टमाटर को बोने वाले किसानों की तो मानो कमर ही टूट गई है. एक ओर कोरोना का डर सता रहा है, वहीं दूसरी ओर फसल बचाने की चिंता. ऊपर से मौसम भी अठखेलियां कर रहा है. कभी जम कर बारिश हो रही है, तो कहीं ओले गिर रहे हैं. इस वजह से फसल में रोग व कीट लग रहे हैं.
लौकडाउन लगने के बाद जब इन किसानों को खेतों में जा कर काम करने की छूट दी गई तो ये किसान खेतों की ओर दौड़ पड़े, तब तक काफी देर हो चुकी थी. वजह, वहां के खेतों में टमाटर ही टमाटर हैं, लेकिन ज्यादातर खराब हैं क्योंकि समय पर कीटनाशक दवा का छिड़काव नहीं हो पाया.
वहीं दूसरी वजह, लौकडाउन में कीटनाशक दुकानों पर ताले लटके हुए थे, इस वजह से ये किसान कीटनाशक खरीद नहीं पाए और समय पर दवा नहीं छिड़क सके.
इसी तरह की दोचार समस्याओं से जूझ रहे किसानों के सामने माली संकट गहरा गया है, वहीं बचा कर रखे पैसे भी खत्म होने के कगार पर हैं. इतना ही नहीं, किसानों ने कर्ज ले कर टमाटर की फसल उगाई थी, पर अब टमाटर के खरीदार ही नहीं मिल रहे. इस वजह से वे साहूकारों का पैसा नहीं लौटा पा रहे हैं.
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इन किसानों के सपने अब बुरी तरह टूट चुके हैं. समस्याएं विकराल रूप लिए खड़ी हैं. एक ओर मंडी में टमाटर की आवक कम हुई है, वहीं टमाटर के पौधों में तमाम तरह की बीमारी लग गई है. खेतों में समय पर कीटनाशक छिड़काव नहीं हो पाया. इस वजह से टमाटर की पूरी फसल ही तबाह हो गई.
वैसे, टमाटर में मोजैक बीमारी लगने से फलन में जहां कमी आई है, वहीं पत्तियां भी पीली पड गई हैं और तना सड़ गया है. वहीं, मौसम में अचानक आए बदलाव से टमाटर में ब्लाइट रोग लग गया है.
इस रोग में टमाटर के पौधों के पत्तों पर काले धब्बे पड जाते हैं. इस से नजात पाने के लिए किसानों को समय रहते दवा का छिडकाव करना चाहिए, पर ऐसा हो न सका.
वैसे, इस बीमारी से नजात पाने के लिए ब्लाईटौक्स 30 ग्राम प्रति 10 लिटर पानी में घोल बना कर पौधों पर छिडकाव करें. फिर भी पौधों पर असर न दिखे तो 10-12 दिन के अंतराल पर फिर से दोबारा छिडकाव करें.
मुरादनगर, गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश में कई ऐसे गांव हैं, जहां किसानों की टमाटर की फसल खराब हो गई. किसानों की समस्या यह है कि वे पहले खुद को तो कोरोना से बचा लें. वहीं मजदूरों की समस्या से भी जूझना पड़ रहा है.
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लौकडाउन में सब्जी की मंदी है. यही कारण है कि कोई बड़ा कारोबारी उसे नहीं खरीद रहा. इस प्रतिबंध की वजह से किसान खुद भी मंडी तक टमाटर नहीं पहुंचा सकते. अगर वे किसी तरह टमाटर मंडी तक पहुंचा भी देते हैं तो उन्हें इस की पूरी लागत नहीं मिल पाती है. उलटा लागत से अधिक ट्रांसपोर्ट का खर्चा आ जाता है.
टमाटर की खेती करने वाले एक किसान का कहना है कि इस बार हमें बहुत ज्यादा नुकसान हुआ है क्योंकि टमाटर की खेती खराब हो चुकी है. और जो टमाटर बचे हैं, उस के लिए खरीदार नहीं हैं. ऐसे में हम बहुत परेशान हैं.
कुछ ऐसे ही हालात दूसरे किसानों के भी हैं. ठेके पर खेत ले कर टमाटर की खेती करने वाला एक किसान बताता है कि हमारी कमाई का यही जरिया है, लेकिन बीमारी लगने से खेती ही बरबाद हो गई. मुसीबत यह है कि एक तो टमाटर की खेती में लागत नहीं निकल पा रही है, वहीं जमीन मालिकों को भी पैसा देना होता है. एक बीघा टमाटर की खेती करने पर 12,000 से ले कर 14,000 रुपए की लागत आती है, वहीं इसे बेचने पर किसानों को 40,000-50000 रुपए तक की आमदनी होती थी, लेकिन इस बार आमदनी कुछ है ही नहीं.
