सरदार वल्लभ भाई पटेल, कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय परिसर में 5 से 7 अक्तूबर 2016 तक 3 दिवसीय किसान मेला एवं कृषि उद्योग प्रदर्शनी का आयोजन बड़े जोरशोर से किया गया. इस मेले के उद्घाटन समारोह के मुख्य अतिथि डा. एके सिंह, उपमहानिदेशक कृषि प्रसार भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद नई दिल्ली, विशिष्ट अतिथि डा. यूएस गौतम, निदेशक अटारी, कानपुर, मुख्य अतिथि चौधरी शीशपाल सिंह, निदेशक इफको, नई दिल्ली थे. उद्घाटन समारोह की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. गया प्रसाद द्वारा की गई. मंच का संचलान डा. संचान ने किया.

निदेशक प्रसार डा. रघुवीर सिंह ने बताया कि इस सफल मेले के आयोजन के लिए 42 समितियों का गठन किया गया. दूरदराज के जिलों से आए किसानों के लिए गोष्ठी के कार्यक्रम के साथसाथ खेती की नवीनतम तकनीक, अन्न भंडारण, जैविक खेती, संरक्षित खेती, पशुओं के संतुलित आहार, पशुपालन, खादबीज की जानकारी, नईनई मशीनों की जानकारी के लिए लगभग 250 स्टाल लगाए गए थे. मेले में सार्वजनिक एवं निजी संस्थाओं द्वारा अच्छी क्वालिटी के बीज, उर्वरक व कृषि रसायन सही दामों पर किसानों को मुहैया कराए गए थे. अनेक प्रगतिशील किसानों व पशुपालकों को पुरस्कृत भी किया गया.

कृषि वैज्ञानिक डा. अशोक कुमार जो शोध कार्य देखते हैं, ने बताया, ‘हमारे यहां 36 योजनाएं चल रही हैं. धान की सर्वाधिक 18 प्रजातियां विकसित की गई हैं. पपीता के विकास के लिए भी काम हो रहा है. टिश्यूकल्चर और मशरूम पर भी शोध चल रहा है. ऐसी अनेक चीजे हैं, जिन पर हमारे केंद्र पर शोध कार्य चल रहा है, जिन्हें पूरा करने के बाद हम किसानों तक पहुंचा रहे हैं. ‘खाद में बायोफर्जिलाइजर एक ऐसा अंग?है, जिस से खाद की गुणवत्ता बढ़ा सकते हैं. अच्छा बीज उत्पादन भी हम कर रहे हैं. ऐसे अनेक काम हैं, जिन पर हमारे वैज्ञानिक काम कर रहे हैं.’

डा. एके सिंह, उपमहानिदेशक कृषि प्रसार भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद नई दिल्ली ने भी किसानों को संबोधित किया. वे बोले, ‘‘मैं भी किसानों व पशुपालकों को बधाई देना चाहता हूं कि वे किस तरह से अपने बच्चों की तरह पशुओं की देखभाल करते हैं. वे उन के लिए अनमोल हैं. अनेक देशी नस्लें, जो खत्म होने की कगार पर हैं, उन को भी वे जीवित रखे हुए हैं. ‘युवराज’ भैंसे की तरीफ तो हमारे प्रधानमंत्री मोदी भी दिल्ली के पूसा मेले में कर चुके?हैं. दूध के लिए हम पशु तो बाहर से ले आए, लेकिन हमें अपने पशुओं की नस्ल में भी सुधार करना होगा.’ एके सिंह ने प्रधानमंत्री की कई कृषि योजनाओं का भी जिक्र किया और औनलाइन मंडियों की बात की. उन्होंने बताया कि 590 मंडियों में से अभी 90 मंडियों को औनलाइन किया गया है. इस दिशा में और भी काम चल रहा है.

डा. एके सिंह ने आगे कहा कि किसानों को स्वयं सहायता समूह बना कर काम करना होगा, जिस से उन्हें ज्यादा मुनाफा मिलेगा. फूड प्रोसेसिंग के जरीए वे फलों की प्रोसेसिंग कर सकते हैं. यह काम सोसाइटियों द्वारा ही संभव है. बिचौलियों को खत्म कर के यह काम किसानों को खुद करना होगा. मधुमक्खीपालन व पौलीहाउस तकनीक की दिशा में भी काम करना होगा. इस तरह किसान खुद भी काम कर सकेंगे और दूसरों को भी रोजगार दे सकेंगे. विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. गया प्रसाद ने कहा, ‘मेरे मन में एक विचार था कि एक ऐसे मेले का आयोजन हो जो बहुआयामी हो. जिस में कृषि से संबंधित बात हो, पशुपालन की बात हो, बीज की बात हो, फूड प्रोसेसिंग की बात हो, किसानों की अनेक समस्याओं के लिए 3 दिवसीय गोष्ठी का आयोजन हो, जिस में किसान अपनी बात वैज्ञानिकों के सामने रख सकें. ‘कृषि विज्ञान केंद्र के सभी वैज्ञानिक नई तकनीक, नए तौरतरीके किसानों तक पहुंचाते?हैं. आज 650 से ज्यादा कृषि विज्ञान केंद्र भारत में हैं, जिन को स्थापित करने में डा. एके सिंह का बहुत बड़ा योगदान है.

