लगातार सफलता की ओर अग्रसर श्रद्धा कपूर ने जब से अभिनय के साथ साथ गायन को भी महत्व देना शुरू किया है, तब से उनके करियर में काफी गड़बड़ी शुरू हो गयी है.

श्रद्धा पिछली फिल्म ‘रॉक ऑन 2’ बॉक्स आफिस पर बुरी तरह से मात खा गयी. मगर उन्हें इस बात की परवाह नहीं है. उनका मानना है कि सफलता असफलता तो आती जाती रहती है. इन दिनों वह आदित्य रॉय कपूर के संग अपनी दूसरी फिल्म ‘ओके जानू’ को लेकर काफी उत्साहित हैं, जो कि मणिरत्नम निर्देशित तमिल की सफलतम फिल्म ‘ओ कंधाल कंमानी’ का रीमेक है.

अपनी पिछली फिल्म ‘रॉक ऑन 2’ की असफलता पर क्या कहना चाहेंगी?

सफलता-असफलता आती जाती रहती है. मेरे करियर की पहली दो फिल्में ही असफल थीं. असफलता से हम बहुत कुछ सीखते हैं.

पर आप भी कुछ तो विश्लेषण करती होंगी?

देखिए, जब मुझे ‘रॉक ऑन 2’ का ऑफर मिला, तो मैं बहुत खुश थी. मुझे कहानी बहुत रोचक लगी थी. फिल्म में मैं तीन गाने भी गा रही थी. बहुत अच्छी लोकेशन पर इसे फिल्माया जाना था. इसलिए मुझे कहीं से भी नहीं लगा कि मैंने गलत निर्णय लिया. मुझे कहानी व किरदार इतना पसंद आया था कि मैं बहुत खुश थी कि मैं ‘रॉक ऑन 2’ का हिस्सा बनने जा रही हूं. 

मुझे लगता है कि ‘रॉक ऑन 2’ में आपकी गायकी हावी हुई और अभिनय दब गया?

यह आपकी राय हो सकती है. लेकिन मैं खुद अपनी परफॉर्मेंस को लेकर कोई राय नहीं दे सकती. मैं तो परफॉर्म करने के बाद उस पर सही गलत सोचने का काम दर्शकों व पत्रकारों पर छोड़ देती हूं.

‘आशिकी 2’ के बाद अब आपने आदित्य रॉय कपूर के साथ दूसरी फिल्म ‘ओके जानू’ की है. आपने उनमें क्या बदला महसूस किया?

कोई बदलाव नहीं आया. वह सिनेमा के प्रति फोकस है. वह सिनेमा देखने के काफी शौकीन है.

तो क्या आप फिल्मों के शौकीन नहीं है?

मैं भी फिल्मों की शौकीन हूं पर मैंने बहुत कम फिल्में देखी हैं. मैं जितनी फिल्में देखना चाहती हूं, देख नहीं पाती हूं. काष! मैंने और अधिक फिल्में देखी होती. पिछले तीन वर्षो से फिल्में देखने का तो वक्त ही नहीं मिला. अभी पिछले दिनों मैंने ‘दंगल’ देखी. उम्मीद करती हूं कि इस वर्ष मुझे ज्यादा फिल्में देखने का मौका मिले.

फिल्म ‘ओके जानू’ क्या है?

यह मणिरत्नम निर्देशित तमिल फिल्म ‘ओ कंधाल कंमनी’ का हिंदी रीमेक है, जिसे निर्देशक शाद अली ने तमिल फिल्म के फ्लेवर को बेरकरार रखते हुए बनाया है. उन्होंने इसमें कोई खास बदलाव नहीं किए. यह एक रोमांटिक फिल्म है, मगर बहुत अलग किस्म की. इसमें दो लोग छोटे शहरों से बड़े सपने लेकर बड़े शहर आते हैं. यह एक दूसेर से मिलते हैं, एक दूदरे से प्यार करते हैं. मगर इनकी प्रधानता करियर है, इसलिए यह शादी नहीं करना चाहते. तो आज की युवा पीढ़ी की समस्या को इस फिल्म में चित्रित किया गया है.

फिल्म ‘ओके जानू’ करने की वजह क्या रही?

