राकेश सचान पूरे परिवार के साथ छुट्टियां मनाने के लिए औनलाइन टिकट बुक करा रहे थे कि ऐन मौके पर अपने वीजा कार्ड का पासवर्ड भूल गए. नतीजतन, सारी प्रक्रिया लगभग पूरी होने के बावजूद टिकटें बुक नहीं हो सकीं. हारकर उन्हें टिकटें बुक कराने के लिए रेलवे काउंटर पर जाना पड़ा लेकिन तब तक सीटें फुल हो चुकी थीं.

कुलवंत सिंह के साथ तो इस से भी बुरा तब हुआ जब वे अपना फेसबुक अकाउंट खोल रहे थे और अचानक पासवर्ड भूल गए. इस वजह से उन्हें एक जरूरी सूचना कई घंटों बाद मिल सकी जब उन्होंने आखिरकार अपने फेसबुक अकाउंट का पासवर्ड बदला.

आजकल की व्यस्त जीवनशैली में परेशान करने वाली ऐसी तकनीकी घटनाएं काफी आम हो गई हैं. एक साल पहले हुए एक सर्वेक्षण के मुताबिक मोबाइल, इंटरनैट, इंटरनैट बैंकिंग, एटीएम जैसी तमाम तकनीकी सुविधाओं का लाभ उठाने वाले हर 10 में से 3 लोग अपना पासवर्ड भूल जाने या उन के पासवर्ड सार्वजनिक या लीक हो जाने की समस्या से पीडि़त रहते हैं. एक पत्रिका ने अपने विश्वव्यापी सर्वेक्षण में पाया है कि तमाम तरह की तकनीकों का इस्तेमाल करने वाले लोगों में से 30 फीसदी लोग कभी न कभी अपना पासवर्ड भूल जाने की समस्या का सामना करते हैं.

तकनीकी बोझ

पासवर्ड आधुनिक जीवनशैली का एक तकनीकी बोझ है. दोढाई दशकों पहले लोग इस तरह के बोझों से मुक्त थे क्योंकि जिंदगी के सरोकार इतने मशीनी व तकनीक पर आधारित नहीं थे. लेकिन आज पासवर्ड जीवनशैली का अभिन्न हिस्सा बन गए हैं. इस कारण इन की कोई अनदेखी करने की नहीं सोच सकता खासकर ऐसे लोग जो प्लास्टिक मनी, मोबाइल बैंकिग, ईमेल, इंटरनैट जैसी सुविधाओं का हर समय इस्तेमाल करते हैं. आज सक्रिय जीवनशैली जीने वाला कोई व्यक्ति अमूमन 3 से 4 पासवर्ड हर समय ढोता है. लेकिन अगर जैनरेशन एक्स और वाई की बात करें तो यह तो औसतन 5 से 6 पासवर्ड से लैस रहती है. बड़े शहरों से ले कर छोटे और मझोले शहरों तक में रहने वाले लोग इस लत का शिकार हैं. हर गुजरते दिन के साथ लोग पासवर्ड्स के चक्रव्यूह में फंसने के लिए मजबूर होते जा रहे हैं. तमाम आधुनिक संचार साधनों मसलन ईमेल, इंटरनैट का तो बिना पासवर्ड इस्तेमाल संभव ही नहीं है. जिस तरह जिंदगी के सरोकारों में तकनीकी उपकरणों की भूमिका बढ़ती जा रही है, उसी रफ्तार से पासवर्ड्स का बोझ भी बढ़ता जा रहा है.

पासवर्ड और आप

पासवर्ड क्या है? वास्तव में पासवर्ड वह गुप्त तकनीकी चाबी है जिस की बदौलत आप साइबर दुनिया के अपने ठिकानों/खातों में प्रवेश कर सकते हैं. यह चाबी कोई और नहीं बनाता, आमतौर पर इसे आप खुद ही बनाते हैं. पासवर्ड कोईर् गुप्त शब्द या कैरेक्टर हो सकता है जो आप और आप की दुनिया के बीच उस विश्वसनीयता का सुबूत होता है जो यहां तक पहुंचने के लिए जरूरी होता है. इसी चाबी के जरिए आप साबित करते हैं कि आप वही हैं जिस का दावा कर रहे हैं और जब मशीनी तकनीक आप के उस दावे को सही पाती है तो आप की पूरी दुनिया आप के सामने खुली किताब की तरह आ धमकती है. कहने का मतलब यह है कि आप के बैंक में लाखों रुपए हों लेकिन इन रुपयों को आप एटीएम कार्ड के जरिए तब तक नहीं निकाल सकते जब तक मशीन द्वारा पूछे गए पासवर्ड को आप बता न सकें और उस पासवर्ड के जरिए मशीन आप की सत्यता को स्वीकार न कर ले.

