हाल ही में हरियाणा कैडर की आईएएस अधिकारी रानी नागर ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया. इस्तीफे की वजह उन्होंने सरकारी ड्यूटी के दौरान निजी सुरक्षा को बताया.
रानी नागर ने एक ट्वीट कर के लिखा था कि चंडीगढ़ गेस्ट हाउस में कई बार उन के खाने में स्टेपलर पिनें मिली हैं.
अपनी निजी सुरक्षा का हवाला देते हुए उन्होंने 4 मई 2020 को इस्तीफा दे दिया. हालांकि, हरियाणा के सीएम मनोहर लाल खट्टर ने उन का इस्तीफा मंजूर नहीं किया है.
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वैसे, रानी नागर ने पहले ही इस की शंका जताते हुए कहा था कि अगर उन का इस्तीफा नामंजूर होता है तो इस का मतलब है कि उन का शोषण होता रहेगा.
रानी नागर कई दिनों से अपनी सुरक्षा की मांग कर रही थीं, लेकिन उन्हें सुरक्षा मुहैया नहीं कराई जा रही थी.
रानी नागर पहली आईएएस अधिकारी नहीं हैं, जिन्होंने अपने पद से इस्तीफा दिया है, बल्कि उन से पहले भी कई आईएएस अधिकारी अपने पद से इस्तीफा दे चुके हैं.
दक्षिण कन्नड़ के डिप्टी कमिश्नर शशिकांत सेंथिल ने भी अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया था. उन्होंने निजी वजह से इस्तीफा देने का स्टेंटमेंट जारी किया था.
उन का कहना था कि मौजूदा दौर में जब हमारे विविधतापूर्ण लोकतंत्र के सभी संस्थान अभूतपूर्व तरीके से समझौता कर रहे हैं, ऐसे में उन का काम जारी रखना अनैतिक होगा.
उन्होंने यह भी कहा था कि आने वाला समय हमारे देश के मूल स्वभाव के लिए और चुनौतीपूर्ण होने वाला है. इसलिए बेहतर होगा कि वे आईएएस सेवा से बाहर रह कर लोगों के जीवन में भलाई लाने का काम करें.
उन के पहले भी साल 2012 बैच के आईएएस अधिकारी कन्नड़ गोपीनाथन ने भी अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया था.
उन्होंने कश्मीर में जनता के मौलिक अधिकारों के हनन का सवाल उठाते हुए नौकरी छोड़ी थी. उन का मानना था कि सरकार ने अनुच्छेद 370 खत्म कर कश्मीर की जनता के साथ अन्याय किया है.
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गोपीनाथन और सेंथिल दोनों ही काबिल आईएएस अधिकारी थे. कन्नड़ गोपीनाथन साल 2018 में केरल में आई बाढ़ से लोगों को बचाने के लिए सामने आ कर चर्चा में आए थे, वहीं 2009 बैच के सेंथिल यूपीएससी परीक्षा में तमिलनाडु टौपर रहे थे.
इन दोनों की ही तरह शाह फैसल, जो कि आईएएस टौपर थे, कश्मीर में हो रही हिंसा के विरोध में अपनी सरकारी नौकरी छोड़ दी थी. ऐसे कई और आईएएस अधिकारी हैं, जिन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया.
एक के बाद एक क्यों नौकरी छोड़ रहे हैं आईएएस अफसर ?
अब सवाल यह उठता है कि एक के बाद एक आईएएस अफसर नौकरी क्यों छोड़ रहे हैं?
देश की जिस सब से बड़ी और रसूख वाली सरकारी नौकरी हासिल करने का सपना हर युवा देखता है, उस को लोग छोड़ क्यों रहे हैं ? कड़ी मेहनत से नौकरी हासिल करने के बाद एक झटके में इस्तीफा दे दें के पीछे असल वजह क्या है.
