कुछ साल पहले एक फ़िल्म आई थी “चला मुरारी हीरो बनने” जिंसमे दिखाया गया था कि किस तरह से एक कलाकार हीरो बनने मुम्बई जाता है. उसके जीवन का संघर्ष मुंबई जा कर पूरा होता है. इस संघर्ष पर और भी तमाम फिल्में बनी थी.कोरोना के संकट भरे दौर में अब मायानगरी मुम्बई से वापस पलायन हो रहा है.

जो मायानगरी मुम्बई कभी कलाकारों के लिए सबसे बड़ा मुकाम होती थी जंहा कलाकार को उसकी कला के हिसाब से पारितोषिक मिलता था वँहा छोटे स्ट्रगलर कलाकार भुखमरी की कगार पर पहुँच गए है. प्रधानमंत्री फंड में करोड़ो का दान देने वाले बड़े कलाकरों को भी इनकी कोई फिक्र नही है. प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक गुहार लगाने वॉले इन कलाकारों की कंही सुनवाई नहीं हो रही. मुम्बई के तमाम फ़िल्म स्टूडियो बन्द है. फिल्मों को अब जल्दी सिनेमाघरों में लगना मुश्किल है. ऐसे में फिल्मों की शूटिंग बन्द है. शादी, पार्टी, इवेंट्स के बन्द होने से भुखमरी के हालात बिगड़ते जा रहे है. गांव घर से भाग कर मायानगरी मुम्बई जाने वाले यह कलाकार अब मुम्बई से भाग कर वापस अपने गांव घर आ रहे तो उनको उपेक्षा का शिकार भी होना पड़ रहा है.

 

बुरे हाल में यूपी बिहार के कलाकार

मायानगरी मुम्बई में अपने सपनो को पूरा करने गए यूपी, बिहार और दूसरे कई प्रदेशों के आर्टिस्ट लॉक डाउन में भुखमरी की कगार पर पहुँच गए है. इनकी हालात दिहाड़ी मजदूरों से भी बुरी हो रही है. दिक्क्क्त की बात यह है कि आर्टिस्ट होने में कारण यह मजदूरों की तरह किसी से कुछ मांग भी नहीं सकते है.

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आर्टिस्ट वेलफेयर एसोसिएशन उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष अंजनी उपाध्याय कहते है “यूपी और बिहार के हजारों आर्टिस्ट मायानगरी मुम्बई में अपने सपनो को पूरा करने हर साल जाते है. इनमे से कुछ वंही रह कर काम करते है कुछ अपने गांव घर आते जाते रहते है. होली में यह आर्टिस्ट अपने घर नही आते क्योंकि होली मिलन के कई कार्यक्रमों में उनकी कमाई हो जाती थी. इस साल होली में कमाई के लिए मुम्बई में रुके यह आर्टिस्ट लॉक डाउन के बाद वंही फंस गए और अब भुखमरी के कगार पर पहुँच गए है. क्योंकि होली से ही उनको कार्यक्रम नही मिले”

कोरोना इफेक्ट में बन्द हो गए स्टेज कार्यक्रम

वैश्विक महामारी  कोरोना में लॉकडाउन होने के कारण उन कलाकारों के सामने भारी आर्थिक संकट खड़ा हो गया है जिनकी रोजी रोटी ही कला के भरोसे चल रही थी.

मुंबई और दूसरे बड़े शहरों में सभी छोटे कलाकारों का यही हाल है. बड़े कलाकारों को छोड़कर जितने भी दैनिक कलाकार हैं वो दैनिक मजदूर की तरह सांस्कृतिक कार्यक्रमों के ज़रिए ही अपनी रोजीरोटी का इंतजाम करते थे.

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मुम्बई में रहने वाले जौनपुर के सुरेश शुक्ला कहते है “मुम्बई में होली मिलन बड़े पैमाने पर होता था. यह आयोजन यूपी बिहार के लोग करते थे. इनमे भोजपुरी और अवधी गाने वालो को सबसे अधिक काम मिलता था. कुछ कलाकार तो होली उत्सव से ही इतना कमा लेते थे कि उनके साल भर का मुम्बई में रहने के किराए का इंतजाम हो जाता था. इस साल होली में काम नही मिला. इसके बाद अप्रैल माह से शुरू होनी वाली सहालग में भी काम नही मिला. ऐसे में इन कलाकारों के हालात बेहद खराब हो गए है.”

होली के बाद शादी सीजन भी गया

होली के बाद दूसरे सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन नही हुआ. कलाकारों को यह उम्मीद थी कि 14 अप्रैल को पहला लॉक डाउन खत्म हो जाएगा. इसके बाद शादियों का सीजन शुरू हो जाएगा तो बेकारी के दिन खत्म हो जायेगे. जब 14 अप्रैल के बाद दूसरा लॉक डाउन 03 मई तक और उसके बाद 17 मई तक तीसरा लॉक डाउन घोषित हो गया तो सारी उम्मीद खत्म हो गई.

