पिछले साठ सालों में कुछ भी विकास न होने की बात कहकर भाजपा सरकार द्वारा अपने 6 सालों के कार्यकाल में जिस विकास का ढोल पीट रही है उसका संबंध आदमी की मूलभूत आवश्यकताओं विजली ,पानी सड़क रोटी कपड़ा और मकान से कतई नहीं है. दरअसल भाजपा सरकार की नजर में विकास का मतलब धार्मिक मंदिरों और राजनेताओं की उंची उंची मूर्तियों की स्थापना से है.

पिछले 6 सालों में सर्वसुविधा युक्त अस्पताल गुणवत्ता युक्त तकनीकी शिक्षा के लिये मेडिकल और इंजीनियरिंग कालेज आवागमन

के लिये पुल भले ही न बन पाये हो परन्तु धार्मिक आडंबरों की आड़ में मंदिर और मूर्तियों गढ़ने का काम बखूबी किया गया है.कोरोना काल में कोविड 19 की वैक्स्न बनाने की बजाय सरकार का लक्ष्य राम मंदिर बनाने पर ज्यादा रहा .यही बजह रही कि 5

अगस्त 2020 को जब देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अयोद्वा में राम मंदिर निर्माण की आधारशिला रखी तो जनता मोदी की वाह वाह करने लगी . दरअसल कोविड से खतरनाक धार्मिक कट्टरता का वायरस लोगों को अंधविश्वासी और धर्मांध बनाने में सफल रहा है .

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देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भव्य राम मंदिर निर्माण की ईंट रखकर सिद्ध कर दिया है कि भाजपा की सरकार नौजवानों को भले ही रोजगार न दे पाये ,परन्तु महापुरूषों की उंची उंची प्रतिमायें और बड़े बड़े मंदिर बनाकर ही

दम लेगी . देश के अनेक राज्यों में न तो बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने समुचित स्कूल ,कालेज है और न ही लोगों के स्वास्थ्य की देखभाल के लिये सुविधायुक्त अस्पताल है. गांव देहात में कालेज न होने से बारहवीं पास करके लड़कियां पढ़ाई छोड़ देती हैं. अस्पताल में किसी की मौत हो जाये तो आम आदमी को घर तक सायकिल पर या सिर पर शव ले जाना पड़ता हैं . सब के बावजूद शर्मनाक बात यह है कि सरकार महान लोगों की याद में स्मारक या स्टेचु बनाने के नाम पर अरबों रूपयों की भारी भरकम रकम खर्च कर रही हैं. वर्तमान हालात को देखते हुये लगता है कि न्याय के मंदिरों को ठेंगा बताने वाली सरकारों को तो जैसे जनता के हितों से कोई सरोकार ही नही है

2019 के गणतंत्र दिवस के एक दिन पहिले मद्रास हाईकोर्ट के जस्टिस एम सत्यनारायण और जस्टिस पी राजमनिकम की टिप्पणी सरकारों की स्मारक बनाने वाली नीतियों पर प्रश्न चिन्ह लगाती हैं .तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता के स्मारक के निर्माण की सुनवाई करते समय हाईकोर्ट ने दोनों जजों ने सरकार से कहा कि भविष्य में यैसी नीति बनायें कि महान लोगों के नाम पर प्रतिमा या स्मारक की जगह स्कूल ,कालेज ,अस्पतालों का निर्माण किया जाये .

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केंद्र में सत्तारूढ़ मोदी सरकार भी मूर्ति और स्मारकों के ढकोसलों में किसी से कम नहीं है . गुजरात में सरदार वल्लभ भाई पटेल की याद में तीन हजार करोड़ रूप्यों की लागत से 182 मीटर उंची स्टेचु आफ यूनिटी का निर्माण कर उन भूखे नंगों के हक को छीनने का कार्य किया है. मंदिर और मूर्तियों के नाम पर करोड़ों रूपयों की होली खेलने वाली सरकार देश से न तो गरीबी दूर कर पाई है और न ही युवाओं को रोजगार दे पाई है .

नागरिकता संशोधन कानून ,एनआरसी और एनपीआर जैसे धर्म और मजहब के मसलों में जनता को उलझाये रखने वाली सरकार आम आदमी को इलाज की सर्व सुलभ सुविधा तक मुहैया नहीं करा पाई हैं . आज भी देश के गांव और कस्बों में सरकारी अस्पताल नहीं हैंपरन्तु इन सबसे बेखबर जनता के नुमाइंदे स्मारक ,मूर्ति और मंदिर बनाकर धर्म की दुकानें खोल रहे हैं .

सरकार नोट बंदी से काला धन वापिस तो नहीं ला पाई ,परन्तु करोड़ो का कर्ज लेकर विजय माल्या और नीरव मोदी जैसे लोगों को भगाने में सहायक सिद्ध हुई . हिन्दुत्व के नाम पर कभी मंदिर के निर्माण की बकालत करती है तो कभी बोट बैंक की राजनीति के तहत कश्मीर में पत्थरबाजों को संरक्षण देकर वीर जवानों के होसलों को पस्त भी करती है . गौ माता के संरक्षण के नाम पर सरकारी संरक्षण में पल रहे कथित गौ सेवकों को माब लिंचिंग के लिय प्रोत्साहित कर नागरिकों में असुरक्षा व भय का वातावरण तैयार किया जाता है .

