लेखक-डा. प्रेम शंकर, डा. एसएन सिंह, डा. शैलेंद्र सिंह, डा. दिनेश कुमार यादव
आम के प्रमुख कीट और उनका प्रबंधन हमारे देश में फलोत्पादन में सब से पहले अगर किसी फल का नाम आता है तो वह है फलों का राजा ‘आम’. इस का प्रमुख कारण इस में पाए जाने वाले पोषकीय तत्त्वों, स्वाद, सुगंध व स्वास्थ्यवर्धक गुणों के साथसाथ विटामिन ‘ए’ की प्रचुर मात्रा में पाया जाना है. विश्व में इस फल का एक महत्त्वपूर्ण स्थान है, लेकिन विगत वर्षों में देखा जा रहा है कि बागबान आम का भरपूर उत्पादन नहीं ले पा रहे हैं, जिस का प्रमुख कारण है आम में लगने वाले कीट. इन्हीं सब समस्याओं को देखते हुए बागबानों के लिए आम के प्रमुख लगने वाले कीट व उन के उचित प्रबंधन के बारे में बताया जा रहा है. फुदका कीट कीट की उच्च संख्या : कीट पूरे वर्ष पेड़ों पर पाया जाता है, परंतु फरवरी से अप्रैल और जुलाई से अगस्त माह में कीट की छाया व उच्च आर्द्रता उपलब्ध होती है. कीट की संख्या तीव्रता से बढ़ती है.
अनुकूल वातावरण : उच्च आर्द्रता के साथ मध्यम उच्च तापक्रम और छाया. कीट की पहचान और क्षति का प्रकार : यह कीट आम को सर्वाधिक हानि पहुंचाने वाला है. यह उन सभी स्थानों पर पाया जाता है, जहां पर भी आम की खेती की होती है. यह कीट अत्यधिक संख्या में आम पर पाया जाता है और पेड़ के मुलायम भागों का रस चूस कर पेड़ की ओज को कमजोर कर देता है. लगातार रस चूसने के कारण कीटग्रसित भाग के ऊतक सिकुड़ कर सूख जाते हैं. रस चूसने के अलावा ये कीट एक मीठा स्राव भी छोड़ते हैं, जिस पर कज्जली फफूंदी का आक्रमण हो जाता है और पेड़ की पत्तियों पर कवक की काली परत उग जाती है, जिस से कीटग्रस्त पेड़ की प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया धीमी पड़ जाती है.
कीट की एक मादा नई पत्तियों की मध्यशिरा, कलिकाओं और मंजरियों पर 100-200 अंडे देती है. गरमियों में इस कीट का पूरा जीवनचक्र मात्र 2-3 हफ्ते में पूरा हो जाता है. प्रबंधन * वर्षा के मौसम के उपरांत अत्यधिक घने पेड़ों की कटाई, छंटाई अवश्य करनी चाहिए और बाग की स्थापना के समय इस बात का ध्यान अवश्य रहे कि बाग में पेड़ 10 मीटर × 10 मीटर की दूरी पर लगाएं. * बाग को खरपतवाररहित रखने के लिए बाग की समयसमय पर जुताई करते रहें.
* बाग में भक्षक कीट जैसे मेलेडा वोनिनेसिंस, क्राइसोपा लेक्सिपरडा, स्प. और कवक वर्टिशिलियम लेकेनाई को आश्रय देना चाहिए.
* फुदका के आक्रमण की प्रारंभिक अवस्था में निबिंसिडीन या अजाडिरेक्टिन 3000 पीपीएम के घोल का छिड़काव करना चाहिए. * पेड़ों पर मंजरी बनने की अवस्था में यदि फुदका प्रति मंजरी 5-10 की संख्या में उपस्थित है, तो इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल की 01 मिलीलिटर प्रति लिटर या फिब्रोनिल की 02 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी की दर से घोल बना कर छिड़काव करना चाहिए. पूर्ण पुष्पन की अवस्था में पेड़ों पर कीटनाशी का दूसरा छिड़काव और फलों के बन जाने पर तीसरा छिड़काव करना चाहिए.