कई आईएएस अधिकारियों ने सरकार से विरोध जताते हुए अपनी नौकरी छोड़ी है. तो क्या अफसरों का मौजूदा सरकार के साथ काम करना मुश्किल हो जाता है ? क्या सरकार अफसरों के साथ ज्यादा सख्ती करती है ? या सरकार की संवैधानिक संस्थाओं को नुकसान पहुंचाने के जो आरोप लगते हैं, वे सही हैं ?
हो सकता है कि कई बार बेहतर संभावना की तलाश में भी अधिकारी सब से बड़ी नौकरी को लात मार देते हैं. लेकिन कई बार काम के तनाव या दबाव में भी उन्हें इस्तीफा देना पड़ जाता है. और कई बार नौकरी से ऊब के कारण भी अधिकारी अपनी जौब से इस्तीफा दे देते हैं.
ऐसे कई उदाहरण हैं, जिस में बेहतर संभावना की तलाश में आईएएस जैसे बड़े सरकारी पदों पर बैठे लोगों ने नौकरी छोड़ दी.
दूसरी अहम बात है कि चाहे देश की सब से बड़ी नौकरी ही सही, लेकिन है ये नौकरी ही. इस में भी बाकी नौकरियों की तरह तनाव और प्रेशर होता है.
आईएएस की नौकरी में भी होता है तनाव और प्रेशर…
आईपीएस की नौकरी से इस्तीफा देने वाले राजन सिंह का कहना है, “मैं ने आईएएस बनने के लिए कड़ी मेहनत की. लेकिन नौकरी हासिल करने के बाद उस से भी 100 गुना ज्यादा मेहनत करनी पड़ रही थी, इसलिए मैं ने नौकरी छोड़ दी.”
राजन सिंह कहते हैं कि मैं ने कई लाचार और बेबस आईएएस और आईपीएस अफसर देखे हैं. वे योग्यता और क्षमता में स्तरहीन थे.
उन्होंने लिखा है कि सिस्टम काम नहीं करता है और आप इस को फिक्स नहीं कर सकते. सारे लोग लाचार और बेबस दिखते हैं. नकारे लोगों की पूरी लेयर होती है. एक के बाद एक नकारे लोग मिलते जाते हैं. लेकिन इसी में हम काम करना भी सीख लेते हैं.
राजन सिंह कहते हैं कि सभी लोग आप को दबाने में लगे रहते हैं. नेता, आप के सीनियर, आप के जूनियर… सभी.
इसी तरह एक आईएएस अधिकारी का कहना है कि जब लोग पहली बार पुलिस फोर्स में जौइन करते हैं, तब आंखों में एक चमक होती है. उन के दिमाग में ‘सिंघम’ जैसे आइडियाज होते हैं. लेकिन जैसेजैसे दिन बीतते हैं, वैसे धीरेधीरे उन की बनाई विचारधारा कम होतेहोते खत्म हो जाती है. और इस का पहला साइन यह होता है कि अधिकारी वो करने लगते हैं, जो उस का पौलिटिकल बौस चाहता है न कि जो लॉ, कानून, चाहता है.
पीएस कृष्णन ने आईएएस अधिकारी बनने के बाद अपनी पोस्टिंग के दौरान ही सामाजिक न्याय के पक्ष में कई पहल की. इस के बदले उन्हें कई बार अपमान भी झेलना पड़ा था.
बड़ी नौकरियों के अपने हैं जोखिम…
आईएएस सब से बड़ी नौकरी है, तो जिम्मेदारियां भी बड़ी होती हैं जिसे संभालना भी उतना ही जोखिमपूर्ण है. ऐसे अधिकारियों की भी भरमार है, जो नौकरी में रहते हुए बेजा फायदा उठा रहे हैं. वहीं ऐसे भी हैं, जो बिना डरे अपना काम करते जाते हैं. और कई ऐसे भी हैं, जिन्हें नेताओं और मंत्रियों से दब कर काम करना पड़ता है. कई बार इसी दवाब को झेला नहीं जाता और अधिकारी नौकरी छोड़ देते हैं.
साल 2016 में समाचारपत्रों में खबरें आई थीं कि मंत्री यशपाल आर्य के दबाव के चलते एक आईएएस अधिकारी अक्षत गुप्ता को अटैक आ गया था, जिस से उन की मौत हो गई थी.