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कांग्रेस ने शुरू की थी मूर्तियों की राजनीति दरअसल अपने नेताओं की बड़ी बड़ी मूर्तियां लगाने का काम कांग्रेस सरकार के जमाने में ही शुरू हुआ था .दक्षिण भारत में नेताओं की मूर्तियों को लेकर गजब की प्रतिस्पर्धा रही. इस मामले में दक्षिण में नैतिकता

के सारे प्रतिमान ढह गए. कांग्रेस के प्रमुख और तमिलनाडू के लोकप्रिय नेता रहे कामराज ने अपने जीवित रहते हुए ही अपनी प्रतिमा मद्रास के सिटी कॉर्पोरेशन में स्थापित करवाई. और तत्कालीन प्रधानमंत्री जवारलाल नेहरू ने मद्रास आकर इसका अनावरण किया. इस पर नेहरू की तरफ से दलील यह दी गई कि वे अपने प्यारे दोस्त और साथी के सम्मान में यहां आए हैं. आश्चर्यजनक बात यह है कि नेहरू ने संसद मेंमहात्मा गांधी की प्रतिमा लगाने का विरोध किया था.

कांग्रेस की देन रही मूर्तियों की इस राजनीति में कांग्रेस की किरकिरी तब हुई जब नेहरू की मृत्यु के बाद देश भर में उनके स्मारक बनाए जाने के लिए नेहरू मैमोरियल ट्रस्ट का गठन किया गया. डॉ. करण सिंहको इसका सचिव बनाया गया. इस ट्रस्ट का उद्देश्य देश भर से धन एकत्रित करना था. दो साल के पूरे प्रयासों के बावजूद केवल एक करोड़ रूपए ही जमा हो सकेजबकि लक्ष्य 20 करोड़ रूपए का था.

दक्षिण की तरह महाराष्ट्र में शिवसेना ने शिवाजी पार्क में पार्टी के संस्थापक बाला साहब ठाकरे की प्रतिमा स्थापित कराने का प्रयास कियाजिसे सरकार ने खारिज कर दिया. इस पर खूब बवाल और राजनीति हुई.दक्षिण में मूर्ति राजनीति इस कदर हावी हो गई कि जब डीएमके सत्ता में आई तो अपने नेताओं की मूर्तियों की लाइन लगा दी. इससे भी आगे डीएमके ने मैरीन बीच को भी नहीं बख्शा. कांग्रेस ने जब सत्ता में वापसी की तो इसी प्रतिस्पर्धा में इस खूबसूरत पर्यटन स्थल पर कामराज की मूर्ति स्थापित कराई.

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भाजपा सरकार द्वारा पिछले 5 सालों में बनाये गये स्मारक जिस प्रकार देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भाषणों के माध्यम से लंबी चैड़ी बातें करने के लिये माहिर हैं ,उसी प्रकार उन्होने देश में उंची उंची मूर्तियां और स्मारक बनाने में भी महारत हासिल कर ली है .

2014 में सत्ता में आने के बाद भाजपा सरकार द्वारा देश के कई इलाकों में बनाये गये स्मारक और मूर्तियों पर भी एक नजर डालिये

1. मुंबई के दादार में स्थित शिवाजी पार्क में चैत्य भूमि के पास भीमराव अंबेडकर की 250 फिट उंची

स्टेचु आफ इक्वलिटी समानता की प्रतिमा का भूमि पूजन 11 अक्टूबर 2015

2. मुंबई में मरीन ड्राइव के निकट 3600 करोड़ की लागत से अरब सागर में शिवाजी स्मारक का

शिलान्यास 27 दिसम्बर 2016

3. कोयम्बटूर में स्टील के टुकड़े जोडकर बनायी गई 112 फिट उंची शिव प्रतिमा का अनावरण 24

फरवरी 2017

4. रामेश्वरम में पूर्व राष्ट्रपति ए पी जे अब्दुल कलाम की स्मृति में स्मारक 27 जुलाई 2017

5. नई दिल्ली के चाणक्यपुरी में पुलिस जवानों के बलिदान के सम्मान में 30 फिट उंचे और 238 टन वजन

के राष्टीय पुलिस स्मारक एनपीएम का उद्घाटन 21 अक्टूबर 2018

6. गुजरात में 3000 करोड़ की लागत से निर्मित सरदार बल्लभ भाई पटेल की 182 मीटर उंची प्रतिमा का लोकार्पण

31 अक्टूबर 2018

7. पूर्व प्रधानमंत्री अटल विहारी बाजपेई की स्मृति में ‘‘ सदैव अटल’’ स्मारक 25 दिसम्बर 2018

8. नई दिल्ली के इंडिया गेट के पास 40 एकड़ में 176 करोड़ की लागत से बना राष्टीय युद्ध स्मारक