आम की कड़ी/गुजिया कीट कीट की उच्च संख्या : मार्चमई. अनुकूल वातावरण : न्यून तापक्रम. कीट की पहचान और क्षति का प्रकार : यह कीट पूरे भारत में जहां भी आम की फसल और इस के अतिरिक्त कटहल, अंजीर, अमरूद, पपीता, नीबू, अनार, लीची पर भी पाया जाता है. इस कीट के निम्फ और वयस्क पेड़ की मुलायम टहनियों व मंजरियों का रस चूसते हैं. इस वजह से पेड़ की फलत कम हो जाती है. हलकी हवा, पक्षियों के डाल पर बैठने या हलकी डाल के हिलाने पर डाल पर लगे फल आसानी से गिरने लगते हैं. लगातार कीट के रस चूसने के कारण प्रभावित जगह के ऊतक मर जाते हैं और ऐसी टहनी मर कर सूख जाती है.
पेड़ का रस चूसने के साथसाथ कीट पेड़ पर तरल स्राव भी छोड़ता है, जिस पर कज्जली कवक उग जाती हैं, जिस से कीट ग्रसित डालियां काली पड़ जाती हैं. कीट की मादा मई माह में पेड़ से नीचे उतर कर भूमि की दरारों में अंडे देती हैं. दिसंबर माह में अनुकूल वातवरण में अंडों से छोटेछोटे आकार के गुलाबीभूरे रंग के निम्फ निकल कर पेड़ों पर चढ़ना आरंभ कर देते हैं. निम्फ पेड़ों पर चढ़ कर सब से पहले मुलायम टहनियों पर पहुंच कर रस चूसना प्रारंभ कर देते हैं. निम्फ की पेड़ पर उच्च संख्या पुष्पन अवस्था में होती है. यदि मंजरियों पर निम्फ के आक्रमण की प्रारंभिक अवस्था में रोकथाम न की जाए, तो पेड़ की मंजरियों को पूरी तरह खत्म कर देते हैं.
प्रबंधन * मईजून माह में पेड़ों के आसपास की गुड़ाई कर के अंडों को धूप में सूखने/मरने के लिए खोल देना चाहिए.
अक्तूबरनवंबर माह में बाग की जुताई करनी चाहिए, जिस से निम्फ की संख्या को कम किया जा सके. * निम्फ को पेड़ पर चढ़ने से बचाने के लिए पेड़ के तने पर 25 सैंटीमीटर चौड़ी और 400 गेज की पौलीथिन नवंबरदिसंबर माह में लपेटनी चाहिए, जिस के निचले सिरे पर 10 सैंटीमीटर तक ग्रीस लगा कर पट्टी व तने के बीच की जगह अच्छी तरह भर दें.
* अंडों के फूटने से पहले पेड़ के तने पर व तने के 1 मीटर चारों तरफ 2 प्रतिशत मिथाइल पैराथियान धूल का छिड़काव करना चाहिए. * पेड़ पर चढ़े हुए निम्फ को मारने के लिए ट्राइजोफास 0.2 मिलीलिटर या मेथोमिल 0.2 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करना चाहिए. मंजरियों का मिज कीट की उच्चतम संख्या : फरवरीअप्रैल माह.
अनुकूल वातावरण : मध्यम से उच्च तापक्रम के साथ वातावरण में नमी की कमी. कीट की पहचान और क्षति का प्रकार : मंजरियों का मिज कीट आम की फसल को भारत के कई भागों में मंजरियों और नए बने फलों को भारी हानि पहुंचाता है. आम की फसल को मिज कीट 3 अवस्थाओं में हानि पहुंचाता है. पहली अवस्था में जब मंजरियों की कलिकाएं बनती हैं, कीट इसी समय निकलने वाली मंजरियों में अंडे देता है. अंडों से इल्लियां निकल कर मंजरियों में सुरंगें बना देती हैं,
जिस से पुष्प मंजरियां पूरी तरह नष्ट हो जाती हैं. दूसरी अवस्था में नए बने फलों को कीट हानि पहुंचाता है. इस अवस्था में कीट की इल्ली नए फलों में छेद बना देती है, जिस से फल पीले पड़ कर पेड़ से गिर जाते हैं. तीसरी अवस्था में नई कोंपलों पर कीट आक्रमण करता है. कीट की तीनों हानिकारक अवस्थाओं में पुष्प मंजरियों को होने वाली हानि सब से घातक है.
