लडकियों का बाइक चलाना पुरूषात्मक सत्ता के खिलाफ माना जाता है. जिस दौर में लडकियां देश  की सीमा पर दुश्मनो  से लडने को तैयार हो, वहां ऐसी सोंच बेहतर नहीं मानी जा सकती है. लडकियों ने भी इस सोंच को दरकिनार करते हुये आगे बढने का फैसला किया है. बाइक चलाना लडकियों के लिये आजादी है.
‘मेरे लिये बाइक चलाना कोई अलग काम नहीं था. इसकी वजह यह थी कि मेरी मां भी अपने समय में बाइक चलाती थी. मेरे भाई ने मुझे बाइक चलाना सिखाया. जब मैं पहली बार बाइक लेकर अपने कालेज गई तो वहां मुझे देखने वाले ऐसे देख रहे थे जैसे मैं किसी दूसरे ग्रह से आई थी. यह बात मैने कालेज से वापस आकर अपनी मां को बताई. उन्होने मुझे बताया कि बाइक लडकियों के लिये आजादी है और मुझे इसमें हिचकना नहीं चाहिये. इसके बाद मैंने कभी यह नहीं सोचा कि मुझे देख कर कोई क्या सोंच रहा है. हम भले ही बाइक चलाते समय खुद को अलग ना समझे पर समाज बाइक चलाते देख अलग सोच रखने लगाता है.‘ प्रोफेशन से लाॅयर और पैशन से एक्ट्रेस गरिमा कपूर आगे कहती है ‘इसके बाद हमने अपना एक बाइक राइडिंग ग्रुप भी बनाया. इसमें लडके लडकियां सभी को षामिल किया गया है. जिससे समाज में एक नई सोंच को स्थापित किया जा सके.
बाइक राइडर ग्रुप चला रही प्रीति सारस्वत कहती है ‘बाइक चलाती लडकियां समाज में चर्चा का विषय रहती है. इसकी वजह है कि समाज इनको बाइक चलाते देखकर सहज नहीं हो पा रहा. हमें इससे कोई शिकायत  नहीं है. हम इसको एक अवसर के रूप में मान रहे है. समाज के सामने अपनी बात कहने के लिये विमेन बाइक रैली का आयोजन करते है. हम लडकियां समाज की चुनौती को स्वीकार कर कठिन से कठिन रास्तों पर बाइक चलाकर खुद को साबित कर रहे है. हम आजाद सोच की लडकियां है. यह बदलाव केवल शहरों में ही नहीं गांव, कस्बों और छोटे शहरों की लडकियों में भी नजर आने लगा है.’
गांव के उन इलाकों में भी जहां शिक्षा, जागरूकता और सम्पन्नता आई है वहां बदलाव तेजी से हो रहा है. कुछ इलाके ऐसे भी है जहां अब लडकियां अपने स्कूल जाने घर का काम करने बाजार जाने के लिये मोटरसाइकिल चलाने लगी है. गांव से ज्यादा दूर न सही पर 10 से 15 किलोमीटर दूर तक मोटरसाइकिल चलाने की इजाजत इन लडकियों को मिलने लगी है. लडकियों के लिये सरल बात यह है कि अब 100 सीसी की ऐसी बाइक आने लगी है जो वजन में हल्की है. इनको संभालना आसान होता है. अब बाइक भी किक के साथ सेल्फ स्टार्ट वाली भी आने लगी है.  यही कारण है कि कम बजट वाली बाइक ज्यादा बिक रही है. इसके साथ ही साथ जो लडकियां शौकिया बाइक चला रही वह मंहगे किस्म की बाइक भी चला रही है. इसमें रायल इनफील्ड की बाइक सबसे ज्यादा पंसद की जा रही है.
फैजाबाद जिले के करमा गांव की रहने वाली आकांक्षा सिंह कहती है ‘सवाल इजाजत का नहीं हमारी जरूरत का है. लडकियों को गांव से बहुत दूर मोटरसाइकिल से जाने की जरूरत होती है. ऐसे में बाइक हमारी जरूरत भी बनती जा रही है. आज लडकियां बाइक इसलिये सीख रही ताकि अपने घर में मौजूद बाइक का प्रयोग कर सके. शहरों में रहने वाले मांबाप अपनी लडकियों के लिये स्कूटी जैसी गाडियां खरीद कर देते है. गांव की लडकियों के लिये ऐसा नहीं हो रहा जिससे वह बाइक को ही अपना जरीया बना रही है. कुछ लडकियों को इनके घर वालों ने स्कूटी दिला रहे है. अब घर में बैठ कर लडकियां चूल्हा चैका ही नहीं करेगी वह बाहर निकल कर काम करेगी. इसमें बाइक हो या स्कूटी यह मुददा नहीं रह गया है.