25 फरवरी 2019

9. उत्तरप्रदेश की योगी सरकार द्वारा अयोद्धा में भगवान राम की 7 फिट उंची लकड़ी की प्रतिमा का

अनावरण 7 जून 2019

10. कंचनजंगा विमान हादसों में मारे गये वैज्ञानिक होमी जहांगीर भाभा और भारतीय यात्रियों की याद में

फ्रांस में स्मारक का उद्घाटन 23 अगस्त 2019

11. अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिये श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट बनाने का ऐलान 5 फरवरी

2020

12. वाराणसी में दीनदयाल उपाध्याय की 63 फिट उंची प्रतिमा का अनावरण 16 फरवरी 2020

मायावती भी कम नहीं

वैसे तो हर दलों की सरकारों द्वारा अपने शासनकाल में विजली ,पानी ,सड़क ,शिक्षा और स्वास्थ्य जैंसे बुनियादी कार्यो की बजाय स्मारक और मूर्तियां बनाने के काम को प्रमुखता दी गई है ,परन्तु दलितों के उत्थान की दुहाई देने वाली बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायाबती स्मारकों के निर्माण में सबसे अब्बल रही हैं . उत्तरप्रदेश में मुख्यमंत्री

रहते हुये उन्होने लखनऊ नोएडा और बादलपुर गाँव में बनाए गए स्मारकों के लिए लगभग 750 एकड़ बेशकीमती जमीन इस्तेमाल की और इन स्मारकों के निर्माण पर जनता के टैक्स के धन सेजुटाये गये लगभग छह हजार करोड रूपये खर्च कियेण् स्मारकों में इस्तेमाल हुई साढ़े सात सौ एकड़ जमीन का सरकारी तौर पर कोई मूल्य नही

बताया जा रहा है. इतना ही नहीं स्मारकों के रखरखाव के लिए लगभग छह हजार कर्मचारी रखे गए हैं ,जिनका सालाना वेतन ही 75 करोड़ रूपये है. इन स्मारकों में हर महीने औसतन 75 लाख यानि सालाना नौ करोड रूपये की बिजली जलायी जाती हैण्स्मारकों की सुरक्षा के लिए 850 कर्मचारी तैनात हैं. इनके वेतन पर भी हर महीने लाखों रूपये खर्च होते हैं.

लखनऊ विकास प्राधिकरण अधिकारियों द्वारा तैयार किये एक विवरण के अनुसार सबसे अधिक एक सौ अठत्तर एकड़ जमीन डा. अम्बेडकर स्मारक और उसके आस- पास बने परिवर्तन स्थल तथा पार्कों पर खर्च की गयी.मायावती ने मुख्यमंत्री के तौर पर अपने पहले कार्यकाल के दौरान वर्ष 1995 में यहाँ अम्बेडकर स्मारकअम्बेडकर

स्टेडियम गेस्ट हाउस और पुस्तकालय आदि बनवाया था.लेकिन 2007 में चौथी बार मुख्यमंत्री बनने के बाद मायावती ने इन इमारतों को डायनामाइट से तुडवाकरस्मारकों का पुनर्निर्माण और विस्तार किया जिस पर अकेले आवास विभाग से 2111 करोड रूपये खर्च हुए.शहर के पश्चिमी इलाके में वीआईपी रोड स्थित तीन जेलों को तोड़कर वहाँ की लगभग एक सौ पचासी एकड़ जमीन पर एक हजार पचहत्तर करोड रुपयों की लागत से कांशी राम ईको गार्डन तथा बगल में लगभग 46 एकड़ जमीन पर कांशी राम स्मारक स्थल का पुनर्निर्माण कराया गया.

जनता को लोक लुभावन वायदों से भरमाने वाली सरकारें यदि इन करोड़ो अरबों रूपयों सं मूर्तियां और स्मारक बनाने की बजाय देश में कारखाने और फैक्टियां खोलती तो शायद देश के बेरोजगार नौजवानों को रोजगार मिल पाता . आज देश की जनता को स्मारकों की नहीं अच्छे स्कूल कालेज और अस्पताल की आवश्यकता है . स्मारक और स्टेचु बनाकर पानी की तरह बहाये गये पैसों से यदि अन्नदाता किसानों के लिये नहर ,डेम बनाकर खेतों में सिंचाई के लिये पानी उपलब्ध कराया जाता तो देश के बदहाल किसान को आर्थिक तंगी से आत्महत्या करने विवश न होना पड़ता . गांव गांव अस्पतालों में डाक्टर ,दवायें और जांचों के लिये आधुनिक उपकरण और आक्सीजन सिलेंडर दिये जाते तो कोई बच्चा असमय काल के गाल में समाता . अच्छा होता कि हम विकास की सही परिभाषा गढ पाते . कोविड 19 के संक्रमण से बचने के लिये हम गांव कस्बों के सरकारी अस्पताल में एक वैंटिलेटर और कुछ जरूरी

दवाइयों का इंतजाम कर पाते तो जनता पर जबरन थोपे गये लौक डाउन की नौबत ही नहीं आती और न ही इस देश की अर्थव्यवस्था लड़खड़ाती .

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