प्रबंधन – बाग में कीट की संख्या कम करने के लिए जब जमीन में प्यूपा अवस्था में होता है, तब बाग की जुताई करनी चाहिए, जिस से प्यूपा धूप में खुल जाए और खुले हुए प्यूपा धूप के कारण मर जाएं. प्यूपा को मारने के लिए कारटाप हाईड्रोक्लोराइड 50 प्रतिशत एसपी की एक किलोग्राम मात्रा को प्रति हेक्टेयर की दर से भूमि में मिलाना चाहिए.
पुष्प मंजरियों के फूटने की अवस्था पर बाग में फिब्रोनिल की 0.2 मिलीलिटर मात्रा को प्रति लिटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करना चाहिए. फल मक्खी कीट की अधिकतम संख्या : जूनजुलाई माह. कीट की पहचान और क्षति का प्रकार : हमारे देश से आम के फल निर्यात उद्योग में फल मक्खी एक मुख्य बाधक के रूप में काम करती है. यह मक्खी पके फलों को मुख्य रूप से हानि पहुंचाती है. कीट की मादा पेड़ पर पके हुए फलों पर त्वचा को छेद कर फल के गूदे में झुंड में अंडे देती हैं. फल सामान्य दिखते हैं. अंडों से इल्लियां निकल कर गूदे को खाती हैं.
इस से फल कमजोर पड़ कर गिर जाता है. गिरे हुए फलों से इल्लियां बाहर निकल कर भूमि में प्यूपा बना देती हैं. कभीकभी कीट ग्रस्त फल से गाढ़ा स्राव भी निकलता देखा जा सकता है. प्रबंधन * कीटग्रसित भूमि पर पड़े फलों को एकत्र कर नष्ट कर देना चाहिए, जिस से कीट की संख्या आगे न बढ़े. * कीट के प्यूपा को मारने के लिए बाग की नवंबरदिसंबर माह में ब्यूवेरिया बेसियाना को 2.5 किलोग्राम मात्रा को 50 किलोग्राम गोबर की खाद में मिला कर जुताई करनी चाहिए.
* फलों के मौसम में (अप्रैल से अगस्त माह तक) पेड़ पर फल मक्खी के नियंत्रण के लिए भूमि से 3-5 फुट ऊंचाई पर लकड़ी के मिथाइल यूजेनाल मौन गंध ट्रैप (5×5×1) के बौक्स फंदे में लटकाने चाहिए, जो इथेनाल, मिथाइल यूजेनाल और इमिडाक्लोप्रिड के 6:4:1 के अनुपात से भीगे हों और इन बक्सों को मजबूती से बांधना चाहिए. यह बक्सा वयस्क मक्खियों को आकर्षित करता है और प्रजनन प्रक्रिया को भी कम करता है. प्रति हेक्टेयर के लिए 10 ट्रैप की आवश्यकता पड़ती है. * कीट की संख्या को कम करने के लिए पेड़ों पर ट्राइजोफास की 0.2 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी की दर से घोल बना कर छिड़काव करना चाहिए. * कीट की संख्या को और भी कम करने के लिए कीट की अंडा अवस्था में प्रोटीन हाईड्रोलाइसेट के साथ फिब्रोनिल का 0.2 प्रतिशत चारे के रूप में पेड़ पर छिड़काव करना चाहिए.