वास्तव में हर बार होता यह है कि निर्देशक आपको फिल्म की कहानी सुनाता है या आपको पटकथा पढ़ने को देता है. लेकिन शदा अली ने मुझसे कहा कि यह फिल्म देखकर बताओ कि इस फिल्म की लड़की का किरदार मैं निभाना चाहूंगी. क्योंकि अभी हमने पटकथा नहीं लिखी है. फिल्म देखकर मैं बहुत खुश हुई और मैंने हां कर दिया था.

आप अपने पापा के किस रीमेक फिल्म में अभिनय करना चाहेंगी?

डैड की किसी फिल्म का रीमेक न बने. वह महान कलाकार हैं. उनकी फिल्में इतनी अच्छी हैं कि उनका रीमेक नहीं होना चाहिए.

दूसरी कौन सी फिल्में कर रही हैं?

मेरी दो फिल्में आ रही हैं. एक फिल्म है ‘हाफ गर्ल फ्रेंड’, जो कि मशहूर उपन्यासकार चेतन भगत के इसी नाम के उपन्यास पर आधारित है. यह बिहार की पृष्ठभूमि की कहानी है. इसकी शूटिंग पूरी हो चुकी है. दूसरी फिल्म है ‘हसीना’, जो कि अंडरवर्ल्ड डॉन दाउद की बहन हसीना पारकर के जीवन पर एक काल्पनिक कथा है. इसकी शूटिंग शुरू करने वाली हूं.

फिल्म ‘हसीना’ के लिए तैयारी करते हुए अंडरवर्ल्ड को समझने या जानने का अवसर मिल रहा होगा. तो अब अंडरवर्ल्ड को लेकर आपकी क्या सोच है?

देखिए, हमारी फिल्म अंडरवर्ल्ड पर नहीं है. एक काल्पनिक कहानी है. पर अंडरवर्ल्ड के बारे में जो कहानी लोग सुनते रहते हैं, वही मैंने भी सुनी है. मेरी कोशिश है कि मैं जिस तरह से हसीना का किरदार निभाउं, वह लोगों को विष्वसनीय लगे.

फिल्म ‘हसीना’ के किरदार के लिए किस तरह की तैयारी कर रही हैं?

मैं एक बार हसीना के पारिवारीक सदस्यों से मुलाकात कर चुकी हूं. दोबारा फिर से मिलने वाली हूं. इसके लिए कुछ एक्टिंग वर्कशॉप भी करने वाली हूं. इस फिल्म में मेरा भाई ही हसीना के भाई दाउद का किरदार निभा रहे हैं.

कुछ दिन पहले एक तमिल फिल्म निर्देशक ने तमन्ना भाटिया का नाम लेकर हीरोइनों के पहनावे पर कमेंट किया है. क्या सही है?

मुझे इसकी जानकारी नहीं इसलिए कुछ नही कहूंगी.

बंगलुरू में एक लड़की के साथ जो हादसा हुआ उसके लिए अब्बू आजमी व फरहान आजमी ने लड़की के पहनावे को दोश ठहराया है? इस पर आपकी राय?

यह बहुत अचरज की बात है. मैंने वह वीडियो देखा है. जब लड़की के साथ छेड़खानी हो रही थी, तब तमाम पुरूष वहां खड़े होकर तमाशा देख रहे थे. कोई भी उसकी मदद के लिए आगे नहीं आया. पर कोई नेता हो अभिनेता हो या आम इंसान जो यह कह रहा है कि लड़की की पोशाक सही नहीं थी, छोटी थी या भड़काने वाली थी, वह गलत कह रहा है. इस तरह के विचार किसी पुरूष को नहीं रखने चाहिए. हर किसी को अपनी पसंद अपनी रूचि के अनुसार पोशाक पहनने का हक है. लोगों को यह देखना चाहिए कि हरकत करने वाला कौन है? लेकिन लोग छेड़खानी करने वाले पर कोई बात नहीं करते. सीधे लड़की के पहनावे को दोषी ठहरा देते हैं.

पर जिन लोगों ने मदद नहीं किया. उनकी संजीदगी खत्म हो गयी है या इंसानियत खत्म हो रही है, समाज में ?

मुझे नहीं पता कि ऐसा क्यों हो रहा है. पर मुझे सदमा लगा कि लोग चुपचाप खड़े देखते रह गए. मैंने खुद कईयों से सवाल किया कि लोग देखते रहे और लड़की परेशान होती रही.

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