदू कश्मीरी तो लगभग रोज ही निकल रहे थे.

रहमान सोचता रहता कि वह भी बीवीबच्चों को ले कर चला जाए पर न तो उस के पास पैसा था न कोई रिश्तेदार या जानने वाला, फिर उसे कश्मीरी भाषा के सिवा हिंदी बोलनी भी नहीं आती, तो जाए कहां.

वह अपनेआप से बड़बड़ाता, ‘अमीर तो कहीं भी जा सकते हैं पर गरीब कहां जाएगा, उसे तो यहीं मरना है.’

कश्मीर की हालत यह हो गई थी कि रातबेरात कोई भी मुजाहिद आ जाता. उस का खानापीना करना पड़ता. इस खातिरदारी से रहमान बेहद परेशान था. खानेपीने तक तो ठीक, पर वह मुजाहिद कब क्या कर बैठे, यह सोच कर रहमान परेशान रहता. जब भी घर में कोई मुजाहिद आता, सलमा ही खाना बनाती और परोसती. बहू शमीम और बेटी आलिया कमरे में ही रहतीं, उन्हें सख्ती से रहमान ने मना किया था कि बाहर न आएं.

लगभग सालभर के बाद रहमान ने चाहा कि उस का छोटा बेटा शब्बीर शमीम से निकाह कर ले ताकि शमीम का जीवन खराब न हो और आरिफ को बाप मिल जाए. पर शब्बीर इस रिश्ते के लिए तैयार न हुआ. सलमा और रहमान दोनों ने उसे बहुत समझाया पर वह टस से मस न हुआ और कुछ दिनों के बाद अपने दोस्तों के साथ जाने कहां गायब हो गया.

रहमान ने उसे ढूंढ़ने में कोई कसर न छोड़ी. जब उसे पता चला कि शब्बीर भी मुजाहिद बन गया है तो उस के अरमानों पर पानी फिर गया. सलमा रातदिन शब्बीर के वापस आने के लिए दुआएं मांगती. रहमान हर तरह से उसे वापस लाने की कोशिश करता. किसी के जरिए शब्बीर के पास संदेश भेजा कि जहां वह चाहेगा, वहीं उस का निकाह होगा. बस, वह वापस आ जाए.

शब्बीर अपने मरहूम भाई, परवेज की तरह रहना चाहता था. नेता की भांति सारे ऐशोआराम का लुत्फ उठाना चाहता था. रहमान की सारी कोशिशें बेकार गईं.

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