* तुड़ाई के उपरांत फलों को 48+1 डिगरी सैंटीग्रेड के गरम पानी में एक घंटे तक डुबाना चाहिए. ठ्ठ कीट की उच्चतम संख्या : जुलाई-अगस्त कीट की पहचान व क्षति का प्रकार : बीसवीं शताब्दी के अंत तक आम में शल्क कीट के द्वारा हानि को अधिक महत्त्व नहीं दिया जाता था. परंतु अब महसूस किया जाने लगा है कि शल्क कीट द्वारा आम के पेड़ को भारी क्षति पहुंचती है. कीट के निम्फ व वयस्क पेड़ की पत्तियों एवं मुलायम भागों का रस चूसते हैं जिस से पेड़ की आज कम हो जाती हैं. कीट पेड़ का रस चूसने के साथसाथ एक प्रकार का गाढ़ा श्राव भी छोड़ता है जिस पर कज्जली फफूंदी का आक्रमण हो जाने से पेड़ की पत्तियां एवं मुलायम भाग कवक के कारण काले हो जाते हैं.
कीट अधिकता की दशा में पेड़ों की वृद्धि रूक जाती हैं तथा पेड़ के फलन पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है. प्रबंधन * पेड़ के उन सभी भागों की जिन पर कीट का आक्रमण अत्यधिक है कटाईछंटाई कर नष्ट कर देना चाहिए. * कीट ग्रसित बागों में इमिडाक्लोरोप्रिड 01 मिली. या फिब्रोनिल 02 मिली. मात्रा प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर 15-15 दिनों के अंतर पर दो छिड़काव करें. शीर्ष स्तम्भ वेधक कीट की उच्चतम संख्या : जुलाई-सितंबर अनुकूल वातावरण : मध्यम तापक्रम के साथ वातावरण में मध्यम नमी. कीट की पहचान व क्षति का प्रकार : यह कीट देश के सभी भागों में पाया जाता है. कीट के पतंगे चमकीले भूरे रंग के होते हैं तथा पंख फैलाव के बाद इन की माप 17.5 मिमी. होती है. इन के पिछले पंख हल्के रंग के होते हैं. कीट की वयस्क मादा पेड़ की नयी पत्तियों की मध्य शिरा पर अंडे देती है.
अंडों से फुट कर नई इल्ली पत्ती की मध्यशिरा में छेद कर सुरंग बनाने के साथसाथ पुष्प मंजरी में भी सुरंग बना कर हानि पहुंचाता है कीट की पूर्ण विकसित इल्ली गहरे गुलाबी रंग की गंदे धब्बों वाली होती हैं. कीट पूरे वर्ष में चार जीवन चक्र पूरे करता है. प्रबंधन * कीट से ग्रसित तनों की क्लिपिंग कर के ग्रसित भाग को तुरंत नष्ट करना चाहिए. कीट की रोकथाम हेतु पेड़ पर नए पत्ते आते समय फिब्रोनिल या मेथोमिल की 02 मिली. मात्रा प्रति लीटर की दर से घोल तैयार कर 15-15 दिन के अंतराल पर 2-3 छिड़काव करना चाहिए. छाल खाने वाली इल्ली कीट की अधिकतम संख्या : अप्रैल-दिसम्बर कीट की पहचान व क्षति की प्रकृति : पेड़ की छाल खाने वाला यह कीट पूरे देश में आम के पेड़ के साथसाथ अन्य कई फल वृक्षों एवं जंगली पेड़ों की छाल हो हानि पहुंचाता है.
