मुनिवार नारद ने स्नेहिल स्वर में कहा – “वत्स! तुम इतने दुखी क्यों हो.”

विश्वानंद ने हाथ जोड़कर कहा, -“मुनीश्वर ! कोरोना काल चल रहा है ,एक विज्ञापन नहीं प्राप्त हुआ है.”

नारदमुनि- “विज्ञापन ? भला यह क्या बला है. तुम्हारे कहने का अभिप्राय क्या है ?”

विश्वानंद-” मुनिवर ! मेरे कहने का अर्थ बिल्कुल स्पष्ट है. आप जैसे देवर्षि को भला में क्या डिटेल समझाऊं.”

नारदमुनि- “वत्स ! क्या यह विज्ञापन कोई आधुनिक बड़ा भारी राक्षस,दैत्य है!जिसने तुम्हें अवसाद ग्रस्त कर रखा है.”

विश्वानंद – “मुनिश्रेष्ठ! ऐसा नहीं है .दरअसल,मैं एक पत्रकार हूं और 26 जनवरी, 15 अगस्त, दीपावली जैसे राष्ट्रीय प्रादेशिक त्योहारों में विज्ञापन ढूंढता हूं .”

नारदमुनि-” नारायण-नारायण, वत्स यही तो, आखिर यह विज्ञापन है क्या बला ? मुझे स्पष्ट शब्दों में समझाओ .मैं तुम्हारी मदद भरसक करूंगा.चिंतित न होओ.”

विश्वानंद – ( प्रसन्न होते हुए ) -“मुनिवर ! विज्ञापन… इसे यूं समझिये,जैसा की आप करते रहे हैं, देवताओं की प्रशंसागान! असुरों, देत्यो के विरूद्ध  माहौल बनाना, बस कुछ-कुछ ऐसा ही  पत्रकार साल भर करते हैं .और इसके एवज में संपन्न, प्रभावशाली व्यक्तियों से उनके नाम, फोटो को समाचार पत्र में प्रकाशित करके मोहिक लाभ धारण करते हैं. यही विज्ञापन है… समझ गए.”

नारदमुनि – “नारायण – नारायण, मगर इस काम के लिए पैसे लेना यह तो कतई उचित प्रतीत नहीं होता. मुझे ही लो, मैं देव और असुरों के गुण को इधर से उधर पहुंचाता रहा हूं, तो क्या मैंने कभी किसी से फूटी कौड़ी भी ली क्या.”

विश्वानंद- “मुनिवर ! बुरा मत मानिएगा… आपको रुपयों पैसे की क्या दरकार, आप तो अमर हैं! मगर हम मनुष्य अर्थोपार्जन न करें तो घर परिवार को कैसे पाले.”

नारदमुनि- “नारायण नारायण अब तुमने घर परिवार की बात करके हमारी जुबां बंद कर दी वरना हम…”

विश्वानंद-” मुनिश्रेष्ठ एक निवेदन करूं…”

नारदमुनि – ( सहर्ष भाव से ) -“अवश्य वत्स अवश्य.”

विश्वानंद- “अगर आप एक विज्ञापन अपना दे दें, तो बड़ी कृपा होगी.”

नारदमुनि- “हमारा विज्ञापन ?”

विश्वानंद – “मुनिवर !  सच आपका एडवार्टाइज आपको मैं अंचल में फेमस कर दूंगा. आप की छवि को ऐसे निखारूगा की पूछिए मत.”

नारदमुनि- “नारायण नारायण. भला हमें विज्ञापन की क्या आवश्यकता. हमें संसार में कौन नहीं जानता .”विश्वानंद- “मुनिश्रेष्ठ ! देखिए विज्ञापन के कई अर्थ होते हैं एक होता है प्रदर्शन  एक होता है सहयोग….आप यही समझ लीजिए की हमें सहयोग प्रदान कर रहे हैं .”

नारदमुनि – “अरे भाई यह विज्ञापन उझापन छोड़ो हम यूं ही आशीर्वाद प्रदान कर देंगे.”

