भड़ास वह है जिसे निकालने पर इंसान खुद को संतुष्ट महसूस करता है. जब तक इंसान इसे बाहर नहीं निकालता, बेचैन रहता है. भड़ास कई तरह से निकलती है, कभी गुस्से में, कभी गालीगलौज से, कभी हंसीमजाक में भी.
मार्केट में किसी से टक्कर लगी, सब्जी की टोकरी गिर गई और सारी सब्जी सड़क पर बिखर गई. आप के मुंह से निकल ही गया, ‘‘अंधा है?’’ आप ने महसूस किया होगा कि इन शब्दों के निकलते ही आप के मन का गुबार कम हो गया.
कई बार मुट्ठियां भिंच जाती हैं, सांस तेज और मुंह से ‘दूर हट’, ‘भाड़ में जा’ जैसे शब्द निकलते ही चले जाते हैं. यदि आप भी ऐसा करते हैं तो, इन शब्दों को ले कर मन में अपराधबोध न लाएं. आप ने तो मन की भड़ास निकाल कर अपना तनाव कम किया है.
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अगर आप किसी बात को ले कर मन ही मन कुढ़ते व कुंठित रहते हैं और चाह कर भी कुछ नहीं कर पाते तो यह स्थिति आप के स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हो सकती है. इस संदर्भ में हुए कई शोधों व अध्ययनों से यह स्पष्ट हो चुका है कि मनमस्तिष्क में भरा रहने वाला यह गुबार अगर समय रहते बाहर नहीं आ पाता तो लंबे समय तक चलने वाली इस हालत का दुष्प्रभाव सेहत पर भी पड़ने लगता है और सिरदर्द, हाई ब्लडप्रैशर और न जाने कौनकौन सी बीमारियां सिर उठाने लगती हैं. ऐसे में जरूरी हो जाता है कि जहररूपी यह कुढ़न अंदर ही अंदर जमा न होती रहे, बल्कि धीरेधीरे बाहर आ जाए.
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