महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में 16 मजदूरों की मौत देश की सरकारी व्यवस्था की पोल खोलती नजर आती है. एक साथ 16 लोगों की मौत ने न जाने कितने परिवारों और कितने ही लोगों के सपने को चूरचूर कर दिया है.

मामला महाराष्ट्र के करमाड रेलवे स्टेशन की है. लौकडाउन की वजह से कुछ मजदूर पैदल ही अपने घरों की ओर निकल पङे थे. पहले तो इन्होंने सरकारी आश्वासन पर भरोसा किया जिस में इन्हें घर तक छोङने की बात कही गई थी पर जब कोई रास्ता नजर नहीं आया तो पैदल ही निकल पङे.

पहले तो ये प्रवासी मजदूर सङक मार्ग से चले पर कुछ दूर चलने के बाद ये रेलवे ट्रैक से चलने लगे और लगभग 45 किलोमीटर चलने के बाद भूखप्यास से बेहाल हो कर रेल की पटरियों पर ही सो गए. इन्हें यह भी आभास नहीं रहा कि जिस रेल की पटरियों पर ये सो रहे हैं वहां कुछ ही देर बाद ही मौत गुजरने वाली है. सुबह करीब 5 बज कर 45 मिनट पर एक मालगाड़ी से कट कर 16 मजदूरों की तत्काल मौत हो गई जबकि 3 मजदूर घायल हैं.

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यह पहला मामला नहीं

लौकडाउन के दौरान जान गंवाने वाले लोगों का यह कोई पहला मामला नहीं है. एक अध्ययन में यह सामने आया है कि देशव्यापी बंद के बीच 300 से अधिक ऐसे मामले सामने आए हैं जो प्रत्यक्ष तौर पर तो कोरोना संक्रमण से जुड़े नहीं हैं, लेकिन इस से जुड़ीं अन्य समस्याएं इन का कारण हैं.

शोधकर्ताओं ने 19 मार्च से लेकर 2 मई के बीच 338 मौतें होने का दावा किया है, जो लौकडाउन से जुड़ी हुई हैं.

एक अध्ययन के अनुसार आंकडें बताते हैं कि 80 लोगों ने अकेलेपन से घबरा कर और संक्रमण के भय से आत्महत्या कर ली तो दूसरी तरह मरने वालों का सब से बड़ा आंकड़ा प्रवासी मजदूरों का है.

भूख और आर्थिक तंगी मुख्य वजह

कोरोना संक्रमण के चलते देशव्यापी बंद होने की वजह से प्रवासी मजदूर अपने घरों को लौटने लगे. जहां कई सड़क दुर्घटनाओं में 51 प्रवासी मजदूरों की मौत हो गई, तो वहीं शराब नहीं मिलने से 45 लोगों की मौत हो गई और भूख एवं आर्थिक तंगी के चलते 36 लोगों की जानें गईं.

शोधकर्ताओं ने तो 2 मई तक के ही आंकड़े जारी किए हैं लेकिन 8 मई को 16 और प्रवासी मजदूरों की मौत हो गई.

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घर पहुंचने की लालसा

कोरोना के चलते हुए लौकडाउन की सब से बड़ी मार मजदूरों पर पड़ी हैं. जो जहां था वहीं रुक गया, लेकिन तंग हालात में मजदूर कितने दिनों तक अपने धैर्य को बांध कर रखता? लिहाजा वे पैदल ही निकल पड़े हजारों किमी का सफर तय करने के लिए. उन के मन में सिर्फ घर पहुंचने की लालसा थी.

मीडिया में आई खबरों के अनुसार कुछ मजदूरों का कहना था कि पैसा पूरी तरह से खत्म हो चुका है, कैसे जीवनयापन करते तो पैदल ही चल दिए, तो वहीं कुछ का कहना है कि यहां पर रुकने की और न ही भोजन की कोई व्यवस्था मिली ऐसे में क्या करते?

सरकार जरूर इन मजदूरों को उन के गृह राज्य भेजने का काम कर रही है. लेकिन, फिर मजदूरों से रेल किराया वसूलने का मामला सामने आया जिस की काफी आलोचनाएं हुईं. हालांकि इस के बाद यात्राएं जरूर निशुल्क हो गईं.

करमाड स्टेशन के पास हुआ हादसा

महाराष्ट्र के औरंगाबाद में करमाड रेलवे स्टेशन के पास यह दर्दनाक घटना घटी है. महाराष्ट्र के जालना से भुसावल की ओर पैदल जा रहे मजदूर अपने गृह राज्य मध्य प्रदेश लौट रहे थे. वे रेल की पटरियों के किनारे चल रहे थे और थकान के कारण पटरियों पर ही सो गए थे. जालना से आ रही मालगाड़ी पटरियों पर सो रहे इन मजदूरों पर चढ़ गई.

मारे गए ये मजदूर जालना के एक इस्पात फैक्टरी में काम करते थे लेकिन लौकडाउन के चलते काम नहीं होने की वजह से 5 मई को इन लोगों ने अपने गृह राज्य मध्य प्रदेश जाने का सफर शुरू किया. शुरू में तो मजदूर सड़क के रास्ते ही घर जा रहे थे लेकिन औरंगाबाद के पास आते हुए इन्हें रेलवे ट्रैक दिखाई दिया. जिस पर ये चलने लगे. इस समूह के साथ चल रहे 3 मजदूर जीवित बच गए क्योंकि वे रेल की पटरियों से कुछ दूरी पर सो रहे थे, हालांकि वे भी घायल हैं.

रेल मंत्रालय ने ट्वीट कर घटना की जानकारी दी और कहा कि मालगाड़ी के लोको पायलट ने इन्हें देख लिया था और बचाने का प्रयास भी किया मगर हादसा हो गया. रेलवे ने इस पूरे मामले की जांच के आदेश दे दिए गए हैं.

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मुआवजे का ऐलान

रेल दुर्घटना में मारे गए 16 प्रवासी मजदूरों के परिजनों को मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 5-5 लाख रुपए की आर्थिक सहायता देने का ऐलान किया है मगर इन मौतों से लोगों की सरकारी व्यवस्था पर से भरोसा उठने लगा है.

उधर उत्तर प्रदेश के लखनऊ से भी खबर है कि जानकीपुरम में रहने वाला एक मजदूर परिवार साइकिल से अपने घर छत्तीसगढ़ जाने के लिए निकला था मगर रास्ते में ही किसी वाहन ने जोरदार टक्कर मार दी. इस टक्कर से मातापिता की तत्काल मौत हो गई जबकि 2 बच्चे बच गए. अब उन का कोई नहीं है.

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