लेखक- डा. टीके दास, डा. वीके सिंह

महामारी कोविड-19 से खेती में श्रमिकों की उपलब्धता कम हुई है. ऐसे में धन, ऊर्जा, मानवशक्ति, पानी की बचत और उत्पादन लागत में कमी कर के अधिक उत्पादन के लिए चावल की सीधी बोआई द्वारा खेती कर किसान अधिक लाभ कमा सकते हैं.

धान की सीधी बोआई एक प्राकृतिक संसाधन संरक्षण तकनीक है, जिस में उचित नमी पर यथासंभव खेत की कम जुताई कर के अथवा बिना जोते हुए भी खेतों में जरूरत के मुताबिक खरपतवारनाशी का प्रयोग कर जीरो टिल मशीन से सीधी बोआई की जाती है.

जिन किसानों ने अपने गेहूं की कटाई कंबाइन से की हो, वे बिना फसल अवशेष जलाए धान की सीधी बोआई हैप्पी सीडर या टर्बो सीडर से कर सकते हैं. इस तकनीक से लागत में बचत होती है और फसल समय से तैयार हो जाती है.

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उपयुक्त क्षेत्र

* उन क्षेत्रों में, जहां सिंचाई के लिए पानी की कमी हो, जैसे पश्चिमी उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, कर्नाटक, तमिलनाडु, छत्तीसगढ़ वगैरह.

* वे राज्य, जहां जलभराव के हालात हों, उदाहरण के लिए, पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, असम व पश्चिम बंगाल.

* उन राज्य में, जहां वर्षा आधारित खेती होती हो, जैसे ओडिशा, झारखंड, उत्तरपूर्वी राज्य.

सीधी बोआई के लाभ

* श्रमिकों की आवश्यकता में 30-40 प्रतिशत की कमी.

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* पानी की 20-30 प्रतिशत बचत.

* उर्वरक उपभोग क्षमता में वृद्धि.

* समय से पहले (दिन 7-10) फसल तैयार, जिस से आगे बोई जाने वाली फसल की समय से बोआई.

* ऊर्जा की बचत (50-60 प्रतिशत डीजल).

* मीथेन उत्सर्जन में कमी, जिस से पर्यावरण सुरक्षा में इजाफा.

* उत्पादन लागत में 3,000-4,000 रुपए/प्रति हेक्टेयर की कमी.

बोआई का समय

सही समय पर फसल की बोआई एक बढि़या काम करती है, इसलिए सीधी बोआई वाले धान की फसल को मानसून आने के

10-15 दिन पहले बो देना चाहिए, जिस से फसल वर्षा शुरू होने तक 3-4 पंक्तियों वाली अवस्था में हो जाए. इस से पौधों की जड़ों की बढ़वार अच्छी होगी तथा ये खरपतवारों के साथ प्रतिस्पर्धा कर सकेंगे.

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प्रजातियों का चयन

सीधी बोआई के लिए ऐसी प्रजातियों का चयन करें, जो अच्छी बढ़वार के साथसाथ खरपतवारों से भी प्रतिस्पर्धा कर सकें. जैसे पूसा सुगंध 5, पूसा बासमती 1121, पीएचबी 71, नरेंद्र 97, एमटीयू 1010, एचयूआर 3022, आरएमडी (आर)-1, सहभागी धान, सीआर धान 40, सीआर धान 100, सीआर धान 101 आदि.

बोने की विधि

यदि जीरो कम फर्टिसीड ड्रिल से बोआई करते हैं, तो इस के लिए महीन दानों

वाली प्रजातियों (बासमती) के लिए

15-20 किलोग्राम, मोटे दाने वाली प्रजाति के लिए 20-25 किलोग्राम और संकर प्रजातियों के लिए 8-10 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज पर्याप्त रहता है. पंक्ति से पंक्ति की दूरी

20 सैंटीमीटर उपयुक्त रहती है. बीज को सही गहराई पर बोने से फसल का अंकुरण अच्छा होता है, इसलिए बीज को 2-3 सैंटीमीटर गहराई पर ही बोना चाहिए. बोआई से पहले बीजों को पानी में 8-10 घंटे (सीड प्राइमिंग) भिगो कर छायादार जगह पर सुखा लें, जिस से बीजों के जैव रसायनों में अनुकूल परिवर्तन होता है और अंकुरण में वृद्धि होती है.

