लेखक- दुर्गाशंकर मीना, मूलाराम और मुकुट बिहारी मीना, पिंटू लाल मीना, सहायक कृषि अधिकारी, सरमथुरा,

धौलपुर अनार भारत में उगाई जाने वाली एक महत्त्वपूर्ण फल फसल है. उपोष्ण जलवायु का फल वृक्ष होने के कारण अनार सूखे के प्रति सहनशील होने के साथसाथ कम लागत में अधिक आमदनी देता है. अनार के फल कार्बोहाइड्रेट, कैल्शियम, लौह तत्त्व और सल्फर के अच्छे स्रोत हैं. इस का प्रयोग खाने व रस के रूप में किया जाता है. दुनिया में अनार की खेती स्पेन, मोरक्को, मिस्र, ईरान, अफगानिस्तान और ब्लूचिस्तान जैसे भूमध्यसागरीय देशों में बड़े पैमाने पर की जा रही है. इस की खेती म्यांमार, चीन, अमेरिका और भारत के कुछ हिस्सों में की जाती है.

भारत दुनिया में अनार की खेती करने में प्रथम स्थान रखता है. भारत में प्रमुख अनार उत्पादक राज्य महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु और राजस्थान हैं. भारत में अनार उगाने वाले राज्यों में महाराष्ट्र अग्रणी राज्य?है. इस राज्य में अनार का कुल क्षेत्रफल 90,000 हेक्टेयर और उत्पादन 9.45 लाख मीट्रिक टन और उत्पादकता 10.5 मीट्रिक टन है. महाराष्ट्र राज्य भारत में अनार के कुल क्षेत्रफल का 78 फीसदी और देश में कुल उत्पादन में 84 फीसदी योगदान देता है. राजस्थान में अनार को जोधपुर, बाड़मेर बीकानेर, चुरू और झुंझुनूं में व्यावसायिक स्तर पर उगाया जाता है. अनार सब से पसंदीदा टेबल फलों में से एक है.

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ताजे फल का उपयोग टेबल के उद्देश्य के लिए किया जाता है और इस का उपयोग फल के रस, सिरप, स्क्वैश, जैली, रस केंद्रित कार्बोनेटेड कोल्ड ड्रिंक्स, अनारदाना की गोलियां, अम्ल आदि जैसे प्रसंस्कृत उत्पादों के तैयार के लिए भी किया जा सकता है. अनार फल पौष्टिक, खनिज, विटामिन और प्रोटीन से भरपूर होता है. कुष्ठ पीडि़त रोगियों के लिए इस का रस बहुत ही उपयोगी होता है. जलवायु अनार फल की सफलतापूर्वक खेती के लिए शुष्क और अर्धशुष्क मौसम जरूरी होता है. ऐसे क्षेत्र, जहां ठंडी सर्दियां और उच्च शुष्क गरमी होती है, उन क्षेत्रों में गुणवत्तायुक्त अनार के फलों का उत्पादन होता है. अनार का पौधा कुछ हद तक ठंड को सहन कर सकता है. इसे सूखासहिष्णु फल भी माना जा सकता?है, क्योंकि एक निश्चित सीमा तक सूखा और क्षारीयता व लवणता को सहन कर सकता?है, परंतु यह पाले के प्रति संवेदनशील होता है.

इस के फलों के विकास के लिए अधिकतम तापमान 35-38 डिगरी सैल्सियस जरूरी होता है. इस के फल के विकास व परिपक्वता के दौरान गरम व शुष्क जलवायुवीय दशाएं जरूरी होती हैं. मिट्टी जल निकास वाली गहरी, भारी दोमट भूमि इस की खेती के लिए उपयुक्त रहती है. मिट्टी की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए इसे कम उपजाऊ मिट्टी से ले कर उच्च उपजाऊ मिट्टी तक विभिन्न प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता?है. हालांकि, गहरी दोमट मिट्टी में यह बहुत अच्छी उपज देता है. यह कुछ हद तक मिट्टी में लवणता और क्षारीयता को सहन कर सकता है. अनार की खेती के लिए मृदा का पीएच मान 6.5 से 7.5 के बीच उपयुक्त रहता है. अनार के पौधे 6.0 डेसी साइमंस प्रति मीटर तक की लवणता और 6.78 फीसदी विनिमयशील सोडियम को सहन कर सकते हैं.