पासवर्ड आज की जीवनशैली का एक ऐसा जरूरी माध्यम बन गया है जिस के बिना आप क्रैडिट और डैबिट कार्ड से शौपिंग नहीं कर सकते, रैस्टोरैंट में खाने के बाद बिल नहीं अदा कर सकते और सफर के लिए टिकट नहीं खरीद सकते. पासवर्ड हर जगह आप को, ‘आप’  साबित करता है.

आज की तारीख में पूरी दुनिया में अरबों की संख्या में पासवर्ड हैं. महानगरों में रहने वाला शायद ही कोई सक्रिय व्यक्ति हो जो अपने पास कई तरह के पासवर्ड न रखता हो. पासवर्ड सुरक्षा का तकनीकी उपाय है. यह आप को जहां एक तरफ सुविधाएं हासिल करने के लिए योग्य बनाता है वहीं दूसरी ओर आप की उस निजी दुनिया को उन लोगों से दूर रखता है जो इस का गलत इस्तेमाल कर सकते हैं. एक अनुमान के मुताबिक, इस समय हिंदुस्तान में ही अकेले 4 से 5 अरब पासवर्ड मौजूद हैं जिन का हर दिन 40 करोड़ से ज्यादा लोगों द्वारा इस्तेमाल किया जाता है. सब से ज्यादा पासवर्ड ईमेल सुविधाओं, बैंकिंग सुविधाओं और मोबाइल व एटीएम के लिए इस्तेमाल होता है. पासवर्ड के बिना आजकल आप अपनी ही वैयक्तिक दुनिया में मनचाहे ढंग से विचरण नहीं कर सकते.

कैसे आया पासवर्ड

वैसे, पासवर्ड कोई बिलकुल नई खोज नहीं है. पासवर्ड या वाचवर्ड वास्तव में बहुत पुरानी व्यवस्था है जिस का इस्तेमाल प्राचीनकाल में रोमन सेनाओं को व्यवस्थित रखने के लिए किया जाता था. रात में जब रोमन सेनाएं अपने किसी अभियान के लिए मार्च करती थीं तो वे एक विशेष कोडवर्ड या पासवर्ड के जरिए ही अपने रास्ते में आने  वाली बाधाओं को दूर करती थीं. इसी के जरिए सैनिक शिविर खाली करते थे. इसी तरह किसी विशेष पासवर्ड के जरिए ही शिवाजी की सेनाएं मुगलों पर टूट पड़ने का आपस में संदेश प्रेषित करती थीं. पासवर्ड के जरिए ही अतीत में सेनाएं अपनी सुरक्षा, रखवाली और दुश्मन को जांचनेपरखने का काम करती रही हैं.

लेकिन आधुनिक जमाने में पासवर्ड का यह समाजशास्त्र बदल गया है. आज पासवर्ड सेनाओं या महज तकनीकी दुनिया तक ही सीमित नहीं रह गया बल्कि यह रोजमर्रा की जिंदगी की सुविधाओं को हासिल करने का एक तकनीकी उपाय बन गया है. आज पासवर्ड वह व्यवस्था है जिस के जरिए आप अपनी दुनिया को बहुत मोबाइल बना सकते हैं. दुनिया के किसी भी कोने में रहते हुए अपने बैंक अकाउंट का इस्तेमाल कर सकते हैं, पैसे निकाल सकते हैं, जमा कर सकते हैं और यह जांच सकते हैं कि उस की वास्तविक स्थिति क्या है. पासवर्ड के जरिए ही आप एक तरफ जहां तकनीकी विकास का फायदा उठाते हैं, वहीं दूसरी तरफ इसी के जरिए ही आप इस जटिल दुनिया में अपनी सुरक्षा भी करते हैं.

अपराधियों की पहुंच

लोगों के निजी पासवर्ड तक घुसपैठ कर सकने वाले शातिर अपराधियों की संख्या दिनपरदिन बढ़ती जा रही है, जिस के चलते हर दिन पूरी दुनिया में औसतन 10 लाख पासवर्ड नए बनते हैं. शातिर अपराधी पारंपरिक ढंग से बनाए गए पासवर्डों को अपनी तेजतर्रार तकनीकी जानकारियों की बदौलत तोड़ डालते हैं और आप की दुनिया में घुस कर आप को आर्थिक व सामाजिक नुकसान पहुंचाते हैं. याद करिए डेढ़ दशक पहले का वह वाकेआ जब स्वीडन के एक किशोर लासे लुजान माइक्रोसौफ्ट के पासवर्ड को जान गया था और इस जानकारी के चलते उस ने कंप्यूटर जगत का पर्याय समझी जाने वाली इस कंपनी को कंपा दिया था. हालांकि लासे लुजान ने माइक्रोसौफ्ट को जरा भी नुकसान नहीं पहुंचाया था, न ही उस ने इसे किसी तरह के नुकसान पहुंचाने का इरादा ही जाहिर किया था. लेकिन अपनी इस हरकत के जरिए उस ने बिल गेट्स और पौल एलेन के माथे पर चिंताओं की लकीरें ला दी थीं.

