लेखक-डा. नागेंद्र कुमार त्रिपाठी व डा. संजय सिंह
अगर आप का पशु बीमार पड़ जाए, तो आप लोग परेशान हो जाते हैं और पशु डाक्टर से संपर्क करने लगते हैं. कुछ झोलाछाप आप को इलाज के नाम पर उलटीसीधी दवा दे कर पैसे का नुकसान तो पहुंचाते ही हैं, बल्कि पशु की जिंदगी से खिलवाड़ भी करते हैं. इन सब बातों को ध्यान में रख कर आप लोगों के लिए पशुओं के प्राथमिक उपचार पर जानकारी दी जा रही है, जिस का आप लोग जरूर ही फायदा उठाएंगे.
प्राथमिक चिकित्सा आकस्मिक दुर्घटना या बीमारी के चलते पशु चिकित्सक के आने तक कम से कम आप इतना इंतजाम करें कि चोटग्रस्त पशु को सही इलाज कराने की हालत में लाने में लगने वाले समय में कम से कम नुकसान हो, इसलिए प्राथमिक चिकित्सा प्रशिक्षित या अप्रशिक्षित लोगों द्वारा कम से कम साधनों में किया गया सरल उपचार है. कभीकभी यह पशु की जिंदगी बचाने में भी मददगार साबित होता है. टिंचर आयोडीन इस दवा को घाव साफ करने के बाद लगाया जाता है.
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कीटाणुओं को खत्म कर घाव ठीक हो जाता है. जरूरत के मुताबिक गहरे घाव में दवा की पट्टी बना कर चिमटी से रख देते हैं, ऊपर से पट्टी बांधनी चाहिए. यह जीवाणुनाशक व उत्तेजक होने से खून का संचालन भी बढ़ाती है, जिस से घाव जल्दी ठीक हो जाता है. टिंचर बेंजोइन इस दवा को ताजा घाव से बहते हुए खून को बंद करने के लिए लगाया जाता है. यदि पशु का किसी वजह से सींग टूट जाए, तो सींग को साफ करने के बाद पट्टी बांधें और उस पर इस दवा को डाल कर भिगो दें. कुछ देर में पट्टी चिपक जाएगी व खून का रिसाव एकदम बंद हो जाएगा.
निमोनिया से बचाव अगर पशुपालकों के पशुओं को ठंड लग जाए या निमोनिया हो जाए, तो आधा बालटी गरम पानी में 1 से 2 चम्मच टिंचर बेंजोइन दवा डालें और इस की भाप पशु को सुंघाएं. यह प्रयोग सर्दियों के लिए बहुत ही फायदेमंद और कारगर होता है. बोरिक एसिड पाउडर यह गंधहीन, एंटीसैप्टिक, सफेद पाउडर होता है. इस पाउडर को सीधे घाव पर लगाया जाता है. बोरिक पाउडर व ग्लिसरीन को बराबर मात्रा में मिला कर पशु के होंठ, जीभ के छालों पर लगाने से आराम मिलता है. घाव थनों पर हो, तो 1:2 के अनुपात में बोरिक पाउडर और वैसलीन लगाएं.
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अगर पशु की आंख से पानी निकलता है, तो पानी में 1 फीसदी का घोल बना कर आंख धोएं, तुरंत ही फायदा होगा. मैग्नीशियम सल्फेट यह सफेद, गंधहीन, कड़वा, रवा के रूप में होता है. कब्ज होने पर छोटे पशु को 20 ग्राम, बडे़ पशु को 50 ग्राम पानी में घोल कर व हिमालयन बत्तीसा 100 ग्राम मिला कर नाल द्वारा आराम से पिलाएं. जरूरत के मुताबिक 8-10 घंटे बाद दोबारा एक खुराक और दी जा सकती है. बुखार में 200-300 ग्राम कल्मी सोडा मिला कर देना चाहिए. अगर पशु को चोट लग गई है और घाव सड़ गया है, तो सड़े घाव में दवा के गाड़े घोल में कपड़ा गीला कर रख दिया जाता है. 1-2 दिन में सड़ा भाग गल जाता है व घाव ठीक होने लगता है. पशु के अंग पर चोट, सूजन, मोच हो, तो 2 लिटर पानी में 100 ग्राम दवा डाल कर सेंक करें. जिंक औक्साइड यह स्वादहीन, गंधहीन और सफेद रंग का पाउडर होता है. इसे पशुओं की गीली खाजखुजली में लगाया जाता है.
