छोटा पशुपालक किसान हो या डेरी चलाने वाला कोई कारोबारी, सब अपने पशुधन का बहुत खयाल रखते हैं, ताकि दूध देने के मामले में पशु नंबर वन रहे, यही बात गाय पर भी लागू होती है. यहां हम दुधारू गाय कैसे तैयार की जाती है, इस बारे में एक सीरीज चला रहे हैं, जिस में माहिर डाक्टर ने सस्ते और कारगर उपाय बताए हैं…
किसी भी डेरी की कामयाबी के लिए जरूरी है कि उस में अच्छी दुधारू गाएं हों. दुधारू गाएं बाजार से खरीद कर लाने से बेहतर है कि अपनी खुद की दुधारू गाय तैयार की जाए.?
आप के फार्म पर जो बछिया मौजूद है, अगर आप उस की सही देखभाल करेंगे, उसे सही मात्रा में पोषण उपलब्ध कराएंगे, तो बड़ी हो कर वही बेहतरीन दुधारू गाय बनेगी.
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पैदा होने वाली बछिया अच्छी दुधारू गाय बनेगी या नहीं, इस की नींव उस के पैदा होने से भी पहले पड़ जाती है. इस के लिए सब से खास है गर्भाधान. उस बछिया को पैदा करवाने के लिए गाय का गर्भाधान, जिस वीर्य से कराया गया है, उसी के मुताबिक आनुवंशिक गुणों वाली बछिया पैदा होगी. अगर अच्छी नस्ल के सांड़ के वीर्य से गर्भाधान करवाया गया है, तो पैदा होने वाली बछिया भी निश्चित रूप से उत्तम गुणवत्ता की होगी.
दूसरा अहम बिंदु है कि गर्भकाल के दौरान गाय को अगर समुचित पोषण उपलब्ध करवाया गया है, तो पैदा होने वाली बछिया का देह भार आशा के अनुरूप होगा और बाद में वह अच्छी दुधारू गाय के रूप में विकसित होगी. कम देह भार वाली बछिया भविष्य में अच्छी दुधारू गाय नहीं बन सकेगी.
तीसरा अहम बिंदु है कि पैदा होने के बाद नवजात बछिया का पोषण अगर सही से हुआ है, तो वह निश्चित रूप से अच्छी दुधारू गाय बनेगी.
चौथा अहम बिंदु है कि बढ़वार के दौरान उस बछिया को संतुलित पोषण उपलब्ध कराया जाना. अगर बछिया को सभी पोषक तत्त्व उस की आवश्यकता के अनुरूप दिए जाएंगे, तो उस की दैनिक बढ़वार संतोषजनक होगी और वह नियत समय तक उतना देह भार ग्रहण कर लेगी, जितना उस के गर्भाधान के लिए जरूरी है. इस के बाद समय पर ऋतुमयी हो कर गर्भधारण करेगी और एक बेहतरीन दुधारू गाय बनेगी.
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3 महीने की उम्र तक का समय अहम
बछिया के जन्म से ले कर 3 महीने की उम्र तक का समय सब से अहम होता है. बच्चा मां के पेट से बाहर निकल कर नए वातावरण में आता है, तो उसे तरहतरह के तनावों का सामना करना पड़ता है. ऐसी हालत में पोषण और प्रबंधन बहुत खास हो जाता है.
पैदा होने के तुरंत बाद उसे मां का दूध, जिसे खीस भी कहते हैं, पिलाया जाना बहुत जरूरी होता है. जन्म के पहले 4 घंटे के दौरान पिलाया गया खीस नवजात बछिया को बीमारियों से लड़ने की खास ताकत देता है, इसलिए इसे अमृत के समान कहा गया है.
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खीस में ऐसा क्या है?
खीस में एक विशेष प्रकार का प्रोटीन होता है. इसे इम्युनोग्लोबुलिंस कहते हैं. इम्युनोग्लोबुलिंस वे सिपाही हैं, जो बछिया के ऊपर किसी भी प्रकार के बैक्टीरिया या वायरस के हमले के समय लड़ते हैं और बछिया की उन तमाम बीमारियों से रक्षा करते हैं.