इस कीट का प्रकोप उन्हीं बागों में अधिक पाया जाता है जिन बागों का सही रख रखाव न होता हो या जिन बागों में सूर्य के प्रकाश का सही आदानप्रदान न होता हो. कीट की इल्लियां पेड़ की छाल को खा कर पेड़ में बनी सुरंगों में ही आराम करती हैं. कीट का पतंगा हल्के धूसर रंग का गहरे भूरे रंग के धब्बों वाला होता है. पंख फैली हुई अवस्था में इस कीट की माप 25-40 मिमि. की होती है. पूणत: विकसित इल्ली भद्दे भूरे रंग की 35-45 मिमी. की होती है तथा कीट एक वर्ष में एक ही जीवन चक्र पूरा करता है. प्रबंधन * कीट ग्रसित छेदों की सफाई कर छेदों में 0.02 प्रतिशत के फिब्रोनिल के इमल्सन को डालना चाहिए एवं छेदों को कीचड़ से ढ़क देना चाहिए. * यदि कीट का प्रकोप अधिक हो तो 0.02 प्रतिशत के मेथोमिल के घोल की डेऊचिंग करनी चाहिए. तना बेधक कीट की उच्चतम संख्या : जुलाई-अगस्त कीट की पहचान व क्षति का प्रकार : पूरे भारत वर्ष में विस्तृत रूप में पाया जाने वाला यह कीट आम के पेड़ों के अतिरिक्त अन्य कई फल वृक्षों को हानि पहुंचाता है.
कीट का भृंग एवं सूड़ी दोनों ही तने एवंज ड़ों पर सुरंग बना कर अपना भोजन प्राप्त करते हैं कीट सुरंगे ऊपर की ओर बनता है जिस कारण पेड़ की शाखाएं सूख जाती हैं. कभीकभी जब कीट का अत्यधिक आक्रमण होता है तो पूरा पौधा सूख जाता है. कीट का भृंग मजबूत शरीर वाला 35-50 मिमी. आकार का होता है तथा वयस्क भृंग का रंग घूसर भूरा तथा शरीर पर गहरे भूरे और काले रंग के धब्बे बने होते हैं. मादा भृंग पेड़ की दरारों में अंडे देती है जो तरल पदार्थ से ढके हुए होते हैं. पूर्ण विकसित सूंड़ी 90×20 मिमी. आकार की क्रीमी रंग की होती है जिस का सिर गहरे रंग को होता है. कीट की प्यूपा अवस्था तने में ही रहती है.
प्रबंधन – बाग में खाद पानी तथा साफसफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए. सूखी डालों को काट कर जला देना चाहिए. * कीट द्वारा बनाए गए छिद्रों को साफ कर छिद्रों में ट्राइजोफास 0.02 प्रतिशत के इमल्सन या मिट्टी के तेल या पेट्रोल में भीगी हुई रूई ठूंस कर छिद्रों को कीचड़ या गीली मिट्टी से बंद कर देना चाहिए. जाल बुनने वाला कीट कीट की उच्चतम संख्या : कीट का आक्रमण अप्रैल माह से दिसम्बर माह तक रहता है.
अनुकूल वातावरण : उच्च आर्द्रता के साथ उच्च तापक्रम कीट की पहचान एवं क्षति का प्रकार : ऐसे बागों में जिन में पेड़ घने लगे हो तथा सूर्य का प्रकाश कम पहुंचता है. उन बागों में यह कीट एक गंभीर समस्या पैदा करता है. वयस्क मादा एक या झुंड में जान से बुनी हुई पत्तियों में अंडे देती है. अंडे से निकल कर इल्ली सर्वप्रथम पत्तियों को खुरच कर खाती है तथा कुछ समय पश्चात में इल्लियां नई कलियों एवं पत्तियों को जाल में बुन कर एक साथ खाती हैं. यह देखा गया है कि एक जाल में 1-9 तक इल्लियां पाई जाती हैं. कीट की प्यूपा अवस्था बुने हुए जाल के अंदर ही कोकून में होती हैं कीट का पतंगा माध्यम आकार का होता है तथा पूर्ण विकसित इल्ली 2.5 से 3 सेमी.
आकार की भूरे रंग की होती है. इल्ली की पीठ पर सफेद रंग की आड़ी धारियां तथा भूरे रंग के धब्बे होते हैं. कीट की प्यूपा अवस्था 5-6 माह तक चलती है. प्रबंधन बाग में पूर्ण रूप से प्रकाश पहुंचे इस के लिए अतिरिक्त शाखाओं को काट देना चाहिए. * कीट द्वारा बनाए गए जालों को पत्तियों एवं टहनियों सहित काट कर जला देना चाहिए. बाग में मेथोमिल या ट्राइजोफास या इमेक्टिन बेन्जोएट के 0.02 प्रतिशत के घोल का जुलाई माह से प्रारंभ कर 15-15 दिन के अंतर पर तीन छिड़काव करना चाहिए. यह अवश्य ध्यान रखा जाए कि एक ही रसायन का प्रयोग बारबार न हो.