साथ ही, जिंक औक्साइड को मलहम के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है. लाल दवा (पोटेशियम परमैंगनेट) यह दवा गंधहीन, काले रंग के बारीक दानों के रूप में होती है. इस के पानी में मिलने से पानी का रंग गुलाबी हो जाता है. यह घोल एंटीसैप्टिक का काम करता है. दवा का 1 फीसदी घोल घावों, थन, पूंछ आदि को धोने और साफ करने के लिए काम आता है. खुरपका और मुंहपका रोग में इस के घोल से पशुओं के खुर, मुंह साफ किए जाते हैं. सांप के काटने के ताजा घाव पर दवा का पाउडर लगाने से लाभ मिलता है. धूनी (फ्यूमिगेशन) देने के लिए फार्मेल्डिहाइड घोल के साथ मिला कर इस्तेमाल करते हैं.
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जीवाणुनाशक की यह उत्तम दवा है. तारपीन का तेल यह रंगहीन व तीखा होता है और अलग तरह की गंध होती है. यदि पशु के घाव में कीडे़ (मेगेट्स) पड़ जाएं, तो इस तेल को क्लोरोफार्म के साथ बराबर मात्रा में मिला कर लगाने से कीड़े मर जाते हैं और घाव पर मक्खियां भी नहीं बैठतीं. पशु को अफरा (पेट फूलना) में 30 मिलीलिटर तारपिन का तेल और 250 ग्राम मीठा तेल (अलसी, मूंगफली, तिली) मिला कर पिलाएं. जरूरत के मुताबिक एक खुराक और दें, पशु का अफरा खत्म हो जाएगा. आधी बालटी गरम पानी में 20 मिलीलिटर तारपिन का तेल डालें और निमोनिया/ठंड से पीडि़त पशु को भाप देने से फायदा मिलता है. कैरन तेल चूने का पानी और अलसी का तेल बराबर मात्रा में मिलाने पर कैरन तेल बन जाता है.
इस में थोड़ा सा कपूर मिलाएं. इस तेल को जले हुए भाग पर लगाने से बहुत ही जल्द आराम मिल जाता है. अरंडी का तेल यह एक हलके पीले रंग का वनस्पति तेल है. इस की कुछ बूंदें आंख में डालने से कचरा आसानी से निकल जाता है. यह परगेटिव और हलका एस्ट्रिनजैंट होता है. कब्ज होने पर छोटे पशु को 30 मिलीलिटर और बडे़ पशु को आधा से 1 लिटर अरंडी का तेल पिलाएं. पशु को तुरंत ही आराम मिलता है. एक्रीफ्लेविन यह एक नारंगी रंग पाउडर है. यह जीवाणुनाशक है. दवा का 1 भाग और 1000 भाग पानी मिला कर घोल तैयार किया जाता है. इस का उपयोग एंटीसैप्टिक के रूप में किया जाता है. गंधक का मलहम गंधक एक पीले रंग का ठोस पदार्थ होता है.
यह मलहम गंधक पाउडर और वैसलीन के 1:8 के अनुपात में मिला कर बनाया जाता है. पशु के खाजखुजली के अंग को साफ कर इस मलहम को लगाया जाता है. गंधक से गोल्डन लोशन तैयार किया जाता है. इस का प्रयोग दाद, खाज व खुजली में होता है. नीला थोथा यह कणदार, नीले रंग का होता है. यह कृमिनाशक, परजीवीनाशक और कास्टिक के रूप में उपयोग होता है. इस का प्रयोग पशु को हीट में लाने के लिए भी होता है. गैमेक्सीन यह एक सफेद पाउडर होता है.
इस का प्रयोग कीटनाशक या परजीवीनाशक के रूप में किया जाता है. पशु के शरीर पर जूं, चीचड़, किलनी पड़ने पर कंडे की राख में बराबर मात्रा में मिला कर लगाने से जूं, किलनी वगैरह मर जाते हैं. दवा लगाने के पहले पशु के मुंह पर मास्क जरूर लगा देना चाहिए. अधिक जानकारी के लिए वरिष्ठ वैज्ञानिकों और अध्यक्ष, कृषि विज्ञान केंद्र, लखीमपुर खीरी अथवा केंद्र के वैज्ञानिकों के संपर्क में रहें और समयसमय पर सरकार द्वारा दिए गए दिशानिर्देशों का पालन भी करें.