मोटरसाइकिल सवार लडकियों को अभी शहरों में ही अचम्भा भरी नजरो से देखा जाता है. गांव की लडकियां शहरों से कई गुना पीछे चल रही है. घर परिवार ने भले ही लडकियों को साथ देना षुरूकर दिया है पर समाज के लोग अभी भी आलोचना करने से पीछे नहीं हट रहे है. अब लडकियां इस तरह की आलोचनाओं से डरने वाली नहीं है. वह इसमें एक जगह हासिल करना चाह रही है. लडकियों का बाइक चलाना घर परिवार की मुसीबत के समय काम भी देता है. बाइक राइडर फरयाल फातिमा कहती है ‘हमारे घर आई एक रिश्तेदार की तबीयत अचानक खराब हो गई. घर पर कोई चार पहिया गाडी नहीं थी. एंबूलेंस मिल नहीं रही थी ऐसे में हमने अपनी बाइक से ही मरीज को अस्पताल पहंुचाया. तो लोगो को लगा कि बाइक चलाने में कोई बुराई नहीं है.’
बाइक राइडर दीप्ति अग्रवाल कहती है ‘लडकियां गांव की हो या शहर की उनकी सोच और काम करने का तरीका बदल रहा है. बाइक चलाने के फैसले में शुरूआत के समय कुछ परेशानियां आ सकती है. विरोध भी होता है. हमें इनसे डर कर नहीं हार नहीं मान लेनी चाहिये. बाइक चलाने वाली लडकियों की संख्या अभी कम है. पर यह बढती जा रही है यह अब कम नहीं होगी. ऐसे ही लडकियां बिना डरे और रूढिवादी सोंच की परवाह किये आगे बढती जायेगी तो विरोध कम होता जायेगा. इससे लडकियों को सडक पर बिना डरे और बिना झिझक के मोटरसाइकिल चलाने में सहूलियत होगी. लडकियां मोटरसाइकिल कैसे चलाती है और सडक पर चल रहे लोगों की क्या प्रतिक्रिया होती है ? गरिमा कपूर बताती है ‘पहले के मुकाबले लोग कम अचम्भे से देखते है. पर अभी भी सडक पर बाइक चला रही लडकी को लोग घूरते जरूर है. पहले लडकियां इस बात पर सकपका जाती थी. अब वह इसकी परवाह नहीं करती. वह बेखौफ होकर बाइक चला रही है.बढ रहा है बाइक का कारोबार:लडकियों के भी प्रयोग से करने से बाइक का कारोबार बढता जा रहा है.  भारत में दुनिया में सबसे ज्यादा दोपहिया वाहनों की बिक्री होती है. देश में सबसे ज्यादा बिकने वाली बाइक ‘हीरो स्पलेंडर‘ है. दिसंबर 2019 में कुल 1,65,110 हीरो स्पलेंडर बाइक की बिक्री हुई.  70 किलोमीटर प्रति लीटर माइलेज का दावा करती है. इस वजह से यह सबसे ज्यादा बिकती है. दूसरे नम्बर पर ‘हीरो मोटोकॉर्प’ का है. जिसकी 1,27,932 बाइक बिकी. होंडा मोटरसाइकिल की बाइक ‘सीबी शाइन‘ तीसरे नंबर पर रही. कुल 67,011 बाइक की बिकी. चैथे नंबर पर हीरो मोटोकॉर्प का ‘हीरो ग्लैमर‘ है. कुल 63,150 बाइक की बिक्री हुई.

रॉयल एनफील्ड की रॉयल एनफील्ड क्लासिक 350 सबसे अधिक बिकने वाली बाइक में पांचवे नम्बर पर है. सबसे ज्यादा बिकने वाली बाइकों में यह सबसे महंगी बाइक है. इसकी कीमत 1.5 लाख रुपए से अधिक है. बजाज ऑटो की बाइक बजाज पल्सर छठे नम्बर पर है. हीरो मोटोकॉर्प की बाइक ‘हीरो पैशन’ सातवें नम्बर पर है. बजाज ऑटो की बाइक ‘बजाज प्लेटिना‘ आठवें स्थान पर है. टीवीएस मोटर कंपनी की बाइक ‘टीवीएस अपाचे आरटीआर 160’ नौवें स्थान पर है. होंडा मोटरसाइकिल एंड स्कूटर इंडिया की ‘ड्रीम‘ सीरीज के बाइक्स दसवें स्थान पर है. कोविड में तालाबंदी के दौरान वाहनों की बिक्री घटी है. इसके बाद भी लोगों की पसंद पुराने जैसी ही है.
रायल इनफील्ड शोरूम की डिस्ट्रीब्यूटर टीना नरूला कहती है ‘रायल इनफील्ड की बाइक का क्रेज बढा है. मंहगी बाइक में यह पहले नम्बर पर है. अब बाइक का शोक रखने वाले लोग यह बाइक खरीद रहे है. 1 लाख 50 हजार से लेकर 3 लाख तक के बजट वाली बाइक लोग ले रहे है. इनफील्ड ने तमाम तरह के प्रयोग किये है. कई रंग तो ऐसे पसंद किये जा रहे है कि उनकी सप्लाई दो-दो माह तक नहीं हो पा रही है.’