सत्ता में रह रहे बहुत से मंत्रियों ने मन का काम न होने पर अपने अधिकारों का दुरुपयोग किया है और अधिकारी विशेष को जितना हो सकता था, जलील करने के साथ जम कर प्रताड़ित भी किया है. बहुत से कार्मिक तो उस दबाव को काउंसिलिंग के चलते झेल पाते हैं. जो नहीं झेल पाते, इस्तीफा दे देते हैं.
मंत्रियों के दबाव में अच्छेअच्छे अधिकारियों के तबादले भी करा दिए जाते हैं. लेकिन ऐसे भी आईएएस अधिकारी हुए, जो बिना किसी से डरे अपने काम को अंजाम देते रहे.
उन्हीं में से एक थे टीएन शेषन, जो 1955 के बैच के थे. उन्हें 12 दिसंबर, 1990 को भारत के 10वें मुख्य चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त किया गया था.
टीएन शेषन को चुनावों में सुधार का श्रेय जाता है. वे बेहद कड़क आईएएस अफसर थे. उन से देश के कई नेता भी डरते थे. उन के बारे में यह भी कहा जाता है कि उन्होंने जिस भी मंत्रालय में काम किया, वहां सभी बेहतर होने लगे.
मुख्य चुनाव आयुक्त बनने के बाद टीएन शेषन और राजनेताओं के बीच बयानबाजी चलती रही.
उन्होंने एक इंटरव्यू में यहां तक कह दिया था कि “आई ईट पौलिटीशियंस फॉर ब्रेकफास्ट.“ यानी मैं नाश्ते में नेताओं को खाता हूं.
भारतीय चुनाव व्यवस्था में पारदर्शिता लाने वाले टीएन शेषन को कई राजनेताओं के विरोध का सामना करना पड़ा था. हालांकि, वे चुनाव व्यवस्था को सुधारने के लिए काम करते रहे. यही कारण है कि उन्हें रैमोन मैगसेसे अवार्ड से नवाजा गया था. उन्हें साल 1996 में यह पुरस्कार मिला था.
मोदी सरकार ने अधिकारियों पर सख्ती भी दिखाई है. साल 2015 में परफौर्म न करने वाले 13 ब्यूरोक्रैट्स को मोदी सरकार ने नौकरी से हटा दिया. तकरीबन 45 अधिकारियों के पेंशन के पैसे काट लिए.
एक खबर के मुताबिक, सरकार तकरीबन 1,000 आईएएस अधिकारियों के कामों को रिव्यू कर रही है. इन में से जिन्होंने 25 साल की सर्विस पूरी कर ली हो या फिर 50 की उम्र में पहुंच गए हों, उन की ज्यादा सख्ती से निगरानी की जा रही थी. सरकार ने लापरवाही और काम न करने वाले अधिकारियों को दंडित करना शुरू किया.
राजनीतिक में जाने के लिए भी आईएएस अधिकारी छोड़ देते हैं नौकरी
साल 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले कई आईएएस अफसरों ने इसलिए नौकरी छोड़ दी, क्योंकि उन्हें राजनीति में जाना था. सितंबर, 2018 में ओडिशा कैडर की आईएएस अधिकारी अपराजिता सारंगी ने वालंटियरी रिटायरमेंट ले लिया. इन्होंने नौकरी छोड़ कर भाजपा यानी भारतीय जनता पार्टी जौइन कर ली. इसी तरह से साल 2005 बैच के आईएएस अफसर ओपी चौधरी ने नौकरी से इस्तीफा दे दिया और भाजपा जौइन कर ली.
ऐसे कई उदाहरण हैं, जहां अधिकारी नौकरी को लात मार कर राजनीति में घुस गए. आईएएस बड़ी नौकरी है. लेकिन नौकरी की मजबूरी होती है और संभावनाएं सिर्फ आईएएस तक जा कर ही खत्म नहीं होतीं.