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इस के अच्छे उत्पादन के लिए मिट्टी उचित जल निकास वाली होनी चाहिए. यह फल मिट्टी की नमी के उतारचढ़ाव के प्रति संवेदनशील होता है, जिस के कारण फल फटने की एक गंभीर समस्या पैदा हो जाती है, जो इस फसल की एक प्रमुख समस्या है. भूमि की तैयारी भूमि में मोल्ड बोल्ड हल से 2-3 गहरी जुताई करें. इस के तुरंत बाद हैरो से जुताई करें, ताकि मिट्टी महीन हो जाए. इस के बाद समतलीकरण कर दें. प्रवर्धन विधि अनार के पौधे को व्यावसायिक रूप से कलम, गूटी और टिश्यू कल्चर के माध्यम से प्रसारित किया जा सकता है. कलम विधि यह आसान तरीका है, लेकिन इस की सफलता दर कम?है, इसलिए यह विधि किसानों के बीच लोकप्रिय नहीं है. कटिंग या कलम के लिए 9 से 12 इंच (25 से 30 सैंटीमीटर) लंबी एक साल पुरानी शाखा, जिस में 4-5 कलियां हों, का चयन कर लें. कलम लगाने के लिए सब से उपयुक्त समय फरवरी माह होता?है. गूटी या एयर लेयरिंग विधि नए पौधों को बढ़ाने के लिए किसानों द्वारा इस का सब से आम अभ्यास है. एयर लेयरिंग विधि में सब से पहले 2-3 साल पुराने स्वस्थ पौधों का चुनाव कर लें. एयर लेयरिंग विधि में बेहतर रूटिंग के लिए 2 से 3 साल पुराने स्वस्थ पौधों का चयन करें. इस के बाद पैंसिल आकार की शाखा का चुनाव करें.

इस के बाद चुनी गई शाखा में से 2.5-3.0 सैंटीमीटर छाल को उतार लें. इस के बाद जड़ फुटान हार्मोन से 1.5-2.5 ग्राम की दर से उपचारित कर के नम मास घास या फिर कोकोपिट से छिली हुई शाखा को लपेट दें. इस के बाद 300 गेज की पौलीथिन शीट से घास या फिर कोकोपिट से लपेट दें. पौलीथिन सीट पारदर्शी होनी चाहिए, इस का फायदा यह है कि जड़ें आसानी से दिख जाती हैं. एयर लेयर या गूटी बांधने के बाद आईबीए और सेराडैक्स बी (1,500 से 2,500 पीपीएम) से उपचार करें. इस प्रकार अच्छी रूटिंग 25-30 दिन में पूरी हो जाती है. एकल पौधे से लगभग 150 से 200 गूटी पौधे हासिल किए जा सकते हैं. बारिश का मौसम गूटी के लिए सब से सही है. जड़ों के लिए लगभग 30 दिन का समय लगता है. 45 दिनों के बाद गूटी किए गए पौधों को मातृ पौधे से अलग कर देना चाहिए. जब गूटी किए गए भाग की जड़ें पूरे रंग की होने लग जाएं, तब गूटी किए भाग से तुरंत नीचे के भाग से कट लगा कर मातृ पौधे से अलग कर लेना चाहिए. इस के बाद इन्हें पौलीबैग में उगाया जाता है और शैड नैट या ग्रीनहाउस के तहत 90 दिनों तक सख्त करने के लिए रख दिया जाता है.