उत्तर प्रदेश की राजधानी से 40 किलोमीटर दूर रायबरेली रोड पर बसा निगोंहा कस्बा लखनऊ जिलें की आखिरी बाजार है. शुभम आटो सेल्स के मालिक अजय सिंह बताते है ‘टीवीएस की स्पोर्ट बाइक आज के युवाओं को सबसे अधिक पसंद आती है. इसकी सबसे बडी वजह यह है कि यह 55 हजार के करीब कीमत की है. 15 हजार पहली बार देने पर 25 सौ रूपये की माहवारी किश्त बन जाती है. बैंक आसानी से लोन देने को तैयार हो जाते है. टीवीएस की बाइक की खासबात यह भी है कि यह इसका मेटिनेंस सरल और किफायती है.’
अजय सिंह कहते है ‘टीवीएस की बाइक की ही तरह लडकियो को स्कूटी सबसे अधिक पसंद आती है. अब हर गांव में इस तरह की लडकियो की संख्या बढती जा रही है जो स्कूटी चलाती है. पहले के समय में गांव में लडकियों को लडकों की बाइक चलाकर अपने शौक पूरे करने होते थे अब लडकियां अपने लिये खुद की स्कूटी चाहती है. खासकर कक्षा 12 के बाद पढाई करने जाने वाली लडकियां स्कूटी से ही कालेज जाना पंसद करती है ऐसे में घर से 15 से 20 किलोमीटर दूर के कालेज में भी उनकी पढाई जारी रह पाती है. मजबूत और किफायती होने के कारण स्कूटी भी अब खूब तेजी से बढ रही है. कालेज के बाद नौकरी पर जाने वाली औरते और लडकियां स्कूटी को सबसे ज्यादा पसंद करती है.
लखनऊ जिले से सीतापुर रोड पर 20 किलोमीटर दूर बक्शी का तालाब कस्बा पडता है.  ‘सिंह आटो सेल्स‘ के मालिक दिलीप सिंह चैहान कहते है ‘कस्बे में सबसे पहले हमने बाइक का शोरूम खोलो था. करीब 30 साल हो गये. सबसे पहली हीरो हांडा बाइक इस कस्बे से हमारे ही शो रूम से  बिकी थी. अब दोनो कंपनियांे के अलग हो जाने से हीरो की बाइक का शोरूम हमारे पास है. स्पेलेंडर प्लस बाइक सबसे अधिक लोगों को पसंद आ रही है.सस्ती है बाइक की सवारी: बाइक या मोटर साइकिल का सबसे अधिक चलन बढ रहा है. इसकी सबसे बडी वजह है कि बाइक सस्ती सवारी मानी जाती है. इसके सहारे दूध, सब्जी, डबलरोट बिस्कुट जैसे कारोबार भी चलते रहते है. लडको को काम या स्कूल कालेज जाना होता है तो जनरल मर्चेन्ट का कारोबार करने वालों के लिये बाइक अब सबसे मुफीद वाहन हो गया है. किसी भी दूसरे वाहन के मुकाबले इसमें ईधन की खपत सबसे कम होती है. ऐसे में बाइक का कारोबार सबसे अधिक बढ रहा है. मेले-ठेलो में जिन जगहों पर साइकिल सबसे अधिक दिखती थी वहां पर अब बाइक की बाइक दिखती है.

नई बाइक खरीदने के लिये बैंक से आसानी से लोन मिल जाता है. इससे नई बाइक लेना सरल हो गया. यह माइलेज अच्छा देती है और मनचाही डिजाइन की बाइक मिल जाती है. अब बहुत कम बाइक नकद खरीदी जाती है. ज्यादातर बाइक बैंक से द्वारा लोन पर ली जाती है. बैको ने नियम कानून काफी कम कर दिये है. 10 से 15 हजार के नकद भुगतान पर नई गाडी की सवारी करने को मिल जाती है. किश्तो पर बाइक खरीदना सब्जी खरीदने जैसा सरल हो गया है. जो लोग वेतन पाते है उनको केवल अपनी चेकबुक से पोस्ट डेटेड चेक देनी होती है. इसके साथ आधार कार्ड और डाउन पेमेंट के लिये तय रकम होनी चाहिये. यह नार्मली 10 से 20 हजार ही होती है. कई बाइक कंपनियो तो किश्तों पर ब्याज भी नहीं लेती है. गारंटी में जमीन और जायदाद के कागज रखे जाते है. कार और दूसरे वाहनो का ब्याज भले ही लोग चुकता ना कर पाते हो पर बाइक पर ब्याज कम होने के कारण बाइक का इसको सभी चुकता कर लेते है.
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