40 साल की उम्र के दिखने वाले राजेंद्र खड़ेखड़े शीशे में अपनी दाढ़ी के बालों में से सफेद बाल उखाड़ कर फेंक रहे थे. पीछे खड़ी उन की बीवी शकुंतला गोद में नन्हे लड़के को लिए काफी देर से राजेंद्र को ऐसा करते देख मुसकरा रही थी. जब शकुंतला से न रहा गया, तो वह बोल पड़ी, ‘‘अरे, रहने भी दो सरदारजी, दाढ़ी में आए सफेद बाल निकालने से जवान नहीं हो जाओगे और न ही कोई अब तुम्हें पसंद करने वाली.’’ शकुंतला की बात सुन कर राजेंद्र झेंप कर मुसकराने लगे. उन्हें पता न था कि शंकुलता इतनी देर से खड़ी उन्हें ही देख रही है. राजेंद्र ने दाढ़ी के सफेद बालों को उखाड़ना बंद कर दिया और घूम कर शकुंतला की तरफ देख कर बोले, ‘‘तुम्हारे कहने से मैं बूढ़ा नहीं हो जाऊंगा. चलो, लाओ जल्दी से मुझे खाना दे दो, वरना निकलने के लिए देर हो जाएगी.’’ शकुंतला मुसकराते हुए रसोई की तरफ बढ़ गई. राजेंद्र हाथ धो कर कमरे के दरवाजे के सामने बैठ खाने का इंतजार करने लगे.

राजेंद्र इस कसबे में कुछ साल पहले आए थे, जबकि उन का अपना गांव तो यहां से काफी दूर पड़ता था. राजेंद्र हिंदू धर्म की एक दलित कही जाने वाली जाति के थे, लेकिन इस कसबे में आने से पहले उन्होंने जातिधर्म की छुआछूत से तंग आ कर सिख धर्म अपना लिया था और सरदार बन गए, जहां उन्हें सामान्य आदमी की तरह इज्जत मिलनी शुरू हो गई. अब राजेंद्र की दाढ़ी, पगड़ी को देख लोग उन्हें सरदारजी के नाम से पुकारते थे. इस वक्त राजेंद्र एक ट्रक के ड्राइवर का काम करते थे, जो उन्हें एक सरदारजी ने ही सिखाया था, लेकिन इस से पहले वे अपने गांव में एक जमींदार का ट्रैक्टर चलाया करते थे. उन्हीं दिनों उन की मुलाकात एक सरदारजी से हुई थी, जिन्होंने इन को सिख धर्म में लाने के साथ साथ ट्रक चलाना भी सिखा दिया था राजेंद्र के गांव के लोगों ने जब इन के धर्म परिवर्तन का विरोध किया, तो ये अपने गांव से निकल इस कसबे में आ कर बस गए.आज राजेंद्र के 2 बच्चे थे. एक 5 साल का और दूसरा 3 साल का. राजेंद्र ट्रक पर जाते, तो कईकई दिन तक घर वापस न आ पाते थे. इसी वजह से उन्हें अपने बीवीबच्चों से मिलने की जल्दी रहती थी. साथ ही, इन लोगों को प्यार भी बहुत करते थे. शकुंतला से राजेंद्र की शादी गांव में ही हो गई थी, तब तक राजेंद्र ने अपना धर्म नहीं बदला था. पर धर्म बदलने के बाद भी शकुंतला ने राजेंद्र से एक भी शब्द न बोला. शकुंतला को यह सब अच्छा लगा, क्योंकि इस धर्म में उसे कोई गिरी नजर से नहीं देखता था.

