भड़ास वह है जिसे निकालने पर इंसान खुद को संतुष्ट महसूस करता है. जब तक इंसान इसे बाहर नहीं निकालता, बेचैन रहता है. भड़ास कई तरह से निकलती है, कभी गुस्से में, कभी गालीगलौज से, कभी हंसीमजाक में भी.

मार्केट में किसी से टक्कर लगी, सब्जी की टोकरी गिर गई और सारी सब्जी सड़क पर बिखर गई. आप के मुंह से निकल ही गया, ‘‘अंधा है?’’ आप ने महसूस किया होगा कि इन शब्दों के निकलते ही आप के मन का गुबार कम हो गया.

कई बार मुट्ठियां भिंच जाती हैं, सांस तेज और मुंह से ‘दूर हट’, ‘भाड़ में जा’ जैसे शब्द निकलते ही चले जाते हैं. यदि आप भी ऐसा करते हैं तो, इन शब्दों को ले कर मन में अपराधबोध न लाएं. आप ने तो मन की भड़ास निकाल कर अपना तनाव कम किया है.

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अगर आप किसी बात को ले कर मन ही मन कुढ़ते व कुंठित रहते हैं और चाह कर भी कुछ नहीं कर पाते तो यह स्थिति आप के स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हो सकती है. इस संदर्भ में हुए कई शोधों व अध्ययनों से यह स्पष्ट हो चुका है कि मनमस्तिष्क में भरा रहने वाला यह गुबार अगर समय रहते बाहर नहीं आ पाता तो लंबे समय तक चलने वाली इस हालत का दुष्प्रभाव सेहत पर भी पड़ने लगता है और सिरदर्द, हाई ब्लडप्रैशर और न जाने कौनकौन सी बीमारियां सिर उठाने लगती हैं. ऐसे में जरूरी हो जाता है कि जहररूपी यह कुढ़न अंदर ही अंदर जमा न होती रहे, बल्कि धीरेधीरे बाहर आ जाए.

घरदफ्तर के काम का बोझ, बौस या टीचर की फटकार या दोस्तों में तकरार हो, एक बार मन में चल रहे असमंजसों को बकबका कर हलके हो लें. रोजमर्रा की जिंदगी में भड़ास निकालना एक थेरैपी है. इस थेरैपी पर काम कर रहे इटली के जौन पौर्किन कहते हैं, ‘‘आप हर समय खुद को तराशते, सुधारते नहीं रह सकते. भड़ास निकालने में कुछ गलत नहीं है.’’

दरअसल, इन नाशुके्र, तीखे शब्दों की अपनी ऊर्जा है. कभी ऐसे शब्दों को निकाल कर तो देखिए, कैसी ठंडक पहुंचेगी. यह भी जरूरी नहीं है कि विरोधी या नापसंद व्यक्ति हमेशा सामने ही हो, क्योंकि ऐसा होने पर तो बात और भी ज्यादा बिगड़ सकती है. इसलिए, उस के पीछे अगर उस का कोई प्रतीक चिह्न या पुतला आदि हो, तो भी काम बन सकता है.

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एक जानकारी के अनुसार, जापान में तो बड़ीबड़ी कंपनियों व कार्यालयों में ऐसे विशेष कक्ष की व्यवस्था का चलन भी रहा है, जिस में एक पुतला होता है. जब भी किसी कर्मचारी को अपने किसी सहयोगी कर्मचारी, अधिकारी या किसी अन्य व्यक्ति की वजह से गुस्सा आता है या तनाव होता है तो वह उस पुतले को गालियां दे कर, मारपीट कर अपनी भड़ास निकाल लेता है.

कीले यूनिवर्सिटी में 2009 को हुए एक प्रयोग में स्टूडैंट्स को हाथ बर्फ से ठंडे पानी में डुबो कर रखने को कहा गया. उन में से जोजो प्रयोग के दौरान अपशब्द बोलते रहे वे ज्यादा देर तक अपने हाथ उस में डुबोए रख पाए.

दरअसल, सभ्य समाज में ऐसे शब्द बोलने की इजाजत नहीं है, पर दुनिया में ऐसा कोई समाज या देश नहीं, जहां लोग गालियां न देते हों. ऐसा माना गया है कि भले सारी दुनिया गाली दे, पर जापानी लोग गाली नहीं देते. जापानियों के बारे में चली आ रही इस धारणा को अपनी किताब ‘स्वेरिंग इज गुड फोर यू : द अमेजिंग साइंस एंड बैड लैंग्वेजेज’ में डाक्टर एम्मा बाइर्न झुठलाती हैं. उन के अनुसार, जापान में आम बातचीत के दौरान एक शब्द बोलते हैं ‘मैंको’. यह शब्द ऐसे बौडी पार्ट्स के लिए बोलते हैं जिन का नाम लेना सभ्यता के खिलाफ है. इस मामले में जापानी भी पीछे नहीं हैं.

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डाक्टर एम्मा ब्रिटिश रोबोट साइंटिस्ट हैं. एक रिसर्च पर न्यूरोसाइंस लैंड में काम करने के दौरान उन्होंने अनुभव किया कि गाली दे देने पर तनमन दोनों में तकलीफ कम होती है. वे कहती हैं कि सोसाइटी, परिवार या किसी संबंध में खुद को खारिज महसूस किए जाने पर जब कोई उलट कर गाली देता है, तो ठुकराए जाने के दर्द में कमी आती है. बुरे शब्द धारदार और नुकीले होते हैं. इन्हें बोल कर जंग जीतने का एहसास होता है.

