‘‘जी 5’’की हिंदी फिल्म ‘‘सीजंस ग्रीटिंग्स’’के लिए रबींद्रनाथ टैगोर रचित गीत‘‘सजनी सजनी..’’को गाकर वह खुद को गौरवान्वित महसूस करने के अलावा जबरदस्त शोहरत बटोर रही गायिका सयानी पालित किसी परिचय की मोहताज नही है.उन्होने 4 साल की उम्र से पंडित अजय चक्रवर्ती और फिर उनकी पत्नी चांदना चक्रवर्ती से संगीत की विधिवत शिक्षा लेना शुरू किया था.जब वह ‘आई टीसी संगीत रिसर्च’की स्कौलर थी,तब पद्मभूषण गिरिजा देवी से संगीत सीखा.इन दिनों वह ‘‘इन्फ्ल्युएंस आफ ठुमरी इन फिल्म म्यूजिक’’पर पीएचडी कर रही हैं.

बतौर पाष्र्वगायिका 2013 में बंगला फिल्म‘‘प्रलय’’मे गीत गाकर सयानी पालित ने बतौर पाश्र्वगायिका अपने कैरियर की शुरूआत की थी.2015 में हिंदी फिल्म‘‘कट्टी बट्टी’’ में ‘ओ जानिए’गीत गाकर जबरदस्त शोहरत बटोरी थी.तब से वह लगातार सक्रिय हैं.अब तक बीस से अधिक फिल्मों,म्यूजिक वीडियो और एड फिल्म मिलाकर डेढ़ सौ गाने गा चुकी हैं.

प्रस्तुत है सयानी पालित से हुई एक्सक्लूसिब बातचीत के अंष..

लाॅक डाउन के वक्त की आपकी दिनचर्या क्या है?

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-इस वक्त स्टेज शो या गीत रिकार्ड नहीं हो पा रहे हैं.मगर इंटरनेट के माध्यम से ऑन लाइन बहुत कुछ हो रहा है.मैं फेसबुक लाइव पर जाकर कुछ गाती रहती हूं..इसके अलावा मुंबई से किसी ने संगीत की धुन बनाकर भेजी,मैं कलकत्ता में बैठकर गीत गा रही हूं,फिर कोई दूसरा उसे अरेंज कर रहा है.तो इस तरह से ऑन लाइन काफी कोलोब्रेशन हो रहे हैं.मैं संगीत भी सुनती रहती हूं.अपने यूट्यूब चैनल पर हम कई तरह के गीत डालती रहती हूं,जिन्हे मेरे फैंस सुन सके.

आपने कब सोचा कि संगीत को कैरियर बनाया जाए?

-जब मैं स्कूल में भी पढ़ रही थी,तब मैं पढ़ाई के साथ साथ संगीत प्रतियोगिताओं में प्रथम आया करती थी.पर स्कूल दिनों में संगीत को कैरियर बनाने की मेरी कोई योजना नही थी.मैने उन दिनो यह भी नही सोचा था कि मुझे कलाकार बनना है.जबकि मैं 4 साल की उम्र से संगीत के साथ जुड़ी रही हूं.संगीत मेरी रगों में बसा हुआ था.मेरे ऊपर परिवार यानीकि माता पिता की तरफ से भी ऐसा कोई दबाव नही था कि मुझे यही करना पड़ेगा.जब दसवीं कक्षा की पढ़ाई पूरी करने के बाद आगे की शिक्षा हेतु मैं कालेज पहुॅची,तो वहां  पर कंप्यूटर मेरा पसंदीदा विषय था.मैंने कंप्यूटर में बीटेक पढ़ना चाह रही थी.मैने बीटेक में प्रवेश भी ले लिया.उसके बाद मैने अपने संगीत के गुरू अजय चक्रवर्ती जी से मिली और उन्हें बताया कि मैने कालेज में बी टेक करने के लिए प्रवेश लिया है.