शादियों के इवेन्ट मैनजमेंट देंखने वाली पूजा वाजपई कहती है ” शादियों में अब पहले की तरह खर्च नहीं होंगे और ज्यादा भीड़भाड़ नही होगी ऐसे में शादियों के इवेंट्स बन्द हो जयेगे. जिसका प्रभाव उन कलाकारों पर पड़ेगा जो शादियों में सेलेब्रेटी गेस्ट बनकर जाते थे. उन आर्टिस्ट का काम भी खत्म हो जाएगा जो शादियों के फंक्शन में नाच गाने से जुड़े होते थे.”

छोटी बड़ी हर शादी में आर्केस्ट्रा पर डान्स करने के लिए छोटे कलाकारों को बुलाया जाता था. इनको 10 हजार से 25 हजार एक रात का पैसा मिलता था. यह कलाकार जब शूटिंग नही करते थे तब शादियों में डान्स और गाने के सहारे अपना काम चला लेते थे. शादियो में होने वाले फंक्शन में अब यह ट्रेंड खत्म हो रहा है। पूजा वाजपई कहती है “केवल लॉक डाउन तक ही नही लॉक डाउन खुलने के बाद भी अब कम से कम साल भर शादियों में पहले जैसी रौनक नही होगी.  इस कारण शादियों के फंक्शन से जुड़े ऐसे आयोजनों में कमी आएगी और इससे जुड़े कलाकार बेरोजगार हो जयेगे”.

कैसे होगा परिवार का पोषण

यह आर्टिस्ट अपने कला प्रदर्शन के ज़रिए अपने परिवार का भरण-पोषण करते थे. अब कार्यक्रम ना होने से यह अपने परिवार का पालन पोषण कैसे कर पाएंगे यह सबसे बड़ी चिंता का विषय है. इनमे बड़ी संख्या में गरीब दैनिक मजदूर कलाकार शामिल है. इनमे गीत-संगीत, नृत्य, नाटक, जादू, कठपुतली, साउंड श्रमिक, बैण्ड पार्टी, ढोल भांगड़ा, शहनाई आदि विभिन्न विधाओं से जुड़े कलाकार शामिल हैं.

आर्टिस्ट वेलफेयर एसोसिएशन उत्तर प्रदेश के अध्य्क्ष अंजनी उपाध्याय कहते है “कलाकारों की आर्थिक मदद के लिए हम कलाकारों ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखा और उनसे मांग की कि स्ट्रगलर कलाकरों की मदद की जाए. जिनके पास लॉक डाउन की वजह से बेरोजगारी आ गई है. यह कलाकार और इनके परिवार भुखमरी के शिकार हो गए है”.  इस संकट में कलाकार समुदाय को यूपी सरकार से राहत राशि की अपेक्षा है.

अब मुंबई में रहना हुआ दूभर

मुंबई में रह कर संघर्ष कर रहे कुछ कलाकरों ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भी पत्र लिखा है. इनमे दिनेश चन्द्र उपाध्याय, गायक सुरेश शुक्ल, म्यूजिशियन प्रकाश तिवारी, देवेश पाठक और प्रियांशु शामिल है यह सभी कहते है कि हम कलाकारों की हालत “रोज कुंआ खोदो रोज पानी पियो वाली” थी. केवल फ़िल्म, सीरियल, या बड़े आयोजनों के साथ ही साथ हम लोगो जन्मदिन, सालगिरह, बिजनेस पार्टी में भी गाने बजाने का काम करके अपनी जरूरतों को पूरा करते थे. अब यह पार्टियां बन्द हो गई है। ऐसे में बहुत सारे स्ट्रगलर कलाकार बेकारी झेल रहे है. हमारे पास खुद और परिवार के पालन पोषण का कोई रास्ता नही रह गया है.

उत्तर प्रदेश बिहार के यह कलाकार अब घर वापसी करना चाहते हैं. दिक्क्क्त कि बात यह है कि बहुत सारे कलाकारों के पास यँहा भी कोई काम नही है. यँहा से मुम्बई जाने का कारण ही यह था कि मुंबई में मेहनत करके पैसा मिल रहा था.

आसान नही घर वापसी

यूपी बिहार के तमाम कलाकार जिस हालात में मुम्बई गए उसमे कई बार उनका अपने गांव घर से रिश्ता नाता टूट गया था.कई कलाकार तो अपने गांव की खेती और घर तक बेच कर मुम्बई रहने लगें थे. ऐसे लोग अब वापस गांव रहने नही आ सकते. मुम्बई में काम है नही और वँहा की महंगाई कम नही है. इसके अलावा एक आर्टिस्ट के रूप में रहन सहन का खर्च अलग होता है. इस खर्चो की वजह से रखा पैसा भी जाता अब नही बचा है. मुम्बई में रहने का किराया ही इतना है कि बिना काम किये कोई रह नहीं सकता.

हिंदी फिल्मों की कलाकार सुप्रिया कहती है “किसी बड़े कलाकार के लिए भले ही यह दिन मुश्किल भरे ना हो पर छोटे कलाकार का इस संकट के दौर को जीवन व्यतीत करना बहुत कठिन है. खास कर महिला कलाकारों के लिए क्योकि वह तो मेहनत मजदूरी वॉले काम भी नही कर सकती. ज्यादातर लोग उनकी मजबूरी का फायदा भी उठाने के प्रयास में रहते है. ऐसे में स्ट्रगलर कलाकारों के लिए यह दिन बहुत कठिन है. कोरोना से अधिक रोजीरोटी का सवाल है”.

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