राजेंद्र रात के वक्त ही ट्रक से आए थे और अब सुबह होते ही उन्हें फिर से ट्रक ले कर निकलना था. शकुंतला ने राजेंद्र को खाना दिया और पास में ही आ कर बैठ गई. राजेंद्र ने चुपचाप खाना खाया और उठ कर खड़े हो गए. जिस दिन राजेंद्र को बाहर जाना होता था, उस दिन वे अपनी पत्नी शकुंतला से ज्यादा बात नहीं करते थे. उन्हें लगता था कि अगर उन्होंने शकुंतला से ज्यादा बात की, तो वे भावुक हो जाएंगे और शायद रोने भी लगें. शकुंतला का भी कुछ ऐसा ही हाल था. लेकिन वह हरदम अपने भावों को मजाकों से दबाए रखती थी. वह राजेंद्र को भी हंसाने की कोशिश करती रहती, लेकिन कामयाबी नहीं मिलती थी. बड़ा लड़का बरामदे में बैठा खेल रहा था और छोटा बेटा शकुंतला की गोद में था. राजेंद्र को चलने के लिए तैयार होते देख बड़ा लड़का भाग कर आया और अपने पिता की टांगों से लिपट गया. राजेंद्र ने उसे अपने हाथों से उठा कर गोद में ले लिया और लाड़ करने लगे. बहुत सी चीजों का उसे लालच भी दिया. लड़का अपने लिए बच्चों के चलाने का छोटा ट्रक मांगता था. राजेंद्र ने तुरंत हां कर दी. लड़का अपनी इच्छा पूरी होते ही फिर से उसी जगह जा कर खेलने लगा. यह सब देख कर शकुंतला हंस पड़ी.

राजेंद्र ने अपना थैला उठाया, गमछा लिया, फिर वे शकुंतला की तरफ भीगी नजरों से देखने लगे. शकुंतला कब उन से पीछे रहती, उस की आंखों से भी आंसू निकल कर गालों पर बह रहे थे. ऐसा हर बार होता था. दोनों पतिपत्नी के बीच का गहरा प्यार उन्हें हर बार बिछड़ते समय रोने पर मजबूर कर देता था. राजेंद्र कमजोर दिल के थे. उन से शकुंतला का रोना देखा नहीं जाता था, लेकिन करते भी क्या. पेट के लिए काम तो करना ही पड़ता है और इस ट्रक ड्राइवरी के अलावा उन से और कोई भी काम नहीं होता था. राजेंद्र ने बाहर खेल रहे लड़के की तरफ देखा, वह मस्त हो कर खेल रहा था. मौका पा कर राजेंद्र ने शकुंतला को अपने गले से लगा लिया. शकुंतला गोद में लग रहे नन्हे बच्चे समेत राजेंद्र से लिपट गई. उस के मौन रुदन ने सिसकियों का रूप ले लिया, लेकिन राजेंद्र रो न सके.उन्होंने शकुंतला के माथे को चूमा और उस के आंसू पोंछते हुए धीरे से बोले, ‘‘बावली हो गई हो शकुंतला. अरे, मैं बौर्डर की जंग में थोड़े ही न जा रहा हूं. 2-4 दिन में फिर से घर आ पहुंचूंगा. बिना बात इतना रोती हो.

‘‘अच्छा, यह बताओ कि क्या ले कर आऊं तुम्हारे लिए? जो मन में हो, वही बता दो. इस बार लंबी दूरी का सामान मिला है, पैसे भी उसी हिसाब के मिलेंगे.’’ शकुंतला भीगी आंखों से ही मुसकरा कर झूठमूठ का गुस्सा दिखाते हुए बोली, ‘‘रहने भी दो सरदारजी, मुझे चुप करने का यही बहाना मिला था. मुझे नहीं मंगाना कुछ भी. बस, जल्दी घर आ जाना.’’ राजेंद्र ने नजरभर सांवलीसलोनी शकुंतला को देखा, भरे सांवले बदन की शकुंतला पुरानी साड़ी में भी खूबसूरत लग रही थी. राजेंद्र को उस के रूप में कोई कमी न दिखी. हां, शकुंतला के बदन पर एक नई साड़ी की दरकार जरूर थी. राजेंद्र धीमी आवाज में शकुंतला से बोले, ‘‘शकुंतला, अगर तुम कहो, तो तुम्हारे लिए एकाध बढि़या सी साड़ी ले आऊं. अब तुम्हारी साडि़यां पुरानी सी लगती हैं.’’ शकुंतला अंदर से तो खिल उठी, लेकिन ऊपरी भाव से चिंता दिखाते हुए बोली, ‘‘नहीं, कोई जरूरत नहीं. पहले बड़े लड़के की पढ़ाई की सोचो, फिर घर के लिए पैसे जोड़ो, उस के बाद मेरे लिए कुछ लाना.’’

राजेंद्र मुसकराते हुए बोले, ‘‘हां, तुम्हारी एकाध साड़ी में तो जैसे हजारों का खर्चा आएगा. अरे, सब काम हो जाएंगे. लड़का भी पढ़ेगा और अपना खुद का मकान भी होगा, लेकिन तुम साड़ी के बारे में बताओ.’’