आम की गुठली का घुन कीट की उच्चतम संख्या : जून-जुलाई उपयुक्त जलवायु : उच्च आर्द्रता कीट की पहचान एवं क्षति का प्रकार : कीट का प्रकोप दक्षिण भारत में अधिक पाया जाता है. कीट के वयस्क हष्टपुष्ट गहरे धूसर रंग के तथा शरीर पर हल्के रंग के धब्बे होते हैं एवं इन का आकार 7-8 मिमी. होता है. मादा कंचों के आकार के फलों में छेद कर के श्वेत क्रीमी रंग के अंडे त्वचा के नीचे देती हैं. इल्ली अंडों से फूट कर फल का गूदा खाती हुई वयस्क कीट फल में छेद बना कर बाहर निकलता है कीट का पूरा जीवनचक्र 40-45 दिन में पूरा हो जाता है. कीट ग्रसित फलों पर मादा द्वारा अंडा देने के लिए जो छेद बनाया जाता है.
वह बाद में भर जाता है तथा फल की त्वचा पर केवल एक गहरे रंग का धब्बा रह जाता है. ग्रसित फलों का गूदा भद्दे रंग का तथा बीज की जमाव क्षमता का भी हृस हो जाता है. कीट एक वर्ष में एक ही जीवनचक्र पूरा कर पाता है. प्रबंधन भूमि पर गिरे हुए ग्रसित फलों को एकत्र कर नष्ट कर देना चाहिए? * शीतशयन में गए कीटों को भूमि की खुदाई कर नष्ट कर देना चाहिए. पेड़ के तने पर कीट द्वारा अंडे देने के समय 0.02 प्रतिशत मेथोमिल के घोल का छिड़काव करना चाहिए.
सूट गाल सिल्ला कीट की उच्चतम संख्या : अगस्त-सितम्बर उपयुक्त जलवायु : मध्यम तापक्रम के साथ रूकरूक कर वातावरण में उच्च आर्द्रता कीट की पहचान व क्षति का प्रकार : उत्तर भारत में कीट का सर्वाधिक प्रकोप उत्तराखंड में है क्योंकि कीट का आक्रमण उन्हीं क्षेत्रों में अधिक होता है जहां जलवायु नम हो. कीट के अंडे श्वेत रंग के निम्फ हल्के पीले रंग के तथा वयस्क कीट 3-4 मिमी. का गहरे भूरे रंग का होता है. कीट पूरे वर्ष में एक ही जीवनचक्र पूर्ण करता है. एक वयस्क मादा कीट मार्चअप्रैल माह में पत्तियों की निचली सतह पर 150 अंडे देती है जिस से छोटे निम्फ अगस्त, सितंबर में निकल कर पत्तियों के अक्ष पर कलिका का रस चूसते हैं. जिस से पत्तियों की अक्ष की कलिकाएं हरी शंक्वाकार गाल में परिवर्तित हो जाती है.
कलिकाओं के घाव सितंबरअक्तूबर माह में पूर्णत: स्पष्ट दिखाई देते हैं. कीट ग्रसित पेड़ की टहनियां, पुष्प एवं फल विहीन हो जाती है. कीट का आक्रमण पुराने पेड़ों पर ही अधिक पाया जाता है. प्रबंधन कीट ग्रसित टहनियों की कटाईछटाई कर नष्ट कर देनी चाहिए. कीट का प्रभावी तरीके से नियंत्रण के लिए पेड़ पर पहला ट्राइजोफास (0.02 प्रतिशत), इमेक्टिन बेंजोएट (0.02 प्रतिशत) दूसरा तथा फिब्रोनिल (0.02 प्रतिशत) का 10-15 दिन के अंतर पर 3 छिड़काव करना चाहिए. पहला छिड़काव जुलाई के अंत में करें. * लगातार एक ही रसायन के छिड़काव से बचना चाहिए.
