दिल्ली की सर्दी में आन्दोलनकारी किसानों में से करीब 22 किसानों की मौत का रंचमात्र रंज भी प्रधानमंत्री के भाषण नहीं दिखा. इससे यह बात समझी जा सकती है कि केन्द्र सरकार किसानों का कितना सम्मान करती है. उसे यह लगता है कि 500 रूपये माह की किसान सम्मान निधि से किसानों को खुष किया जा सकता है तो उनसे बात करने का क्या लाभ ?

25 दिसम्बर को पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई के जन्म दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वर्चुअल रैली के जरीये देश भर के किसानों को सम्बोधित किया और 18 हजार करोड की प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि देश के किसानों के खातों में भेजी. जिसके तहत किसानों को 2 हजार रूपये मिले. प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के रूप में किसानों को 6 हजार रूपये सालाना दिये जा रहे है. वर्चुअल रैली के जरीये प्रधानमंत्री ने करीेब डेढ घंटा किसानों के बीच बिताएं. इसमें से 50 मिनट प्रधानमंत्री ने भाषण दिया और बाकी समय किसानों के साथ संवाद किया. किसानों ने प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के लाभ बताये.

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25 दिसम्बर को किसान आन्दोलन के 29 दिन यानि करीब एक माह पूरा हो रहा था. कृषि कानूनों का विरोध कर रहे आन्दोलनकारी किसानों को उम्मीद थी कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के भाषण में किसान आन्दोलन के विषय में कुछ ऐसी बातें होगी जिससे किसान आन्दोलन को सुलझाने की दिषा में कदम उठाये जा सकेगे. प्रधानमंत्री ने अपने पूरे भाषण में किसान आन्दोलन का जिक्र बहुत ही हल्के अंदाज में करते कहा कि यह इवेंट कि तरह से है. जहां लोग सेल्फी खिचवाने जा रहे है. इस आन्दोलन के बारें में प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि यह 20 फीसदी किसानों का आन्दोलन है. देष के 80 फीसदी किसान छोटे किसान है जिनको कृषि कानूनों से लाभ होगा.

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अपने पूरे भाषण में प्रधानमंत्री ने ना तो न्यूनतम समर्थन मूल्य में गांरटी दिये जाने की बात कही और ना ही मंडियों की बेहतरी के लिये कोई बात कहीं. जिससे लगता है कि कृषि कानूनों को लेकर उनका नजरिया साफ है कि यह कानून वापस नहीं होगे. जिस तरह से कृषि कानूनों की बात करते समय छोटे किसानों के होने वाले लाभ के बारें में बताया गया उससे यह लगा कि प्रधानमंत्री अब यह सोच रहे है कि जो काम 70 सालों में देष की सरकारों से नहीं हुआ वह काम निजी कारोबारी कर देगे. प्रधानमंत्री को पूंजीपतियों पर अधिक भरोसा है.

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प्रधानमंत्री के भाषण की सबसे अहम बात थी कि विपक्षी किसानों के नाम पर राजनीति ना करे. किसान आन्दोलन को तोडने और कमजोर करने के लिये जिस तरह से प्रधानमंत्री और उनकी सरकार ने काम किया है उससे यह साफ है कि सबसे बडी किसान राजनीति खुद भाजपा कर रही है. किसानों को कमजोर करने के लिये छोटे और बडे किसान के बीच में विभाजन रेखा प्रधानमंत्री के भाषण में ही खीेची गई. किसान आन्दोलन विपरीत मौसम में भी चल रहा है. करीब 22 से अधिक किसानों की मौत हो चुकी है. इसके बाद भी प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में एक बार भी किसानों के प्रति कोई संवेदना प्रगट नहीं की. देश के मुखिया के रूप में प्रधानमंत्री से किसानो को यह उम्मीद थी कि वह बीच का रास्ता दिखायेगे. प्रधानमंत्री के भाषण के बाद किसान आन्दोलन सुलझने की बजाये उलझ गया है.

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