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ऊतक संवर्धन विधि : ऊतक संवर्धन पौधों के गुणन की एक अग्रिम और तीव्र तकनीक है. इस तकनीक का उपयोग कर के थोड़े समय के भीतर रोगमुक्त और पर्याप्त रोपण सामग्री हासिल की जा सकती है. इस विधि में अनार के पौधे को विश्वसनीय स्रोत से खरीदना चाहिए. उन्नत किस्में अनार की उन्नत किस्मों में नरम बीज वाली किस्में : गणेश, जालौर सीडलेस, मृदुला, जोधपुर रैड, जी-137 के साथसाथ वर्तमान में गहरे लाल बीजावरण वाली भागवा (सिंदूरी) किस्म पूरे भारत में उगाई जा रही हैं. गणेश किस्म के फल गुलाबी पीले रंग से लालपीले रंग के होते हैं. इस किस्म में नरम बीज होते हैं. एनआरसी हाईब्रिड-6 और एनआरसी हाईब्रिड-14 दोनों ही अनार की किस्में वर्तमान में प्रचलित किस्म भागवा से उपज व गुणवत्ता में बेहतरीन हैं.

एनआरसी हाईब्रिड-6 : इस किस्म में फल के छिलके और एरिल का रंग लाल, नरम बीज, फल का स्वाद मीठा, न्यूनतम अम्लता (0.44 फीसदी) और अधिक उपज 22.52 किलोग्राम प्रति पौधा व प्रति हेक्टेयर उपज 15.18 टन तक होती है. एनआरसी हाईब्रिड-14 : इस किस्म में फल के छिलके का रंग गुलाबी व एरिल का रंग लाल, नरम बीज, फल का स्वाद मीठा, न्यूनतम अम्लता (0.45 फीसदी) और अधिक उपज 22.62 किलोग्राम प्रति पौधा व प्रति हेक्टेयर उपज 16.76 टन तक होती है.

भागवा : अनार की भागवा किस्म उपज में बाकी अन्य किस्मों से उत्तम है. यह किस्म 180-190 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है. इस के फल आकार में बड़े, स्वाद में मीठे, बोल्ड, आकर्षक, चमकदार और केसरिया रंग के उच्च गुणवत्ता वाले होते हैं. फल के एरिल का रंग गहरा लाल और बोल्ड आर्टिल वाले आकर्षक बीज होते हैं, जो टेबल और प्रोसैसिंग दोनों उद्देश्यों के लिए उपयुक्त होते हैं. यह किस्म दूर के बाजारों के लिए भी सही है. यह किस्म अनार की अन्य किस्मों की तुलना में फलों के धब्बों और थ्रिप्स के प्रति कम संवेदनशील पाई गई. इन सभी विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए, महाराष्ट्र के क्षेत्रों में बढ़ते अनार में इस की खेती के लिए ‘भागवा’ किस्म की सिफारिश की जाती है.