शकुंतला झेंपती सी बोली, ‘‘हां, देख लेना. पैसा फालतू हो तो ही लाना, नहीं तो मत लाना.’’ इतना सुनते ही राजेंद्र मुसकराते हुए घर से बाहर की तरफ निकलने लगे. शकुंतला गोद में बच्चा लिए पीछे चल पड़ी. राजेंद्र मुड़मुड़ कर देखते हुए घर के बाहर निकल गए. शकुंतला दरवाजे पर खड़ीखड़ी उन्हें जाते हुए देखती रही. राजेंद्र थोड़ी ही देर में शकुंतला की आंखों से ओझल हो गए. अपनी मौत को न देख शकुंतला की आंखें फिर से छलछला पड़ीं. उस का यह सब हर बार का रोना था.

शकुंतला को अपने पति का ट्रक ले कर सड़कों पर निकलना बहुत डराता था. पता नहीं, कौन सा दिन ऐसा हो, जिस दिन राजेंद्र के न लौटने की कोई घटना हो जाए.

राजेंद्र घर से निकल कर सीधे उस जगह आ पहुंचे, जहां उन का ट्रक सामान से भरा खड़ा था.

यह ट्रक राजेंद्र का खुद का नहीं था. इसी कसबे की एक ट्रांसपोर्ट कंपनी के ट्रक को राजेंद्र चलाते थे.

राजेंद्र के पहुंचते ही उन के साथ रहने वाला हैल्पर आ कर बोला, ‘‘सरदारजी, घर से बड़ी देर में आए. ट्रक तो घंटे भर पहले ही लोड हो चुका है.’’

राजेंद्र अभी कुछ कहते, उस से पहले ही एक आदमी उन के पास आ पहुंचा. ट्रक में लोड हुआ सामान इसी आदमी का था. उस ने भी वही देर से आने वाली बात पूछी.

राजेंद्र ने कुछ काम लग जाने की कह उस आदमी से सवाल किया, ‘‘भाई साहब, ट्रक में क्याक्या सामान लोड हुआ है?’’

उस आदमी ने बड़े आराम से बोल दिया, ‘‘इस में फूड आइटम है. गाड़ी दनादन ले कर चलना. हमें तय वक्त में पहुंचना है, नहीं तो सामान खराब होने का डर है. मैं अपनी कार से तुम्हारे आगेआगे चलूंगा.’’

राजेंद्र ने हां में सिर हिला दिया. फिर ट्रक स्टार्ट कर आगे बढ़ा दिया. भाड़े के सामान का मालिक भी कार ले कर राजेंद्र के ट्रक के आगे चलने लगा.

अभी थोड़ी दूर ही चले थे कि तभी ट्रक के बराबर एक खुली जीप चलने लगी, जो ट्रक से आगे निकलने की कोशिश कर चुकी थी. उस में बैठे लोगों ने राजेंद्र को ट्रक रोकने का इशारा किया.

राजेंद्र ने गौर से उन लोगों को देखा, सब के सब लड़के पहलवान से दिखते थे. उन सब के गले में हलके लाल रंग के गमछे पड़े हुए थे. तकरीबन हर लड़के के हाथ में हौकी और डंडे दिखाई दे रहे थे.

एकबारगी तो राजेंद्र का दिल कांप गया, लेकिन चलती सड़क पर हिम्मत साथ थी, उन्होंने इशारे में लड़कों से पूछा, ‘‘क्या है? क्यों रोकूं?’’

उन लड़कों ने आपस में कुछ बोला और जीप के ड्राइवर को कुछ कह दिया. थोड़ी ही देर में जीप ट्रक के ठीक आगेआगे चलने लगी. जीप के आगे आते ही राजेंद्र ने मजबूरन ट्रक की रफ्तार धीमी कर दी.

थोड़ी देर में जीप के रेंगने के साथ ट्रक भी रेंगने लगा. थोड़ी आगे कार ले कर चल रहे भाड़े के मालिक ने ट्रक की रफ्तार धीमी होते देखी, तो कार को भी धीमा कर लिया.

रफ्तार धीमी होते ही 2-3 लड़के जीप से उतर ट्रक की तरफ बढ़ गए, राजेंद्र ने ट्रक को ब्रेक लगा दिए और खुद को उन लड़कों के आने के लिए तैयार कर लिया.