‘देश में बगैर खेती के खुशहाली नहीं आ सकती. अगर किसान दुखी रहेगा तो देश दुखी रहेगा. खास योजनाएं किसानों के लिए लानी होगी नहीं तो देश संकट में होगा. अनेक कंपनियों पर करोड़ों का कर्ज होता है, लेकिन किसान कुछ लाख के लिए ही परेशान रहते हैं. ‘हमारे देश की जलवायु का परिवर्तन भी बड़ी समस्या है. कब क्या होगा पता नहीं चलता, जिस से किसानों को बहुत नुकसान होता?है, क्योंकि बीज, फसल को उगाने के लिए अनुकूल माहौल चाहिए. इस होने वाले बदलाव के लिए सरकार को समाधान खोजना होगा, जिस से किसानों को नुकसान न हो.

‘जो सामान कारखाने में बनता?है, उस पर सारे टैक्स लगा कर कंपनी उस सामान की कीमत डाल देती है. लेकिन किसान अपने उत्पाद की कीमत भी तय नहीं कर सकता. आज किसानों को एकजुट होना होगा. किसानों को इस के लिए आवाज उठानी होगी. जिस दिन किसान यह कर लेगा, उस दिन उस की समस्या का समाधान हो जाएगा.’ मुख्य अतिथि चौधरी शीशपाल सिंह ने कहा, ‘यहां पर सब किसान हैं और भारत भी किसानों से बसता है. मेले में बहुत अच्छे पशु आए हैं, ये हमारे लिए मौडल हैं. लेकिन मेरे मेरठ हापुड़ से कोई पशु नहीं आया. मैं हरियाणा के लोगों को धन्यवाद देना चाहूंगा, जिन्होंने इतनी अच्छी नस्ल के पशु तैयार किए और मेले में ले कर आए. ‘इफको ने इफको एमसी के नाम से संस्था बनाई है, जो बाजार मूल्य से कम कीमत पर दवाएं मुहैया कराती है. हमारी 35 दवाएं हैं. जिस तरीके से आप इफको खाद पर भरोसा करते?हैं, उसी तरह से हमारी दवाओं पर भी भरोसा कर सकते हैं.’

पशुपालन विशेषज्ञ डा. नाजिम अली ने भी पशुपालकों को कुछ खास जानकारी दी. उन्होंने बताया कि दुधारू पशु से अच्छा दूध उत्पादन उचित आहार से ही संभव है. पशुपालक का 70 से 72 फीसदी खर्च पशु के आहार पर ही होता है. पशु आहार के लिए 5 चीजें जरूर ध्यान में रखें. पहले नंबर पर हरा चारा 1 भाग, दूसरा सूखा चारा ढाई गुना, तीसरा 3 लीटर दूध पर 1 किलोग्राम दाना, चौथा मिनरल मिक्सचर (खनिज लवण) 50 से 100 ग्राम और पांचवां सादा नमक 50 ग्राम. इन चीजों का ध्यान रखें तो पशुपालक अपने दुधारू पशु से अच्छा दूध ले सकते हैं. जब ‘फार्म एन फूड’ की टीम ने मेला प्रांगण में प्रवेश किया, तो विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. गया प्रसाद अपने सहयोगी कृषि वैज्ञानिकों के साथ वहां सुबह से ही मौजूद थे, जो अपनी देखरेख में मेले की तैयारी करा रहे थे. हम ने जब उन्हें ‘फार्म एन फूड’ पत्रिका दी तो उन्होंने पत्रिका के हर पन्ने को बड़े ध्यान से देखा और सराहा. साथ ही पत्रिका की टीम के वहां पहुंचने पर उन्होंने खुशी जाहिर की.