खीस में 70 फीसदी से 80 फीसदी तक इम्युनोग्लोबुलिंस ‘जी’ होते हैं, जो शरीर में प्रवेश करने वाले किसी भी रोगकारक को नष्ट कर देते हैं.
खीस में 10 फीसदी से 15 फीसदी तक इम्युनोग्लोबुलिंस ‘एम’ होते हैं. यह सैप्टिक फैलाने वाले बैक्टीरिया को खत्म करते है.
खीस में 15 फीसदी तक इम्युनोग्लोबुलिंस ‘ए’ होते है, जो बछिया की आंतों में चढ़े सुरक्षा कवच ‘म्यूकोसा’ को बचाते हैं और किसी भी रोगकारक के सामने ढाल बन कर खड़े हो जाते हैं.
सब से अहम बात यह है कि जन्म के पहले 4 घंटों में इन इम्युनोग्लोबुलिंस का बछिया की आंतों में अवशोषण सब से ज्यादा होता है. जैसेजैसे समय बीतता जाता है, आंतों की इन को अवशोषित करने की क्षमता घटती जाती है.
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इसलिए यह देखा गया है कि जिन बछियों को जन्म के पहले 4 घंटों के अंदर खीस नहीं मिलता है, उन के अंदर रोग ज्यादा लगते हैं और उन बछियों में मृत्युदर भी अपेक्षाकृत अधिक होती है.
खीस में इन इम्युनोग्लोबुलिंस के अलावा प्रोटीन, विभिन्न विटामिंस, मिनरल्स, ऊर्जा प्रदान करने वाले लैक्टोज और फैट होते हैं. इस के अतिरिक्त खीस में कुछ मात्रा में इंसुलिन हार्मोन और अन्य ग्रोथ फैक्टर (आईजीएफ-1) होते हैं, जो बछिया को ऊर्जा प्रदान करते हैं और उस की बढ़वार में सहायक होते हैं.
बछिया के जन्म से ले कर अगले 24 घंटे के दौरान गाय से निकलने वाले दूध को खीस कहते हैं और
24 से 72 घंटों के बीच निकलने वाले दूध को ट्रांजिशन मिल्क कहते हैं.
खीस और ट्रांजिशन मिल्क का संगठन सामान्य दूध से अलग होता है. 72 घंटों के बाद निकलने वाले दूध का संगठन बदल जाता है और इसे सामान्य दूध कहते हैं. इस सामान्य दूध को ही बेचा जाता है.
4 घंटों के अंदर खीस पिलाया जाना जरूरी
नवजात बछिया को जन्म के 4 घंटों के अंदर खीस पिलाया जाना बहुत जरूरी है. जिन बछियों को इन पहले 4 घंटों के दौरान खीस नहीं पिलाया जाता, उन के जिंदा रहने की संभावना कम हो जाती है. अगर वे जिंदा रहें भी तो वे अच्छी दुधारू गाय बन ही नहीं सकतीं.
बछिया जब पैदा होती है, तो उस की अपनी कोई रोग प्रतिरोधकता नहीं होती है, जिस के कारण वह बहुत जल्दी किसी भी रोग की चपेट में आ सकती है. खीस उसे रोग प्रतिरोधकता प्रदान करता है और उस के खुद के रोग प्रतिरोधक तंत्र को विकसित करने में सहायता प्रदान करता है.
जब बछिया पैदा होती है तो उस के पास न तो पर्याप्त ग्लाइकोजन स्टोर होता है और न ही इतना फैट होता है कि इन दोनों के उपापचय से बछिया को जीने के लिए पर्याप्त ऊर्जा मिल जाए. इस समय बछिया को ऊर्जा मिलती है खीस से ही. खीस में मौजूद कुल सौलिड का तकरीबन 5वां हिस्सा आसानी से पचने योग्य फैट होता है. इसी फैट के पाचन से बछिया को आवश्यक ऊर्जा मिलती है और उस की वृद्धि होती है.