सुरक्षा व्यवस्था का कोड

आज पासवर्ड बहुत नाजुक किस्म की हमेशा चितिंत करने वाली सुरक्षा व्यवस्था बन कर रह गईर् है. हिंदुस्तान में 10 करोड़ से ज्यादा लोग हर दिन इंटरनैट का इस्तेमाल करते हैं. 2 करोड़ से ज्यादा लोग सप्ताह में 1 से 3 दिन इंटरनैट के जरिए शौपिंग करते हैं. रैस्टोरैंट में खाना खाने और सफर के लिए टिकट खरीदने का काम भी चूंकि बड़े पैमाने पर प्लास्टिक मनी के जरिए संपन्न होता है, इसलिए हर पल करोड़ों लोगों की जिंदगी पासवर्ड के दायरे में रहती है.

देश में 8 करोड़ से ज्यादा लोग मोबाइल और इंटरनैट बैंकिंग का इस्तेमाल करते हैं तथा 40 करोड़ से ज्यादा लोग मोबाइल का इस्तेमाल करते हैं. ये तमाम गतिविधियां बिना पासवर्ड के संभव ही नहीं हैं. यही कारण है कि आज महानगरों में रहने वाली युवा पीढ़ी एकसाथ 5 से 7 पासवर्ड का बोझ ढो रही है.

सवाल है ऐसी स्थिति में क्या पासवर्ड्स का यह चक्रव्यूह उन्हें परेशान भी करता है? उत्तर है, हां. जिस तरह से पासवर्ड्स की संख्या एक कामकाजी आधुनिक, तकनीकीप्रिय युवा के पास बढ़ रही है, उसी तरह पासवर्ड उन के लिए एक सिरदर्द भी बनता जा रहा है. 5-5 पासवर्ड अपने पास रखना और अलगअलग जगहों पर अलगअलग पासवर्ड्स का सफलतापूर्वक सही उपयोग सुनिश्चित करना आसान नहीं है. यही कारण है कि तमाम संचार सुविधाओं के केयर सैंटर्स में हर दिन पासवर्ड खो जाने और नया पासवर्ड बनाने के लिए फोन कौल्स की लाइन लगी रहती है.

पासवर्ड की दुनिया जितनी तेजी से विभिन्न तरह की सुविधाएं हमारे पास लाती है, उतनी ही तेजी से हमें उस खतरे के नजदीक ले जाती है जिस के हम पलक झपकते शिकार हो सकते हैं.

पासवर्ड तक कोई पहुंच न बना सके, इस के लिए हर कोई होशियारी बरतता है और विभिन्न तरह की तकनीकी सुविधाएं देने वाली कंपनियां लगातार लोगों को सजग भी करती हैं. वे समयसमय पर पासवर्ड को जटिल और दुर्लभ बनाने की कवायद भी करती रहती हैं. लेकिन अपराध की दुनिया में एक जुमला हमेशा से इस्तेमाल होता रहा है ‘पुलिस डालडाल तो चोर पांतपांत’ यानी अपराधी, तकनीकी सुविधाओं को सुरक्षित बनाने वालों से हमेशा चार कदम आगे रहते हैं. इसलिए पासवर्ड्स के इस्तेमाल में चाहे जितनी सजगता बरती जाए, कभी न कभी कोई न कोई गलती हो ही जाती है. तकनीक का यह चक्रव्यूह सबकुछ के बावजूद जटिल है.

बहरहाल, पासवर्ड की दुनिया जितने जादुई अंदाज में हमारे सामने सुविधाओं का पिटारा खोलती है, उतनी ही खतरनाक मुश्किलें भी खड़ी कर देती है. लेकिन चाहे फायदे के साथ नुकसान कितने भी हों, कुछ चीजें ऐसी होती हैं जिन के बिना हम जीने की कल्पना भी नहीं कर सकते. ऐसी ही चीजें या सुविधाओं में पासवर्ड की सुविधा भी है. इसलिए भले यह समस्याओं का चक्रव्यूह हो, इस चक्रव्यूह से बचना कोई अक्लमंदी नहीं है बल्कि अभिमन्यु की तरह बेहतर यही है कि गर्भ में रहते हुए इसे भेदने की कला सीख लेनी चाहिए. लेकिन दूसरों के पासवर्ड भेदने की नहीं, बल्कि अपने पासवर्ड को सुरक्षित बनाए रखने की कला.         

