बेहद रसीले फल वाला चकोतरा पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार में खासा पसंद किया जाता है. यही वजह है कि इस की बाजार में अच्छीखासी मांग होती है. चकोतरा में रोग प्रतिरोधी कूवत होती है. ग्रेप फ्रूट नाम से मशहूर चकोतरा फल में साइटिक एसिड और शर्करा संतरे के मुकाबले कम होता है. इस का स्वाद खट्टा और मीठा होता है. यह नींबू और संतरे की प्रजाति का यह फल है.

इतना ही नहीं, चकोतरा में पोटैशियम, केल्शियम, फास्फोरस और लाइकोपीन सहित कई दूसरे पोषक तत्वों और विटामिन होते हैं. इस फल में विटामिन सी कई रोगों को दूर करता है.

बीजरहित किस्म ‘पूसा अरुण’….

पूसा, नई दिल्ली के वैज्ञानिकों ने चकोतरा फल की पहली बीजरहित किस्म ‘पूसा अरुण‘ तैयार करने में कामयाबी पाई है. वैज्ञानिकों के मुताबिक, यह दुनिया में चकोतरा की पहली बीजरहित किस्म है.

चकोतरा के सामान्य फलों का साइज 1200 ग्राम या इस से ऊपर तक होता है. बड़े साइज का इस का आकार लोगों के लिए परेशानी का कारण बनता है. इसी वजह से वैज्ञानिकों ने इस नई किस्म का साइज घटा कर तकरीबन 350 से 500 ग्राम तक करने में कामयाबी पाई है, जो लोगों के बीच ज्यादा लोकप्रिय हो सकती है.

वैज्ञानिकों का दावा है कि चकोतरा की नई किस्म बो कर किसान हर पेड़ से तकरीबन 2000 रुपए तक की कमाई कर सकते हैं.

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नई किस्म की खूबी

चकोतरा की नई किस्म तैयार करने वाले वैज्ञानिक ने बताया कि इस की पुरानी किस्म साइज में बड़ी यानी तकरीबन 1200 से 1300 ग्राम तक होने के बाद भी अपेक्षाकृत कम रसीली होती है, लेकिन नई किस्म के कुल वजन का तकरीबन 41.13 फीसदी हिस्सा रस का ही होगा.

इस तरह नई किस्म के छोटे साइज यानी तकरीबन 350 से 500 ग्राम तक के बाद भी यह ज्यादा रस देगा. नई किस्म पूरी तरह मीठी होगी और खट्टापन न के बराबर होगा. ज्यादा बड़ा साइज होने से भी लोग इसे लेने में हिचकते थे, क्योंकि काटे फल को ज्यादा देर तक खुले में रखना ठीक नहीं होता, इसलिए इसे एक ही बार में खत्म करने की मजबूरी होती है, जो कई बार संभव नहीं होता, जबकि नई किस्म छोटी है, जिसे बच्चों को या कम भूख लगने पर एक बार में ही इस्तेमाल किया जा सकता है.

किसानों को फायदा

चकोतरा की नई किस्म की सब से बड़ी विशेषता यह है कि इसे ज्यादा समय तक पेड़ों पर ही महफूज रखा जा सकेगा. इसे पकने की स्थिति में भी पेड़ों पर 2 से 3 महीने तक छोड़ा जा सकेगा. इस से किसानों के ऊपर भंडारण की कीमत नहीं आती और फलों की कीमत बाजार में कम होने की स्थिति में कुछ समय तक के इंतजार के लिए इसे पेड़ों पर ही छोड़ा जा सकता है. इस के पकने का समय अक्तूबर से फरवरी माह तक होता है, जब बाजार में दूसरे मीठे फल नहीं होते. इस तरह भी यह फल लोगों के लिए एक अच्छा विकल्प बन सकता है.

इस नई किस्म चकोतरा की बोआई जुलाई से सितंबर माह के बीच या फरवरीमार्च माह में की जा सकती है. नई किस्म के पेड़ का आकार छोटा होता है, इसलिए इसे सघन बागबानी में 4×4 या 4×5 मीटर की दूरी पर उगाया जा सकता है, जबकि पुरानी किस्म के बड़े पेड़ 7×7 मीटर जगह लेते हैं, जो कम उपयोगी होता है.
हर पेड़ से तकरीबन 45-46 किलोग्राम तक फल हासिल किए जा सकते हैं. चकोतरा की नई किस्म को पूसा, नई दिल्ली से हासिल किया जा सकता है.

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सेहत के लिए फायदेमंद

चकोतरा फल भी लोगों में रोग प्रतिरोधी कूवत पैदा करने में मददगार होता है. इस में एंटीऔक्सीडेंट खूब प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं. इस में सूक्ष्म मात्रा में (0.39 फीसदी) साइट्रिक एसिड भी पाया जाता है, जो इस के स्वाद और उपयोगिता को बढ़ाता है और लोगों को बहुत पसंद आता है.

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