बछिया मां के पेट के अंदर हमेशा एक निश्चित वातावरण और तापमान में रही है. पेट से बाहर आने के बाद वातावरण का तापमान भिन्न होता है. खीस के कारण ही बछिया उस तापमान से तालमेल बैठा पाती है.
एक स्टडी में तो यहां तक पाया गया है कि खीस पीने के 1 घंटे बाद बछिया के शरीर का तापमान 15 फीसदी तक बढ़ जाता है.
खीस में मौजूद इम्युनोग्लोबुलिंस का अवशोषण वैसे तो अगले 16 घंटों तक होता रहता है, मगर सर्वाधिक अवशोषण पहले
4 घंटों में ही होता है. बछिया को इन पहले
4 घंटों में खीस न पिलाने से उसे जीवन के पहले एक महीने के दौरान श्वसन तंत्र के रोगों से सामना करना पड़ेगा और 30 फीसदी मामलों में बछिया की मौत तक हो जाती है.
इम्युनोग्लोबुलिंस के अलावा खीस में ‘लैक्टोफेरिन’ पाया जाता है, जिस के कारण बछिया विभिन्न बैक्टीरिया, फंगस, वायरस और प्रोटोजोआ के हमलों से बची रहती?है. इसी के कारण बछिया में डायरिया के कारण होने वाली मौतों पर भी लगाम लगती है.
बछिया जब पैदा होती है, तो उस की आंतों में कोई भी लाभकारी माइक्रोफ्लोरा नहीं होता है. खीस में कुछ खास लाभकारी बैक्टीरिया भी मौजूद होते हैं, जो बछिया की आंतों में जा कर सैटल हो जाते हैं. लाभकारी बैक्टीरिया की उपस्थिति के कारण वहां हानिकारक बैक्टीरिया पनप नहीं पाते. खीस पीने वाली बछिया को सब से घातक बैक्टीरिया ई कोलाई का इंफैक्शन बहुत कम होता है.
खीस पीने वाली बछिया की उत्पादकता बेहतर होती है और वह अच्छी दुधारू गाय बनने के बाद ज्यादा समय तक जिंदा रहती है.
जिन बछियों को खीस पिलाया जाता है, उन में वृद्धिकाल में वृद्धि की दर भी अपेक्षाकृत अधिक होती है और वह अपेक्षाकृत कम समय में सर्विस कराए जाने के लिए तैयार हो जाती है.
जिन बछियों को खीस पिलाया जाता है, वे अपने पहले ब्यांत में ज्यादा दूध देती हैं.
खीस दस्तावर भी होता है, जिस के कारण बछिया के पेट में मौजूद मल जिसे मैकोनियम कहते हैं, आसानी से बाहर निकल जाता है.
बछिया का भरणपोषण किस तरह से करना होगा?
बछिया के जन्म के बाद शुरुआती 4 घंटों में पिलाया गया खीस, उस के बाद के 68 घंटों में पिलाया गया खीस और फिर 6 महीने की उम्र तक पिलाया गया दूध और उसे खिलाए गए अन्य खाद्य पदार्थ जैसे हरा चारा, सूखी मुलायम घास और काफ स्टार्टर उस की वृद्धि और परिपक्वता को निर्धारित करेंगे.
हमारा लक्ष्य यह होना चाहिए कि बछिया को इस तरह से पोषण दिया जाए कि पहली सर्विस के समय वह परिपक्व देहभार का कम से कम 60 फीसदी से 70 फीसदी देहभार प्राप्त कर ले.
बछिया जिस प्रजाति की है, उस प्रजाति
की बड़ी गाय का औसत देहभार अगर 400 किलोग्राम होता है, तो सर्विस कराते समय औसर (हीफर) का वजन कम से कम
240 किलोग्राम होना चाहिए या दूसरे शब्दों में यह कह सकते हैं कि जितनी जल्दी औसर का वजन 240 किलोग्राम होगा, उतनी ही जल्दी वह सर्विस कराए जाने के काबिल हो जाएगी.