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‘‘अब चाय क्या पिएंगे, सीधे खाना ही खिला देना, क्यों जीजू.’’

‘‘हां, और क्या, वैसे भी बहुत थक गया हूं. जल्दी ही सोना चाहूंगा,’’ अमित उबासी लेने लगता.

इधर सुबह दोनों जल्दी ही उठ कर कंपनीबाग सैर करने जाते थे. कभी भी स्वरा से चलने के लिए नहीं कहते थे. स्वरा मन ही मन कुढ़ती थी और समस्या के निराकरण का उपाय भी सोचती थी जो उसे जल्दी ही मिल गया. वह भी अकेली ही सैर पर निकल पड़ी और जौगिंग करते हुए अमित तथा श्रेया की बगल से हाय करते हुए मुसकरा कर आगे बढ़ गई. दोनों भौचक्के से उस की ओर देखने लगे. स्वरा को ट्रैक सूट में देख कर अमित अपनी आंखें मलने लगा, यह स्वरा का कौन सा अनोखा रूप था जिस से वह अपरिचित था.

घर आ कर स्वरा ने टेबल पर नाश्ता लगा दिया और उन दोनों का इंतजार किए बिना स्वयं नाश्ता करने लगी. तभी अमित भी आ गया, ‘‘यह क्या मैडम, आज मेरा इंतजार नहीं किया, अकेले ही नाश्ता करने बैठ गई.’’

‘‘तो क्या करती? जौगिंग कर के आई हूं. भूख भी कस कर लग आई है, फिर खाने के लिए किस का इंतजार करना.’’ स्वरा ने टोस्ट में औमलेट रख कर खाते हुए कहा. अमित तथा श्रेया दोनों ने ही स्वरा में आए इस बदलाव को महसूस किया. दोनों ने अपनाअपना नाश्ता खत्म किया और तैयार होने कमरे में चले गए.

‘‘स्वरा, मेरा टिफिन लगा दिया?’’ अमित ने हांक लगाई.

‘‘नहीं तो, रोज ही तो खाना वापस आता है. मैं ने सोचा क्यों बरबाद किया जाए और श्रेया तो यों भी फिगर कौंशस है. वह तो दोपहर में जूस आदि ही लेती है. ऐसे में खाना बनाने का फायदा ही क्या?’’ स्वरा ने तनिक कटाक्ष के साथ कहा, ‘‘और हां अमित, घर की डुप्लीकेट चाबी लेते जाना क्योंकि आज शाम को मैं घर पर नहीं मिलूंगी. मेरा कहीं और अपौइंटमैंट है.’’

‘‘कहां?’’ अमित को आश्चर्य हुआ. उन के विवाह को 2 वर्ष बीत चले थे. कभी भी ऐसा नहीं हुआ था कि अमित आया हो और स्वरा घर पर न मिली हो.

‘‘अरे, मैं तुम्हें बताना भूल गई थी, विशेष आया हुआ है,’’ स्वरा के स्वर में चंचलता थी.

‘‘कौन विशेष? क्या मैं उसे जानता हूं?’’ अमित ने तनिक तीखे स्वर में पूछा.

‘‘नहीं, तुम कैसे जानोगे. कालेज में हम दोनों साथ थे. मेरा बैस्ट फ्रैंड है. जब भी कोई सांस्कृतिक कार्यक्रम कालेज में होता था, हम दोनों का ही साथ होता था. क्यों श्रेया, तू तो जानती है न उसे,’’ स्वरा श्रेया से मुखातिब हुई. श्रेया का चेहरा बेरंग हो रहा था, धीमे से बोली, ‘‘हां जीजू, मैं उसे जानती हूं. वह घर भी आता था. आप की शादी के समय वह कनाडा में था.’’

‘‘अरे, स्वरा ने तो कभी अपने किसी ऐसे दोस्त का जिक्र भी नहीं किया,’’ अमित के स्वर में रोष झलक रहा था.

‘‘यों ही नहीं बताया. अब भला अतीत के परदों को क्या उठाना. जो बीत गया, सो बीत गया,’’ स्वरा ने बात समाप्त की और तैयार होने के लिए चली गई. अमित तथा श्रेया भौचक एकदूसरे को देख रहे थे.

‘यह कौन सा नया रंग उस की पत्नी उसे दिखा रही थी.’ अमित हैरान था, सोचता रह गया. वह तो यही समझता था कि स्वरा पूरी तरह उसी के प्रति समर्पित है. उसे तो इस का गुमान तक न था कि स्वरा के दिल के दरवाजे पर उस से पूर्व कोई और भी दस्तक दे चुका था और वह बंद कपाट अकस्मात ही खुल गया.