मेले को सफल बनाने के लिए वहां मौजूद निदेशक प्रसार डा. रघुवीर सिंह के साथ डा. पीके सिंह, डा. केजी यादव, डा. आरएस सेंगर, डा. प्रवीन कुमार सिंह, डा. ऋषिपाल, डा. सर्वेश कुमार लौधी, डा. हरिओम कटियार, डा. मुकेश कुमार, ?डा. डीवी सिंह, डा. सत्यप्रकाश, डा. एसके त्रिपाठी, डा. हेम सिंह और कृषि विज्ञान केंद्र मुरादनगर के कृषि वैज्ञानिक डा. हंसराज सिंह, डा. विपिन कुमार, डा. अनंत कुमार सहित अनेक कृषि वैज्ञानिक मौजूद थे.

मेले के मुख्य आकर्षण

पशु प्रदर्शनी : मेले में पशु प्रदर्शनी पर खासा जोर था. दुनियाभर में नाम कमा चुका मुर्रा नस्ल का भैंसा ‘युवराज’ भी वहां मौजूद था. उस के साथ उस से पैदा हुए अनेक युवा कटड़े और कटिया भी थे. ‘युवराज’ के मालिक कर्मवीर ने बताया कि इस समय इस की कीमत सवा 9 करोड़ रुपए है और इस के सीमन के 1 डोज की कीमत 300 रुपए है. ‘युवराज’ पर

1 महीने में होने वाला खर्च तकरीबन डेढ़ लाख रुपए है. एक बार फिर ‘युवराज’ ने अपनी बादशाहत कायम रखते हुए चैंपियन का खिताब जीता. गांव बुड्ढा खेड़ा, जिला कैथल, हरियाणा के नरेश बेनीवाल भी अपना भैंसा ले कर आए थे, जिस का नाम ‘सुलतान’ था, जो उन के लिए अनमोल है. वे सालभर में उस की देखरेख पर लगभग 5 लाख रुपए खर्च करते?हैं. नरेश बेनीवाल का कहना है कि उन के इस मुर्रा भैंसे की ऊंचाई और लंबाई पूरे भारत में सब से ज्यादा है. नरेश बेनीवाल को भी ‘सुलतान’ के लिए सम्मानित किया गया. इस के अलावा अनेक पशुपालक अपने बैल, सांड़, घोड़ा, भैंस और देशीविदेशी नस्ल के अनेक पशुओं को प्रदर्शनी में लाए थे. कई लोग तो पशुओं के हज्जाम भी साथ लाए थे, जो उन की वहीं पर हजामत और तेल मालिश भी कर रहे थे.

लोकसंगीत कार्यक्रम का जलवा

मेहमानों का स्वागत करने के लिए लोक कलाकार भी वहां मौजूद थे, जो अपने वाद्य यंत्रों से उन का स्वागत कर रहे थे और मेले की रौनक बढ़ा रहे थे. मेले में किसानों के मनोरंजन के लिए कवि सम्मेलन के अलावा रागिनी का भी आयोजन किया गया था. लोकसंगीत कार्यक्रम (रागिनी) आकाशवाणी दिल्ली के कलाकारों द्वारा किया गया. इस कार्यक्रम में नई दिल्ली की रागिनी कलाकार मंजू शर्मा मौजूद थीं. उन के साथ ही ब्रह्मपाल नागर और उन के साथी भी थे.

खाद्य एवं पोषण विभाग द्वारा भी स्टाल

इस मेले में चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के अंतर्गत खाद्य एवं पोषण विभाग द्वारा भी स्टाल लगाया गया, जिस में बाजरे से बने स्वादिष्ठ खाद पदार्थ बिसकुट, केक, लड्डू आदि का प्रदर्शन किया गया. स्टाल पर मौजूद डा. वीनू सागवान लोगों को बाजरे के प्रति जागरूक कर रही थीं. वे बता रही थीं कि खून बढ़ाने से ले कर स्वास्थ्य की दृष्टि से बाजरा बहुत ही फायदेमंद अनाज?है. आज हमारे किसान पारंपरिक अनाज की खेती को छोड़ कर दूसरी दिशा की ओर रुख कर रहे हैं. उन्हें फिर से इस दिशा की ओर काम करना होगा. उन्होंने आगे बताया कि हमारे अनेक पारंपरिक खाद्यान ऐसे?हैं, जिन से अनेक प्रकार की पौष्टिक चीजें बनाई जा सकती हैं और उन्हें बेच कर अच्छा मुनाफा भी कमाया जा सकता है. हमारा केंद्र इस दिशा में समयसमय पर ट्रेनिंग का आयोजन भी करता है, जो कुछ दिनों की होती है.

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