प्रथा नहीं जानती थी कि जरा सी बात का बतंगड़ बन जाएगा. हालांकि अपने क्षणिक आवेश का उसे भी बहुत दुख है लेकिन अब तो बात काफी बिगङ चुकी है. वैसे भी विवाहित ननदों के तेवर सास से कम नहीं होते. फिर रजनी तो इस घर की लाड़ली छोटी बेटी थी. सब के स्नेह की इकलौती अधिकारी... उस के लिए ही नहीं बल्कि पूरे परिवार के लिए यह जरा सी बात भी बहुत बड़ी बात थी.
“हां, जरा सी बात ही तो थी... क्या हुआ जो आवेश में रजनी को एक थप्पड़ लग गया. उसे इतना तूल देने की कहां जरूरत थी?
"वैसे भी मैं ने किसी द्वेष से तो उसे थप्पड़ मारा नहीं था. मैं तो रजनी को अपनी छोटी बहन सा मान देती हूं. रजनी की जगह मेरी अपनी बहन होती तो क्या इसे पी नहीं जाती? लेकिन रजनी लाख बहन जैसी होगी, बहन तो नहीं है न इसीलिए परेशान कर रखा है,” प्रथा जितना सोचती उतना ही उलझती जाती, लेकिन मामले को सुलझाने का कोई सिरा उस के हाथ में नहीं आ रहा था.
दूसरा कोई मसला होता तो प्रथा पति भावेश को अपनी बगल में खड़ा पाती लेकिन यहां तो मामला उस की अपनी छोटी बहन का है, जिसे रजनी ने अपने स्वाभिमान से जोड़ लिया है. अब तो भावेश भी उस से नाराज है. किसकिस को मनाए... किसकिस को सफाई दे... प्रथा समझ नहीं पा रही थी.
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हालांकि भावावेश में ननद पर हाथ उठते ही तो प्रथा को अपनी गलती का एहसास हो गया था लेकिन वह जली हुई साड़ी बारबार उसे अपनी गलती नहीं मानने के लिए उकसा रही थी.
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