प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले सप्ताह अचानक 500 और 1000 रुपये के पुराने नोट को बंद करने का ऐलान कर दिया. ब्लैक मनी पर शिकंजा कसने का दावा करते हुए उठाए गए कदम के बाद देशभर में बैंकों और एटीएम के बाहर लंबी कतारें लगी हैं. लोग छुट्टे पैसों के लिए परेशान हैं. कुछ लाइन में लगे-लगे ही जिंदगी गवा बैठे तो कुछ ने पैसों की चिंता में खुदखुशी कर ली. ऐसा नहीं है कि करेंसी रिफॉर्म की वजह से किसी देश में आपाधापी मची हो. कई प्रगतिशील देशों में यह प्रयास सफल नहीं रहा.

सोवियत यूनियन

काले धन पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से मिखाइल गोरबाचोव ने जनवरी 1991 में 100 और 50 रूबल नोट को बंद कर दिया. यह रिफॉर्म महंगाई को रोकने में असफल रहा और सरकार ने जनता के बीच विश्वास खो दिया. राजनीति के साथ अर्थव्यवस्था की चुनौतियों को मिखाइल संभाल नहीं सके. इसके बाद सोवियत संघ का विघटन हो गया.

नॉर्थ कोरिया

2010 में तत्कालीन तानाशाह किम जोंग-द्वितीय ने कालाबाजारी को खत्म करने और अर्थव्यवस्था पर नियंत्रण बढ़ाने के लिए पुराने करेंसी के फेस वैल्यू से दो जीरो कम कर दिए, उस वक्त वहां खाद्य संकत का दौर था. लेकिन यह फैसला देश पर भारी पड़ा. देश में अन्न की भारी कमी हो गई. कीमतों में वृद्धि की वजह से देश में अव्यवस्था फैल गई. एक रिपोर्ट के मुताबिक सत्ताधारी पार्टी के वित्त मंत्री को इसके लिए फांसी की सजा दी गई थी

जायर

तानाशाह मबुटो सेसे सेको ने 1990 के दौर में बैंक नोट रिफॉर्म की कोशिश की, लेकिन उन्हें भी अर्थव्यवस्था में कई बाधाओं का सामना करना पड़ा. महंगाई बहुत तेजी से बढ़ी और डॉलर के मुकाबले एक्सचेंज रेट ध्वस्त हो गया. 1997 में गृहयुद्ध के बाद सीसी सीको को कुर्सी छोड़नी पड़ी.

म्यांमार

1987 में म्यांमार की सैन्य सरकार ने सर्कुलेशन में मौजूद करीब 80 फीसदी करेंसी को अमान्य करार दे दिया. यह काला धन को नियंत्रित करने के लिए किया गया था. इसके बाद देश में पहले छात्र सड़कों पर उतरे और फिर देश में सरकार विरोधी प्रदर्शन हुए. इन्हें नियंत्रित करने के लिए सरकारी दमन में हजारों लोग मारे गए.

घाना

1982 में इस देश ने भ्रष्टाचार और टैक्स चोरी को रोकने के लिए 50 सेडी के नोट को रद्द कर दिया. लेकिन इससे बैंकिंग सिस्टम से लोगों का विश्वास उठ गया. लोग इसे विदेशी मुद्रा या फिर भौतिक संपत्ति में बदलने लगे. काला धन का दायरा और बढ़ा था. गांवों में रहने वाले लोगों को बैंक तक पहुंचने के लिए मीलों पैदल चलना पड़ा. डेडलाइन बीतने के बाद बड़ी संख्या में नोट बर्बाद हो गए.

नाइजीरिया

1984 में मुहम्मादू बुहारी की नेतृत्व वाली सरकार ने भ्रष्टाचार निरोधी प्रयासों के तहत अलग रंग में नए नोट जारी किए. निर्धारित समय के भीतर पुराने नोटों को बदलने के लिए कहा गया, लेकिन महंगाई नियंत्रण से बाहर हो गई. बुहारी सत्ता से बाहर हो गए थे.

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