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इस पर मेेरे गुरू ने कहा कि,‘तुम पिछले  सोलह वर्ष से संगीत सीखती आयी हो,अब बीटेक की पढ़ाई पूरी करने के बाद जब तुम आई टी सेक्टर में नौकरी करोगी,तो कलाकार कैसे बनोगी?आई टी सेक्टर की नौकरी करते हुए कलाकार नहीं बन पाओगी,इसलिए पहले यह सोचकर निर्णय लो कि आगे क्या बनना है.तुम्हें दोनों में से किसी एक को चुनना होगा.तुम सोचो कि जिसे तुमने अपने जीवन के 16 साल दिए उसमें आगे बढ़ना है या जीवन में कुछ और बनना है.’’गुरू अजय जी की बातों ने मुझे सोचने पर मजबूर किया.और मैने निर्णय लिया कि मुझे एक कलाकार बनना है.तब मैंने ‘बीटेक’नहीं किया और फिर बीसीए किया.मैंने संगीत में ही स्नातक की डिग्री हासिल की.इन दिनों मैं संगीत में डॉक्टरी यानी कि पीएचडी कर रही हूं..इस तरह मैं कह सकती हूं  कि हाईस्कूल की परीक्षा पास होने के बाद मैने संगीत की तरफ बढ़ने का निर्णय लिया था.उसी वक्त मैने निर्णय लिया था कि मुझे प्रोफेशनल संगीतकार बनना है.मुझे संगीत के क्षेत्र में कुछ नया रचनात्मक काम करना है.और पिछले दस वर्षों से प्रोफेशनल गायक के तौर पर काम करती आयी हूं..मैं हिंदी व बंगला फिल्मों में पाश्र्व गायन किया है और अभी भी कर रही हूं..मैने कुछ संगीत अलबम भी बनाए हैं.

आपने पटियाला घराने के अजय चक्रवर्ती और बनारस घराने की गिरिजा देवी से संगीत सीखा.दोनों अलग अलग घराने से हैं.आपने इनसे क्या सीखा और आपके कैरियर को किससे ज्यादा मदद मिली?

-देखिए,जैसा कि मैने अभी बताया कि मैं फिल्मों में पाश्र्वगायन कर रही हूं,जहां  क्लांसिक गीत गाने के मौके न के बराबर हैं.जब मैं इन दो महान गुरूओं से संगीत सीख रही थी,उस वक्त मेरी सोच यह थी कि संगीत सीखने वाला विषय है.संगीत मन को सकून देता है.आनंद देता है.एक अलग अनुभूति देता है.अगर आप संगीत को ध्यान से सीखोगे और क्लासिकल संगीत सीखने से फायदा यह होता है कि कलाकार हर तरह का गाना बाखूबी गा सकता है.हर तरह के गीत गाने के लिए गायक के तौर पर संगीत का आधार मजबूत होना चाहिए.तो पं. अजय चक्रवर्ती और गिरिजा देवी जैैसे गुरूओं से मुझे जो सीख मिली,उसी से मेरा संगीत का आधार सषक्त व मजबूत हुआ है.यही वजह है कि मैं किसी भी राग व धुन का गीत हो,गा लेती हूं.यह मेरे गुरूओं द्वारा मुझे दी गयी शिक्षा से ही संभव हो पा रहा है.

ठुमरी से आपको कुछ ज्यादा ही लगा है.आपइन्फ्ल्युएंस आफ ठुमरी इन फिल्म म्यूजिक’’विषय पर पीएचडी कर रही हैं?

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-जी हाॅ!मैं‘‘इन्फ्ल्युएंस आफ ठुमरी इन फिल्म म्यूजिक’’पर पीएचडी कर रही हॅूं.ठुमरी के प्रति मेरा लगाव भी है,शौक भी है.मैने पं.अजय चक्रवर्ती से पटियाला का ठुमरी और गिरिजा देवी से बनारस का ठुमरी सीखा है.

ठुमरी की मैं बहुत शौकीन हूं..देखिए,मुझे क्लासिकल संगीत/शास्त्रीय संगीत  में रूचि है,तो वहीं मैं फिल्मों में पाश्र्व गायन करना भी पसंद करती हूं.मैने अब तक जिन फिल्मों के लिए पाश्र्व गायन किया है,उनमें से कई फिल्मों में मैने ठुमरी गायी है.इसलिए जब मेरे सामने प्रष्न आया कि मुझे पीएचडी यानीकि शोध कार्य कै लिए एक विषय चुनना है,तो मैने यह विषय चुना.इसमें ठुमरी और क्लासिकल संगीत दोनों का समावेष है.1996 से 2016 के बीच जिन फिल्मों में भी ठुमरी आयी है,उस पर मेरी यह पीएचडी/शोध कार्य है.अभी पीएचडी पूरी नही हुई है.

आपकी पीएचडी पूरी नही हुई है,पर अब तक शोध से आपने क्या पाया?क्या फिल्मों मंे ठुमरी को उचित स्थान मिल पा रहा है?