ट्रक के रुकते ही जीप पर सवार सारे लड़के उतर कर ट्रक की तरफ लपक पड़े. 10-12 लड़कों से खुद को घिरा देख. राजेंद्र को अनहोनी का डर होने लगा, लेकिन जब तक राजेंद्र को कुछ समझ आता, तब तक 2 लड़कों ने राजेंद्र को ड्राइवर सीट से नीचे खींच लिया. दूसरी तरफ बैठा हैल्पर भी नीचे उतार लिया गया. उन लड़कों में से एक ने राजेंद्र का गला पकड़ते हुए सवाल किया, ‘‘क्यों रे, इस ट्रक में क्या भरा हुआ है?’’

राजेंद्र ने भाड़े मालिक का बताया हुआ जवाब दिया, ‘‘भाई, इस में फूड आइटम हैं, लेकिन आप लोग कौन हैं? मैं ने आप का क्या बिगाड़ा है?’’

राजेंद्र का गला पकड़े खड़े लड़के ने राजेंद्र की बात का जवाब न दे कर साथ खड़े लड़के से चिल्ला कर कहा, ‘‘यहां खड़ाखड़ा क्या देख रहा है, जा कर ट्रक में देख क्या भरा है.’’

राजेंद्र को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था. आज तक पुलिस ने उस के ट्रक को एकाध बार चैक किया था, लेकिन इस तरह इतने लड़के आ कर ट्रक को क्यों चैक कर रहे हैं, यह बात समझ से परे थी.

भाड़े मालिक ने यह सब देख अपनी कार रोकी और उतर कर सारा माजरा देखा.

राजेंद्र भाड़े मालिक की तरफ देख कुछ कहने को था कि वह फिर से अपनी कार में बैठा और कार को तेजी से आगे भगा कर ले गया.

राजेंद्र को उस के भागते ही शक हो गया कि ट्रक में जरूर चोरी का माल होगा, इसलिए वह इन लोगों को देख कर भाग गया, लेकिन इतने लड़के एकजैसा गमछा गले में डाले कौन हो सकते हैं?

राजेंद्र की बगल में खड़ा हैल्पर भी कम बेबस नहीं था. उस की आंखें तो दूर से ठंडी सी पड़ गई थीं.

इतनी देर में ट्रक चैक करने गए लड़के की चीख आई, ‘‘भैया, इस ट्रक में मरी हुई गाय भरी पड़ी हैं.’’

इतना सुनना था कि सारे लड़के हौकीडंडे ले कर राजेंद्र और हैल्पर को पीटने लगे. राजेंद्र के होश उड़ चुके थे. देह पर पड़ रही जोरदार हौकी और डंडों की मार सहना राजेंद्र के वश से बाहर था.

हैल्पर उन लोगों के पैर पकड़पकड़ कर खुद को छोड़ने की गुहार लगा रहा था, कभी राजेंद्र की तरफ देख रोता हुआ चिल्लाता, ‘‘सरदारजी, मुझे बचाओ. मैं मर जाऊंगा.’’

लेकिन राजेंद्र को तो खुद बुरी तरह से पीटा जा रहा था. तभी एक जोरदार हौकी राजेंद्र के सिर के बीचोंबीच लगी. सिर में लगी जोरदार हौकी की चोट लगते ही राजेंद्र की आंखों के आगे अंधेरा छा गया. खोपड़ी से खून की फुहार निकल उठी. राजेंद्र निढाल हो कर जमीन पर गिर पड़े, लेकिन 2 लड़के अभी भी उन्हें पीटने में लगे हुए थे.

राजेंद्र का हैल्पर भी अधमरा हो चुका था. इतनी देर में एक गाड़ी आ कर इन लोगों के पास रुक गई. मारपीट एकदम बंद हो गई.

उस गाड़ी में से एक रोबदार नेताजी सा लगने वाला आदमी उतरा, जिस के गले में इन्हीं लड़कों की तरह गमछा पड़ा हुआ था. ये लोग गौरक्षक थे और अभी गाड़ी से आया आदमी इन का प्रमुख.

उस ने आते ही अधमरे पड़े राजेंद्र और उन के हैल्पर को देखा. उस ने एक लड़के से कह कर राजेंद्र को सीधा करवाया. शायद वह राजेंद्र को पहचानने की कोशिश कर रहा था.