‘‘जीजू चलें?’’ श्रेया तैयार खड़ी थी.

‘‘आज मैं औफिस नहीं जाऊंगा, तुम अकेली ही चली जाओ,’’ अमित ने अनमने स्वर में कहा और अपने कमरे में चला गया. भड़ाक, दरवाजा बंद होने की आवाज से श्रेया चिहुंक उठी. ‘तो क्या जीजू को ईर्ष्या हो रही है विशेष से,’ वह सोचने को विवश हो गई.

इधर अमित बेचैन हो रहा था. वह सोचने लगा, ‘मैं पसीनेपसीने क्यों हो रहा हूं. आखिर क्यों मैं सहज नहीं हो पा रहा हूं. हो सकता है दोनों मात्र दोस्त ही रहे हों. तो फिर, मन क्यों गलत दिशा की ओर भाग रहा है. मैं क्यों ईर्ष्या से जल रहा हूं और फिर पिछले 2 वर्षों में कभी भी स्वरा ने ऐसा कुछ भी नहीं किया जिस से मेरा मन सशंकित हो. वह पूरी निष्ठा से मेरा साथ निभा रही है, मेरी सारी जरूरतों का ध्यान रख रही है. मेरा परिवार भी उस के गुणों और निष्ठा का कायल हो चुका है. तो फिर, ऐसा क्यों हो रहा है.

‘क्या तू ने उस के प्रति पूरी निष्ठा रखी?’ उस के मन से आवाज आई, ‘क्या श्रेया को देख कर तेरा मन डांवाडोल नहीं हो उठा, क्या तू ने श्रेया के संग ज्यादा अंतरंगता नहीं दिखाई? कितने दिनों से तू ने स्वरा को अपने निकट आने भी नहीं दिया, क्यों? आखिर क्यों? क्या तेरे प्यार में बेवफाई नहीं है?’

‘नहींनहीं, मेरे प्यार में कोई भी बेवफाई नहीं’, वह बड़बड़ा उठा, ‘श्रेया हमारी मेहमान है. उस का पूरी तरह खयाल रखना भी तो हमारा फर्ज है, इसीलिए स्वरा को श्रेया के साथ, उसी के कमरे में सोने के लिए कहा ताकि उसे अकेलापन न लगे. मेरा ऐसा कोई बड़ा अपराध भी नहीं है.’ अमित ने स्वयं को आश्वस्त किया लेकिन शंका का नाग फन काढ़े जबतब खड़ा हो जाता था.

शाम के 7 बज गए. ‘कहां होगी, अभी तक आई नहीं, अमित कल्पनाओं के जाल में उलझता जा रहा था. क्या कर रहे होंगे दोनों, शायद फिल्म देखने गए होंगे. फिल्म, नहींनहीं, आजकल कैसीकैसी फिल्में बन रही हैं, पता नहीं दोनों स्वयं पर काबू रख पा रहे होंगे भी, या नहीं. अमित का मन उद्वेलित हो रहा था, जी में आ रहा था कि अभी उठे और दोनों को घसीटते हुए घर ले आए. शादी मुझ से, प्यार किसी और से. अरे, जब उसी का साथ निभाना था तो मना कर देती शादी के लिए,’ अमित का पारा सातवें आसमान पर चढ़ता जा रहा था.

‘अब तो सिनेमा भी खत्म हो गया होगा, फिर कहां होंगे दोनों, क्या पता किसी होटल में गुलछर्रे उड़ा रहे हों. आखिर विशेष होटल में ही तो ठहरा होगा. हो सकता है दोनों एक भी हो गए हों,’ उस का माथा भन्ना रहा था. तभी मोबाइल बज उठा, ‘अरे, यह तो स्वरा का फोन है. अच्छा तो जानबूझ कर छोड़ गई है ताकि मैं उसे कौल भी न कर सकूं. देखूं, किस का फोन है.’ उस ने फोन उठाया. स्वरा के पापा का फोन था. ‘‘हैलो’’ उस का स्वर धीमा किंतु चुभता हुआ था.

‘‘अरे बेटा अमित, मैं बोल रहा हूं, स्वरा का पापा. कैसे हो बेटा? स्वरा कहां है? जरा उसे फोन देना.’’

‘‘स्वरा अपने किसी दोस्त के साथ बाहर गई है. मैं घर पर ही हूं. बताइए, क्या बात है?’’ अमित के स्वर में खीझ स्पष्ट थी.

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