-देखिए,अब तो बाॅलीवुड का संगीत काफी वेस्र्टनाइज हो गया है.ठुमरी मंे रंग रस बहुत है.एक सैड साॅंग तो वहीं एक प्रेम निवेदन वाले गीत में भी ठुमरी हो सकती है.ठुमरी में बहुत  प्रयोग किए जा सकते हैं.कुछ प्रयोग तो बहुत बेहतरीन हुए हैं.विशाल भारद्वाज ने ठुमरी में काफी अच्छा प्रयोग किया है.प्रीतम दा,ए आर रहमान ने भी ठुमरी में कुछ प्रयोग किए हैं.मगर मुझे लगता है कि अभी बाॅलीवुड और टाॅलीवुड ठुमरी में और अधिक प्रयोग हो सकते हैं.मैं तो इस बात को लेकर बहुत आशावादी हूूं..

आपने दस वर्ष के कैरियर में जिन गीतों में ठुमरी गायी है,उनमें किस तरह के प्रयोग किए हैं?

-मैं 2013 से बंगला फिल्मों में पाश्र्व गायन करती आ रही हूं.मैने अपने कैरियर की शुरूआती बंगला फिल्म ‘‘हनुमान डाॅट काम’’में ठुमरी गायी थी.इसमें मैंने एक ट्रैक ‘‘मोमो चिट्टे..’’गाया था,इसमें रवींद्रनाथ टैगोर के गीत के साथ ‘तोहरे नैना जादू भरे..’’ठुमरी का फ्यूजन हुआ था.इस फिल्म में बंगला के सुपरस्टार प्रसन्नजीत ने अभिनय किया है.उसके बाद 2019 में बंगला फिल्म ‘‘मुखो मुखी’’में मैने बड़े गुलाम अली की मषहूर ठुमरी ‘‘याद पिया की आए’गायी है.मेेरे अलावा रेखा भारद्वाज,रशीद खान, सहित कई कलाकारों ने फिल्मों में ठुमरी गायी है.

2015 में हिंदी फिल्म‘‘कट्टी बट्टी’’में गाने के बाद दूरी हिंदी फिल्म‘‘सीजंस ग्रीटिंग्स’’मिलने में चार वर्ष का समय लग गया?

-इमानदारी की बात यही है कि मैं बंगला फिल्मों में कुछ ज्यादा ही व्यस्त रही.मगर इस बीच मैंने कुछ विज्ञापन फिल्मों में हिंदी में गाया.कुछ हिंदी फिल्मों के लिए मैने गाया है,जिनकी रिलीज की तारीख तय नहीं और जब तक निर्माता उसकी घोषणा न कर दे,मैं कुछ बोलना नहीं चाहती.‘सीजंस ग्रीटिंग्स’के बाद दो तीन संगीतकारों ने फोन किया है,दो हिंदी फिल्मों में पाश्र्व गायन के आफर आए हैं.पर अभी लॅाक डाउन के चलते मैं कलकत्ता में ही हूं.तो जैसे ही कोई प्रगति होगी,बताउंगी.मुझे बंगला और हिंदी दोेनों भाषा की फिल्मों में पाश्र्व गायन करना है.मैं दोनो को साथ मे ही लेकर चलना चाहती हूं.

जब आप स्टेज पर लाइव गाती हैं और जब आप स्टूडियो मंे कोई गाना रिकार्ड करती हैं,तो किस तरह का फर्क रखती हैं?

-जब मैं किसी फिल्म के लिए पाश्र्व गायन करती हूं.,गाना रिकार्ड करती हॅूं,उस वक्त मेरे दिमाग में वह कलाकार जिस पर यह गाना फिल्माया जाना है के अलावा फिल्म का किरदार और गीत की सिच्युएशन रहती है.कहानी क्या है,वह किरदार क्या कहना चाहता है,उसी हिसाब से मुझे गाने को टोन देना होता है.क्योकि उस वक्त मैं फिल्म का प्रतिनिधित्व कर रही होती हूं.,तो गाने में उसी सिच्युएशन को डालती हूं..जब मैं स्टेज पर गाती हूॅं,उस वक्त मेरा ध्यान इस बात पर रहता है कि सामने बैठे दर्शक/श्रोता के साथ मेरा जुड़ाव बना रहे.तो दोनों बहुत अलग हैं.एक में दर्शक/श्रोता मुझे देख रहा है,मेरा गाना सुनकर मेेरे साथ जुड़ रहा है.जबकि दूसरे में दर्शक मुझे नहीं देख रहा है,पर मेरे द्वारा स्वरबद्ध गीत को सुनकर वह किरदार के साथ जुड़ता है.