विश्वानंद- “देवर्षि ! हमारा हृदय ना तोड़ो. बस हां कह दो .ज्यादा नहीं दो-चार हजार का मामला है आपके जैसे प्रतिष्ठित सम्मानित ऋषि-मुनि के लिए यह तो हाथ की मैल है.फिर हम आपको कुछ ऐसा धो मांजकर दुनिया के समक्ष प्रस्तुत करेंगे की लोग देखते रह जाएंगे.”

नारदमुनि- “बड़ी मुश्किल है. हम तो अच्छा फंसे… नारायण नारायण .”

विश्वानंद – “मुनिश्रेष्ठ ! हम आपका इतना प्रभवोत्पादक विज्ञापन प्रकाशित करेंगे कि आप गदगद हो जाएंगे, आप ने स्वप्न में भी कभी कल्पना नहीं की होगी कि आप में यह खूबियां भी हैं.”

नारदमुनि – अच्छा ! तो बताओ…”जरा .”

विश्वानंद- ठीक है कितने का एडवार्टाइज लगा दूं.”

नारदमुनि- “नारायण नारायण अब कहते हो तो छोटा सा लगा लो.”

विश्वानंद- “मुनिश्रेष्ठ आप जैसी दैवीय हस्ती का छोटा-मोटा क्या विज्ञापन होगा ? बड़ा पैकेज होना चाहिए.”

नारदमुनि -“अभी तो हजार-दो हजार  की बात कर रहे थे .अभी पैकेज पर आ गए. अब यह पैकेज क्या है हमें समझाओ.”

विश्वानंद- “मुनिवर ! पैकेज विज्ञापन का पिता  है, यह समझिए एक बिग एमाउंट जिसे लगातार विज्ञापन प्रदान करने वाले द्वारा प्रदाय किया जाता है.” नारदमुनि- “तुम्हारी यह विज्ञापन नीति,,  हमारी समझ से बाहर है…. वत्स हमैं कुछ समझ नहीं आ रहा है .”

विश्वानंद-” मुनिवर आप तो बेहद चालाक निकले. पूर्णत: पसर गए . विज्ञापन पत्रकार और कंपनी के मध्य एक प्रेम है. इसके एवज में अखबार वर्ष भर मुंह सीलकर रखता है .इसके पश्चात आप… अर्थात विज्ञापनदाता चोरी करे, डकैती करें या राहजनी अखबार और अखबारनवीस अपनी आंखें बंद किए रहते हैं.”

नारदमुनि – “तो मैं विज्ञापन नहीं दूंगा. भला मेरा क्या गलत काम है . मैं नहीं दूंगा.”

विश्वानंद – “मुनिश्रेष्ठ ! आपको बहुत महंगा पड़ेगा .”

नारदमुनि – “नारायण नारायण तुम मुझे धमकी दे रहे हो .”

विश्वानंद- “नहीं-नहीं मुनिश्रेष्ठ! मैं और धमकी, मेरी इतनी बखत कहां, मैं तो आपको समझाने का प्रयास कर रहा हूं .”

नारदमुनि – “नहीं नहीं मैं विज्ञापन नहीं दूंगा .”

विश्वानंद- “मुनिश्रेष्ठ इसका परिणाम क्या  होगा,  शायद आप नहीं जानते .अखबार मे आपके खिलाफ प्रकाशित होगा, आपकी छवि को तार-तार कर दिया जाएगा आपके ब्रह्मचर्य, सदा- चारिता की खिल्ली उड़ाई जाएगी . आप कहीं मुंह दिखाने के लायक नहीं रह जाएंगे .”

नारदमुनि-( चेहरे पर चिंता की रेखाएं उभर आयी )-” अच्छा! ऐसा… ऐसा नहीं है तो…”

पाठकों! आगे क्या संवाद हुआ वह खो गया है… आप अपना अनुमान लगाने स्वतंत्र हैं .

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...