अपनी कमियों का दोष किसी और पर निकालना इंसानी फितरत का सबसे बडा गुण होता है. यह समाज में व्यापक रूप से इतना प्रभावी हो चुका है कि बिना किसी तरह की शिक्षा के यह गुण लोगों में आ जाता है. कई बार बचपन से ही यह गुण इंसान में दिखने लगता है. इस गुण को रोकने का प्रयास भी खूब किया जाता है. मुहावरा है कि ‘दूसरों में दोष निकालने से पहले अपने गिरेबां में झाकना चाहिये‘. असल मामलें में यह काम कोई भी नहीं करता है. इंसान की यह मनोवृति संस्थाओं को भी अपने प्रभाव में रखने लगती है. जिस वजह से संस्थाओं में भी यह गुण देखने को मिलने लगता है. सबसे समझने वाली बात यह है कि हर कोई यह मानता है कि वह अपनी कमियों को देखता है. अपना आत्मावलोकन करता है. जबकि अपवाद छोड कर लोग अपनी कमियों का दोष किसी और पर निकालतें है.
अपने कर्म पर भरोसा नहीं:
लोगों को अपने कर्म पर भरोसा नहीं है. वह धर्म और भाग्य को दोषी मानते है. कहावत भी है कि ‘अजगर करे ना चाकरी पंक्षी करे ना काम दास मलूका कह गये सबकै दाता राम‘. जो भी लोगों को हासिल नहीं होता वह यह मान लेते है कि यह उनकी किस्मत में ही नहीं था. यह प्रवृत्ति ही ऐसी हो जाती है कि लोग अपनी कमियां किसी और के सिर मढने का काम करते है. यह धीरे धीरे स्वभाव का प्रमुख अंग बन जाता है. जिसकी वजह से हर छोटी बडी घटना के लिये दूसरे को दोष देते है. सामान्य रूप से अगर सडक पर चलते हुये कोई गलती हो जाये तो भी यही माना जाता है कि सामने वाले चालक के कारण यह हुआ है. कोई भी चालक यह नहीं मानता कि गलती उससे हुई है. केवल छोटी घटनाओं में ही नहीं बडी से बडी घटना में दोष दूसरे के उपर डालने का काम होता है.
अपनी गलतियां दूसरों के सिर:
मनोविज्ञानी डाक्टर मधु पाठक कहती है ‘अपनी गलती दूसरें के सिर थोपने की मनोवृति एक तरह से मानव स्वभाव का हिस्सा बन जाती है. जिसको पर्सनाल्टी का एक डिसआर्डर माना जाता है. ऐसे लोगों की बातों पर लोग भरोसा नहीं करते. समाज में उनकी बात की वैल्यू घट जाती है. उनको सामान्य बोलचाल में बहानेबाज कहा जाता है. इसको यह भी माना जाता है कि ऐसे लोगों की बातों में वजन नहीं होता है. जिससे उनको भरोसेमंद भी नहीं माना जाता. ऐसे लोग समाज में हाशिये पर चले जाते है. अब जरूरत ऐसे लोगों की बढ रही जो अपनी गलतियों को समझ कर स्वीकार सके. उनमें सुधार लाने का प्रयास करे.’
डाक्टर मधु पाठक कहती है ‘आज का दौर ऐसा है जहां ऐसे लोगों की मांग है जो नेतृत्व करने की क्षमता का प्रदर्शन कर सके. अपनी टीम को लेकर आगे चल सके. टीम का मतलब केवल औफिस ही नहीं जहां भी रह रहे होते है वहां के लोगों का भरोसा जीत कर सबको संतुष्ट कर आगे बढ सके. लोगों में नेतृत्व की क्षमता तभी विकास होता है जब वह अपनी गलतियों को स्वीकार कर सके. किसी भी गलती को तभी सही किया जा सकता है जब उसको स्वीकार करके सही तरह से उसको दूर करने का उपाय किया जाये. अपनी गलतियों को दूसरो के सिर मढने वाले लोगों में नेतृत्व करने की क्षमता नहीं होती है. वह किसी भी कार्य के लीडर नहीं हो सकते है.
गलतियों से सिखना जरूरी:
अपनी गलती दूसरों के सिर थोपने की प्रवृत्ति के वाले लोग अपनी गलती को समझना नहीं चाहते. जब तक वह अपनी गलती को समझते नहीं तब तक उसको दूर भी नहीं कर सकते. साइक्लोजिस्ट आकांक्षा जैन कहती है ‘गलतियां करना भी मानव स्वभाव को हिस्सा होता है. बडे बडे अविष्कार ऐसी ही गलतियों को करते उनको सुधारते हुये है. जब कोई नईनई ड्राइविंग सीखता है तो कई बार गिरता है. फिर संभलता है. इस तरह सही तरह से ड्राइविंग लेता है. अगर वह अपनी गलती ना माने और उसमें सुधार ना करे या अपनी गलती के लिये किसी और को जिम्मेदार मान ले तो वह सीख नहीं पायेगा. गलतियां करना मानव स्वभाव का हिस्सा है और उससे सिखना बेहद जरूरी होता है.’