इन दिनों कहा जा रहा है कि जब लाइव साॅंग रिकार्डिंग होती थी,उस वक्त एक गायक के लिए गाना रिकार्ड करना काफी कठिन हुआ करता था.मगर जब सेकी बोर्डका सिस्टम आया है,तब से कोई भी इंसान गायक बन सकता है.आपकी राय?

-मैं ऐसा नही मानती.मैंने लाइव षो में एक घंटा क्लासिक,एक घांटा ठुमरी और एक घांटा बाॅलीवुड साॅंग भी गाया है.मैने फिल्मों के लिए भी रिर्काडिंग की है.इसलिए यह आम राय बनाना गलत है कि आज के युवा गायक संगीत में माहिर नही है.मेरे अलावा भी कई गायक संगीत में महारत रखते हैं और हर तरह के गीत गा सकते हैं.मैं यह  जरुर मानती हूं कि आज की युवा पीढ़ी सब कुछ जल्दी जल्दी पा लेना चाहती है.इसी के चलते वह संगीत की गहन शिक्षा लेने की बजाय दो तीन वर्ष के बाद संगीत सीखना बंद कर देती है.पर यह हर किसी की निजी सोच है.मेरी राय में हर कलाकार को हर दिन संगीत की शिक्षा लेनी चाहिए.रियाज करना चाहिए.जैसे जैसे उसका अनुभव बढ़ता है,उसकी शिक्षा सशक्त होती जाती है.वैसे वैसे उसके संगीत,उसके गायन में निखार आता जाता है.मैं जब भी स्टूडियो जाती हॅंू,मै माइक पर अपनी ‘वाॅयस माॅडंलिंग’करती हूं..कलाकार तो आजीवन सीखता रहता है.मैने 22 वर्ष तक गुरू से संगीत की शिक्षा ली.उसके बाद हम जब स्टूडियो पहुॅचते हैं,लाइव शो में जाते हैं,तब भी कुछ न कुछ सीखते हैैं.घर पर भी हर दिन रियाज करते हुए सीखते हैं.

आप रियालिटी शो का हिस्सा रह चुकी हैं.इन दिनों यह चर्चा हो रही है कि संगीत डांस के रियालिटी शो से बच्चों का भविष्य बिगड़ता है? रियालिटी शो में जबरदस्त षोहरत पाने वाले कलाकार भी बाद में कुछ कर नहीं पाते?

-मेरी बात कुछ अलग है.मैं चार रियालिटी शो का हिस्सा रही हॅंू.एक-मंुबई दूरदर्षन के क्लासिकल संगीत पर आधारित रियालिटी षो ‘‘नाद हिट’’,2014 में ‘‘बिग गोल्डन वाॅयस’, ‘राइजिंग स्टार’और बंगाला स्टार प्लस पर आए रियालिटी शो का हिस्सा रही हूं.पिछले चार वर्ष से बंगला टीवी चैनल पर आ रहे रियालिटी शो‘‘बिग गोल्डन वाॅयस’’को मैं जज कर रही हूं..मेरे लिए किसी रियालिटी शो का हिस्सा बनना या रियालिटी शो को जज करने  का मेरे गायन व संगीत कैरियर से कोई लेना देना नहीं है.क्योंकि मैंने 22 वर्ष तक संगीत सीखा.2010 से स्टेज षो पर गाने लगी थी और 2012 से फिल्मों मंे पाश्र्वगायन कर रही थी.ऐसे मे रियालिटी षो का मेरे कैरियर से संबंध नही है.मैं रियालिटी शो का प्रोडक्ट पैदाइश नही हूं.मुझे लगता है कि आप किसी नए गायक की बात कर रहे हैं,जो कि सीधे रियालिटी शो में आया और स्टार बन गया.यह अलग मसला है.

मेरा सवाल यह था कि टीवी के रियालिटी शो के प्रोडक्ट पैदाइश कह खो जाते हैं?

-कमी यह होती है कि वह दो तीन वर्ष संगीत सीखते हैं और फिर रियालिटी षो में आ जाते हैं.फिर जब वह कैरियर बनाने के लिए मैदान मंे उतरते हैं,तो समस्या आती है.देखिए वैसे तो हर इंसान कलाकार को संघर्ष तो करना ही पड़ता है.दूसरी वजह यह हो सकती है कि वह रातों रात रियालिटी षो की वजह से स्टार बन गयी हो.उसके बाद वह खो गयी.क्योंकि स्टारडम में चूर उसने संघर्ष करने को अहमियत नही दी.जबकि यहां पर अनभव की अपनी अहमियत है.

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