राजेंद्र का मुंह देखते ही गौरक्षक प्रमुख आश्चर्यचकित हो उठा. उस ने हड़बड़ा कर पास खड़े लड़के से कहा, ‘‘अरे बेवकूफो, यह तुम ने क्या किया, यह तो मेरे कसबे का सरदार है, भला ये गौहत्या क्यों करेगा? पिछले हफ्ते गायों के चारेपानी के लिए इस ने 5 सौ रुपए का चंदा दिया था. जरा नाक के पास हाथ लगा कर देखो कि यह मर गया या जिंदा है.’’

एक लड़के ने जल्दी से राजेंद्र की नाक के पास अपनी उंगलियां लगा कर उस की सांसों को महसूस करना चाहा, लेकिन राजेंद्र की सांसें तो देर की थम चुकी थीं.

लड़का उजड़े हुए चेहरे से बोला, ‘‘नहीं भैया, इस की सांसें तो चल ही नहीं रहीं.’’

गौरक्षा प्रमुख ने खुद चैक किया, राजेंद्र सच में मर चुके थे. सब लोगों में सन्नाटा छा गया, लेकिन राजेंद्र के हैल्पर की सांसें अभी तक चल रही थीं.

गौरक्षा प्रमुख ने थोड़ी देर सोचा, फिर लड़कों से बोला, ‘‘अब खड़ेखड़े क्या देख रहे हो, इस लड़के को भी मार दो और फटाफट से यहां से निकल चलो.’’

इतना कह कर गौरक्षक प्रमुख गाड़ी की तरफ बढ़ गया. पीछे से एक लड़के ने झिझकते हुए कहा, ‘‘भैया, मरी हुई गायों के फोटो खींच लें.’’

गौरक्षक प्रमुख ने थोड़ा सोचा, फिर बोला, ‘‘चलो खींच लो, लेकिन बहुत फुरती से, और जितनी जल्दी हो सके, यहां से निकल चलो. पुलिस अभी आती ही होगी.’’

इतना कह कर गौरक्षक प्रमुख गाड़ी में बैठ कर चला गया. गौरक्षकों में से 1-2 ने राजेंद्र के हैल्पर की सांसें थाम दीं. एक ने ट्रक के पीछे जा कर फटी हुई तिरपाल में से मरी हुई गायों के फोटो खींच लिए.

इतना करने के बाद सब लोग जीप में बैठ उसी तरफ भाग गए, जिधर से आए थे.

आज पहली बार ऐसा हुआ था, जब गौरक्षकों ने खुद पुलिस को नहीं बुलाया था, वरना हर बार ये लोग गायों से भरी गाड़ी पकड़ते, उस के बाद उस गाड़ी में मौजूद लोगों की जम कर धुनाई करते, फिर खुद पुलिस और पत्रकारों को फोन कर के बुला लेते थे. दूसरे दिन के अखबारों में इन के फोटो भी छपते थे.

राजेंद्र की लाश खून से लथपथ हुई पड़ी थी. इस वक्त न तो उसे शकुंतला की याद आती थी और न अपने बच्चों की चिंता ही थी. यह शकुंतला तो राजेंद्रजी की याद करती ही होगी. शायद 2-3 दिन के बाद राजेंद्र के घर पहुंचने का बेसब्री से इंतजार भी करती होगी. उसे पता होगा कि राजेंद्र उस के लिए बढि़या सी साड़ी भी ले कर आएंगे. कितना अच्छा लगेगा, जब राजेंद्र हाथ में साड़ी लिए घर पहुंचेंगे और बडे़ लड़के के लिए प्लास्टिक के खिलौने का ट्रक. सारा घर खुशियों से भर जाएगा, सब लोग साथ बैठ कर खाना खाएंगे. लेकिन दूसरे दिन के अखबार में कुचले पड़े राजेंद्र और हैल्पर की फोटो छपेगी, जिस में लिखा होगा, ‘गौ तस्करों ने की पीटपीट कर हत्या’. साथ में मरी हुई गायों के फोटो भी थे. गौरक्षक दल बेशक न कहे, लेकिन सब लोगों को पता होगा कि ये उन का ही काम है. पुलिस बिना सुबूत उन का कुछ भी नहीं कर पाएगी, कोई नहीं जान पाएगा कि राजेंद्र और हैल्पर को तो यह तक पता नहीं था कि गाड़ी में मरी हुई गाय हैं, पर गौरक्षकों को इस बात से क्या मतलब. उन्हें तो सिर्फ गौरक्षा करनी है, चाहे उस के लिए कितने ही आदमियों का खून क्यों न बहाना पड़े.             

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