कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

रूपमती की बातों पर यकीन करने वाले बहुत होते. औरतमर्द, सभी तबके के. आमदनी अच्छी हो जाती. दिन निकलने से ले कर देर रात तक उस पर कथित देवी सवार रहती. कमरे से धूप, अगरबत्ती की महक उठउठ कर आसपास तक महसूस होती.
उस का व्यवहार भी अब विरोधाभासी हो चला था. कभी कर्कश बैन बोलती, कभी बड़े लाड़ से मुझ से बतियाती. मैं हैरान रह जाती.

कभीकभार रूपमती कसबे से बाहर चली जाती और कुछ दिनों के बाद लौटती. अब लोगों की रूपमती में कोई खास दिलचस्पी नहीं रह गई थी.
एक दिन वह अपने साथ एक तलाकशुदा औरत को ले आई. शांता नाम की यह औरत थी भी बला की सुंदर. नैननक्श इतने कटीले कि बरबस नजरें खींच लें. चालचलन उस का भी ठीक न था. रूपमती को उस के लिए ग्राहक ढूंढ़ने में ज्यादा मशक्कत नहीं हुई. रूपमती के पुराने दिन लौट आए. दोनों की दुकान एक ही छत के नीचे चल पड़ी, अगले भाग में रूपमती और पिछले भाग में शांता. निचले हिस्से में रूपमती ने लोहे का बड़ा सा ताला लगा दिया था.

पलक झपकते ही मेरे जैसे पड़ोसियों के अशांति भरे दिन लौट आए. एक तरफ रूपमती की अजीबोगरीब आवाजें, दूसरी तरफ रात घिरते ही लोगों का देर रात तक आनाजाना और उन की फुसफुसाहटें.

उस दिन रातभर ओस गिरती रही. रूपमती के मकान की छत पर टिन की चादरें पड़ी थीं. सुबह होते ही मकान की छत से ओस बूंदों की शक्ल में नीचे गिरने लगी थी. रूपमती रोज की तरह छज्जे पर आ कर बैठ गई.

मैं भी नहा कर छत पर गई. हवा में ठंडक थी. सूरज पहाड़ी के ऊपर चढ़ आया था. मैं बाल काढ़तेकाढ़ते छत की मुंडेर तक गई. सड़क पर लोग आजा रहे थे. मैं सड़क की ओर घूमी. मेरी नजर सड़क पर जा रहे युवक पर पड़ी और उस युवक का पीछा करने लगी. सामान्य सी बात थी लेकिन रूपमती को तुरुप का पत्ता हाथ लग गया था. रूपमती स्वभाववश मेरी गतिविधियों पर नजर गड़ाए थी. ऐसा सुअवसर भला वह हाथ से क्यों जाने देती. रूपमती बिना विलंब किए बरस पड़ी, ‘ब्याहता हो कर शर्म नहीं आती तुझे, लौंडे को ऐसे क्या घूरघूर कर देख रही है?’

मैं सकपका गई थी. हाथ जहां के तहां रुक गए. मुझे उस का इस तरह टोकना नागवार लगा, सो ऊंचे स्वर में बोली, ‘देखना क्या जुर्म है? अरे आंख मेरी है, जहां जी करे देखूंगी, तुझे क्यों आग लगती है?’

करारा प्रत्युत्तर मिला तो रूपमती एक क्षण के लिए अवाक् रह गई थी. उसी क्षण रूपमती के माथे पर बल पड़ गए. आंखें अंगारे बरसाने लगीं, ‘चकलाघर खोल दे. फिर जो जी में आए कर. मुझे क्या करना.’

‘जरा जबान संभाल कर बोल, पाखंडी. यहां तेरा चकलाघर कम है क्या. तेरी तरह गिरी हुई नहीं हूं मैं, समझी,’ मैं ने अपनी बात कमतर न होने दी.

रूपमती के मर्म में चोट लगी. वह हाथ मटकाते हुए चीखी, ‘हांहां, तू तो बड़ी सती सावित्री है.’

उस समय मेरे जी में आया कि ईंट मार कर रूपमती का सिर फोड़ दूं. फिर यही सोच कर चुप हो गई कि वाहियात औरत के मुंह लगने से क्या लाभ. आसमान पर थूका मुंह पर ही आता है.

मैं ने यह भी सुना था कि रूपमती टोटके करना भी जानती है, न जाने कब क्या उलटासीधा कर दे? हंसतीखेलती गृहस्थी है, कहीं इस चुड़ैल की नजर लग गई तो…मैं चुपचाप हथियार डाल बैठ गई.

रूपमती को कसबे की विभिन्न गतिविधियों के रिकौर्ड रखने में दिलचस्पी थी. इधरउधर ताकाझांकी करना, दूसरों पर कटाक्ष करना और दूसरों को बिना पूछे सीख देना, दिनभर यही करती थी वह. ‘पर उपदेश कुशल बहुतेरे’, रूपमती के लिए यह कहावत ठीक थी. रूपमती बहुत समय तक बड़बड़ाती रही. मैं छत पर रह न पाई और खुले बाल ही जीने से उतर गई.

मैं मन ही मन झुंझलाती रही. रामबहादुर बड़ा हठीला था, मेरे लाख कहने पर भी उस ने मकान नहीं बदला. बहुत पीछे पड़ती तो यही कहता, ‘पगला गई है क्या? ठेकेदार भला आदमी है, कभी किराए के लिए तंग नहीं करता. फिर 800 रुपए में 2 कमरे कौन देगा?’

मकान भी पक्का, छत भी पक्की. मकान का मालिक सरकारी ठेकेदार है जो शहर में रहता है. इस मकान में 2 कमरे हैं हमारे पास. पिछले हिस्से में ठेकेदार का गोदाम है जिस में सीमेंट, कुदालें, फावड़े, सब्बल आदि औजार भरे पड़े हैं. रामबहादुर मेहनती होने के साथ ठेकेदार का विश्वासपात्र मुंशी है. मजदूरों को इकट्ठा करना, राशन खरीदना और मजदूरों को काम पर ले जाना उस की ड्यूटी थी.

मैं दिनभर अकेली रहती सिलाईबुनाई का शौक था. पासपड़ोस से सूट सिलने को मिल जाते. कभीकभी मायके चली जाती. वैसे मैं अपने पति की विवशता को भलीभांति समझती थी लेकिन इस औरत से पीछा कैसे छूटे, समझ से परे था. रामबहादुर ठीकठाक कमाता लेकिन उसे नशे की लत भी थी. जब कभी रूपमती दिखाई पड़ जाती तो उसे सांप सूंघ जाता. यह औरत न होती तो यहां सब ठीक था. रूपमती को देखते ही उस के हाड़ के भीतर कंपकंपी होने लगती. सुबह देखो तब, शाम को देखो तब, उस का ही थोबड़ा आंखों के सामने आ जाता.

एक दिन रूपमती ने एक युवती पर ही फब्ती कस दी थी. वह मिनी स्कर्ट और ऊंची एड़ी की सैंडल पहने थी. उसे जाते देख रूपमती ने बुरा सा मुंह बनाया. हाथ के साथ आंखें मटकाते हुए वह ऊपर से ही बोली, ‘हायहाय, क्या अकेले इसी को जवानी चढ़ी है. फैशन देखो तो फिल्म स्टार भी झक मारें.’

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...