अन्य किस्में : रूबी, फुले अरकता, बेदाना, मस्कट, ज्योति, दारू, वंडर और जोधपुर लोकल. यह कुछ महत्त्वपूर्ण किस्में हैं, जिन को व्यावसायिक स्तर पर रोपण सामग्री के रूप में काम में लिया जाता है. गड्ढे की तैयारी व रोपण 90 दिन पुराने अनार के पौधे मुख्य खेत में रोपाई के लिए तैयार हो जाते हैं. पौधों को लगाने के लिए गड्ढे का उपयुक्त आकार 60 सैंटीमीटर लंबा, 60 सैंटीमीटर चौड़ा, 60 सैंटीमीटर गहरा रखा जाता है. अनार को लगाने के लिए सब से अधिक वर्गाकार विधि काम में ली जाती है. आमतौर पर रोपण दूरी मिट्टी के प्रकार और जलवायु के आधार पर निश्चित की जाती है. किसानों द्वारा सब से ज्यादा काम में ली जाने वाली सब से आदर्श रोपण दूरी पौधों के बीच 10 से 12 फुट (3.0 से 4.0 मीटर) और पंक्तियों के बीच 13-15 फुट (4.0 से 5.0 मीटर) है. गड्ढों की खुदाई के बाद इन्हें 10-15 दिन तक धूप में खुला छोड़ दिया जाता है, ताकि गड्ढों में हानिकारक कीडे़मकोडे़ व कवक आदि मर जाएं. मानसून के दौरान गड्ढों को गोबर की खाद या कंपोस्ट या वर्मी कंपोस्ट (10 किलोग्राम), सिंगल सुपर फास्फेट (500 ग्राम), नीम की खली (1 किलोग्राम) और क्विनालफास 50-100 ग्राम से भर दिया जाता है. अनार रोपण के लिए इष्टतम समय बारिश का मौसम (जुलाईअगस्त माह) होता है. इस समय पौधों की इष्टतम वृद्धि के लिए मिट्टी में पर्याप्त नमी उपलब्ध होती है. यद्यपि, अनार को कम उपजाऊ मिट्टी में भी उगाया जा सकता है, परंतु अच्छे उत्पादन व गुणवत्ता वाले फलों के लिए कार्बनिक और रासायनिक खाद का प्रयोग किया जाता है.

अंतरासस्यन : अनार का बगीचा लगाने के बाद 1 से 2 साल अफलन अवस्था में रहता है, इसलिए किसान को इस अवधि के दौरान कोई भी अतिरिक्त आय प्राप्त नहीं होती है. इस फसल प्रणाली में कम या धीरे उगने वाली सब्जियों, दालों या हरी खाद वाली फसलों को इंटरक्रौप के रूप में लेना फायदेमंद रहता है. शुष्क क्षेत्रों में, बारिश के मौसम में ही अंतरफसल संभव है, जबकि सिंचित क्षेत्रों में सर्दियों की सब्जियां भी अंतरासस्यन के रूप में ली जा सकती हैं. इस प्रकार किसान अंतरासस्यन को अपना कर बगीचे की अफलन अवस्था पर अतिरिक्त आय कमा सकते हैं. खाद व उर्वरक खाद व उर्वरक की संस्तुत खुराक के तौर पर 600-700 ग्राम नाइट्रोजन, 200-250 ग्राम फास्फोरस और 200-250 ग्राम पोटाश प्रति पौधे के हिसाब से प्रत्येक वर्ष देनी चाहिए. इस के पश्चात खाद की मात्रा को तालिका के अनुसार दें और 5 वर्ष के बाद खाद की मात्रा को स्थिर कर दें. (बाक्स देखें) देशी खाद, सुपर फास्फेट व पोटाश की पूरी मात्रा व यूरिया की आधी मात्रा फूल आने के करीब 6 हफ्ते पहले दें. यूरिया की शेष मात्रा फल बनने पर दें. अंबे बहार के लिए उर्वरक दिसंबर माह में देना चाहिए और मृगबहार के फलों के लिए उर्वरक मई माह में देना चाहिए.

सिंचाई अनार एक सूखा सहनशील फसल है, जो कुछ सीमा तक पानी की कमी में भी पनप सकती है. इस फसल में फल फटने की एक प्रमुख समस्या है, इसलिए इस से बचने के लिए नियमित सिंचाई आवश्यक होती है. सर्दियों के दौरान 10-12 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें, जबकि गरमियों के मौसम में 4-5 दिन के अंतराल में सिंचाई जरूर करें. सिंचाई के लिए ड्रिप पद्धति का प्रयोग करें. इस से 40 से 80 फीसदी तक पानी की बचत कर सकते हैं और पानी के साथ उर्वरक का भी प्रयोग कर सकते हैं, जिसे फर्टिगेशन के नाम से जाना जाता है. अगर पानी की सुविधा हो, तो अंबे बहार से उत्पादन लें, क्योंकि इस बहार के फल अधिक गुणवत्ता वाले होते हैं, वरना मृगबाहर से ही काम लें.

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