विभा की आवाज सुन कर मुकेश ने उस की तरफ पलट कर देखा. विभा ने मुकेश की दी हुई गुलाबी साड़ी पहन रखी थी. उस पर गुलाबी रंग खिलता भी खूब था. कोई और दिन होता तो
मुकेश की धमनियों में आग सी दौड़ने लगती, पर उस समय वह बिलकुल खामोश था. चिंता की गहरी लकीरें उस के माथे पर स्पष्ट उभर आई थीं. उस ने एक गुलाबी लिफाफा अपनी पत्नी के आगे रखते हुए कहा, ‘‘तुम्हारा पत्र आया है.’’
‘‘मेरा पत्र,’’ विभा ने आगे बढ़ कर वह पत्र अपने हाथ में उठाया और चहक कर बोली, ‘‘अरे, यह तो मोहन का पत्र है.’’
मुसकरा कर विभा वह पत्र खोल कर पढ़ने लगी. उस के चेहरे पर इंद्रधनुषी रंग थिरकने लगे थे.
मुकेश पत्नी पर एक दृष्टि फेंक कर सिगरेट सुलगाते हुए बोला, ‘‘यह मोहन कौन है?’’
‘‘मेरे पत्र मित्रों में सब से अधिक स्नेहशील और आकर्षक,’’ विभा पत्र पढ़तेपढ़ते ही बोली.
विभा पत्र पढ़ती रही और मुकेश चोर निगाहों से पत्नी को देखता रहा. पत्र पढ़ कर विभा ने दराज में डाल दिया और फिल्मी धुन गुनगुनाती हुई ड्रैसिंग टेबल के आईने में अपनी छवि निहारते हुए बाल संवारती रही.
मुकेश ने घड़ी में समय देखा और विभा से बोला, ‘‘आज खाना नहीं मिलेगा क्या?’’
‘‘खाना तो लगभग तैयार है,’’ कहते हुए विभा रसोई की तरफ चल दी. जब रसोई से बरतनों की उठापटक की आवाज आनी शुरू हो गई तो मुकेश ने दराज से वह पत्र निकाल कर पढ़ना शुरू कर दिया.
हिमाचल के चंबा जिले के किसी गांव से आया वह पत्र पर्वतीय संस्कृति की झांकी प्रस्तुत करता हुआ, विभा को सपरिवार वहां आ कर कुछ दिन रहने का निमंत्रण दे रहा था.
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