कमजोर पासवर्ड, आसान शिकार

पासवर्ड कभी पूरी तरह से न्यूमेरिक यानी संख्या में होते हैं जैसे कि पर्सनल आइडैंटिफिकेशन नंबर या पिन नंबर जो आमतौर पर एटीएम और मोबाइल के लिए उपयोगी सैटिंग सुलभ कराते हैं तो कई बार ये संख्या और शब्दों के मेल से बनाए जाते हैं. कई बार ये संक्षिप्त होते हैं तो कई बार कुछ बड़े होते हैं. आमतौर पर लोग ऐसे अंकों, नामों या चीजों को पासवर्ड का रूप देना चाहते हैं जो उन के लिए याद करने में आसान हो और दूसरे के लिए जटिल. लेकिन दिक्कत यह होती है कि अकसर जो पासवर्ड उपयोगकर्ता के लिए आसान होता है, वही पासवर्ड हैकर के लिए भी आसान हो जाता है. नतीजतन, आसान पासवर्ड उपयोगकर्ता का सिरदर्द बन जाता है. यही कारण है कि आजकल वो तमाम सुविधाएं जो पासवर्ड के जरिए हासिल होती हैं, उन्हें उपलब्ध कराने वाली कंपनियां जोर डालती हैं कि आप का पासवर्ड आप के लिए सरल मगर दूसरे के लिए बेहद जटिल होना चाहिए. उदाहरण के लिए 3 संख्या वाले पासवर्ड को 7 संख्या वाले पासवर्ड के मुकाबले अनुमान लगाना ज्यादा आसान है. इस के अलावा व्यक्तिगत तथ्यों और ब्योरों पर आधारित पासवर्ड कहीं ज्यादा जटिल होता है. विशेषज्ञों का सुझाव है कि हमेशा ऐसे पासवर्ड विकसित किए जाने चाहिए जो आप की याददाश्त के लिए आसान और अपराधी के लिए बहुत मुश्किल हों.

पासवर्ड की उलझन से कैसे निबटें

पासवर्ड की उलझनें कई तरह की होती हैं. पहली उलझन अलगअलग कामों के लिए जरूरी अलगअलग पासवर्ड इस्तेमाल किए जाने की हो सकती है. मगर इस में दिक्कत यह आती है कि उन्हें याद रखना कठिन होता है और कहीं लिख कर स्टोर करने में खतरा इन के किसी और के हाथ में पड़ जाने का होता है. ऐसे में विशेषज्ञों की मानें तो अगर पासवर्ड की संख्या एक से ज्यादा हो तो उन्हें स्टोर करने के लिए एक फाइल बना लें और एक आसान पासवर्ड से उस फाइल को सुरक्षित रखें. सुरक्षित किए हुए पासवर्ड का बैकअप अपनी पैनड्राइव या डिस्क अथवा कौपी में ले लें जिस से एक से दूसरी जगह रखने के कारण इस के खो जाने की आशंका कम रहे. हालांकि औनलाइन पासवर्ड स्टोर करने का तरीका अभी काफी विवादास्पद है मगर एक अच्छा औनलाइन पासवर्ड मैनेजर चुन कर भी पासवर्ड को सुरक्षित रखा जा सकता है.

पासवर्ड का नाम अपने कुत्ते, प्रेमिका या पत्नी के नाम पर न रखें. अपनी जन्मतिथि, कार के नंबर या ड्राइविंग लाइसैंस का भी इस के लिए इस्तेमाल करने से बचें. क्योंकि पासवर्ड बनाने के ये अनुमानित तरीके हैं और इन अनुमानित तरीकों से बचना ही बेहतर है. वरना आसानी से आप हैकर के अनुमानजाल में फंस जाएंगे और इस से आप को आर्थिक व सामाजिक नुकसान उठाने पड़ सकते हैं.

पासवर्ड को हमेशा मिश्रित संख्याओं और शब्दों के अनुपात में बनाएं यानी इस में कुछ शब्द हों और कुछ संख्याएं. जिस के चलते तब तक किसी को यहां तक पहुंचना मुश्किल होगा जब आप खुद उसे नहीं बताएंगे. पासवर्ड बनाने का एक तरीका यह भी है कि आप किसी ऐसी चीज को पासवर्ड का रूप दें जिस की कल्पना ही न की जा सके. मसलन, बचपन में आप स्कूल जिस बस से जाते थे अगर उस बस का नंबर और रूट नंबर याद हो तो उस का इस्तेमाल करें. हैकर सोच भी नहीं सकता कि ऐसा भी पासवर्ड हो सकता है. अपने किसी पसंदीदा हीरो और उस की किसी खूबी को पासवर्ड की शक्ल में डाल सकते हैं और अनुमान लगाने वालों के लिए मुश्किल होगी.              

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