वहीं एक और किसान के मुताबिक, इस बार टमाटर की 5 से 6 बीघा फसल में तकरीबन 4 लाख रुपए से ज्यादा का नुकसान हो रहा है. अगर वे सब्जियों को मंडी ले जाने की कोशिश करते भी हैं तो रास्ते में पुलिस तंग करती है यानी एक तरफ कीटनाशक दवा की कमी से टमाटर खराब हो गए हैं, जो बचे भी हैं उसे मौसम ने बरबाद करने में कसर नहीं छोड़ी है.
यही वजह है कि सब्जी की बड़ी मंडियों में टमाटर पहुंच ही नहीं पा रहा है. अगर किसी वजह से पहुंच भी जाए तो वहां उचित कीमत नहीं मिल पा रही. वहीं बाहर के देशों पाकिस्तान, अफगानिस्तान वगैरह में पाबंदी लगने के कारण टमाटर नहीं पहुंच पा रहा है. इस वजह से टमाटर पडे़पडे़ सड़ रहे हैं या खराब हो रहे हैं.
टीकमगढ़ कसबे का एक किसान अपनी परेशानी कहता है कि उस ने कर्ज ले कर 2 एकड़ में टमाटर की फसल तैयार की थी, पर रोग लगने के कारण टमाटर की फसल काली पड़ने के साथ ही सूख गई. अब वह परेशान है कि उस की रोजीरोटी कैसे चलेगी.
एक ओर उत्तर भारत में बीमारी का गहराता संकट है, वहीं दूसरी ओर महाराष्ट्र व दक्षिण भारत के कई इलाकों में किसानों के खेतों में जहां टमाटर की बंपर पैदावार हुई है, पर वहां खरीदार नहीं मिल रहे. औनेपौने दामों में टमाटर के बिकने से किसान परेशान हैं.
उत्तर गुजरात के गांवों में रोज हजारों किलो टमाटर सडकों पर फेंके जा रहे हैं. वजह, मुनासिब दाम न मिलना है. वहां की मंडियों में टमाटर की कीमत महज 2-3 रुपए या इस से कम है. वहीं गुजरात के साणंद जिले के आसपास के गांवों में किसान बाजार में बेचने के बजाय जानवरों को खिलना बेहतर समझ रहे हैं. वजह टमाटर के दाम में आई भारी गिरावट है.
गुजरात में तकरीबन 50,000 टन टमाटर का उत्पादन होता है, वहीं इस साल 15 फीसदी की बढ़ोतरी हुई. लेकिन उत्पादन बढ़ने के बावजूद पाकिस्तान और अफगानिस्तान जैसे देशों को होने वाला एक्सपोर्ट भी बंद है. घरेलू मांग कम होने से किसानों के पास ज्यादा विकल्प नहीं बचे हैं. ऐसे किसानों को सरकार से उम्मीद है कि सरकार कम से कम ट्रांसपोर्ट में सब्सिडी दे ,ताकि इन का यह सीजन फेल न हो. पर, किसानों के सामने संकट है कि टमाटर के दाम खेतों से मंडियों तक की ढुलाई लागत से भी नीचे जा चुके हैं.
राष्ट्रीय बागबानी अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान द्वारा इकटठा किए गए आंकडों के मुताबिक, महाराष्ट्र में नासिक जिले की बेंचमार्क पिंपलगांव मंडी में पिछले दिनों अच्छी क्वालिटी वाला टमाटर डेढ़ से 2 रुपए प्रति किलों की दर पर बिका. दामों के इस स्तर ने किसानों को चिंता में डाल दिया, क्योंकि खेतों से मंडी तक की ढुलाई लागत इस से कहीं ज्यादा है.
इन किसानों की मुसीबतें कम होने का नाम ही नहीं ले रही हैं. छोटे व मंझोले किसानों पर दोहरीतिहरी मार पड़ी है. इन किसानों को सरकार से उम्मीद तो है, पर कितनी, कहना मुश्किल है. अब सरकार व प्रशासन को समझना है कि इन किसानों की समस्याएं कैसे हल की जाएं.