देशविदेश की कई बड़ी कंपनियां अपने कर्मचारियों के बैठने और स्वतंत्ररूप से खुल कर बात करने के लिए खास प्रबंध रखती हैं. उद्देश्य यही रहता है कि उन के मन की खटासखीझ व गुस्सा बातों के जरिए बाहर आता रहे और वे तनावमुक्त हो कर काम कर सकें. तुच्छ समझे जाने वाले शब्द फूले गुब्बारे में पिन का काम करते हैं. किसी की अकड़ और ईगो को 2 मिनट में फुस्स कर सकते हैं. ये चेहरे पर चढ़े मुखौटों को उतार फेंकते हैं. एम्मा के अनुसार, ये शब्द ‘मस्टर्ड’ यानी सरसों की तरह है, जो स्वाद में खराब लेकिन सेहत के लिए फायदेमंद होता है.

एम्मा बाइर्न मानती हैं कि आपस में भाषा का खुलापन हो, बेबाक बातें बोली जाएं, तो वर्कप्लेस में लोगों के बीच अच्छी बौडिंग होती है. काम ज्यादा अच्छी तरह होता है. किसी को कोसते समय पुरुष अपनी निगाह में मजबूत, उग्र और पौरुष से भरपूर महसूस करते हैं.

अब बात तोड़फोड़ उपचार की. यह सुन कर ताजुब्ब हो रहा होगा. थोड़ीबहुत तोड़फोड़ करना आप को मानसिक सुखशांति प्रदान कर सकता है. असल में जीवन को आसान बनाने वाली कुछ चीजें ही हमारे तनाव का कारण बनती हैं. इसलिए उन या उन के जैसी दूसरी चीजों के साथ की गई तोड़फोड़ मनमस्तिष्क को सुकून देती है.

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कुछ समय पहले साइकोलौजिस्ट ‘बुलेटिन’ ने भी इस ‘डैमेज थेरैपी’ के बारे में बताया था. स्पेन के एक कबाड़खाने में तो लोगों को तोड़फोड़ करने की सेवा शुरू भी की जा चुकी है. 2 घंटे के ढाई हजार रुपए तनाव दूर भगाने की इस दवा से मरीजों को कितना लाभ होता है, इस बारे में ‘स्टोपस्ट्रैस’ नामक संगठन का दावा है कि उपचार के 2 घंटों की अवधि में आधे घंटे में ही आराम आने लगता है.

झुंझलाहट निकालने के फायदे

1. झुंझलाहट बाहर निकालें : पेन मैनेजमैंट में सहायक पति काम पर जाने के लिए तैयार हो रहे हैं. आप टिफिन पैक कर रही हैं. पति औफिस जाने की हबड़बड़ी मचा रहे हैं. वे आवाज पर आवाज दे रहे हैं. ऐसे में आप के पैर को ठोकर लग जाए, तो बहुत दर्द और गुस्सा आता है. अगर उस समय आप जिस चीज से टकराईं, उस पर झुंझला कर कोसते हुए कुछ खराब शब्द मुंह से निकालती हैं, तो इस से दर्द में राहत मिलती है.

2. इंगेज रखें : सिडनी यूनिवर्सिटी में लिंग्विसटिक्स की लैक्चरर मोनिका बेड़नार्क के अनुसार, कई टीवी शोज में गालियों की भरमार होती है. पर वे उतने ही पौपुलर होते हैं. ‘द वुल्फ औफ वौल स्ट्रीट’ फिल्म में हर 20 सैकंड में डायलौग के बीच एक ऐसा शब्द आ जाता था. यह फिल्म 5 बार औस्कर के लिए चुनी गई. दरअसल, अभद्र शब्द सुनते हुए दर्शकों की भड़ास निकलती है, वे सीटी बजाते हैं, तालियां पीटते हैं. यह सब उन को बांध कर रखता है.

3. आपस में बांधे : यह सच है कि सामान्य बातचीत में घटिया बातों के बम नहीं गिराए जाते. लेकिन बेडमार्क कहती हैं कि, बातों में थोड़ा छिछोरापन भी आ जाए, तो संबंध को मदद मिलती है. यानी, यह उन के बीच खुलेपन का संकेत है, मनोवैज्ञानिक रूप से ज्यादा अपनापन महसूस होता है. उन के साथ पक्की दोस्ती और आत्मीयता बनी रहती है.

4 कंट्रोल में रहता है सब : इंग्लिश साइकियाट्रिक नील बर्टन का मानना है कि जब आप किसी की ज्यादतियों पर पलट कर कोसते हुए जवाब देते हैं, तो महसूस होता है कि पलट कर आप ने भी वार किया. इस से आत्मविश्वास बढ़ता है कि आप स्थितियों को कंट्रोल में रख सकते हैं.

5 खुल कर हंसाए : जब आप दोस्तों के बीच हंसीमजाक में हलकीफुलकी बातचीत करते हैं, नौनवेज जोक सुनाते हैं, तो महफिल में सब खुल कर हंसते हैं. इस से मन खुश और सेहत अच्छी रहती है.

6 आसान अभिव्यक्ति : खराब भाषा बोलने या सुनने वाले का कोई नुकसान नहीं होता. एम्मा इसे उस की रचनात्मक, भावनात्मक अभिव्यक्ति कहती हैं. बाइर्न कहती हैं कि गाली देना हमारे पुरुषों का मारपीट के बगैर अपनी नाराजगी जाहिर करने का एक तरीका था. यह समय के साथ शुरू हुआ और इस में सहजता के साथ बदलाव आते गए, स्वरूप बदल गया. भड़ास निकालने या कोसने में कोई बुराई नहीं है.

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