हम सब के फ्रैंड सर्कल में ऐसे फ्रैंड जरूर होते हैं जो हमेशा अपनी तारीफ करते रहते हैं जैसे ‘मेरा फोन सब से अच्छा है, इस में सैल्फी तुम सब के फोन से ज्यादा अच्छी आती है. मेरे पास भी एकदम ऐसी ही ड्रैस है, तुहारी थोड़ी सस्ती क्वालिटी की है लेकिन मैं ने तो काफी मंहगी खरीदी थी, ये तो कुछ भी नहीं है मैं बनाऊंगी तो उंगलियां चाटते रह जाओगे, तुम कह रहे हो इसलिए मैं कर रही हूं वरना तो मैं कभी नहीं करती.’ कोई उन की बात सुने चाहे न सुने लेकिन  वे अपनी बात जरूर कहते हैं. अवसर कोई सा भी हो, पर वे अपने किस्से सुनाना बंद नहीं करते. कई बार तो ऐसा भी होता है कि उन्हें आते देख सब इधरउधर चले जाते हैं कि कौन इस की बात सुन कर बोर हो.

क्या करते हैं ऐसे फ्रैंड

दरअसल हम ऐसे फ्रैंड को ‘मैं’ फ्रैंड कह सकते हैं. सामने वाले की चीज कितनी भी अच्छी क्यों न हो ये उस की तारीफ करने के बजाय अपनी ही तारीफ करते हैं. इन्हें लगता है कि इन के पास जो है वही अच्छा है, वे जो करते हैं, जो सोचते हैं वही सही है. उन का जो करने का मन करता है बाकि लोग भी वही करें. अगर उन के अनुसार नहीं किया जाता तो उस में अपना 100 प्रतिशत नहीं देते, बस कमी निकालते रहते हें. जब उन्हें कोई जरूरी बात बता भी रहा होता है तो सुनते नहीं हैं बीच में ही टोकते रहते हैं.

‘मैं’ फ्रैंड बनना नुकसानदायक

भले ही आप अपने फ्रैंड सर्कल में अपनी बात मनवा कर खुद को श्रेष्ठ महसूस करते होंगे लेकिन ‘मैं’ फ्रैंड बनने के नुकसान भी हैं. आप के फ्रैंड्स आप से बातें शेयर नहीं करते. उन्हें लगता है इस से शेयर कर के क्या फायदा. अगर मैं इस से कुछ कहुंगा तो भी ये सौल्यूशन देने के बजाय अपनी ही तारीफ करेगा. इसलिए वे दूरी बनाने लगते हैं. कुछ कहने के बजाय चुप रहते हैं. आप के साथ समय बिताना पसंद नहीं करते. पार्टी में बुलाने से पहले सोचते हैं कि बुलाऊं या नहीं, मस्ती तो होगी नहीं. बस बोलबोल के बोर करेगा.

अगर आप के सर्कल में भी कोई ‘मैं’ फ्रैंड है तो क्या करें

कटे नहीं फेस करें : अकसर ‘मैं’ फ्रैंड को जानने के बाद हम उस से कटने लगते हैं, उस से अलग रहने की कोशिश करने लगते हैं, सोचते हैं क्यों बोल कर अपना मूड खराब करें. इस से बात करना यानी सिरदर्दी. ऐसा करना गलत है ऐसा कर के आप अपने लिए एक सुरक्षित दायरा बनाने लगते हैं और आप को इस तरह की पर्सनलिटी के साथ एडजस्ट करने में प्रौब्लम होने लगती है इसलिए कटने के बजाय डील करना सीखें. अपने ‘मैं’ फ्रैंड के सामने अपनी बात रखिए. भले ही वे आप की बात को बारबार काटे लेकिन अपनी बात पूरी करें.

पहली ‘मैं’ में सहमति जताएं लेकिन दूसरी में नहीं : अगर आप कहीं बाहर घूमने गए हैं और आप के साथ ‘मैं’ फ्रैंड भी है तो मुह न बनाते रहें कि इसे क्यों साथ ले कर आए हो बल्कि धैर्य से काम लें. किसी बात पर रिएक्ट न करें. अगर वह कहे कि मुझे ये नहीं खाना, मैं यह नहीं खाता तो उस से कहें कि पिछली बार हम ने तुहारी पसंद की डिश खाई थी, इस बार तुम हमारी पसंद की डिश खाओ.

कभीकभी नजरअंदाज करना भी है सही रास्ता : कभीकभी आप अपने ‘मैं’ फ्रैंड की बातों को अनसुना भी करें. वह कुछ कहे तो ऐसे बिहेव करें जैसे कि आप ने कुछ सुना ही नहीं ताकि धीरेधीरे उसे समझ आए कि आप उस की बातों में रूचि नहीं दिखा रहे हैं और वह खुद को बदलने का प्रयास करे.

ग्रुप में न समझाएं : आप अपने ‘मैं’ फ्रैंड से परेशान हैं इस का मतलब यह नहीं है कि आप ग्रुप बना कर समझाएं या ग्रुप में सब के सामने कहें, बल्कि अकेले में मौका देख कर कहें क्योंकि किसी को भी यह अच्छा नहीं लगेगा कि सब के सामने कोई इस तरह से कहे. जरा सोचिए आप के साथ कोई ऐसा करेगा तो आप को कैसा लगेगा, इसलिए अकेले समझाएं.

खुद से पहल कर के बताएं : हम अपने फ्रैंड को उस की कमियों व खराब आदतों के बारे में नहीं बताते, क्योंकि हमें लगता है कि अगर हम बताएंगे तो उसे बुरा लगेगा और हमारी दोस्ती में दरार आ जाएगी. लेकिन इन बातों को सोचने के बजाए पहल कर के अपने फ्रैंड को बताएं ताकि वे इन आदतों को सुधार सके.

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