बीजों को बोआई से पहले 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज को बाविस्टीन या थीरम से उपचारित जरूर करें, जिस से मृदा व बीजजनित रोगों में कमी पाई जाती है.

उर्वरक प्रबंध

100-150 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50 किलोग्राम फास्फोरस, 40 किलोग्राम पोटाश व

25 किलोग्राम जिंक प्रति हेक्टेयर का प्रयोग करें.

नाइट्रोजन की एकतिहाई और फास्फोरस, पोटाश और जिंक की पूरी मात्रा बोआई के समय और शेष नाइट्रोजन की एकतिहाई मात्रा बोआई के 30 दिन बाद और शेष बची हुई मात्रा बोआई के 55 दिन बाद दें. यदि मृदा में लोह तत्त्व की कमी हो, तो आयरन सल्फेट (19) का 0.5 प्रतिशत घोल बना कर 10-15 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें.

खरपतवार प्रबंधन

खरपतवारों की रोकथाम के लिए बोआई से एक हफ्ता पहले ग्लाईफोसेट नामक खरपतवारनाशी (1 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर सक्रिय तत्त्व) का प्रयोग करें. बोआई के 1-2 दिन के अंतराल पर पेंडिमिथेलिन (सक्रिय तत्त्व 1 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर) और 20-25 दिन के अंतराल पर बिसपायरीबैक (नोमनी गोल्ड) की 25 ग्राम सक्रिय तत्त्व प्रति हेक्टेयर का छिड़काव करें.

कीट/सूत्रकृमि प्रबंधन

यदि फसल में सूत्रकृमि का प्रकोप हो, तब बोआई के 30-40 दिन के अंतराल में कार्बोफ्यूरान (सक्रिय तत्त्व 0.75 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर) छिड़कें. तना छेदक की रोकथाम के लिए बोआई के 25-30 दिन बाद करटप हाइड्रोक्लोराइड का 1 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर सक्रिय तत्त्व का छिड़काव करना चाहिए.      ठ्ठ

 

बाग लगाने के लिए गड्ढा करें तैयार

] श्रीराम सिंह

आम के बाग लगाने की योजना जो किसान बना रहे हैं, उन के लिए गड्ढे खोदने का उपयुक्त समय है. किसान को जिस खेत में बाग लगाना हो, सब से पहले उस खेत की मिट्टी की जांच करा लें, ताकि पोषण प्रबंधन आसानी से समय से किया जा सके. इस समय तकरीबन 8 से 12 मीटर की दूरी पर 1 मीटर लंबे, 1 मीटर चौड़े और

1 मीटर गहरे गड्ढे खोद कर छोड़ दें. इन गड्ढों को जून के अंत में आधा भाग मिट्टी और आधा भाग सड़ी हुई गोबर की खाद अथवा कंपोस्ट मिला कर भरते हैं.

दीमक से बचाव के लिए हरेक गड्ढे में 50 मिलीलिटर क्लोरोपायरीफास का 2 लिटर पानी में घोल बना कर गड्ढे में भरे जाने वाले मिश्रण में मिला लेना चाहिए. उस के बाद गड्ढे में भर कर सिंचाई कर देनी चाहिए, फिर गड्ढों को छोड़ देते हैं.

पौधों की रोपाई का सही समय बरसात का मौसम है. परंतु कोशिश करनी चाहिए कि बरसात का मौसम जब खत्म होने वाला हो, उस समय पौधों को लगाना चाहिए. बरसात में गड्ढे की मिट्टी दब जाने के कारण अगर अतिरिक्त मिट्टी को मिलाना हो तो उपरोक्तानुसार मिश्रण तैयार कर के दोबारा मिला देना चाहिए.

इस तरह किसान आम के बाग लगाने के लिए समय का सदुपयोग कर के अच्छा बाग लगा सकते हैं. वैश्विक महामारी से निबटने में सभी प्रकार की सावधानी बरतने के साथ ही बाकी काम करने हैं. समयसमय पर जारी सरकारी निर्देश का पालन करते हुए अपने काम में लगे रहें.

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