फुदका कीट की उच्चतम संख्या : मार्च-अप्रैल कीट की पहचान एवं क्षति का प्रकार : कीट की ष्ट. ढ्ढठ्ठस्रद्बष्ह्वह्य तथा क्त्र. ष्टह्म्ह्वद्गठ्ठह्लड्डह्लह्वह्य पत्तियों से भोजन प्राप्त कर जीवनयापन करती हैं जबकि स्. स्रशह्म्ह्यड्डद्यद्बह्य पुष्प मंजरियों एवं नए फलों से भोजन प्राप्त करती हैं. थ्रिप्स की वयस्क मादा लगभग 1 मिमी. की शंक्वाकार, नई पत्तियों की निचली सतह पर लगभग 50 अंडे देती हैं. अंडों से निम्फ निकलता हैं. कीट लगभग 9 दिनों में दो निम्फ अवस्थाएं पूर्ण करता है तथा इस अवस्था में कीट पत्तियों एवं पुष्पों से भोजन प्राप्त करता हैं.
निम्फ अवस्था के बाद दो प्यूपा अवस्थाओं में पांच दिन बिता कर नया वयस्क कीट निकलता है. कीट के निम्फ तथा वयस्क उत्तकों को खुरचते हैं परिणामस्वरूप कोशिकाओं से निकले श्राव से अपना भोजन प्राप्त करता है. थ्रिप्स मलद्वार से गाढ़ा श्राव निकालते हैं जिस से फलों एवं पत्तियों पर सिलवरी परत तथा मल के धब्बे बन जाते हैं. फलों पर ये धब्बे फलों के बाजार भाव को कम कर देते हैं तथा पत्तियां सूर्य के प्रकाश के कारण झुलसी हुई दिखती हैं. यह कीट जब भोजन नहीं कर रहा होता है तो कीट पत्तियों की निचली सतह पर या कलिकाओं के अंदर आराम करता रहता है. प्रबंधन * कीट के अत्यधिक आक्रमण की दशा में पुष्पन अवस्था में पेड़ पर फिब्रोनिल या मेथोमिल की 02 मिली. मात्रा प्रति लीटर पानी की दर से घोल का छिड़काव करना चाहिए. आम का फल बेधन (कीट की उच्चतम संख्या : आम का फल बेधक कीट माह जनवरी से मई तक सक्त्रिय रहता है.
कीट की पहचान व क्षति का प्रकार : कीट की वयस्क मादा फल के ऊपरी भाग या फल के डंठल पर 1 मिमी. से छोटे आकार के सफेद अंडे देती है. इन अंडों का रंग कुछ समय बाद लाल हो जाता है. अंडे दो से तीन दिन के अंदर फूटते हैं जिन से छोटीछोटी इल्लियां निकल कर पहले फल की त्वचा को खाती हैं तथा बाद में फल की त्वचार पर छेद बना कर सुरंग बनाती हुई खाती हैं. त्वचा पर बना छेद इल्ली के मल से बंद हो जाता है.
ऐसे कीट ग्रस्त फल समय से पेड़ से गिर कर सड़ जाते हैं. कीट की इल्ली के शरीर पर क्रमवार सफेद व लाल रंग के बैंड होते हैं. प्रबंधन पेड़ों के नीचे गिरे हुए ग्रसित फलों व टहनियों को एकत्र कर नष्ट कर देना चाहिए. * यदि कीट का अत्यधिक आक्रमण हो तो फलों के कंचे के आकार की अवस्था पर इमिडाक्लोरोप्रिड का 0.1 प्रतिशत तथा 2 सप्ताह बाद इमेक्टिन बेंजोएट 02 मिली. प्रति ली. की दर से दो छिड़काव करने चाहिए. * फलों की तुड़ाई के 20 से 25 दिन पूर्व किसी भी प्रकार के छिड़काव से बचना चाहिए.